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Transcript
00:00और जब यह दिख ज़ता है न हम जिस समाज में हैं, जिस दुनिया में हैं, वो दुनिया तुम्हें कुछ नहीं दे सकती, क्योंकि उसके पास कुछ है ही नहीं, तब जाकर के पूर्ण निराशा उतरती है, जब तक ये लगता रहेगा दुकान में तो है, मुझे ही नहीं मिल �
00:30पाशा का तो कोई अन्ठ हो नहीं सकता ना,
00:31चश्मा नहीं मिला,
00:33जूता नहीं मिला,
00:33शर्ट नहीं मिला,
00:37ब्रहमांड में इतनी वस्तु है,
00:39कोई ना कोई तो वस्तु मिली जाएगी,
00:41और दुकान में एक
00:43मोटिवेशन वाला पोस्टर जरूर लगा हुआ है,
00:46हार मत मानना लगे रहना पंजर जमीन नहीं उम्मीद यह है कि सूखी चटान पर फूल खिलेंगे
00:54जूट के साथ जिंदगी से बहतर है सच के साथ मौत नहीं चाहिए जिंदगी
01:04वो साहस वो दुस साहस कि मार दिलात नहीं चाहिए जूट के परति जिन में इतनी वित्रशना पैदा हो गई हो
01:19उब, घ्रणा से भी आगे की बात होती हूँ, घ्रणा में कम से कम कोई रिष्टा तो बचता है न, जिससे घ्रणा है इतना तो करोगे कि उसे डंडा लेके मारोगे, उब का अर्थ होता है, तुझे डंडे से मारने का भी मन नहीं है,
01:37डंडे को मैंने पकड़ रखा है और डंडा तुझे चुएगा तो डंडे के माध्यम से मुझ में तुझ में कोई रिष्टा बन जाएगा, मैं तेरे साथ इतना भी रिष्टा नहीं रखना चाहता कि तुझे डंडे से भी मारूँ, घ्रणा से आगे की बात है उब, उब अना
02:07जब उब पैदा हो जाती है, तो त्याग निश्प्रयास होता है, बस गिर गया, कुछ पकड़ रखा था, इतना उब गए उससे, कि न उसे पकड़ने की इच्छा बची न दूर फेकने की, बस ऐसे जैसे पकड़ ढीली हो गया, निश्प्रयास गिर गया
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