जब एक ठौंगी स्वयं बन बैठा श्री कृष्ण| लोगों में फेला श्रीकृष्ण के प्रति भ्रम | श्रीकृष्ण कथा"
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पौंड्रक नाम का एक राजा अपने अहंकार में इतना डूब गया कि स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार बताने लगा। उसने न केवल श्रीकृष्ण के समान वस्त्र धारण किए, बल्कि अपनी मूर्खता में भगवान को चुनौती भी दे डाली। फिर आया वह क्षण जब सच्चे और झूठे का निर्णय होना था। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य चक्र से पौंड्रक के अभिमान का अंत कर दिया।
देखिए इस अद्भुत कथा को और जानिए कि अहंकार और असत्य का अंत निश्चित है।
यह कहानी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है मन्नू का सनातन ज्ञान इसकी पुष्टि नहीं करता है
00:00पॉंडरक एक असुर था जो बगवान स्रीकिसन का रूप दारन करने का दावा करता था वैं अपने आपको इसवर मानता था और उसने स्रीकिसन के साथ कई बार मत बेद की उसने स्रीकिसन की तरह के वस्तर पहनने बासोरी बजाने और स्रीकिसन की समान अन्य लक्सनों को अप
00:30यही नहीं, पॉन्टरक ने गुद को बगवान स्रीकिसन के रूप में इस्ताबित करने के लिए पूरी दुनिया में अपने सक्ति का परतसंग किया।
00:36स्रीकिसन ने जब यह सुना, तो उन्होंने पॉन्टरक को सबख सिखाने का निर्ना लिया।
00:40स्रीकिसन ने उसे युद के लिए ललका रहा, तो उन्हों के बीच वीशन युद हुआ, और अंत में बगवान स्रीकिसन ने पॉन्टरक का वद कर दिया।
00:48पॉन्टरक को सजा दी गई, क्योंकि उसे बगवान का रूप दान करने का प्रयास किया था, और सच्चे तरम का अपमान किया था।
00:54इस कटना से यसी दुवा की, कोई भी व्यक्ति अगर अपने हैंकार में बगवान के समान बनने का प्रयास करेगा, तो उसे अंत तह बगवान के दुवार अप्राशित होना ही पड़ेगा।
01:04यह कार्णियों में शिकाती है कि भगवान की बक्ति और उनके परति सर्दा सबसे महत्तपुर्ण हैं, और जो भी उनके रुप में धोगा देनी की कोजिस करेगा, उसका अंत निची दुरुप से बुरा ही होगा।