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00:00शान्तम्म नाम की एक औरत रहती थी उसके दो बेटे थे बड़ा बेटा हरी और छोटा बेटा गिरी उन दोनों को दो आँखों की तरह देखकर उसकी सारी उमीदें उनहीं के उपर रखके जीने लगी
00:21एक दिन एक बुजर्ग आदमी शादी की रिष्टे के विशे में आने पर उनसे ऐसे कहने लगी
00:29मेरी बात को आप गलत मत समझे जाजा मेरे दोनों बेटों को मेरे रिष्टेदारों के जान पहचान वालों में ही रिष्टा करने को सोच रही हूँ
00:41क्योंकि गल के दिन मेरी बहुओं को अगर मैं कोई बात कहने से भी यहां तक कि वो मेरी बात सुनने के लिए भी
00:52हमारे बीच रही रिष्टे के कारण उन्हें कोई परिशानी नहीं होगी
00:58लेकिन अगर आप अच्छे दिल से अच्छा रिष्टा लाने से भी
01:03वो बाहर का रिष्टा ही होगा
01:06मैं अपने अवित्राई को बदल नहीं सकती चाजा
01:10ऐसे ड़क के विशे कह देती है
01:12तब वो बुजर्ग आदमी ऐसे जवाब देने लगा
01:16कोई बात नहीं बेटी
01:18तुम अपने बच्चों को प्राणों के समान पाल पोस कर बढ़ा की
01:24तो तुम्हें उनकी शादी के विशे में तुम्हारा अपना विचार होगा न
01:30ठीक है अब मैं चलता हूँ
01:34किसी रविवार के दिन मेरे घर आना
01:37तेरी चाची तुझे बहुत याद कर रही है बेटी
01:41जरूर चाचा
01:43ऐसे कहकर घर आये रिष्टे को वापस भेज देती है
01:47ऐसे शांतम्हा के उपर रहे अभिमान से
01:51उसके प्रयोजक और बुधिमान बेटों के लिए
01:55जान पहचान वाले अगर कोई रिष्टा लाने से
01:59शांतम्हा ऐसे ही ठुकरा देती थी
02:02ऐसे दिन बीटते गए
02:04पिछले देट साल से दूसरे राष्ट में नोकरी कर रहे
02:09शांतम्हा का बड़ा बेटा हरी
02:11एक लड़की से प्यार करके
02:13उसी शेशादी करके सीधा घर आता है
02:16उस नए जोड़े को देखकर
02:18शांतम्हा चौक कर खड़ी रहती है
02:21तब हरी ऐसे कहने लगा
02:23मुझे माफ करो मा
02:25अन्होनी परिस्तिती में
02:27मैं प्यार किये इस लहरी से
02:29मुझे शादी करनी पड़ी
02:30तुझे बता कर
02:32मनाने का समय नहीं था मा
02:34ऐसे हरी और कुछ कहते समय
02:37शांतम्हा दुखी होकर
02:39वहां से घर के अंदर चेली जाती है
02:41उसके बाद हरी
02:43इस परिस्तितियों में
02:44ऐसे बिना बताए शादी करना पड़ा
02:47पूरा विवरन
02:48उसके भाई गिरी को बताता है
02:50तब भाईया की परिस्ति समझ कर
02:54गिरी उसके मा से
02:56भाईया का विशे बता कर
02:58मा के गुसे को कम करने का प्रेद्न करता है
03:01आखिर में एक हफ़ता बाद
03:03शांतम्हा उसके बेटों से
03:06ऐसे कहने लगी
03:07देखो बेटे
03:08मैं पुराने जमाने की हूँ
03:11मेरे तरीके और सोच मेरे हैं
03:15इसलिए मैं शादी के विशे में
03:17अपने विचार को बदल नहीं सकती
03:19ऐसे कहकर
03:21अपने बेटों को छोड़ने के लिए
03:23मैं मूर्ख नहीं हूँ
03:24इस मामले में आप जो भी समझे
03:27मैं उस लड़की को अपने दिल से
03:30मेरी बहु नहीं मान सकती
03:32ऐसे कह देती है
03:34हरी और गिरी ने सोचा
03:36दिन बीटने पर
03:37उसकी मा में बदलाव आएगा
03:40इस तरह दिन बीटते गए
03:42शांतमा बहु की चाया तक
03:44उसके उपर पढ़ने नहीं देती
03:46लेकिन लहरी उसकी सांस को
03:49बेखातर नहीं करती थी
03:51सांस कितने ताने सुनाने पर भी
03:54कितना अपमान करने पर भी
03:56लहरी सांस के करीब आने की कोशिश करती रही
04:00ये सब देखकर एक दिन हरी
04:02लहरी से ऐसे कहने लगा
04:04गलत मत समझो लहरी
04:06मैंने नहीं सोचा था कि मा इतनी जिद्धी होगी
04:10मैं और भाई मा के जान है
04:13इसलिए मैंने किस कारण से ये काम किया है वो समझेगी सोचा
04:19पर अनजाने में ऐसे हो गया
04:22इसलिए हम अलग चिले जाएंगे
04:24ऐसे तुम्हें हर रोज मा के ताने सुनकर
04:28अपमान सहकर मैं तुम्हें नहीं देख सकता
04:32और मा को भी नहीं बता सकता
04:34ऐसे कहता है अब लहरी ऐसे जवाब देने लगी
04:38देखिए मैं नहीं चाहती कि बहु आकर
04:43मा बेटे को अलग करदी करके कोई कहे
04:46मैं उनकी बहु हूँ
04:49मुझे कुछ भी कहने का अधिकार उन्हें है
04:52मुझे यकीन है कि सांसु मा किसी न किसी दिन मुझे स्वीकार करेगी
04:58इसलिए हम कहीं नहीं जाएंगे
05:00ऐसे पती को समझाती है
05:02इस तरह दिन बीटते समय
05:05चोटा बेटा गिरी को उसके सोतेले पिता की पोती
05:10रिष्टे में शांतम्मा की भती जी मीना से दूसरा बेटा गिरी से शादी करती है
05:16घर आये कुछ तिनों बाद
05:19चोटी बहु अपनी सांस बड़ी बहु को कितनी हैरत से देखती है
05:24और चोटी बहु को कितने प्यार से देखती है समझ लेती है
05:29वो भी सांस की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए सांस के बाद को हां से हां कहकर उस घर की सबसे बड़ी बहु को कोशना शुरू करती है
05:40एक दिन बहुत सुबह होने के बाद भी सांस को कम से कम कौफी तक नहीं देने के लिए
05:47छोटी बहु बड़ी बहु से ऐसे कहने लगी
05:51ये क्या देदी? तुछे इतनी भी जिम्मेदारी नहीं है क्या?
05:55मैं भगवान का दर्शन करने के लिए मंदिर को गई
05:58वहाँ देर होने पर इतना टाइम हुआ
06:01और अभी तक तुमने सांसुमा को काफी तक नहीं दी
06:05सांसुमा गुसे से तुझे कुछ बात कहने से क्या होगा
06:09क्या तू उससे ऐसे ही छोड़ देगी
06:12ऐसे कहकर सांस के उपर बहुत प्यार दिखा कर
06:17यही मोका है सोचकर बड़ी बहु को बाते कहने लगी
06:21इस प्रकार सांस के मोके को देखकर
06:24छोटी बहु बड़ी बहु लहरी का अपमान करने लगी
06:28अब शांतन्मा को लगा छोटी बहु का तरीका ज्यादा होने लगा
06:32लेकिन अगर ये मामला सामने आने से
06:36बड़ी बहु की तरह बाते कहने लगी करके सोच कर
06:39दोनों बहुं के बीच बाते चलते समय
06:43बाजू जाकर ऐसे सोचने लगी
06:45ये क्या?
06:47मीना का मामला दिन बर दिन बढ़ती जा रही है
06:50लेकिन बड़ी बहु बहुत अच्छी स्वबाव की है
06:53इसलिए मैं और चोटी बहु इतनी बाते कहने पर भी
06:58वो कभी भी हमें जवाब नहीं दी
07:00अगर वो जवाब देती तो ये घर दो टुकडे हो जाते
07:05इसलिए किसी भी तरह बेचारी उस भोली को बाते कहने से रोकना है
07:10अगर मैं उसे गुसे से कह दी
07:13तो वो उसे मौका लेकर बहुत बातें बोलने लगी
07:17ऐसे सूचकर उसकी बतीजी चोटी बहु के उपर गुसे से हिल जाती है
07:23ऐसे एक हफता बीच जाता है
07:25एक दिन बड़ी बहु को कपड़े धोने के विशे में घर के देलीस पर खड़ा करके
07:32चोटी बहु मुँ में आई बातें कहने लगी
07:35ये सब देखकर शांतम्मा चुप नहीं रह सकी
07:38और बीच में आकर ऐसे कहने लगी
07:41मीना तुम चुप रहोगी की नहीं
07:44तुम्हें बड़ों की सम्मान करना नहीं आता क्या
07:47बड़ी दीदी को मुँ में आई बाते कहने लगी
07:50तू सोच रही है उसे कुछ भी कहने से मैं चुप रहूंगी करके
07:55और एक बार मेरी बड़ी बहु को कुछ कहने से
07:59मैं तुछे मार डालूगी
08:01उस बच्ची में रहे सहन शीलता
08:03और अच्छाई को क्या तुझे समझ में नहीं आ रहा जब से वो इस घर को आई है तब से मैं कितने बाते बोलने पर भी वो बहुत सहन शीलता से सही
08:14तू छोटी है लेकिन वो तुझे कभी भी एक बात भी नहीं बोली इतनी अच्छी बच्ची को ऐसे दहलीज पर खड़ा रखके पूछ रही हो मुँ बंद करके घर के अंदर जा नहीं तो इस घर को छोड़ कर चली जा
08:28ऐसे छोटी बहु को डांड कर बड़ी बहु की तरफ बाते करने पर मीना ऐसे जवाब देने लगी
08:35बाप रे इतने दिनों बार तेरी बड़ी बहु की अच्छाई तुझे अभी समझ में आई सासुमा
08:42तुझे दीदी के बारे में पता चलने के लिए ही मैंने इतने दिन ऐसे बाते किये हैं
08:48मुझे माफ करो दीदी
08:49सासुमा तुम तो बड़ी बहु को केवल बाहर की बच्ची होने पर ही इतने दिन तुमने उससे बहुत सताया है
08:58तेरे बाद मैं उसे कितनी बातें बोलने पर भी तू कभी नहीं रोकी
09:04अगर मैं दीदी के स्थान में रहने से इतने सारे अखमानों को क्या मैं इस घर में रहकर सहती
09:11लेकिन दीदी देता है देता इसलिए वो कभी भी जीजा को ले जाकर दूसरा घर बसाने को नहीं सोची
09:19उसकी सहन कीलता से तेरे मन में जगह हासिल करने का प्रेतन की
09:24इसलिए उसके प्रेतन को साकार करने के लिए मैंने दीदी को इतनी बाते बोली
09:31और देखी ना सासुमा तेरे मन को पसंद आई तेरी बड़ी बहु के बारे में कोई क्या सोचेंगे करके इतने दिन तुमने स्विकार नहीं की
09:41इतने दिनों से वो नाटक कर रही है कहकर सास बहु के बीच रही दूरी को कम करने के लिए उसके प्लान को बताने पर शांतम्मा की आँखें खुल जाते हैं तब शांतम्मा ऐसे कहने लगी
09:57सच बोले रे दिश्टदारों की बच्ची हो या दूसरों की बच्ची बहु यानि सांस के व्यवहार के आदार पर रहती है इसके अलावा और कुछ खास नहीं रहेगा करके मुझे समझ में आया
10:13लहरी बेटी इतने दिन मैंने तुम्हें बहुत दुख पहुंचाया है मुझे माफ करो बेटी
10:20ऐसे मत बोलो सांसुमा आप हमारे सांसुमा हो जैसे आप अपने बच्चों को कहते हो उसी प्रकार आपको हमें भी कहने का हक है
10:29इस प्रकार एक सांस और दो बहु रहे उस परिवार में बिना किसी व्यवधान के वो खुशी से जीने लगे
10:38लालची बहु बहुत साल पहले था एक गाउ द्वराक्षी नामक जहां पर बहुत सारे परिवार रहते थे
10:48एक था रामेश्वर का परिवार
10:54रामेश्वर के थे तीन बेटे
10:56पर एक दिन गाओं के मेले में सबसे छोटा बेटा राजू खो गया
11:10तब से रामेश्वर और उसकी पत्नी ने दोनों बेटों को बहुत ही ध्यान से बढ़ा किया
11:21दोनों बेटे बड़े हो गए और उनकी शादी की उमर भी हो चुकी थी
11:27दोनों को अच्छे खासे संबन्द आने लगी
11:30अच्छे रिष्टे मिलने के बाद दोनों की शादी बड़े धूम धाम से कर दी गई
11:36दोनों बेटों की अच्छी नौक्रिया थी
11:41तो वे सुखी से अपनी अपनी पत्नियों के साथ रह रह थे
11:46इसी दोरान रामेश्वर ने अपने काम से इस्तिफा दे दिया
11:51और सिर्फ घर के मामलों को संभाल रहा था
11:54अच्छानक से कुछ दिनों से दोनों बहों में लडाईया शुरू हो गई
11:59घर की काम काज में, खाना पकाने में, यहां तक की कप्ड़े पहने में भी
12:06दोनों के बीच में प्रतियोगिताय होती थी
12:09दोनों के बीच हालात इतने खराब हो गए कि बाद भी करना बंद कर दिये
12:15देखते ही देखते दोनों अपने पत्यों के पास गए
12:21और बोले की अपसे वह एक दूसरे के साथ एक छट की नीचे नहीं रह सकते
12:27अपने पत्यों को बोला कि वो जायदात से अपना हिस्सा ले और अलग घर में रहना शुरू कर ले
12:34दोनों भायों ने इस बात को मान लिया और इस बारे में अपने माता पिता से बात करने चले गए
12:43पिता जी मुझे आप से कुछ बात करना है
12:47उसी समेच छोटा बेटा भी उधर आया कोई जरूरी बात बोलने के लिए
12:52मुझे भी कोई जरूरी बात बोलनी है आप लोगों से
12:56क्या हुआ बेटा?
13:01हम अलग से रहना चाहते हैं
13:03क्या आपने जायदात का बटवारा कर दिया है हमारी बीच?
13:08ये तुम दोनों क्या बोल रहे हो?
13:11ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?
13:14पिता जी, मेरी पतनी इस घर में बिलकुल खुश नहीं है
13:18मुझे तुम्हारी वजाओं से कोई मतलब नहीं
13:22तुम लोगों ने सोच भी कैसे लिया
13:24कि तुम्हारी मा तुम लोगों के बगेर रह पाएगी
13:27ये सब सुनकर दोनों बहों ने अपना अपना सामान लिया
13:33और कमरों से बाहर निकलाए
13:35सुनिए जी, इन लोगों की पास है भी क्या आप दोनों भायों में बाटने के लिए
13:43चलिए, चलते हैं
13:45है भगवान, हमारी किस्मत ही खराब होगी अगर हमें यहां रहना पड़ेगा तो
13:55आएए जी, चलते हैं
13:59ऐसा कहकर दोनों बहों अपने पत्यों को लेकर घर से चले गए
14:04रामेश्वर की पत्नी का दिल अपने बेटों को जाते हुए देख कर तूट गया
14:10और वह जल्द भी मार पड़ गई, दिन रात अपने बच्चों के बारे में ही सोचती रही
14:16ये सब देख कर रामेश्वर भी बहुत उद्दास हो गया
14:22एक दिन रामेश्वर के घर कोई आदमी आया
14:26जब रामेश्वर ने दर्वाजा खोला, तो उसने देखा कि वह आदमी बिलकुल उसी की तरह लग रहा था
14:35वह हैरान रह गया
14:37आप रामेश्वर हो क्या?
14:40मैं आपका तीसरा बेटा, राजू
14:43मेरा बेटा, राजू
14:47रामेश्वर ने अपने बेटे को कस के गली से लगा लिया
14:52और अपनी पत्नी की पास ले गया उसके बेटे से मिलवाने के लिए
14:55अपने बिछडे हुए बेटे को देखकर मा खुशी से जूम उठी
15:02राजू ने पूछा कि उसके भाई किदर है?
15:05तो माता पिता ने उसको सारी कहानी सुनाई
15:08राजू इस मसले को हल करना चाता था
15:13उसने दोनों भायों को पत्र लिखा
15:15ये बोलती हुए कि उनके पिता रामेश्वर ने अपनी पूर्वजों की जायदात हासिल कर ली है
15:22और अब उनके नाम पे करोडों की प्रॉपर्टी है
15:26पत्र में ये भी लिखा था कि जो भी बेटा अपने मा बाब से सबसे ज्यादा प्यार, आदर और खयाल रखेगा
15:33उसी को ये सारी जायदात मिलेगी
15:36ये पत्र पढ़कर दोनों बहों ने अपने पत्यों को वापस घर जाने के लिए मना लिया
15:43ओ पिता जी, आप इतने कमजोर पढ़ गए?
15:51हाँ पिता जी, आपको पाने चाहिए क्या, आपने दवाई ली?
15:56दोनों बहों ने मा बाब की पूरी सेवा की, उनका दिल जीतने के लिए
16:01दोनों भाईों ने देखा कि कैसे उनकी पत्यों इतना नाटक कर रहे थी और हैरान रह गए
16:08फिर दोनों भाई भी मिलकर अपने माता पिता की सेवा में लग गए
16:14उसी समय राजु घर आया
16:16मा, पिता जी
16:19बड़े भाई और उनकी पत्या राजु को देख कर हैरान रह गए
16:23राजु सब को देख कर खुश हो गया कि उसकी योजना काम कर गई
16:28उसने अपने भाईों को गली से लगा लिया और वो भी राजु को देख कर खुश थे
16:34दोनों बहुएं मन लगा कर महनत करनी लगी
16:38उनकी महनत देखतर भाईों ने भी उनकी मदद की
16:41दोसा, चाई, कॉफी सब कुछ अपने सास ससुर के लिए बनाया
16:47दोनोंने घर का सारा काम संभाला बिना किसी जगडे के ताकि उनको जायदात में से हिस्सा मिल जाए
16:54ये सब कुछ मा, पिता और तीन भायों के लिए कुछ नया था
16:59कुछ दिनों बाद पत्मिया अपने पत्यों से पूछने लगी कि अब जायदात का बटवारा कब होगा
17:06दोनों बेटे गए अपने पिता से सवाल करने के लिए
17:10मैं अपनी सारी जायदात अपने सबसे छोटे बेटे राजू को दूँगा
17:18हमारे बढ़ापे में जब हम कमजोर हो गए थे
17:22सिर्फ राजू हमें बचाने आया
17:24और तुम लोग वापस यहां इसी लिए आये ताकि तुमको जायदात में हिस्सा मिल जाए
17:30पर राजू उसको सिर्फ हमारी चिंता थी
17:34सच में क्या शर्म की बात है
17:36तुम्हारी वज़ा से मैंने अपने माता पिता को ऐसे छोड़ दिया
17:41जिन्होंने मुझे पाल पोस कर बढ़ा किया
17:43जो काम हमको करना था वो हमारे बिच्ड़ी हुए बायने कर दिखाया
17:48हमें छोड़े की बुध्धी नहीं थी
17:51पिताजी अपसे हम भी आप दोनों का खयाल रखेंगे
17:54और आपको कभी नहीं छोड़ेंगे
17:56हमें जायदाद में से हिसा मिले या नहीं
17:59तब भी हम आपको नहीं छोड़ेंगी
18:01हमारी पत्नियों को हमारे साथ अगर रहना है
18:18और अपने घर के बड़ों का आधर भी करने लगे
18:21रामेश्वर का परिवार फिर से एक हो गया
18:25राजों के लिए भी एक अच्छी सी लड़की ढूंड कर
18:30उसकी शादी भी धोमधान से कर दी गई
18:32अंत में पूरा परिवार सुखी से रहने लगा
18:36घमंडी बहो
18:38सिर्फ़ नामक गाउ में था एक चक्की वाला रामनाथ नामक
18:43रामनाथ अपनी मा सरिस्वती जी
18:50उसकी पत्नी सूर्यवती और तीन बच्चों के साथ रहता था
18:55गाउ में रामनाथ का मिल अच्छी से चल रहा था
19:00तो इसमें सोचा कि वह एक और मिल शहर में खोलेगा
19:08पर शहर में जाते ही उसकी पत्मी जो बजपन से गाउं में ही रही थी अचानक से बदल गई जैसे कि उसको शहर के तोर तरीके पहले से ही पता हो
19:20महेंगे हैंडबाग्स चश्मे वगेरा खरीदने लगी और कोई अमीर शहर की महिला की तरह तयार होने लगी
19:30एक दिन सोर्यवती जी ने अपनी बभू को बुलाया और कहा
19:40सोर्यवती इन सारे बैग में है क्या
19:45ये वो मैंने कुछ हैंडबाग्स और चश्मी खरीदे हैं
19:51क्या ये सब करना जरूरी है बेटी
19:55मेरा पैसा है अम्मा जी जो मेरी मर्जी
19:58अब मैं गाउ में नहीं रहती हूँ न
20:00मुझे पता है यहां की लोगों के सार चलने के लिए क्या क्या करना पड़ता है
20:04और मुझे आप से तो कोई सला नहीं चाहिए
20:07नहीं बेटी पैसे तो पेड़ पर नहीं उखते न
20:12इस घर की बहो होती हुए तुम्हें भविशे के बारे में भी सोचना चाहिए
20:17और सोच समझ कर पैसे खर्च करने चाहिए
20:20तुम जो ये सब कर रही हो वो ठीक नहीं है बेटी
20:24मेरे मर्जी अम्मा जी मैं अपने शर्टों पर जिना चाहती हूँ
20:29और मुझे किसी की सला नहीं चाहिए अगर कोई मेरे गिरुद भी बोले तो मुझे कोई फ़र्च नहीं पड़ता
20:36इसी तखा सूर्यवती चर्चरी होकर अपनी सासो मा से कड़़ी बाते बोलती थी
20:42दूसरी और मा अपने बेटे रामनात को इस बारे में समझा कर सूर्यवती में अच्छा बदलाव लाने की ये कहती है
20:52पर सूर्यवती को यही लगता था कि मा जी उसके पती को उसके ही विरुद करने की कोशिश कर रही थी
20:59दिन दिन ऐसे ही बीद गए
21:03और सूर्यवती और भी कठोर और घमंडी बनने लगी
21:08एक दिन सूर्यवती रामराथ को अपनी बड़ी बेटी की शादी के बारे में पूछती है
21:14वो किसी को कुछ से दिनों से जानती थी
21:17और वो जाती थी कि उसकी इस नए सहेली के बेटे के साथ उनकी बेटे की शादी की जाए
21:24हम तो इन लोगों को जानती भी नहीं
21:27ऐसे घर में हम शादी कैसे कर सकते है
21:30बिरह यकीन करें उनका केवल एक ही बेटा है
21:34जिसने अंडिका में पढ़ाई भी की है
21:37उनके पिता तो नहीं है
21:39पर उसने अकेले सारी जिम्मेदारी समा ली है
21:42और अपनी मा का खयार भी रखता है
21:45ये लोग बहुत बड़े पंगले में रहते हैं
21:48और अच्छे खासे पेसे वाले हैं
21:51नहीं नहीं मैं गाउं से ही कोई अच्छा सा लड़का देखूंगी
21:55इन शहर के लड़कों पर मुझे कोई यकीन नहीं है
21:58नहीं मैं जैसा चाती हूँ वैसे ही होगा
22:02अगर मेरी बात नहीं मानोगी
22:04तो मैं घर छोड़कर चली जाऊंगी
22:06और कभी वापस नहीं आऊंगी
22:08अपनी पत्नी का बर्दाब देखकर
22:10रामना चुक चाच ला गया
22:12उसकी बात मानते हुए
22:14सूर्यवती ने अपनी बेटी की शादी आखिरकार
22:18अपनी सहेली की बेटे के साथ कर ही दी
22:20शादी के बाद एक दिन सूर्यवती
22:23अपनी बेटी की सुसराल गई
22:25और इतना बड़ा बंगला देखकर हैरान रह गई
22:34उसी समय उसके दामाद आया
22:42आजकल बहुत चोरी हो रही है माजी
22:47पर हमें कोई टिकत नहीं
22:49मैंने हमारे सारे मूलेवान चीजे
22:52लौकर में डाल दिये हैं
22:54ये लौकर क्या है बेटा?
22:56कुछ नहीं सूर्यवती
22:57बस एक जगह है जहाँ पर हम अपने जीवरात
23:00और जरूरी कागजाज रखते ही
23:02बंद करकी और जब भी चाहे
23:04उनको हम पापस ले सकते हैं
23:06बातो बातो में सूर्यवती
23:08सूर्यवती ने अपनी बेटी को बोला
23:10कि वो अभी उसके सारे कहने
23:12और कागजाज अपनी पती को दे दे
23:14लौकर में रखने के लिए
23:16मा की बात मानकर उसने बिलकुल बैसे ही किया
23:19अगले दिन सूर्यवती के दामाद
23:21ने अपनी पत्नी को वापस मैके भेजा
23:24और बोला कि वो अपने मा की घर से
23:27पचाथ हजार रुपे जल्दे ले आए
23:30क्योंकि कोई संक्ट आ गई है
23:32बिना सोचे समझे
23:34सूर्यवती ने उसको पैसे दे दिये
23:37पैसे मिलनी के बाद
23:40फिर से अगले दिन दामाद जी
23:43वापस अपने पत्नी को माय के भेज देता है
23:47उसके पूरे सामान के साथ
23:50यह कहते हुए
23:51कि वो और उसकी मा विदेश जा रहे हैं
23:57किसी काम के सिल्दे
23:58यह सब देखकर रामनाद को अपने दामाद तो शक होने लगा
24:03उसने सोचा काम के लिए इनको देश छोड़कर जाने की क्या आवश्यक्ता
24:08और वो भी अचानक से पता तो लगाना पड़ेगा
24:12पूछ तांच करने पर रामनाद को पता चला
24:20कि उसके दामाद में छे महिनों से अपने बड़े से बंगले का किराया ही नहीं दिया था
24:33सब को ये बात बोलने के लिए है भगवान बिना चाने मैंने बेटी की शादियों उस धोंके बास से कर दी
24:44और बेटी के सारे जेवरात और कागजात भी उसको ही दे दिये और परसु तो बिना सोचे समझे मैंने पचास हजार रुप्य भी दे दिये
24:54मुझे समझी नहीं आया ये सब जब उसने बच्ची को घर वापस भेड़ दिया था
24:59सोर्यवतिने से रामनात और सासुमा से माफे की फीक मांगी
25:03उसकी मूर्खता और घमंड की वज़े से उन्होंने अपने सारे जेवरात और जरूरी कागजात खो दिये
25:10और उसकी बेटी की जिन्दगी भी बरबाद हो गई
25:14इस कहानी से हम ये सीखते हैं कि कोई भी फैसला लेने से पहले अपने घर के बड़े भुज़र्गों से पूछना चाहिए
25:22अगर ऐसा नहीं करोगी तो सूर्यवति की तरह फस जाओगे