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00:00:00दो जने हैं, उनकी कहानी है, अब इनको सुनो, दो जनों में पहले है एक राजा, राजा सुरत, तो जैसे राजा अपने शेतर में एक अग्रणी राजा थे, वैसे ही जो व्यापारी है, तो वो होता है सुरत नाम का व्यापारी, व्याष्य, ये तगडा सेठ होता है अपने स
00:00:30दोनों ने पूछा कि हम सब जानते हैं, फिर भी हम क्यों मोमों से ग्रस्त हैं और दुख भोग रहे हैं, तो रिशी उन्हें किस तरफ को ले जा रहे हैं, तो यहां से महा माया की कथा की शुरुआत होती है, समझना चाहते हो कि तुम्हारे साथ अगर क्या हो रहा है, तो उसक
00:01:00समस्या सुलजाई भी किसने माने, तो सब्तिशती कहती है, माही बंधन है, माही मोक्ष है, यह बताने के लिए यह पूरा वितान्त कहा गया है,
00:01:14जलिए ब जरा माता से कुछ बात कर लीजए, तो सब्तिशती, अब यह मुझे बहुत बहुत,
00:01:27बहुत प्यारी रही है, सबसे पहले आजसे तीन साल पहले हुआ था दो साल पहले हुआ था हाण?
00:01:38तीन साल, तीन साल तो 2020 हो गया ना? दो साल, दो साल पहले, तो रिशकेश में थे,
00:01:47और तब पूरी सब्शती पे एक एक श्लोक ले करके पूरा भाष्य तयार किया था
00:01:55तो रुची इसमें पहले से थी और जो पूरा काम था वो
00:02:04सितंबर 2021 में हुआ था एक महीने के अंदर अंदर ही हुआ था
00:02:13सब्शती है कुछ 700 के हाकड़े में विशेश है जो दो ग्रन्त
00:02:20मुझे प्रिय हैं दोनों में 700 कौन से बनों में 700 थीक है
00:02:28विशेश बात क्या है विशेश बात ही है कि उधर जो मामला है वो ग्यान का है
00:02:36वहाँ पर कृष्ण ज्यादा तर आपको बोलते नजर आएंगे पुरुष की और से
00:02:42और यहाँ जो पूरी बात है वो प्रक्रति की और से है
00:02:46बहुत बढ़िया
00:02:49वहाँ
00:02:55वहाँ ब्रह्म की बात है जो उपास से है
00:03:02यहाँ प्रक्रति की बात है जो उपाय है
00:03:07और उपास से तक पहुचना है तो उपाय तो चाहिए न
00:03:11कि नहीं
00:03:18वहाँ साध्ध्य की बात है यहाँ क्या है यहाँ साधन
00:03:25है तो आने वाले तीन चार सत्रों में अश्टावकर गीता के
00:03:37हम सब्षती का एक एक चरित्र लेते रहेंगे ठीक है
00:03:42पहला चरित्र तो बस जो पहला उसका प्रक्रणिया पहला अध्याय है वो उतन नहीं है तो आज हम ले
00:03:53लेंगे वो प्विस्तार में बात भी कर पाएंगे दूसरा थोड़ा बढ़ता है उसमें जो दूसरा तीसरा
00:04:00चौथा ध्याय हो आ जाते हैं दूसरे चरित्र में तीसरा है लेकिन वो लंबा है काफी शुम्ब निशुम्ब वाला तो उसमें पांचवे से लेके तिरहवें प्रकरण तक है तो यह कुछ निश्चित नहीं है कि जो तीसरा है वो एक ही सत्र में समाप्त हो पाएगा कि नहीं
00:04:30मा कोई नौ दिनों तक सीमित थोड़ी है नौ दिन में अगर हो गया काम तो ठीक है नहीं तो फिर एक दिन और भी लेना पड़ेगा ले लेंगे
00:04:41तो पहले तो रूप रेखा बता देते हैं तो साथ सोच लोग है इतना कह दिया तेरह इसमें प्रकरण है वो भी कह दिया और तेरह चरित्रों में कैसे बटे है वो भी कह दिया जो पहला प्रकरण है उससे पहला चरित्र है तो दूसरा है तीसरा तीसरा चौथा उससे दूस
00:05:11तीन गुण होते हैं उनकी आधार पे बटे हैं तो शुरुवात होती है तमोगुण से तो जो पहला
00:05:20चरित्र है वो महाकाली को समर्पित है महाकाली को और वहां जिसका नाश होता है
00:05:30वो है मधुकैटब
00:05:32पहला चरित्र महाकाली
00:05:34मधुकैटब
00:05:35तमोगुण
00:05:38पहला चरित्र
00:05:40तमोगुण
00:05:41महाकाली मधुकैटब
00:05:44यह पहला चरित्र है जो आज लेंगे
00:05:46दूसरा चरित्र
00:05:50रजोगुण
00:05:52महालक्षमी
00:05:54महिशासुर
00:05:55तो जिसको हम आमत तोर पे दुरगा सबशती या देवी महात्मे कहते हैं
00:06:06वो असल में दूसरा चरित रहा है
00:06:07दूसरा चरित ठीक है
00:06:10और जन मानस में लक्षमी धन्धाने की देवी बन गई है
00:06:16लेकिन सबशती के अनुसार महा लक्षमी ही महा दुरगा है
00:06:22रजो गुड़ी जैसे प्रक्रते के तीन गुड़ है न तो मा देवी महा माया
00:06:29महा मा वही एक एक गुड़ में अपने आपको प्रकट करती है
00:06:36जब वो अपना रजो गुड़ प्रकट करती है तो उनको हम बोलते हैं महा लक्षमी
00:06:39महा लक्षमी को ही मा दुरगा कहा जाता है महिसाशुर मर्दनी
00:06:45तो जो आप आम तोर पे दुरगा में देखेंगे कि महिसाशुर मर्दन हो रहा है
00:06:51और वो सबसे प्रचलिक जो देवी की छवी है
00:06:54वो सब्तशती के दूसरे अध्याय से आ रही है और वो महालक्षमी की है
00:06:59रजोगुणी देवी
00:07:03ये तक कहा जाता है कि अगर आप पूरी सब्तशती नहीं सुन सकते हैं
00:07:10नवदुर्गा के दौरान तो आप सिर्फ उसका जो दूसरा चरित्र हो सुन ले
00:07:16तो ये परंपरा में है कि उससे पूरा फल मिल जाता है
00:07:19पूरा नहीं सुन सकते तो सिर्फ दूसरा चरित्र सुन लो उससे पूरा काम हो जाता है
00:07:23ये तो हम जानते ही है कि सिर्फ ये कान वाले सुनने से नहीं होगा
00:07:29ठीक है न? सुनने का जो वस्त्रीकर्थ क्या होता है? कि भीतर जाए तो मनन भी करो फिर दिध्यासन भी करो और फिर उसको एकदम पचा लो
00:07:40जब पचा लोगे तो फिर मन को क्या लग जाती है? समाधी लग जाती है
00:07:46तो सुनने का श्रवन का मतलब यह नहीं होता कि hearing
00:07:49वो कोई दूसरी चीज होती है बहुत आगे की बात है तो जब कहा जाता है कि दूसरा अगर आपने चरितर सुन लिया
00:07:58तो उसे जो मनकामना पूरी हो जाती है या मुक्ति मिल जाती है तो इसके अभी यह नहीं है कि वहाँ पर कोई बैढ़ गाए पंडिजी और वो आपको सुनाई जा रहे हैं और आपने सुन लिया तो उससे तर जाओँगे नहीं
00:08:10नहीं सुनना नहीं है गुन्ना है ठीक और फिर जो तीसरा चरितर उसमें आते हैं हमारे सतोगुणी देवी हैं महासरस्वती और सबसे विस्तृत है और इसमें हमारे सामने कौन आएंगे दो भाई शुम्बनिशुम भाएंगे शुम्बनिशुम आएंगे उनके पूरी सेना �
00:08:40सत्य है सब कर दिया जाता है एक अब चल लेकर नहीं तो मास का क्या तो यह होरा कि एक
00:08:57शुरुवात होगी है वो एक देवी कितनी देवी बन जाएंगी सौ बन जाएंगी और बनती जाती है सबके तो हम नाम भी ना पाएं इतनी बनेंगी अभी तीसरे चरित्र में पर पहला चरित्र है आज हमारे पास वह उतना विस्तरित नहीं है बहुत बहुत रोचक है जैसे �
00:09:27मारकंडे रिशी से, वही मारकंडे रिशी जिनके नाम पे मारकंडे पुराण है
00:09:33तो शुरुवात होती है, मारकंडे रिशी हैं और वो अपने आश्रम में बैठ करके ग्यान दे रहे है
00:09:41और ग्यान बताओ किसको दे रहे है
00:09:45पक्षि, पशु अभी आ गए आएंगे, जब मेधा मुनी आएंगे, फिर पक्षि बैठे हो गयान दिये रहे हैं, या नहीं रोचक शुरूआ तो, पक्षियों को गयान दिये जा, रहच से आशे क्या है, त्येतना रोची प्रक्षि, अहम क्या है, प्रक्षि क्या ही तो उध
00:10:15आशे है, और पक्षी बेठे सुन भी रहे हैं, और मुने पूरी बात बता रहे हैं, और जो पूरी सब्टशती बताई गई यह, बताई ही किसको गई है, इन्हीं पक्षियों को बताई गई है, भाई, इन्हीं पक्षियों को पूरी सब्टशती बताई गई है, ठीक है, तो य
00:10:45दो जने हैं उनकी कहानी है अब इनको सुनो
00:10:54दो जनों में पहले हैं एक राजा राजा सुरत ठीक है राजा सुरत
00:11:05राजा सुरत का ऐसा है कि ये बड़े ही न्याइप्रिय राजा हैं और सबका बड़ा ख्याल रखते थे
00:11:11और अच्छे हैं दानी भी हैं बीतर उनके दया करुणा ये सब है जैसा है एक अच्छे राजा में हो सकती है चीज़े
00:11:24तो उन पर बाहर से आक्रमन हो जाता है कोला विद्धुनसी नाम के कोई लोग होंगे वह आक्रमन कर देते हैं
00:11:37तो राजा का शायद ज्यादा मन प्रजा के हितकारी कामों में रहा होगा
00:11:44सेना की उतनी तयारी करना वो भूल गए ये तोड़ी लापरवाही आगए जो भी हुआ ये सिर्फ सहियों की बात है
00:11:51वो लड़ाई में जाते लड़ाई हार जाते हैं तो ये जो कोला वाले लोग थे विद्धुनसी जो भी थे नामी उनका विद्धुनसी है
00:11:57तो वो लोग राजा का आधा, राज्य या जितना भी राज्य कुछ हिस्सा वो लूट लाट लेते हैं
00:12:04राजा वो बड़ी चोट लगती है चोट यह नहीं लगती की मेरा हिस्सा लूट लिया हो कहते हैं उसमें मैंने बहुत तरीके काम कराई थे
00:12:12वो जो मेरी प्रजात थी उसको बच्चों की तरह में चाहता था उनके सब अंतरगत आ गई वो लोग पता नहीं क्या करेंगे
00:12:19तो बुझे मन से राजा अपनी राजधानी लोट के आते हैं तो यहां क्या पाते हैं
00:12:24कि जब मंत्रियों को पता चला है कि राजा कमजोर हो गया आधाराज कोई लूट ले गया है तो मंत्रियों ने पीछे से शडेंतर कर दिया है
00:12:35मंत्रियों ने पीछे से साजिश कर दिये, और इधर मंत्रियों को पता चलता है, और उनको पता चलता है, फिर राजधानी पर यह आक्रमन कर देते हैं, विध्वनसी लोग बोलते हैं, कि जब इनकी राजधानी ही अब अस्थिर हो गई है, तो क्योंने राजधानी पर यह आक
00:13:05और जो मेरे अपने लोग हैं, इन्होंने मेरे खिलाफ शड़े अंतर करा
00:13:09तो राजा ऐसे बिलकुल विथेथ हो करके जंगल की तरफ चले आते हैं
00:13:14बोलते हैं मैं जा रहा हूँ, मैं जंगल जा रहा हूँ
00:13:16लोट आउँगा, क्या करोगे जंगल मैं ऐसी घूमूँगा, शिकार गूँँगा, कुछ भी करूँगा, मैं जा रहा हूँ
00:13:21पर राजा जागे मन की बात शायदी होती है कि मुझे लोटना नहीं है
00:13:25तो राजा जंगल जाते हैं तो वहाँ उनको दिखाई पड़ता है एक आश्रम, वहाँ आश्रम में क्या देखते हैं
00:13:32वहाँ गजब दृष्य दिखाई देता है
00:13:34क्या गजब दृष्य दिखाई देता है
00:13:36कि जैसे मारकंडे रिशीद है उनके सामने तो सब चिडिया बैठी हुई थी
00:13:40तो वहां जाते हुआ एक मेधा मुनी है
00:13:43उनके सामने शेर, चीते और बाग और भेडिये भेडिये जितने भी हिंसर पशु होते है
00:13:53ये बैठे हुए है और उनके बगल में उनके जो शिकार वाले होते हों बैठे हुए है
00:13:58तो गाए है, चीतल है, हिरन है, नील गाए है, खरगोश है, ये सब बैठे हुए है
00:14:09और बाज बैठा है, बाज के बगलें बटेर बैठा हुए है
00:14:14और बाज उसको कुछ नहीं बोल रहा
00:14:16भेडिया बैठा है
00:14:20मस्त खरगोश तीन चार बैठे
00:14:22भेडिया उने कुछ नहीं बोल रहा
00:14:23और वहाँ पर रिशी है
00:14:27उनसे बात कर रहे हैं
00:14:30सब जानवरों से
00:14:31और जानवर सब ग्यान ले रहे हैं
00:14:32और ऐसे ऐसे अपना जानवर ठीक है
00:14:34तो राजा कहते हैं कि ये कुछ अधभुत बात दिखी
00:14:38यहां कुछ बात बनेगी
00:14:40तो जाते हैं राजा जब तक कुछ पूछे हैं
00:14:44तरही दिर में एक और आत्मी आ जाता है वहां आसको
00:14:46देखते हैं ये कौन आ गया
00:14:47तो वो होता है एक सुरत नाम का व्यापारी व्याश्य
00:14:53तो जैसे राजा अपने शेतर में एक अग्रणी राजा थे वैसे जो व्यापारी है
00:14:58ये तगड़ा सेट होता है अपने समय का अपनी जगह का
00:15:02तो देखते हैं यहारा मू लटका है
00:15:05तो जहां भई तेरा क्या है
00:15:09मेरे तो सब राजे लुट गया तेरा क्या है
00:15:12बुलता है आपके जैसी घानी है
00:15:16मैं बहुत अच्छा व्यापारी था और बहुत मैंने संपता इकठा करी
00:15:25और जितने मेरे नात रिष्टिदार थे पतनी थी बच्चे थे
00:15:28सब को मैंने पढ़ाया लिखाया
00:15:30और मेरे जो सब अर्दली थे नौकर चाकर थे भृत्ते लोग थे
00:15:34उन भृत्तियों का मैंने बड़ा ख्याल रखा उनको जितने तरीके से विक्सित कर सकता था किया
00:15:40लेगन अभी अब व्यापार में घाटा होने लग गया पिछले कुछ समय से
00:15:44तो मेरी पतनी ने और मेरे बच्चों ने मुझे बाहर निकाल दिया और तो और छोड़ो इन भृत्तियों ने भी मुझे अपमानित किया
00:15:52तो मैं तो जंगले सोच के आया हूँ कि यहाँ पे कोई जीव जनतु मुझे खा ले और मेरी कहानी खतम करे
00:15:59तो दोनों मेधा मुझे के सामने बैठ जाते हैं तो मुझे पूछते हैं बात क्या है तो सुनियेंगा बड़ी मदेदार बोलते देखिए वैसे हैं तो हम समझदार लोग हैं लेकिन फिर भी हमारे भीतर बड़ी इस वक्त निराशा और आवसाद दुख है तो मुझे बोलत
00:16:29तुम्हारी समझदारी ठीक वैसी है जैसी इन पशुओं की समझदारी है माने तुम्हारी जो बुद्ध है वो तुम्हारी पशुता से आच्छा देत है तुम्हारी जो पूरी बुद्ध है तुम्हारी सारी समझदारी है उस पर जो तुम्हारा देहस्वभाव है वो चड
00:16:59जानोर को देखा है कितनी बुद्धी लगाते हैं, गरिगट बुद्धी लगाता है, अपना रंग बदल लेता है, यहां तक कि ऐसे ऐसे फूल पौधे यह सब आते हैं, यह से पिचर प्लान टेक होता है, वो बुद्धी लगा कि ऐसा बन जाता है कि उसमें कीडे घुश जात
00:17:29आते हैं, पूधा खा गया थूश जानवर पौधा हाथे जानवर खाते हैं, बुद्धी तो पश्वूआ क्या? पौधो में भी
00:17:48तो बुद्धी तो पश्ववों में क्या? पौधों में भी होती है, पर वो सारी बुद्धी काहे के लिए होती है, बस अपनी देह चलाने के लिए, अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए, तो मुनी कहते हैं, जितनी भी तुम्हारी बुद्धी है, बुद्धी दोनों में प
00:18:18बोलते हैं किस बात का है बोलते हैं मुझे तो किस बात का है कि ये जो मेरे मंतरी है ना इनको मैं नहीं बढ़ा कराए
00:18:26मुझे तो किस बात का है कि इन्होंने मुझे तो विश्वास घात करके मुझे निकाल दिया अब इनका क्या होगा
00:18:33मुझे दो किस बात का है कि मेरा एक प्रिय हाथी था
00:18:39अब मैं वहाँ नहीं हूँ तो उस हाथी का क्या होगा
00:18:42मैंने प्रजा के लिए इतनी सारी हितकारी योजनाए चलाई थी
00:18:48मुझे दो किस बात का है कि अब मैं राज्य छोड़ रहा हूँ
00:18:51तो मेरी प्रजागा क्या होगा
00:18:53जिन लोगों ने मुझे धोखा दिया है
00:18:56मैं इस वक्त भी
00:18:59चिंते थूँ कि उनका क्या होगा
00:19:01और मैं जानता हूँ ऐसा होना नहीं चाहिए
00:19:03पर पता नहीं है कौन सा मौ है
00:19:05जो मेरी बुद्धी को पकड़े हुए
00:19:07सब जानते हुए भी
00:19:09मेरा दुख कम नहीं हो रहा
00:19:10मौनी कहते हैं बताता हूँ
00:19:13कौन सा मौ हुए बताऊंगा
00:19:14बुलते हैं उससे वैशे से
00:19:17हाँ भई तुम बताओ
00:19:18बुलते हैं सेम टू सेम
00:19:21एकदम वही बात है
00:19:23बुल रहा है
00:19:26व्यापार में घाटा हो गया
00:19:28ये लड़कों ने मुझे तो बाहर निकाल दिया है
00:19:30हम
00:19:32होता है पुत्र पुत्री पत्नी जितने थे
00:19:34सब ने मिलके निकाल दिया है पर मैं ये भी जानता हूँ
00:19:36कि उस घाटे की भरपाई भी
00:19:38सिर्फ मैं ही कर सकता था
00:19:39अब मुझे दुखिस बात का है कि यह जिनको में पीछे छोड़ायाओं इनका क्या होगा यह तो सड़क प्या जाएंगे भूखे मरेंगे मुझे अपना दुख नहीं है मैं तो जंगल आया ही इसी लिए हों कि मुझे शेर भालू खा जाए पर मुझे दुखिस बात का है कि मे
00:20:09होता है तुम गुनाह कर रहे हो यह तुम्हें मूर्ख बना देती है जब कि तुम्हें पता होता है तुम मूर्ख बन रहे हो तो दोनों हाथ जोड़के खड़ जाते कहते हैं यह क्या बात हुई बताई यह थोड़ा विस्तार बताई है क्योंकि यह बात हमें बिलकुल अपनी
00:20:39मैं जंगल में आके सोच रहा हूं कि अरे उन बेचारों का क्या होगा क्योंकि उन सब को शिक्षित भी मैंने किया था प्रशिक्षित भी मैंने किया था राज्य व्यवस्था में दीख्षित भी मैंने किया था अब मुझे लग रहा उनका क्या होगा यह कहा रहा है वही मैं अ
00:21:09समझना चाहते हो कि तुम्हारे साथ अगर क्या हो रहा है तो उसको समझने का तरीका है प्रतीकों से भरी हुई एक कथा तो यहां से महामाया की कथा की शुरुआति होती है
00:21:25याद रखना हमें बहुत अच्छे से कि मुनी की कोई रुची नहीं है कहानी भर सुनाने में राजा को और वैशे को
00:21:35मुनी उनका दुख दूर करना चाहते हैं और जिस कारण से दुख है वो कारण समझाना चाहते हैं
00:21:44वो कारण समझाने के लिए
00:21:46उन्हें सरुषेष्ठ उपाय लग रहा है
00:21:48कि प्रतीकों से लदी हुई
00:21:50एक कथा सुनाई जाए
00:21:52तो हमें कथा सुनते
00:21:54सुनते लगातार
00:21:56प्रतीकों
00:21:58को खोलते
00:22:01रहना है
00:22:01प्रतीकों का
00:22:05अर्थ करते रहना है
00:22:06नहीं तो कथा हमारे लिए बाद ऐसे मनुरंजन बनके रह जाएगी
00:22:09समझगारी बात
00:22:13क्योंकि होता यह है अभी अंत में जब तीसरा चरितर पूरा होगा कि
00:22:18कथा समाप्त होती है और दोनों को ही कुछ बात समझ में आती है
00:22:23और समझ के अनुसार फिर वो कुछ निड़ने लेते हैं जिससे उनका धुख दूर हो जाता है
00:22:28तो आपसे भी प्रश्णिया यह है कि यह जो कथा आपके सामने आएगी
00:22:31कि आप उसको समझ पा रहे हैं सुनना नहीं है समझना है
00:22:36सुरत ने और समाधिने समाधि वैशे का नाम है सुरत ने और समाधिने उस कथा को समझा है
00:22:47जब समझा है तो अंत में एक को मुक्ति मिल जाती है और एक को मनोकामना मिल जाती है
00:22:53वहाँ उसका भी अर्थ है, जो समझेगा उसको मिलेगा, जो नहीं समझेगा उसे कुछ नहीं मिलता, तो अब क्या बता रहे हैं, और उसका अर्थ क्या है, साथ साथ चलने है, पहले तो हमने यही देख लिया है, कि मारकंडे रिशिय और मेधा मुनी, दोनों ही बात किन से कर �
00:23:23जिसका जिसका रिष्टा देह से है तो ये जो महा माया है न ये देह में बसती है देह में और ये जो सारा प्रवचन है ये देही के लिए ही है देही के लिए ही है देह में ये कितनी गहराई से वास करती है ये समझाने के लिए रिशी कहते हैं जानते हो एक बार भगवान वि�
00:23:53करें कान के महल से पैदा हुए देह में माया इस हद तक वास करती है कि भगवान की देह में भी माया बैठी हुई है दो तरीके से अभी बताएंगे एक तरीका तो यह कि उनके कान के महल से दो असुर पैदा अब नहीं किसी के कान के महल से असुर पैदा हो जाते तो भगवान क
00:24:23वो समझाना चाह रहे हैं ये दिखा करके कि देखो हमारी बात को पशु और पक्षी सुन रहे थे वही वो समझाना चाह रहे हैं ये बोलके कि भगवान विश्डु के कान के महल से दो असुर पैदा हो गए ठीक ये दो असुर पैदा हो गए
00:24:36देह जो है वो माया का गड़ है देह माया का गड़ है और देह से जो पैदा होता है उसको ही असुर कहते है देह के मल को ही असुर कहते है
00:24:58और वो दे किसी की भी ओ निकले का मली विश्णू की भी दें तो क्या निकला मली निकला कुछ नहीं है असा कि यह मत सोची का कि आप बड़े ग्यानी हो गए अब तो भाई हम तो मुक्त पुरुश है गीता का तीसरा ध्या चल रहा है तो हमारी देह से थोड़ी मल निकलेगा �
00:25:28और देह कितनी भी शुद्ध कर लो मल तो उससे निकलेगा निकलेगा भगवान विश्णू की देह से भी मली निकल रहा है उनके कान से निकल रहे है कान में जो यह होता है न कान का मौम जिसको बोलते है एर वैक्स अब कान का मौम सब के होता है तो प्रतीक है कि देह तो एक
00:25:58कान में जैसे मैल रहता ही रहता है कुछ भी कर लो और तुम कान को कितना साफ करल लो उसमें थोड़ा सा मैल हमशा रहता है पूरी सफाई कर आगए आ जाओ फिर भी तुम उसमें अगर देखोगे कुछ में रुई है कुछ
00:26:08तो उसमें कुछ न कुछ पाओगे है भी मौझूद तो जैसे कितनी भी सफाई कर लो कान में मैल रहता है वैसे ही देह, देही कितना भी उचा हो जाए, देही कितना भी उचा हो जाए, देह का जो की जो मलिन प्रक्रति है वो तो रहेगी ही रहेगी इसलिए हम कहते हैं कि देह
00:26:38कोई बिंदो ऐसा नहीं आ सकता जो आप कहदो कि मैं कि मुझे द्यान की सतरकता
00:26:44की अवधान की कुछ जरूरत नहीं है जब भगवान विश्णु के कान के मयल से प्यादा हो
00:26:50सकते हैं तो हम आप क्या चीज़
00:27:05शरीर के रज से ही जो पैदा हो उसको असुर बोलते हैं, शरीर के रज से सावधान, और शरीर का रज यहीं नहीं होता कि कान का मैल, या कि मूत्र या विष्ठा, यहीं नहीं होता है, शरीर का रज हैं, विचार, वृत्तियां, भावना हैं, इनको एक सही सही क्रम में रखिए
00:27:35रज माने क्या जो शरीर से पैदा हो गई होगा
00:27:41तो शरीर है तो वृत्ति
00:27:43तमाम तरह की वृत्त्ति हैं
00:28:05अब ये दोनों निकल पड़े, क्या नाम बताया हमने इनका?
00:28:09Madhu Keatab
00:28:11ये दोनों जो हैं यहां पर Madhu Keatab है
00:28:14पहले अध्याय में
00:28:16जिनका काम तमाम होगा यहां के पहले अध्याय के खलनायक है?
00:28:20Madhu Keatab
00:28:22तो ये निकल पड़े
00:28:23अब हमारे पास अगर समय होता, अब उतने विस्तार में हम जा नहीं सकते, तो ये जो नाम भी है, मधुकेटव, इनके पीछे भी एक बात है, वो भी नाम भी संक्यत आत्मक है, पर अभी हम नहीं ले पाएंगे, अभी इसको, आप लोगे प्रश्ण भी लेने हैं, तो इस दो
00:28:53ब्रहमा से क्या मतलब है, देवत्तो, देवत्तो, तुम्हारे ही शरीर से जो असुर पैदा होते हैं, वो तुम्हारे ही देवत्तो को दोड़ा लेंगे, मारना इसको, ब्रहमा जी दोड़ा रहे हैं, मामला ही थोड़ा अटपटा लग रहा है, बुढ़े आदमी, चार सर, �
00:29:23ब्रहमा जी नहीं दोड़ रहे थे, लेकिन इस पर अभी कोई एनिमेशन सिरीज बन जाएगी, या कोई टीवी धारावाहिक बन जाएगा, तो उसमें ऐसे ही दिखा देंगे, कि दो ऐसे ही एकदम मुस्दंड राक्छस हैं, और बड़ी-बड़ी कटार और तलवार और भा
00:29:53कथाएं हैं, वो अपने रहस्य उगलना शुरू कर देती हैं, कभी इताला कुंजी की तरह बोलता हूं कि विदानत की कुंजी लगाओ तो पुरान खुल जाते हैं, ये अलग बात है कि सब कथाएं ऐसी नहीं है, कि वो मर्म पूर्ण या रहस्य पूर्ण ऐसा नहीं है, ले
00:30:23पुरान, ये भी पुरान से ही आ रही है, तो कहां तक पहुचे थे हो, तो ब्रह्मा जी को, अब ब्रह्मा जी को दड़ा लिया मने क्या, किसको है दड़ा लिया है, देवत्तों को दड़ा लिया है, ठीक है, देवत्तों को दड़ा लिया है, वैसे ये जो तीन देवता होते
00:30:53सब खतम कर दो, अग्दम सब कुछ शून्य में चला जाए, सब अंधेरा हो जाए, तो वो तमोगुड के प्रतिनिदी होते हैं, तो ऐसे भी देख सकते हो, कि ब्रहमा जी को दोडा लिया, माने आपकी जो सात्विक्ता होती है, उसको आपका ही असुर मारने को पछिया लेता ह
00:31:23मिली होगी कि ये तो विष्णु जी सोए पड़े हैं, उनके पीछे से ये काम हो गया है, तो वो किसी तरह लपट जपट वहां पहुंचे विष्णु जी के पास, कि इनको कहा जाए कि भाई, आप ने करा है, आप ही समालो, विष्णु जी सो रहे हैं, सो रहे थे तब ही त
00:31:53होगे आप बहुत बड़े भगवान, होगे आप बहुत बड़े भगवान, आप मानें ये जो देही, जो विक्त है, जो मनुष्य है, उसको संबोधित करिखा जा रहा है, कि अगर तुम भगवत्ता कि इस तर को भी प्राप्त कर लो, तो भी सो मत जाना, मैं कहता हूँ जा�
00:32:23मैं इस तरीके से, मैं उसको बस आपके लिए थोड़ा अच्छा सा कर रहा हूँ, उसमें बिल्कुल क्या लिखा है साफ साफ तो उसके लिए वो solution score से वो देख लीजेगा, मैं उसका कोई यहां पर विग्यापन नहीं कर रहा हूँ, पर आप अगर रुची रखते ही हैं कि �
00:32:53महाम आया हैं, जिनसे ये दोनों असुर निकल पड़े, यही विष्णु की निद्रा बनी हुई है, योग निद्रा, इतनी ताकत है कि इन्होंने विष्णु को भी सुला दिया है, तो ब्रह्मा जी ने जितनी कोशिश कर सकते तो उनको जगाने के सारी कर लिखाय को उठें
00:33:23परंपरा के अनुसार ब्रह्मा ब्रह्मा बोले ये जगाने से नहीं उठेंगे, ये अब जिसने इनको सुलाया है, उसी से बात करनी पड़ेगी, तो उन्होंने इस्तुति शुरू करी, किसकी इस्तुति शुरू करी माया की, बोले माया, तुझसे कौन जीत सकता है, जब त
00:33:53तु महा पराक्रमी है, तुझसे जीत पाना किसी के लिए संभव नहीं, अच्छा याद दिलाईएगा, माया की इस्तुति या देवी की इस्तुति का अर्थ क्या है, इस पर हम बात करेंगे, क्योंकि इन दिनों में, नौदुरूगा में, इस्तुति ही इस्तुति होगी, त
00:34:23तो फिर देवी कहते हैं कि वश्णु जी की आखों और भहौं से प्रकटों के बाहर आ गई, जब इस्तुति की गई, जब बाहर आ गई तो विश्णु जग गए, क्योंकि उन्होंने तो सुला रखा था उनको, तो बाहरा गई तो विश्णु जग गए, तो ब्रह्मा जी �
00:34:53तो विष्णु खड़े हो गए उन्होंने अपने हथियार अस्त्र उठा लिए दोनों राक्षासों को बोला रहे ब्रह्मा जी को क्या परिशान कर रहो हिदा रहो हिम्मत है तू तो अब ये दोनों कौन है ये विष्णु जी से ही निकले हैं और माया है
00:35:10होने लगा युद्ध और सब्शती कहती है पांचार साल तक युद्ध चलता रहा अब पांचार साल मारे पांचार साल नहीं मने अनंत काल भी तुम युद्ध कर लो माया से तो जीत नहीं सकते विष्णु भी नहीं जीत सकते तुम क्या जीत होगे
00:35:28छोड़न की जो बात करें बहुत तमाचा खाए अब विश्णु जी ने पूरे अपने प्रान लगा दिये पूरे बल से वो संघर्ष कर रहे हैं यह दोनों हार नहीं रहे हार नहीं रहे
00:35:44तो अब जब महामाया यह देखती हैं कि पूरे प्रान लगा दिये उन्होंने
00:35:51तो वो जा करके राक्षासों का मन बदल देती है
00:35:55और राक्षास कहते हैं हम से बड़ा कोई योद्धा है एक दूसरे से
00:36:04अब ऐसे नहीं बुलते हैं पर समझा रहा हूं
00:36:07लाक्षास एक दूसरे बोलते हैं हमसे बड़ा कोई योद्धा है दोनों एक दूसरी की और देखते हैं बोलता ना भाई तुछ से बड़ा कोई नहीं है बोलते हैं अगर हमसे बड़ा कोई नहीं और तुमसे बड़ा कोई नहीं और हम दोनों एक तरफ और ये अकेला है विश
00:36:37कहां से होती ही कि हमसे बड़ा कोई नहीं है दोनों की दूसरे से बड़ा कोई नहीं है तो आदमी बढ़िया है विश्णोजी बलते है यह लड़ाई के बीच में क्या हो गया तो बढ़िया लगा हमें पसंद आ गया हमसे वर मांग ले विश्णोजी को समझ में आता है यही म�
00:37:07का कुछ नहीं होगा विश्णों जी बोलते हैं एक ही वर मांग रहा हूं तुम दोनों से अब ये राक्षास हैं ये विश्णों को वर दे रहे हैं तो एक ही चाहिए तुम दोनों से तुम दोनों की मृत्यों मेरे हाथ हो हो तुम घबरा जाते हैं बोलते हैं ये तो क्या भा�
00:37:37उस समय प्रलयकाल चल रहा था चार तरफ पानी पानी था जलापलाविधि भूमी इसको बोलो ठीक है हमें मार लेना ऐसी जगर पर जहां पानी ना हो यहां पानी ना हो तो फिर दोनों दुसरे को देखके हसने लगें होंगे हां पानी तो सब जगा है कि कैसे मारेगा तो वि�
00:38:07मार देते हैं तो इस तरीके से दोनों का खेल खत्म होता है यह है प्रथम चरण अब यह कोई सधारण सी या सस्ती कहानी नहीं है कालपनी का कि आपको बता दिया गया सोए थे कान के महल से निकल आए और फिर वो आ करके स्तवन कर रहे हैं तो उनकी भाहों से प्रकट हो रही
00:38:37प्रतीक चुपे हुए हैं सारी जो समस्या थी वो किसने पैदा करी माया ने भगवान को भी सुला दिया और फिर समस्या सुलजाई भी किसने माने तो सब्तशती कहती है माही बंधन है माही मोक्ष है
00:39:07बंधन कब आता है जब सो जाते हो मोक्ष कब आता है जब इस्तुति करते हो
00:39:20सो जाओगे तो बंधन है इस्तुति करोगे तो मोक्ष है इसलिए का था कि इस्तुति माने क्या है वो हम समझना चाहेंगे
00:39:30इस्तुति का अर्थ समझे विदान्त के तरीके से निन्दा न करना
00:39:40मैं क्यों कह रहूं निन्दा न करना बात गहरी है तेखिएगा
00:39:47आपके जीवन में कुछ भी गड़वड होती है आप दोश किसको देते हो
00:39:51इसको दोश देते हो इसको दोश देते हो इसकी वज़ेसे हो गया उसकी वज़ेसे हो गया उसकी वज़ेसे हो गया उसकी वज़ेसे हो गया उसकी वज़ेसे हो गया उसकी वज़ेसे हो गया उसकी वज़ेसे हो गया ऐसे हो गया प्रक्रति के प्रति जो दोश दृष्टि रख
00:40:21भी मुक्तनी हो पाएगा।
00:40:22दोश हमेशा किसका मानना है अपना।
00:40:28मैं छोटा हूँ मा, मैं छोटा हूँ।
00:40:30अगर मुझे दुख मिल रहा है तो मेरी वज़े से मिल रहा है।
00:40:33मा की इस्टुति न करने का अर्थ होता है, प्रकृति कोई दोश दे देना।
00:40:38प्रकृति न क्या किया। प्रकृति तो बस है।
00:40:41प्रकृति तो कभी आ करके अहंकार सी लिपटती नहीं।
00:40:46यह लिपटने जपटने का और बंधन सुईकार करने का काम कौन करता है।
00:40:51और दोश किसको देता है। प्रकृति को।
00:40:55को, इस्तुति का मतलब होता है आत्मग्यान, अपनी गलती देखना, प्रक्रति पे गलती नहीं डालना, ये मा की इस्तुति है, ये नौ दिनों तक अपने आपको लगातार देखें, इन नौ दिनों तक अपने आपको लगातार देखें, आपके जीवन में जो भी दुख, दर
00:41:25हुआ है तो मेरी वजय से हुआ है मा तू तो मा है मा कभी बच्चे को दुख देती है क्या पर आज तक मैं अज्ञानवश किसको दोश देता रहा मा को दोश देता रहा माक्षमा और मामाने समय मामाने सब परिस्थितियां मामाने शरीर मामाने समाज मामाने सब कुछ जिससे �
00:41:55उन सब को कहना है, आप में कोई दोश नहीं, सारा दोश मुझ में है, मैं आपके सामने कर्बद्ध हूँ, नमित हूँ, ये नव दुर्गा की विधी हुई, ये मा की इस्तुतिका मर्म हुआ,
00:42:18नव दुर्गा भी इसी लिए हैं, ताकि आप स्वयम को देख पाएं, और जितना आप स्वयम को देखते जाओगे, उतना आप कहते जाओगे, कि मा तो मुक्ति का अवसर थी, अगर मुक्ति के अवसर को मैंने अपने लिए कश्ट बना लिया, तो दोश मेरा है, और मा महान है
00:42:48कि मुक्ति दाएनी मा को मैंने अपने लिए मृत्य दाएनी बना लिया, और पहले तो मैंने मा को अपने लिए मृत्य दाएनी बना लिया, उपर से मैं बार बार आक्शिप किसमे करता रहा, मा पर ही करता रहा, लेकिन मा मुझे मुक्ति चाहिए और मुक्ति तुमी दे सकती
00:43:18उतना प्रकृतिके प्रते अनुग्रह कृतिक्यता उठते जाएंगे
00:43:22और साथ ही साथ एक तरह का प्राइश्चित होता चलेगा
00:43:29आज तक जो सारा दोश डालते रहे
00:43:33इस्थिति और समाज पर और सायोग पर
00:43:37उस सारे दोश के अपराध से निवरत होते चलोगे
00:43:42प्राइश्चित होता चलेगा नौ दिन पर आप थे प्राइश्चित के लिए
00:43:45यही नौ दुर्गा है
00:43:49तो जब आप मूर्ति के सामने नमित खड़े हों
00:43:54तो यही कहिएगा आप क्या नहीं दे सकती थी मुझको
00:43:59यूही नहीं कहा गया है कि मनुष्य जन्म अनमोल होता है
00:44:06मा प्रक्रति आपने मुझे मनुष्य जन्म दिया अनमोल जन्म दिया
00:44:11उसके बाद इस अनमोल जन्म में मोक्ष का निरवान का आउसर भी आप नहीं दिया
00:44:19आप तो बहुत कुछ दे सकती थी
00:44:21लेकिन मैंने लिया क्या
00:44:22मैंने लिया जीवन से मातर कचरा
00:44:25मैंने जीवन से हीरे मूती की जगए
00:44:31एकदम सड़ा हुआ कचरा और कंकर उठा लिये
00:44:34और ये कंकर कचरा उठाने के बाद
00:44:37मैंने सारा इल्जाम किस पर लगा दिया
00:44:39आप पर लगा दिया माक्षमा
00:44:41ये नवदुर्गा पूजा ने
00:44:47और ये भाव अगर आप में नहीं आ रहा है
00:44:50कि ये जो सामने है न ये मा है और ये मुक्तिदायनी है
00:44:54प्रक्रति मुक्तिदायनी कब बन जाती है
00:44:56जब प्रक्रति को समझते हो
00:45:00और ट्रक्रते को नहीं समझ सकते अगर उसके प्रती दोशद्रिष्टी है
00:45:04कुछ नहीं समझ सकते अगर उसके प्रती दोशद्रिष्टी है
00:45:08जिसके प्रते आपके पास पहले ही पूर्वाग्र है
00:45:17वो आपको समझ में नहीं आएगा
00:45:20न समझो तो मुक्तिव है
00:45:31समझ लो तो मुक्ति है
00:45:35यह आप तै करोगे कि माँ आपके लिए
00:45:39मुक्तिव दाई नहीं है या मुक्तिदाई नहीं है
00:45:43और वो दोनों है
00:45:44आप थोड़ी फी चूक कर दो
00:45:56तो मुर्त्यकष्ट विनाश निश्चित है
00:46:11काली के हाथ में मुंड माल होता है
00:46:14उसको हम कहते हैं यह असुरों के मुंड है
00:46:18और अभी हमने क्या आखा असुर कौन है
00:46:20जो देह की रज से संचालित हो जाए वो असुर है
00:46:27तो वो किसी और का मुंड नहीं है
00:46:30वो हमारे ही मुंड है
00:46:31जो चैतन्य होने की जगह देह की रज
00:46:39को अपना मालिक बना लेगा
00:46:43मा उसके लिए मृत्य बनेंगी
00:46:46वो लपलपाती जीव देखी है
00:46:52और गले में मुंड माल देखा है
00:46:58वो हम ही है
00:47:01यही प्रक्रती जीवन देती है
00:47:06और यही प्रक्रती बुरे से बुरी मौत देती है
00:47:12प्रक्रती निश्पक्ष है
00:47:15तै आपको करना है कि आप प्रक्रती से संबंध क्या बना रहे हो
00:47:20स्पश्ट हो रही ये बात कुछ
00:47:35तो ये जो राजा और वैश्य की जिग्यासा है
00:47:42ये जिग्यासा किधर को जा रही है
00:47:48दोनों ने पूछा कि हम सब जानते हैं
00:47:50फिर भी हम क्यों मुहों से ग्रस्त हैं और दुख भोग रहे है
00:47:54तो रिश्य उन्हें किस तरफ को ले जा रहे है
00:47:57रिश्य उन्हें ये बताने ले जा रहे है
00:48:01कि तुम्हारे शरीर में ही वो असुर बैठे हुए है
00:48:07जो तुम्हारे दुख का कारण है
00:48:09तुम सोच रहे हो राजा कि दुख का कारण है कोला विध्वनसी और मंतरी तुम्हारे ना
00:48:19तुम सोच रहे हो वैश्य कि दुख का कारण है ये व्यापार का घाटा और पुत्र और पत्नी ना
00:48:28तुम्हारे ही भीतर वो बैठा है
00:48:33जो तुम्हारी बुद्ध को भ्रमित करता है
00:48:36और जब तक ये जानोगे नहीं
00:48:40तब तक ज्यान काम नहीं आएगा
00:48:42क्योंकि दोनों बार-बार कहते हैं राजा और वैशे
00:48:44कि हम समझते सब हैं लेकिन फिर भी दुखी है
00:48:46सब जान गए फिर भी दुखी है
00:48:49सब जान गए फिर भी दुखी है
00:48:53तुम सब जान गए तुम स्वयम को नहीं जाने हो
00:48:57तुम जान गए सब कुछ तुमने स्वयम को कहा जाना असुरत
00:49:04और समाधिर तुम दोनों ने स्वयम को नहीं जाना
00:49:08और स्वयम को जानने का ही अर्थ होता है मा का दर्शन
00:49:13आत्म ग्यान माने किसका ग्यान? माया का ग्यान
00:49:17माया माने मा
00:49:19मा का दर्शन मात्र आत्म ग्यान के दोरा ही संभव है
00:49:23बहुत सीधी सी बात है ना
00:49:24आत्म ग्यान में हमने बहुत बार बोला है
00:49:28आत्मा तो जानी नहीं जाती, आत्मग्यान में क्या जाना जाता है, अपनी माया ही तो जानी जाती है, माया ही मा है, तो इन नौधुर्गा के दौरान आपको मा के दर्शन करने हों अगर सच मुच,
00:49:40तो मा को अपने भीतर देखिएगा, दर्शन वहीं है, आत्मग्यान ही नवरात्रि में पूजन है, एकदम आरंभ से ही बता दिया गया है कि मा कहां है, मा आपके ही भीतर है,
00:50:02ये देह मा से आती है और मा इसी देह में बैठी है
00:50:06वैसे बच्चे की देह में मा बैठी होती है
00:50:09बच्चे की देह में मा नहीं बैठी है
00:50:13वैसे आपकी देह में मा बैठी हुई है
00:50:15मा का दर्शन करना है तो अपनी देह को समझो अच्छे से
00:50:18यही जो देह है
00:50:20याघट भीतर
00:50:23साथ समंदर
00:50:25यही है यही माँ है
00:50:27जानो इसको
00:50:31नहीं जानोगे
00:50:34तो इसमें से не जाने कैसे
00:50:36कैसे शुम्बन शुम्ब
00:50:38और महिशासुर निकलेंगे
00:50:39और जान जाओगे तो यहीं से
00:50:43मुक्ति का रास्ता निकलाएगा
00:50:45समझ में आरी बाद? फिर से दोहर आ रहे हैं. आत्म ग्यान ही मा का दर्शन है.
00:51:12प्रशन लेते हैं.
00:51:14प्रड़ा मा चाहरे जी.
00:51:15महा माया का व्रितान्त आप से सुनने का मौका मिला है. इसके लिए आभार जब मैंने ये सुना कि विश्नु के देह से असुर पैदा होते हैं तो मुझे यादा है कि धृतराष्ट के देह से भी सौ असुर पैदा हो गए और उस वक्त वहां पर भी जो धारक थे उस प्रसंग
00:51:45अब देह तो सभी के पास होती है देह तो अनिवारित है एक तरीके से तो फिर देह से क्या देवता भी पैदा हो सकते हैं
00:51:59जिसकी देह सोई हुई नहीं है वो देवता है देवता पैदा नहीं करने है विष्णु तो देवता है ही ना विष्णु देवता पैदा कहें को करेंगे
00:52:12सो गए तो बात ये है कि धृतराष्ट तो धृतराष्ट विश्णु भी असुर पैदा कर देते हैं
00:52:20धृतराष्ट असुर पैदा करें ये बात हमें बहुत नहीं खलती
00:52:23क्योंकि धृतराष्ट हमें ऐसा तो बता ही नहीं गए कि बहुत वो होशियार है
00:52:28वो होश्यारी तो सारी विदुर को दी गई थी
00:52:30कि सारा जो बोध का काम था
00:52:32समझदारी का काम था वो कौन को देखता था
00:52:35वो तो विदुर देखते धितराष्टा तो उनको पता है
00:52:37वो तो मोह अगरस्त हैं
00:52:38मंता उनमें बहुत थी
00:52:39फिर आख से नहीं वो अंधे थे
00:52:58विष्णु को भी शुला दे और महा माया के शुलाए जो सोता है वो ब्रह्मा के हिलाए डुलाए भी जगता नहीं
00:53:08कोई भी आकर के हिलाएगा डुलाएगा उठोगे नहीं अगर महा माया ने शुलाए आए तुम्हें तो
00:53:16यह जो एक और बात थी कि यह जो मेधा मुनी है या मारकंडे रिशी है इनके सामने एक उल्टी बात देखने को पता चलती है कि जो हिंस्र प्रशू है वो भी अपने प्रकृति के स्वभाव के उल्टा भी वहां पर तुम्हां प्रकृति का उल्लंगन हो रहा है तो इससे तो
00:53:46लेकिन चुकि वह जगेव हैं पशू रिशी के अनकंपा में प्रकाश में इसलिए वो भी उल्लंगन कर पाएं ज्ञान में ज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान के प्रभाव क्षेत्र में पशू भी जैसे जगने लग जाते हैं
00:54:09रिशी पश्वों से पक्षियों से बात कर रहे हैं इसमें हमारे लिए एक सांतोना है क्या अरे जब वो पश्व को ग्यान दे सकते हैं और पश्व अपनी प्रक्रति को चुनौती देने लग सकता है तो तुम तो इनसान हो तुम क्यों सोच रहे हो कि मिधा मूनी जैसे किसी के
00:54:39शेर चीते को लाब हो गया, तुम्हें क्यों नहीं लग रहा है कि उनकी बात इतनी जटिल है कि तुम्हें साउच भी नहीं आएगी, वो पक्षियों को बैठ करके पुरान सुना रहे हैं, मारकंडे है, हम सोचते हैं कि वृद्धी होंगे, कर क्या लेंगे, पक्षी है, वो त
00:55:09बैठे हुए हैं, तो मन को इतनी मर्यादा रखनी होगी, कि जब रिशी के सामने बैठे हैं, तो उठके नहीं जाना है, उठके नहीं जाना है, कि वल गाया करता था था न, कि भला बुरा कहा जाए, तो उठ नहीं भागिये,
00:55:37उठ भागे सो रार रार महा नीच है
00:55:41गुरु चरन जाए के
00:55:45तामस त्यागिए और भला बुरा कहा जाए
00:55:49तो उठ नहीं भागिए
00:55:50तुम बस उठ के मत भाग जाना
00:55:53पक्षियों का वहां बैठा होना यही बताता है
00:55:55कि उनके पंख हैं पर उन्होंने अपने पंखों को भी मर्यादा दे दी है
00:55:59उठ नहीं भागेंगे
00:56:01तो चुछ वहां कववे भी बैठें
00:56:04कववा काउं काउं करेगा तो रिशी उसको आख तो दिखाई रहे होंगे
00:56:07तो कवववव यह थोड़ी कर रहा है कि मैं जा रहा हूं मैं नहीं सुन रहा और कवववव भी वहां बैठा हूं अपहां सुन रहा है ग्यान ले रहा है
00:56:15एक आखरी बात असूरों के संबंध में असूरों ने अपनी बुद्धि चलाई
00:56:29मैं अपनी बुद्धी से खुद को रक्षा कर सकता हूं उन्हों कि यहां पर नहीं मार सकते वैससे रनकश्रब नभी अपने बुद्धी पर भरोसा किया था कि उन्हों नीं
00:56:43सोचा कि मैं ऐसा शर्त रुखो कि मुझे मार नहीं पाइजा और ऐसा असुर ने भी बिलकुल ये बात हमें पराणिक साहिते में वार वार देखने को मिलती है कि होश्यारी करी और जूते खाए
00:56:54और इन्होंने तो थोड़ी होश्यारी करी थी कि पानी भरना हो हिरन कश्यप ने तो होश्यारी का बाप दाग दिया था बहुता ना दिन हो ना रात हो ना अंदर हो ना बाहर हो जो मारने आए वो ना पशु हो ना मनुष्य हो और भी देकार और क्या शर्त लगाई थी ऐसे य
00:57:24सकते थे उन्होंने सब बता दी थी, मोले अभी बताते हैं, वहाँ भी विश्णु ही थे, नर सेंगा उतार, तो बुध्धि का तो खूब बहास किया गया है, ताकि बुध्धि अपनी आउकात में रहे, बुध्धि को उसकी सीमाइं बताई जा सके, बुध्धि को बताई जा
00:57:54बुद्धि एक अच्छी सेविका है वो अच्छी सेविका कब है जब वो सही मालिक की सेवा करे बस
00:58:08मालिक सही होना चाहिए इससे तै हो जाता है कि सेवक सही है कि नहीं मालिक अगर आत्मा है तो बुद्धि अच्छी सेविका है अब मालिक हंकार है तो ये बुद्धि ऐसे कर्तूत ऐसे कर्तब दिखाएगी कि हंकार कोई खा जाएगी ना बचे मधुकैटब ना बचे हिरनकश
00:58:38अहम स्वक्ष होना चाहिए, मन निर्मल होना चाहिए, आम भाशा में कहें, तो नियत साफ होनी चाहिए, इमान पक्का होना चाहिए, सत्य निष्ठा होनी चाहिए, तब जाके बुद्धि काम आती है, नहीं तो बुद्धि से कुछ नहीं है।
00:58:58यह जो आपने सीख दिया आखिर में कि खुद को आत्म ग्यान स्तूति करता है आत्म ग्यान तो सुरत और वैश्चे समाधी वैश्चे यह दोनों प्रकृति को दोष दे रहे हैं यह दोनों कह रहे हैं कि उसने वह आक्रमन करता थे उनके वज़े से मुझे बहुत बढ़ी आ�
00:59:28रे तुम जानते तो सब कुछ को दोनों पढ़े लिखे हैं दोनों का जो वढरनान आता है विस्तार सब्षती है दोनों चाह्ख है उनका भल को कुश्ट दिया उनका यृज़िक हैं लेकिन दोनों ही सवयम भी दुखs में ध keto
00:59:53हैं दोनों में कहीं न कहीं ये अब भाव आ गया है कि जीवन ही समाप्त कर देते हैं हमने अच्छा किया और दुनिया से हमें देखो कितना कष्ट मिला
01:00:04तो मिदामने उन से कह रहे हैं तुम फिर अभी जीवन को समझे नहीं हो
01:00:12और नाहक ही तुम्हारा दावा है समझधारी का
01:00:17तो जब ये बोलते हैं कि वैसे तुम समझते हैं
01:00:20तुम मुनित तंज कस देते हैं
01:00:22बोलते हैं तुम वैसे ही समझते हो जैसे ये मेरे सब
01:00:24चुहे बिल्ली जो यहां बैठे हुए ना ये जितने समझधार है
01:00:28असली ग्यान तब है जब आत्म ग्यान हो, आत्म ग्यान नहीं है तो बाकी सारा तुम्हारा ग्यान दो कोड़ी का
01:00:50वो तो हम उन्हीं ने थोड़ा सम्मान रख लिया कि कम से कम पशुख किस तर पही बोला, नहीं तुस्ते भी
01:00:56इसको ऐसे भी देख सकते हो कि दुर्गा सब्टुशती में ये कहने की चेश्टा की गई है कि सब्टुशती में वो बल है कि वो पशु को भी चैतन्य बना दे
01:01:17या ऐसे कह सकते हो कि साधु संगत में, रिशी की संगत में वो बल होता है कि उसके सामने अगर जानवर भी बैठ जाए
01:01:29तो जानवर भी चैतन्य हो जाएगा जैसे भी समझना चाहूं कि नमस्ति आचारे जी जैसा कि आज सब्टुशती के प्रतम अध्याय में मुनिवर कथा बताते हैं दौनों को राजजा को और
01:01:59वहिश को तो कथा का प्रारंब ही यहीं से होता है कि बगवान विश्नु सोने चले गए तो जैसे जैसे कथा आगे बढ़ती है तो उसमें हमें भगवती महमाया की शक्ति का एक तरह से वरणन दिखता है कि वह सुला भी सकती हैं और फिर विद्वन्स भी कर सकती हैं तो एक
01:02:29अ Smith के हाथ में है और यहां अब यहां पर मौनिवर के अश्रम में जो कखशी थे उन does के म attend वारे में भी से उन्हें
01:02:44जुर्व किया कि पस उठकर नहीं वाग्नाया बस बेठे रहना
01:02:49तो एक तो मनश्य मात्र का चुनाव है जैसे भगवान विश्नु की बादलंगी isn't
01:02:56नहीं सोना है और भगवती जी की शक्ति है कि सुलादेना है तो
01:03:01इसमें शंका ये है कि जो उनके सोने की गटना है उसमें किसका हाथ है उनके सुलाने की बीतर कोई है जो आपको जागने के लिए प्रेरित करता रहता और आपी के बीतर कोई है जो आपको सुला देना चाहता है जो आपको सुला देना चाहता है वो यह मा जो मा से मिला है ना मा
01:03:31तो सबसे जीतेंगी
01:03:32ये शरीर मतलब आपके उचे से उचे इरादों को परास्त कर देगा
01:03:37आपका जो शरीर है वो आपकी अच्छी से अच्छी नियत को हरा देगा
01:03:42आपकी सदबुद्धी, सदविचार, सदभावना
01:03:46सब हार जाएंगे आपके शारीरिक जोर के आगे
01:03:49जो शारीरिक वृत्य वो बिल्कुल भारी पड़ेगी
01:03:53आप हो चाहे भगवान तुल्ली ही क्यों ना
01:03:57एक ही तरीका है इस शारीरिक वृत्य को अपने पक्छ में कर लेने का
01:04:03इसको जान लो
01:04:04इसको जानने कोई कहते हैं मा का दर्शन
01:04:08माया का दर्शन ही मा का दर्शन है
01:04:12अपनी ही माया का दर्शन मा का दर्शन है
01:04:15नहीं तो आपके फिर कह रहा हूँ
01:04:19आपके सुन्दर्तम और सर्वोत्तम इरादे भी
01:04:25आपकी ही देह से परास्थ हो जाएंगे
01:04:27आप चाहते रहोगे बहुत उची बात
01:04:32आप कोगे आजार जी आगीता समागा में उठना है जगे रहना है जगे रहना है आपको पता ही नहीं चलेगा देह कब सुला देगी नहीं पता चलेगा आपके इरादों की कोई कीमत नहीं है देह के बल के आगे और देह सब कुछ बन के आती है देह सब बन के आती है देह भा�
01:05:02सब बदल देती है, आपने उपवास रखाओ, आप कहा रहे हो कुछ नहीं खाना, कुछ नहीं खाना, रात में आठ भचते भचते, चुह इतनी जोड जोड से, चाहे चाहे, पेट में कुल बुला रहे हैं, नियत ही बदल जाएगी आपको, थोड़ा खाने से क्या हो जाता है,
01:05:32आप उसे लड़ जाओगे, आपको कि बेमानी कैसी है, कोई बेमानी नहीं, किसी आदमी को आप ये जता के देखिए कि उसने गलती करी हो, मानता कभी, क्योंकि उसके पास अपनी गलती है, अपनी बेमानी के पक्ष में तर्क खड़े हो जाते हैं, सुतह, ये शरीर का काम है, �
01:06:02जी, धन्यवादा आच्छारे.
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