00:00कश्मीर में अब की बार ठंड की शुरुवात नौम बर के महीने से ही हो गई है।
00:04अगर बीती रात की बात की जाए तो श्री नगर में तापमान शून से चार डिगरी नीचे था जब के कश्मीर के पहाड़ों पर तापमान में और भी गिरावट आई थी।
00:15कश्मीर में ठंड से बचने के लिए लोग सदियों से फेरन का इस्तिमाल करते हैं।
00:21उनी कपड़े से बनने वाले फेरन अब नसरिफ कश्मीर में बलकि देश के अलग-अलग हिसों के साथ-साथ दुनिया के कई मुलकों में मकबूल हो रहे हैं।
00:31फेरन नसरिफ पुरुश बलकि महिलाएं भी अब अलग-अलग डिजाइनों में इस तरह से पहनती हैं और एक फेशन और क्रेज बन गया है।
00:40लेकिन इस फेरन की शुरुवात कैसे हुई और किस तरह से पुरानी परंपराओं को अभी भी कश्मीर की गुरेज गाठी में महफूज रखा जा रहा है जानिये इस रिपोर्ट में।
00:53तो हम चुरुण के रहने वाले गुरेज चुरुण के रहने वाले पराणे लोग जो बिचारे बनाते थे उस वक्त में बाप के पास देखता था इसा बना कर बार चलते थे तो बोलते थे हम यह क्या बना है बोलते थे यह हमारा बूट वूडनी है यह बना कर हम गजारा कर
01:23वो विच�ारे यहीem vibes कर बांडी में जाते थे शिरिनागर में जाते थे तो बूर्ट वोगरा कोई नहीं था
01:32तो इसमें मोज़ लगाते थे मोज़ के ऊपर कपड़ा थोड़ा लपिड़ते थे को फिर याते थे बार
01:41तो सफर करके आते थे बिचारे तो रास्दान में भी रास्ता नहीं था उस वक्त गाड़ी यह नहीं चल रही थी तो पीट पर लाते थे बिचारे बुड़े लोग तो बचों को खिलाते थे पिलाते थे तो आज कल जमाने में रोड खुल गये और क्या बोलते बूट वागेर
02:11पराणे लोग लाते थे कश्मीर से खरीद कर खास कर उनको फिकित थी हमारे को जूते यह चपल बनाने राद यह क्या बुलते हैं विंटर निकालने तो वो लाकर रखते थे दसंबर के टेम पर तो अगर यहां नहीं मिल गये कश्मीर में नहीं गये अगर यहां कहीं लाना ह
02:41पर होते हैं चश्मे को पर यह गास तो दिर से मिलता था लाते थे फिर बनाते थे
02:47कितना टाइम लगता है एक जोड़ी बनाने में दिन लगते है पुरा इसको पेले ये गास जोड़ना पड़ते है उसके बाद फिर ये बनाना तपल वगएरा तो अच्छी बनाते हैं तो इसमें लगाते हैं क्या बलते हैं मौज़ा लगा कर माओं फिर जाते हैं बाद
03:17इसमें फिसलते भी नहीं है बिलकुल बरुम में भी यही इस्तमाल करते थे वो गिरते विते नहीं थे आजकल जमाने में बरुम में जाते यह बूल लगाकर फिसलते थे तो घर में भी यही पिंते थे कहीं दूर सफर में जाना होगा मगर जाते थे यह लगाकर कहीं रास्ते म
03:47मेरा नाम है अली महमन लौन, सनम करामकादि लौन मैं चौर्वन से कह रहा हूँ
04:16मैं इधरी रहने वाला हूँ
04:18मैं ये फैरन बना रहा हूँ
04:21तकरिबन ये फैरन बनाने में टाइम लगता है एक महिना
04:26पहले बेड़ो का उन हम उतारते है उबेड़ो से
04:33उसके बाद वो लकड़ी के बनाते है
04:37तो उससे हम काते है
04:40उसके बाद हम उसको अफसाते है
04:46दूसरी टाइप की होती है उसके बाद इसमें बनाते हैं बनाकर फिर वो बनाने वाला पता नहीं उसको क्या कहते हैं उर्दू में उसमें लगाते हैं एक महीना तीन किसम के बनाते हैं चार किसम के बनाते हैं जितना जैसी चैस होगी जैसे डिमांड आएगा वैसे ही बनाते ह
05:16सब परवार लगते थे इसके पीछे ये बनाते थे अभी अभी कम किया है लोगों ने तो तो भी मैंने जिन्दा रखा है ये मैं ये काम कर रहा हूँ मेरे पास हर हमेशा हर साल होता है ये एक दो तीन चार बनाता हूँ
05:34तकरीब ये पंद्रह हजार में एक फैरन जा रहा है तो थोड़ा बहुत में ये काम कर रहा हूँ इस फैरन में ये फैरन जो होता है ये गर्म ज्यादा होता है जी इसमें जो नीचे वाले कपड़े लगाते हैं हम कम लगाते हैं जो बाजार के होते हैं उसमें ज्यादा लगा
06:04खासकर चले कलान में एक दो महीना होता है, बहुत सी सर्दी होती है, उसमें तो ये गर्म कपड़े फेरन लगाते हैं, तो ना कांगरी की जारत होती है, ना और किसी चीज की जारत होती है, ये फेरन लगाते हैं, टोपी होती है, इसके मोजे होते हैं, इसके दस्ताने होते हैं
06:34डोट देर मेहना लगते हैं
06:36तो चादर बनाते हैं
06:40जो उड़ते हैं
06:42चादर बनाते हैं
06:43बिस्तर के उपर लगाते हैं हम
06:44वो भी बनाते हैं
06:46वो दो किसम के होती है
06:47एक तीन गजवाली होती है
06:49एक साथ गजवाली होती है
06:51बड़ी वाली होती है चोटी वाली होती है वो भी बनाते है पहले वाले वो यह इस्तमाल ज़्यादा करते थे अभी अभी बिस्तर आए है अभी बाजार से खरीते है तो इसमें कुलर आप इसमें तीन भी करते है चार भी करते है पाँच तक होते हैं जिनाफ एक होता है सब स�
07:21रेडिस कलार का ये होता है जी और निला होता है तो जैसे किसम के लगाएंगे वो होता है जी
Be the first to comment