00:00अगर वो ऐसा कहते भी है तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है
00:10फोटो कॉपी भी है तो भी बहुत उची चीज की है बहुत दर्शन बहुत उचा है
00:14बहुत बढ़िया और अद्वयत वेदान्त और माध्यमेक शुन्यवाद में कोई अंतर नहीं है
00:21तो अगर किसी को ये भी कहना है कि दोनों एक हैं बल्कि अद्वयत ने नकल करी माध्य शुन्यवाद की कोई दिक्कत नहीं है
00:27नकल के नाते ही उसको देख लो भई उची से उची चीज की नकल भी बहुत अच्छी होती है
00:32तो माध्यमेक शुन्यवाद इतनी उची बात है कि अगर अद्वयत वेदान ने उसकी नकल भी करी है
00:38तो तुम नकल के नाते ही पढ़ लो चलो अद्वयत वेदान नहीं पढ़ना
00:41तुम बहुत दुशुनेवाद ही पढ़ लो, उसको भी तुमने पढ़ लिया तो वह भी अद्वयत ही है, एक ही बात है, लेकिन अगर आप एतिहासिक तत्यों पर गौर करोगे, तो प्रमुक उपनिशत जो है, वो सब बुद्ध से पहले लिखे जा चुके थे, तो अद्वय
01:11में आते हैं, एक है महात्मा बुद्ध से पहले के, एक है महात्मा बुद्ध से बाद, लेकिन बीसी में समझ रहे हैं, तो समझे बुद्ध के समकाली नो और बुद्ध के 400 साल बाद तक के, और फिर वो जो जहने हम बोलते हैं, सांप्रदाइक उपनिशत, ठीक है, जो अल�
01:41अरच डाले, वो सब और बाद में आते हैं तो जो प्रमुःक उपनिशद है, जैसे हम कट उपनिशद कर रहे हैं
01:48तो नची केता भगवान बुद्ध सें पहले के हैं
01:51ठीक है? इसी तरह से इश उपनिशद है या केन उपनिशद है
01:55तो यह पहले के हैं
01:57और जो दुब मोटे मोटे उपनिश्यत है कौन से प्रदार अन्यक और छांदोग यह तो है और पहले के
02:03लेकिन इनमें अद्वायत विदान्त उतना निखर के नहीं आता यह द्यपी इनमें से ब्रह्मवाक्य हमने लिये हैं
02:09लेकिन जिनमें हमने साफ साफ दिखाई देता यह रादवयत विदान तो वह भी महत्मा बुद्ध से पहले का है लेकिन इस बहस में बिलकुल नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि स्वेम बुद्ध जो बात बोल रहे हैं अगर आप उस बात को भी समझ लें तो आप तर जाएंग
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