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00:00प्रेम का अर्थ होता है अपने स्वार्थ से उपर उठ करके दूसरे की भलाई
00:21उसमें डर तो नहीं लगेगा ना कि मैं किसी का भला करने जा रहा हूँ
00:24निश्यत रूप से इच्चा होगी कुछ मांगने जा रहे होगे तब डर लग सकता है कि मिलेगा कि नहीं मिलेगा
00:30देने में तो डर नहीं होता मांगने में डर होता है
00:33हम प्रेम नहीं जानते प्रेम के नाम पर आकर्शन जानते हैं और आकर्शन बिल्कुल मुर्दा चीज है प्रेम से ज्यादा जिन्दा कुछ नहीं और आकर्शन से ज्यादा मुर्दा कुछ नहीं इसमें प्रेम कहां है
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