जम्मू-कश्मीर में सर्दियों के शुरू होते ही गर्मी देने वाली कांगड़ी का ख्याल आता है. कांगड़ी के तैयार करने के लिए सबसे पहले मोटी अंगीठी, जिसको कश्मीरी में कुंडल कहा जाता है. जिसे तैयार करने के लिए बेत की टहनियों का इस्तेमाल होता है. इन कांगड़ी बनाने वाले कारीगरों को कश्मीरी में कनल कहा जाता जो कुम्हार होते है. इन कांगड़ियों में अंगारे से भरे मिट्टी के बर्तन रखे जाते हैं. जिसे कांगड़ी अच्छे से संभालती हैं. ठंडी में गर्माहट देती है.कांगड़ी की कारीगरी से कई लोगों की रोजी रोटी चल रही है. लेकिन इस काम को करने वाले लोग दूसरे रोजगार की तरफ रुख कर रहे हैं. क्योंकि अब इस काम में कम मुनाफा नहीं रहा.किसी जमाने में कांगड़ी में केवल मिट्टी का बर्तन रखने के काम आती थी. लेकिन वक्त गुजरने के साथ कारीकगरों ने बेत का इस्तेमाल करके इन्हें देसी हीटर बना दिया. आमतौर पर कांगड़ी बनाने के काम आदमी करते है. महिलाएं इसको बानने में इस्तेमाल होने वाले बेत को छीलने का काम करती हैं.पहले कांगड़ी को बनाने के कारोबार से ज्यादा लोग जुड़े थे. लेकिन अब इस काम को करने वाले कम ही बचे हैं. युवा इस काम को नहीं सीखना चाहते. क्योंकि अब इसकी मांग नहीं रहीं. आने वाले समय में कम लोग ही बचे जो इस काम को करें. शायद वक्त के साथ कांगड़ी अपनी पहचान खो दें.
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