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  • 2 days ago
भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण क्यों किया। अगर असुर अमृत पी लेते तो क्या होता

🔱 अमृत कलश – अमरत्व का प्रतीक 🔱

समुद्र मंथन के अंत में जब अमृत कलश प्रकट हुआ, तो उसे पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच घोर संघर्ष छिड़ गया। यदि असुर अमृत पी लेते, तो संपूर्ण सृष्टि संकट में पड़ जाती! लेकिन भगवान विष्णु ने अपनी माया से मोहिनी रूप धारण किया और अपनी चतुराई से देवताओं को अमृत पिला दिया। यही कारण है कि सत्य और धर्म की विजय होती है, जबकि छल और अहंकार अंततः पराजित हो जाते हैं।

✨ अमृत केवल शरीर को नहीं, बल्कि आत्मा को भी अमरता देता है – जब हम सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलते हैं! ✨

🌿 धर्म और सत्य की हमेशा विजय होती है!
🌿 हरि की लीला अपरंपार है!
🌿 जो सच्ची भक्ति करता है, वही वास्तविक अमृत का अधिकारी बनता है!

🙏 जय श्री हरि! 🙏

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Transcript
00:00समुद्र मंथन से अंत में निकला अमरित कलश
00:02लेकिन जैसे ही अमरित प्रकट हुआ
00:04देवताओं और असुरों के बीच इसे पाने के लिए घोर संधर्ष छिर गया
00:08असुरों की शक्ती अधित थी और वे अमरित को हथियाने के लिए आतुर थे
00:11यदि असुर अमरित पी लेते तो वे भी अमर हो जाते और संपोवन स्रिष्टी संकट में पढ़ जाती
00:16तब भगवान विश्णु ने एक लीला रची उन्होंने मोहिनी का रूप धारन किया
00:20अद्वितीय सॉंदर्य वाली स्त्री जिसे देखकर असुर मोहित हो गए
00:23मोहिनी ने असुरों से कहा मैं अमरित को समान रूप से बाटूंगी
00:26लेकिन शर्त ये है की से बाटने का कार्य मैं करूंगी
00:29असुर मोहिनी के सॉंदरे पर मोहित हो गए और सहर शराजी हो गए
00:32मोहिनी ने अपनी चतुराई से अमरित को केवल देवताओं को पिला दिया
00:35जैसे ही देवता अमरित पान कर अमर हुए
00:37असुरों को अपनी भूल का एहसास हुआ
00:39लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी
00:40राहु नामक असुर ने चल से अमरित पीने की कोशिश की
00:43लेकिन सूर्वी और चंद्रमा ने उसकी पहचान बता दी
00:45भगवान विश्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धर से अलग कर दी
00:49लेकिन सिर और धर दोनों अमर हो गए और तभी से राहुकेतु का जन्म हुआ
00:52इस तरह भगवान विश्णु की क्रिपा से देवताओं को अमरत्तु की प्राप्ती हुई और असुर पराजित होकर लोट गए
00:58यह कारण है कि आज भी हरी की लीला अपरमपार मानी जाती है
01:01ओम नमो नारायना

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