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00:00मेरा प्रेशनर वरतों को लेके हैं, जैसे कि हम लोग कहीं भी निकलते हैं, हम लोग को बोल दिया जाता है, टाइम लियाओ, जैसे भी साड़े नौ बज रहे हैं, मेरे घर से मैसेज आ रहा है, बहुत तूर है गर्ट, जदी आ जाओ, अकेली आना है, तुम्हें इतना देर र
00:30लेकिन कितना भी अच्छा समाज बना लीजिए, कुछ ना कुछ तो उसमें अपराध का स्तर रहे गाई, कभी ना कभी ज्यादा नहीं, तो कम घटनाएं घटेंगी, ये जो घटनाएं हैं, महिलाओ कहना होगा कि ठीक है, ये इतनी बड़ी बात नहीं है, मैंने जेल लिया,
01:00तो ये कि मेट्रो सिटी है, जो आप बोल रहे थे, लॉइड ओर ठीक है, आप जिस तरह की घटना की आशंका कर रहे हो, वैसी घटना घटने की समभावना बहुत कम है, लेकिन अगर वैसी घटना घट भी जाती है, तो मैं अपने दम पे जेल लोगी, अगर बुलाना भी हो
01:30टोकाटाथी का हख भी नहीं है, सबसे जरूरी है मनुष्य की स्वतंत्र गरिमा, मैं एक इनसान हूँ, किसी पर आश्रित नहीं, ना आर्थिक रूप से, ना सामाजिक रूप से, जैसे मेरी उमर का कोई भी वैस्क पुरुष जीता है, वैसे ही मैं भी जी सकती हूँ, और �
02:00हर से हमें क्या फर्क पड़ता है, अब जब आपको फर्क पड़ना बंद हो जाएगा, तो लोगों का बोलना भी कम हो जाएगा.
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