00:00आदमी ने ये बला पाल ली है कि वो दिन और घड़िया गिनता है कि वो दिन आएगा तब मैं अपने आपको हक दूँगा खुश होने का
00:07अरे जब तक मेरी नौकरी नहीं लग गई मैं खुश कैसे हो सकता हूँ
00:10ये सब बीमारी आदमी के मन की है
00:12तुम बैठे हो मस्ती में बैठो तुम चल रहे हो मस्तो करके चलो
00:17खेलते हो मौज में खेलो यूही बात कर रहे हो कह रहे हो सुन रहे हो
00:22मस्ती में कहो मस्ती में सुनो पर हम वैसे नहीं रहते हैं
00:26भविश्य की चिंता में हमारे कंधे जुके जुके रहते हैं
00:30हमने हक ही नहीं दिया अपने आपको मगन होने का, फिर चेहरा उदास रहता है, आखें सूनी-सूनी सी रहती है, जल्दी से डर जाते हैं, कुछ जरूरत नहीं है, ना चिंता की ना डर की, कोई जरूरत ही नहीं है, तुम्हें किस वात की फिकर है बहुत, कौन सा बोज उठा �
01:00के फिर रहे हो, कि ये करना है और वो करना है, ये बोज ही तुमको मस्त नहीं होने दे रहा,
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