हे अर्जुन! वेद तीनों गुणों के कार्य रूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रतिपादन करने वाले हैं, इसलिए तुम उन भोगों एवं उनके साधनों में आसक्तिहीन, हर्ष-शोकादि द्वंद्वों से रहित, नित्यवस्तु परमात्मा में स्थित योग क्षेम को न चाहने वाले और आत्म-परायण बनो॥
~ प्रकृति के तीन गुण कौनसे? ~ इन गुणों में सबसे सर्वश्रेष्ठ गुण कौनसा है? ~ श्री कृष्ण इन गुणों को त्याज्य क्यों बताते हैं?