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'जो हमने दास्तां अपनी सुनाई- संस्मरण लेखन की चुनौतियां' पर चर्चा, देखें साहित्य आजतक के मंच से
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00:00साहित्य आज तके इस संस्क्रण में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है
00:06आज पहला दिन है और पहले दिन मंच पर हमारे साथ जिस विशय परचर्चा के लिए
00:16मैं उपस्तित हुआ हूँ विशय का इस सत्र का नाम है जो हमने दास्तां अपनी सुनाई
00:24वैसे तो यह एक फिल्म का गीत है जो हमने दास्तां अपनी सुनाई आप क्यों रोए
00:30लेकिन यह जो तीन कृतियां हैं जो रचनाकार हमारे बीच बैठे हैं
00:37साहिद युवापीड़ी को बहुतों को पता नहीं होगा
00:40तीनों अपने अपने ढंक से अलग अलग जगों पे उन्होंने जीवन के अनुभाओं को
00:47संगहर्सों को नकिवल संजोया दोचार किया बलकि जिन्दगी की आँख में आँख मिला कर
00:57वक्त के साथ जब वो एक जगह एक मुकाम पर पहुँच गए तो उन्होंने अपने अतीत को देखा
01:06और सब्दों में वो दास्तान दर्ज की वो सचाई दर्ज की जो पढ़ते समय आपको रुला दी
01:14और मैं इस बात में कहने में कोई गुरिज नहीं करता हूं कि मेरी पिछले एक दशक में पढ़ी गई
01:28जो संस्माडात्मक और आत्मकतात्मक कृतियां हैं उनमें ये तीन कृतियां कहीं ने कहीं
01:35स्रिष्ठतम और सरवाधिक भावक और मार्मिक कृतियां हैं तो सबसे पहले तो मैं आप तीनों को
01:44अपनी अपनी सच्चाई और विवाकी को और दर्द को और समय को दर्ज करने के लिए साधुवाद देता हूं और बधाई देता हूं
01:55मैं अपने स्रोताओं से और जो लोग भी आनलाइन हमारे कारेक्रम को देख रहे हैं मैं उनको बता दूं कि
02:04तीनों ने अलग-अलग बातें लिखी हैं यति इस कुमार जी रेलवे में बड़े अधिकारी हैं
02:13लेकिन अधिकारी होने से पूर्व जो उनका जीवन था जो बच्पन था जो कुछ उनों ने देखा उसे बोर्सी भरांच नाम के संसुरन में दर्च किया
02:26वो किताब अगर आप किताबें पढ़ना चाहते हैं तो पढ़ सकते हैं
02:31सीमा कपूर जी का परिचे आप गूगल करोगे तो मिल जाएगा मैं उपचारी का परिचे में नहीं जातना चाहता
02:40लेकिन जो आप आज यहां मौजूद हैं वो जिस समय इनका संस्मृंड
02:49यह गुजरी जो गुजरी है अपतला की यह गुजरी वो एक लड़की की इसमृती में जो पहली घटना होती है वहां से वो याद करती है कोलतार की सड़क बचपन और मंडलोई जी की किताब
03:11मंडलोई जी दोरदर्सन में आकासवाणी में बड़े पदों पे रहे आप जब ढूडेंगे तो बतोर कथाकार नाटकार रंगमंच कर्मी आप दोरदर्सन के अधिकारी आप जो टेलिवीजन का वर्तमान स्वरूप देखते हैं उसके निर्मान में बहुत सारी चीज़े �
03:41भोजन एक समय ऐसा भी था कि दो वक्त खाने की भी गुंजाइस नहीं थी और सायद घर जब छोड़ा तो उस समय बारिज से बचने के लिए भी साधन नहीं था एक ही जोपड़ी में गाय भी होती थी वैल भी होता था और खुद परिवार भी था बहुत सारी स्मृतिया है
04:11दो किताबें होती हैं लेकिन अगर ये तीन किताबें रह गई तो इसका मतलब कि बहुत बड़ी बात थी इतनी बड़ी भूमिका मैंने इसलिए दी क्योंकि मैं किताबों पर आधारित बात करूँगा और चुकि संस्मृन है इसलिए आप उससे जो कुछ जान सकेंगे और म
04:41आज आपने अपने संस्मृनों को समय समय पर दर्ज किया आपने लिखा है कि ये तीन खंडों में ये यादें आएंगी
04:52आज जब जीवन में आपके पास एक तरह से भौतिक रूप से सब कुछ है उन इस्मृतियों तक पहुँचने तक उन यादों को सजोने तक आप क्या कुछ महसूस करते रहे और उन्हें इस समय किताब के रूप में लाने की जरूरत क्यों महसूस की
05:14ऐसा है जै प्रकाश जी कि जिसका बच्पन कुछ ऐसा शुरू गवा हो कि उसकी एक आँख हंस्ती रही हो और दूसरी रोती रही हो
05:31याने कि गरीबी में भी एक तरह की प्रसंदा का आनंद का हम लोग कहा करते थे हमारी बच्टी का नाम ता पीर गनेरी
05:42हम लोग कहते थे कि हम अपनी गरीबी में बहुत अमीर हैं और वो जमाना था आजादी के पहले का जब प्राइवेट कोईला ख़दाने हुआ करते थी और उसमें कोई पर्मानेट नोकरी नहीं होती थी
06:00तो हमने बच्टपन से जो देखा उसमें ना इस्कूल हुआ करते थे ना खेल के मैदान थे ना मरुंजन के साधन थे
06:12मतब ये मान के चलिए कि कुछ भी नहीं था हमारे आसपास पेड़ों के नीचे पढ़कर हम लोगों ने अपनी एक यात्रा शुरू की तो आपकी जिंदगी की जो स्मृतियां होती है और उन स्मृतियों में सिर्फ आप बीती नहीं होती जग बीती भी होती है तो मेरी जो �
06:42मज़ूरों की है जिन्होंने कोईला खदान में अंडरग्राउंड में कोईला तोड़ा ओपन कास्ट में भी कोईला निकाला और इसके अलावा तरह तरह की काम जिंदगी में करने पड़े यानि कि होटल में कपलेट भी धूई शराब भी बेची और वो तमाम चीजें जिन
07:12मेरी ये जो पहली किताब है वो बचपन से 17 वर्ष में जाकर खत्म हो जाती जब में कॉलेज में जाता हूं लेकिन एक जिद थी कि जो कुछ हमने देखा है जो हमारा आखिन देखी था जिसमें हमने आप बीती के साथ जग बीती देखी उसको इसलिए दर्ज करना चाहिए क
07:42बतोर इतिहास ही सही ये मिलेगा कि बच्चों का एक जीवन ऐसा भी था और शायद उससे ये तो नात्मक अध्यन करने में आसानी हो कि अगर हम आज बहुत अच्छी इस्तिती में हैं तो अच्छी इस्तिती में शायद इसलिए हैं कि उन लोगों ने आपके लिए काम किया �
08:12कोई आदमी मिट्री तोड़ता है उसके वो तमाम काम ही इस देश को बनाते हैं तो इसलिए मुझे लगा कि ये दर्ज करना बहुत ज़रूरी है और दूसरी बात ये है कि मुझे कभी ये नहीं लगा कि बहुत इक रूप से में बहुत संपन हो गया हूं बलकि आप बहुति
08:42तो इस उजाले में ये लगता है कि जो अंधकार है इस उजाले के भीतर जो अंधकार है उसको पहचारने के लिए कोई चाहिए और शायद हम उस अंधकार की तलाश करते हैं ताकि जो उजाले में बहुत कुछ ढग गया है उसको थोड़ा अनावरत करके आपके सामने एक ऐ
09:12कि आप अपने विवेक से ये जान सके
09:16कि नहीं जो हम देख रहे हैं भौतिक रूप से
09:19जो हम शान और शौकत में देख रहे हैं
09:24जो हम एक बहुत अच्छी जिंदिगी में देख रहे हैं
09:27सिर्फ उतना ही इस जिंदिगी का सच नहीं है
09:29क्योंकि एक जिंदगी हजारों जिंदगियों से जुड़ी होती है
09:33आपके पास जो कुछ भी आता है बहुतिक ग्रूप में
09:38उसे बनाने वाला कोई ना कोई है
09:40और उसकी स्मृति कभी आपको इसलिए नहीं आती
09:45क्योंकि आप अपनी दुनिया में खोई रहते हैं
09:49तो एक लिखक कागम उस दुनिया से निकालना भी है
09:53तो शायद मैंने वही किया और मेरे साथियों ने भी
09:58सीमा जी की जिंदगी उनकी किताब पूरी पढ़ चुका हूँ
10:00बहुत आसान जिंदगी नहीं थी और एक लड़की के लिए एक इस्तुरी के लिए
10:07उस तरह की जिंदगी, जीना, मुझे लगता है कि इस सदी का सबसे बड़ा आश्यर भी हो सकता है
10:16बहराल
10:17यहीं से मेरा प्रस्ण शुरू होता है
10:21सीमा जी से मेरा प्रस्ण तो आपने पूछ दिया एक तरह से
10:26सीमा जी जब आज हम आपका गोगल पर जो नहीं पीड़ी है अगर आपका बाइड़टा तलासने की कोशिज करें कि कौन है सीमा कपूर
10:37तो उसे उस दौर का अंदाज नहीं होगा जहां से निकल कर जो आपने लिखा यह गुजरी है अब तलग पहले तो मुझे
10:47यह हीडिंग जही चोंकाती है यह यह गुजरी है अब तलग में यह जो गुजरी है उसके इतने सारे सेड़ हैं और दूसरा आपकी भाशा के लिए मैं जरूर कहूंगा
11:03मैं जब भी उस किताब को खोलता हूं उसके पन्नी को खोलता हूं मैं आश्चरी से भर जाता हूं इतना यह सम्रिद्ध और लालित्य भरी या प्रवाह पूर्ण भासा आपके अंदर आई और डर्द में कोई ऐसे कैसे लिख सकता है इस तरह से कि आप पढ़ते और बहते च
11:33आप सब लोगों को जो यहां आए हैं और साहित्य के बारे में रुची रखते हैं, किताबों के बारे में रुची रखते हैं और धन्यवाद है आज तक को कि इतने बड़ा काम कर रहे हैं यह साहित्य को लेके और जैप्रकाश जी को भी धन्यवाद है वो इतने अच्छे स�
12:03अगर हुआ इंसां तो मिठ जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पे इतनी पड़ी कि आसा हो गई।
12:10तो क्या होता है कि जब आप मुश्किलों में होते हैं, अभी मैं अगर कल के लिए सोचूं कि कल मुझे फ्लाइट पकड़नी है और ये करना वो करना तो मैं बहुत टेंशन में आ जाओंगी, लेकिन अगर मैं फ्लाइट में बैठी हुई हूँ, तो फिर कोई टेंशन नहीं हो
12:40आपको सिर्फ ये करना होता है कि उसमें से कैसे निकलना है, और निकलना है ये भी नहीं पता होता है कि हम कोई परिशानी में हैं, भूख में हैं, गरीबी में हैं, या इमोशनल आपके टर्मॉयल से गुजर रहे हैं, शादी तूट रही हैं, बच्चे का लॉस हो रहा हैं,
13:10गुजर रहे होते हैं। ये तो जब वहां स्टेशन खतम हो जाता है, आप जब वो चीज़ें खत्म हो जाती है तब आप सोचते हैं कि आप कैसे गुजरें और कैसे आपने वो सब चीज़ें फेस कर ली।
13:40पालन पोशन है कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी परिस्तितियों के आगे और वो हमेशा एक पॉजिटिविटी से भरे रहते थे, तो शायद बच्चों में वो ही चीज़ें आती हैं। तो इसलिए मैं लिख सकी और बाकी आपने शायद यही पूछा था।
14:01आप साहितिक तोर पर बहुत आधिक सक्री हैं। और बहुत सारे काम लगातार कर रहे हैं।
14:16कविताओं, गध्य पर कविताएं आपने लिखी हमारे दोर की जो क्लासिक किताबें हैं।
14:23और उसके तुरंत बाद बुर्सी भर आच आगी। बुर्सी भर आच के बारे में आज की पीड़ी मुझे नहीं लगता कि उसको बुर्सी और उस आच का अंदाज होगा कि यह बुर्सी भर आच दरसल होती क्या है।
14:40मैं आप ही के सब्दों में जब आपने इस सिर्शक को लिखा होगा यह हमें किस्वी सदी में इस दौर में जिसको अभी बड़ी सारे मंचों पर जेंजी की चर्चा हो रही थी मैं आ रहा था तो सीमा जी ने मुझे कहा कि जब कुछ मंचों पर संगीत का कारिकरम चल रहा हो
15:10धन खर्च करना पड़ता है और इसके अलाबा हमें अलग अलग तरह के कारिकरम इसलिए करने पड़ते हैं कि जिन लोगों को मेले में जैसे आदमी जाता है तो जिसको मन करता है और जूला भी जूलता है जिसको मन करता है कुछ खरीदारी करता है तो हम भी अलग अलग अल�
15:40आज के दौर में जिसके जीवन में संघर्स इतना है कि कोई दिल तूटा और वो तूट गए.
15:48शुक्रिया जपरकाश जी, शुक्रिया साहित ताज तक और शुक्रिया दिल्ली जो यहां सुन रहे हैं, पहली बात तो यह बदा दूँगी, यह सोच सब्जिक्ट दिया है, हम तिनों को यहां बिढ़ाया है, यह एक माध्यम बनेगा, कि यह हमारी बाते वहां तक पहुंचे
16:18इसी केम था, वो मुझे खुद को खाली करना था, अगर खुद को खाली करना है, मैं बहुत इमानदारी से बोल रहा हूं कि मेरा परपस उस समय यह नहीं था कि यह आगे जाकर बच्चों को, किसी बच्चों को एक मोटिवेशनल बुक के तरह बन जाएगी, जो आज के समय म
16:48मेहन में सिर्फ एक बात थी, कि एक आठ साल का बच्चा है, और वो असी के दशक को, बिहार के असी के दशक को, कैसे देखता है, क्योंकि मैं देख रहा था कि मेरी पोस्टिंग भी संजोगवस जमालपूर में हुई, और तब तक मैं साहित से लगबग 20 साल बहुत दूर र
17:18और वो जहला है, कि वो छे वजे शाम के बाद बाहर नहीं निकलने का जो डर, और एक लड़की अगर सड़क पे जा रही है, उस पुस्तक में इसका विशेश तरह से जिक्र है, कि वो कितनी मुसीवतों के साथ टहल रही है, आज बहुत आराम से लोग, बच्चे आजकल भ�
17:48थोड़ा सा छू जाए, थोड़ा सा लहरा जाए, थोड़ा सा वो पेड हरित हो जाए, तो मेरा लिखना सफल हो जाए, क्यूंकि आप देख रहे हैं कि आत्मात्या करने की जो संक्या है, वो एक्स्पोनेंसिल ग्राफ है उसका, तो ऐसी किताबें, मुझे लगता है कही नही
18:18अपने बात लड़की और रात के अंधेरे की कही और उसके बाद मुझे योंगुजरी हफ्तलग की बहुत सारी घटना याद है, सीमा जी आपसे प्रश्न ये है कि एक लड़की, मा की कोक के बाद की स्मृतियों को आपने जिस तरह से लिखा है, उसके बाद जिस दौर की य
18:48है या नहीं है, मैं आप ही से जानना चाहूँगा अधुनिक्ता के तमाम दौर के बावजूद, लेकिन मेरा प्रस्न केवल लड़कीयों की इस्थिती या रात के अंधेरे में निकलने और उसमें छेड़खानी जैसी बातों पर नहीं है, मेरा प्रस्न ये है कि एक लड़क
19:18में जो कुछ घड़ता है, आपकी किताब को पढ़ते हुए सामान्य तोर पर कितना भी सांतिपूर्ण अभ्यक्ति हो वह आक्रोश से भर उड़ता है, उसको कहीं न कहीं किसी न किसी से नाराजगी होती है, लेकिन जो किताब की लेकिका है, जो अपनी बात लिख रही है, व
19:48हमारे जैसे लोग कहते हैं कि हम इनको इतने बड़े लोग मानते हैं, इतने बड़े किरदार मानते हैं, इतने बड़े शक्सियत मानते हैं, व्यक्ति के तोर पर तो वह कुछ नहीं है, बहुत छोटे हैं, मतलब हमारे मन में आता है, तमाम सम्मान के तमाम आदर के बावज�
20:18कर पाएं या जीने किसी है किसे को क्योंकि बायती ने ये कहा कि हम मारी किताब में हमारे संस्मन आज की पीड़ी को कुछ न कुछ दे पाएंगे सारी चीजें जुड़ेंगी तो आज की पीड़ी समझ पाएंगी कि ऐसा नहीं है कि केवल दिल तूटने पर आत्मत्या करनी है �
20:48किन परशिप के बारे में पूछना चाह रहे हैं कि मैं आज सुरी बातों कर पूरी चाह तो एक हिसा है जिन्दगी को नहीं और ऑब है muchísimo है
20:57और वो 15% हिस्सा है, गीता जी बैठी हुई है, गीता श्री जी उन्होंने तो इस पर ऐसा हला बोला था मुझ पर,
21:06कि अगर मैं उतनी वो नहीं होती जो मैं हूँ किताब में जैसी हूँ, ऐसा नहीं है, मुझे आता है गुसा, रोश मी होता है, लेकिन अपनों को माफ करने की प्रवर्थि जो है, अब वो अच्छी है गीता जी बुरी है, जाय प्रकाश जी अच्छी है कि बुरी है मैं नहीं �
21:36मेरी प्रकरती में है और बाद में उसको बुद्ध और महावीर ने और उसको उस फिलोसफी को जो है ना वो मोहर लगा दी उस पे
21:49तो मुझे लगता है कि रिलेशनशिप जो हैं कई बार आपके जो बहुत अजीज दोस्त होते हैं
22:00कई बार आपके भाई बंध होते हैं वो भी कुछ इस तरह की जिन्दगी में चीज़े कर देते हैं जो क्षम में नहीं होती है
22:09पती ने अगर ऐसा किया है तो हम उसको हमेशा के लिए ये कह दें कि नहीं ये नहीं हो सकता है
22:23अगर वो रिपेंट भी कर रहा है अगर वो पश्चाताब भी कर रहा है और हम फिर उसके बाद भी कहें नहीं चूकि वो एक रिष्टा है
22:31कि ऐसा रिष्टा है जो तोड़ा जा सकता है भाईयों से आप क्या तोड़ेगे कई बार वहां से भी बड़ा अन्याय हुआ है
22:39होता है उस तरह का नहीं होता हर चीजे अलग अलग होती है दोस्तों के साथ भी हो जाता है लेकिन अगर कोई जैनूइनली पच्चता रहा है
22:49जहां तक पुरी साहब का सवाल है वो अगर पच्चताते नहीं भी तो भी कोई फर्क डी पड़ता
22:57तो जैसे हम भी गलती जब करते हैं और पच्छताते हैं
23:03तो मुझे लगता है वो ही सबसे बड़ी क्षमा है
23:06तो मैं ये मेरी प्रकर्ती है या मेरी फिलोसोफी है
23:12मैं बहुत कंफुटेबल होती हूँ जैप्रकाश जी
23:15मैं बहुत दिनों तक वेंजियद्स जो है न
23:18वो एनरजी केरी नहीं कर पाती हूँ
23:21मैं बहुत व्यथित रहती हूँ
23:24बेचैन रहती हूँ बहुत
23:25तो मैं अपने लिए, अपने सुख के लिए
23:29मैं सुवार्थी हूँ बहुत
23:30मेरा सुख इसे में है
23:32कि
23:33वो अक्बर इलाबादी का शेयर है
23:36जो मेरी जंदिगी पर
23:38लागू होता है और मैं
23:40कहती हूं कि wizard suited
23:42सही है गीता जी को बालू मैं
23:44नहीं मिला जो
23:46बंदूख का लैसेंस गम नहीं
23:48नहीं मिला जो
23:50बंदूख का लैसेंस गम
23:52नहीं मैंने तो इस خयाल कोई गोली मार दी
23:54तो मुझे अगर कोई छीज
23:56जिन जाती है मुझसे
23:59या मुझसे रूट जाती है
24:01या चली जाती है
24:02मेरे उपर गलत
24:04हो जाता है
24:06तो मैं तो गोली मार देती हूं जी
24:08बिना बंदूग के
24:09तो वो उसमें मैं कमफटेबल हूं
24:12मनलोई जी
24:15आपने बच्पन की स्मृतियों में
24:19बाल स्रम
24:20भूख
24:22को दर्ज किया है
24:25और कहीं ने कहीं विस्थापन
24:27प्रकृती
24:29प्रकृती से अत्याचार
24:31मजदूरों की पीड़ा
24:34अपने बहाने जो आप बीती और जग बीती
24:37की जो बात आप कह रहे थे
24:38उसको बहुत घने डंग से
24:41आपको क्या लगता है
24:44कि यह जो हम एक किस्मी सदी के
24:46जिस दोर में हम बात कर रहे हैं
24:48जहां सब कुछ आपने कहा न
24:51कि यह जो रोस्नी है
24:54इसके पीछे का अंधेरा
24:57यह आपके अंदर का नाटकार तो कह सकता है
25:01लेकिन बतोर मनुष्या आपने अपने बच्पन की
25:04उन इसम्रितियों को जब कुरेद रहे थे आ
25:08और आज जब आप उन इलाकों में जाते हैं
25:12क्या पाते हैं मनुष्यता को किस रूप में इस रिष्टतर होना चाहिए
25:17जहां मनुष्य मनुष्य का सोसन न करे
25:20या मनुष्य के बिरोध में न खड़ा हो
25:24जहां कोई जाती की ब्यवस्था
25:28सोसक के रूप में सामने न आए
25:30क्या यह संभो है
25:32आप अपनी पुस्तक में जब दर्ज कर रहे होते हैं
25:35तो दर्द जलगता है
25:37साथ भी आप कई सवकारात्मक को दरण भी देते हैं
25:41आज का युवा
25:51जिस प्रकृति को देखा ही नहीं है
25:54जिस संघर्ष को देखा ही नहीं है
25:56उस दर्ग को कैसे महसूस करें
25:59और अपने अंदर कैसे ताकत लेकर आए
26:01कि नहीं उसका दर्द दुनिया का गम देखा
26:04तो मैं अपना गम भूल गया
26:06देखिए एक तो मैं ये बात बहुत
26:11गंभीरता से कह रहा हूँ
26:15मैं ये नहीं मानता कि आज के बच्चों के पास
26:18तकलीफे नहीं है
26:20दुख नहीं है
26:22संकट नहीं है
26:23उनके संदर्ब बदल गए
26:26और ऐसा भी नहीं है कि
26:30उन्होंने अपनी जिंदगी में
26:32जिन दर्दों को, गमों को, तकलीफों को अनुभव किया है
26:39वो बेकार चलियाएंगी
26:43ऐसा नहीं है
26:45दरसल क्या है कि
26:47हमारे समय के संकट दूसरे थे
26:50आपके समय के संकट शायद हमसे ज़्यादा
26:54गंबीर हैं और वो इस अर्थ में
26:59कि सिमा जी जब हम लोगों ने
27:03पढ़ाई की
27:05ग्रेजुएशन किया
27:07और नोखनी क्ली अपलाई करना शुरू किया
27:10तो हमार पास एक नहीं थी तीन चार चार नोखनीया थी
27:13क्योंकि वो वेलफेर स्टेट था
27:16जहां पर जो बच्चे पढ़के निकल रहे थे
27:21उनके लिए कहीं न कहीं उनकी योगिता के अनुसार काम थे
27:25आज बच्चे योग के बहुत है
27:27लेकिन बेरोजगारी इतनी है
27:30कि आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते
27:34हम लोग तो आठ घंटे नौकरी करने के बाद फ्री हो जाते थे
27:38हमारे बच्चे तो 14 घंटे और 16 घंटे
27:42मल्टिनेशनल्स में काम कर रहे है
27:44और वो भी मन का काम नहीं कर रहे है
27:47उनको एक तरह से एसाइमेंट दिया गया है
27:51और वो एक रोबोट की तरह काम कर रहे है
27:55तो उनके भीतर का
27:58जो प्रेम है
28:00उनके भीतर की जो करुणा है, उनके भीतर की जो मनुष्यता है, वो ये जो नया संसार है, वो उसको दीरे-दीरे करके दीमक की तरह चाट रहा है, और उसका पता ही नहीं चलता, उस दुख को कभी आप गहराई से देखेंगे, तब आपको ये पता चलेगा कि हमारे पास वक्
28:30भरपूर संकट में, आपकी मा का जो करदार है, और मेरी मा का जो करदार है, मुझे लगता है कि ऐसी माएं अब शायद होती नहीं, दोनों काम कर रहे हैं, दोनों के पास वक्त नहीं है, तो उन बच्चों की तकलीफों को देखे कौन, उनको गाइट कौन करें, अब जो कु
29:00हो लोग अपने हिसाब से कर रहे है, उनको कहीं Google के साहरा है, कहीं किसी के साहरा है, कहीं Reels देखते हैं, कहीं कुछ करते हैं, उसके बीच में चमकती हुइ करनों की तरह कोई रास्ता मिल जाए तो मिल जाए, वरना उनके पास अपने बारे में सोचने के लिज समगी वानि, �
29:30आपको क्या लगता है कि ये जो बाजार है, ये जो कार्पोरेट सेक्टर है, ये चमकते उजाले हैं, ये OTT है, ये है, वो है, उसमें दिखाई जाने वाली जो दुनिया है, क्या वो वास्तु एक दुनिया है?
29:46एक हद तक हो सकती है, लेकिन उसमें जो कल्पना का सहारा है, और जैसे आज मैं बैठके सुन रहा था, एक डिसकसन OTT का, बोले हम दोग आपास बैठते हैं, अपने सामदे जो स्क्रिप्ट आती है, उस स्क्रिप्ट को अपने अपने अनुभाव के आलोक में बदल लेते हैं,
30:16कहीं कुछ बदल लेते हैं, तो ये तीवरगती का चलता हुआ जो समय है, इसमें कोई चीज पकड़ में नहीं आ रहे हैं, और जब चीजें आपकी पकड़ से बाहर होती हैं, तो आप उनुझालों में खो जाते हैं, या उनके साथ चलना शुरू कर देते हैं, एक शेर है, स
30:46उतर के नाओं से भी कब सफर तमाम हुआ, जमी पे पाऊं रखा तो जमीन चलने लगी, तो ये जो इस्थितिया है, कि बच्चे सुबा निकल के रात को कब लोटते हैं, मैं गुणगाओं में देखता हूँ,
31:04सारे लोग काम कर रहे हैं, एक कोई होस्टल ले लिया है, एक कोई कमरा ले लिया है, मल्तिनेस्टल से आते हैं, कहीं बार ढाबे में खाते हैं, और एक दिन की छुट्टी मिलती है, एक दिन की छुट्टी में ही उन्हें सब सारी चीजों को अंजाम देना है, और उस अंजा
31:34कि गम को भुलाने की कोशिस करते हैं
31:37तो यह आसान जिंदगी नहीं है
31:39हमारी भी नहीं थी
31:41आपके भी नहीं है
31:42यतीश से यह एक सन्युक की बात है
31:45कि यतीश से
31:47जो मैं प्रस्ण पूछने वाला था
31:49उसमें आपने दो माओं को जोड़ा
31:52मैं यतीश से पूछने वाला था कि
31:54बोर्सी भर आँच पढ़ते हुए
31:56बहुत बार मुझे लगा कि एक लड़का
31:58अपने बच्पन की इस मृतियों के बाहने
32:00या उस आँच के बाहने
32:02अपने मा के संगर्सूं को याद कर रहा है
32:04यह बिलकुल सही बात कर रहा है
32:09अप लेकिन मा तो केंदर भूमी ही है
32:12पुरे किताब की लेकिन
32:14मा के साथ वहाँ पर दिदिया का किरदार भी बराबर का है
32:19संजोग बस मैं तो यह कहूँगा कि
32:22इस समय जो किताबे लिखी जा रही है
32:23चाहे वो स्मृति पर अधारित हो
32:27या स्मृति से बाहर
32:29लेकिन आलामया कारखान ले लीजिए
32:31या नमत खाना ले लीजिए
32:33या सर के किताब ले लीजिए
32:35हर जगा एक दिदिया है
32:37यह संजोग नहीं हो सकता
32:40हर जगा एक बच्चा है
32:42और हर जगा उसकी दिदिया है
32:43और वो मा के बराबर है
32:45है सर ने भी अपनी किताब में अपनी निरमति मा ने टु पुरा बनाया ही मजह तो इसलिए
32:56मतो रही ही उसमें और भी किरदार है इस्थियों के और मुला मौसी है हरेक्क अपना म्हें अपना रोल है इंपाक
33:02है, in fact, मैं जब इस किताब को लिख चुका था, तो मुझे लगा की जो मेरी, मेर्यो पहला कभीता 순ग है, वो इसका सम्री हे, बाद में
33:09मैं रिलाइज कर रह रहा ह mentor है जहां में मैं लिख रहा हूं कि य lattice चिक्णि ने मुझे बनाया है
33:17मुझे बनाया है, जिनके जिस्तरियों के उर्जा से में बना हूँ, वो सब कविताएं उस आज की जो आज का जो बोर्सी बर आच है, उसका रिफ्लेक्शन है, तो मैं यही कहना चाहूँगा कि माँ अनमोल है, माँ कोई दो, जैसे सर ने कहा कि साएद हम तीनों की माँ अलग म
33:47है, वो भृत मीठी याद है, और मैंने संगहर्स को कभी भी तीखाः तीखी तर महसूसी नहीं किया मैंने, तो माँ का सानिद था, जिसने
33:58मुझे ऐसा बनाया
34:00कि मुझे समस्या-समस्या आज भी नहीं लगती
34:03और मैंने दुख को हमेशा अनभव समझा
34:06दुख को दुख कभी नहीं समझा
34:08सिमा जी
34:10ये जो इस्त्री पात्र है
34:12इस्त्री पात्र
34:14जो
34:16तीनो tycker तीनी अस्मर्णों में
34:19या तीनों ही आत्मकत्हाओं में या तीनों ही कृतियों में बहुत ही सबल्टा से उभरते हैं।
34:25एक तरफ समय है, जो समय दबाव बनाता है और दूसरी तरफ उसमें जो इस्त्री पात रहे हैं,
34:35वो अपने समय से जूशती हैं और उस से पार पा लेती हैं।
34:39आज की इस्ट्री उस तरह के संघर्सों में क्योंकि लिलादर्मनलोई जी ने अपनी बात में तो कह दिया कि आज के बच्चों के उपर बहुत ज्यादा दबाओ है
34:52गीता जी के हला बोल पर भी आपने अपनी बात कह दी कि मैं तो ऐसी हूँ और मुझे लगता है कि माप कर देना चाहिए ठीक है
35:03लेकिन यह जो नारी शक्ती है उसके उपर हमेशा से दो तरह के भाव रहे हैं कि एक तरफ हम उसे देवी मानते हैं और दूसरी तरफ पत्याचार, अनाचार, दुराचार, कदाचार, सबकी शिकार वही रही है
35:19वही पालती है, वही पोस्ती है, वही यतीज जी और लिला धर्मनलोई जी या जय प्रकास या इस तरह के जितने भी हैं उनको धारण भी करती है, सीमा कपूर भी, मतलब वही लड़की भी लड़का भी पैदा करती है, लेकिन वही सबसे ज़्यादा पीडित भी है
35:35तो ये जो अंगिकार करने वाली आत्मसाद करने वाली या छहमा कर देने वाला जो भाव है जो इस्त्री का मूल सोरूप है
35:42और आज वर्तमान का जो शुरूप है, वर्तमान की जो लड़कियां है, जो मुझे लगता है कि वो ये नहीं मानती, कि हमें किसी तरह से दब के रहना चाहिए, कोई समझोता नहीं करना चाहिए, किसी को माफ नहीं करना चाहिए, चाहे वो शिक्षा का प्रभाव हो या अर्थ
36:12किस रूप में देखते हैं और इस्त्री को कहां पाते हैं मतलब लड़की इस्त्री जाती को कहां पाते है देखिए दबाओ में तो मैं भी नहीं आई और दबाओ में आने का मतलब है कि मैं अपने पती के घर में रहती और वो सब झेलती जो हमारे समय की स्त्रियों ने जेला है
36:42मैंने नहीं जेला, मैंने माफ किया है, मैंने उस समय में आज से 30-30 साल पहले एक शण में वो घर छोड़ दिया,
36:57तो मैंने क्या चुना, एक मेरे पास रास्ता था, एक अच्छी खासी जिन्दिगी जीने का बहुतिक रूप से, एक अच्छा घर, बहुत बढ़िया घर, टेरेस, फ्लैट, पैसा, एक रुत्बा, बड़े आदमी की बीवी होने का, ये सब मैंने एक पल में छोड़ के गई,
37:27कि मैंने, मैं दबाओ में रही हूँ, किसी तरह के, तो ये मेरी ताकत थी, और मैंने कौन सा रास्ता चुना, जो बड़ा मुश्किल था, फाइनेशल क्राइसिस थे मेरे आगे, उस समय, आज तो इस तरी इतना बदल गई है, कि डिवोर्सी होने का टैग, जो है, तलाक शु
37:57कि समाज में कोई किसी तरह का कलंक हो, लेकिन उस समय मुझे अच्छी तरह याद है, मेरी माता जी जो इतनी प्रोग्रेसिव थी अपने समय में, उन्होंने भी काफी समय तक ये छुपाया, कि मैं तलाक के उसमें चल रही हूँ, या मैं घर चोड़ के आ गई हूँ,
38:15तो आप बोलिये, उस छोटे से कस्बे में कितना बड़ा ये स्टिग्मा था, ये कितना बड़ा एक इशू हो था, कि मा और परिवार की वजह से, मुझे भी कुछ दिनों तक ये छुपाना पड़ा, कि मैं अपना घर छोड़ के आ गई हूँ, मैं पती को छोड़ के आ गई
38:45समाजिक इस तरह का एक बहुत चेंज आ गया है, जो हमारे समय में नहीं था, और ये अच्छे के लिए आया है, लेकिन कई बार आपकी इन टॉलरेंस जो है ना, अधहर भी कई बार आपके रिष्टों को तोड़ देती है, और बाद में आपको ये लगता है कि वो नहीं करन
39:15दिया, बहुत सही किया मैंने, उसमें मुझे कोई ये नहीं है, उसमें कोई पछ्टावा नहीं है, बहुत सही किया, पछ्टा है तो वो पछ्टा है, क्योंकि वो घलत थे,
39:24तो हमें रिष्टों में भी एक tolerance, छोटी छोटी बातों को दो लोग हैं, दो तरह के दिमाग है, इस्त्री का तब से लेके आज तक में बदलाव बहुत आया है, लेकिन unfortunately बहुत ज़्यादा बदलाव इसलिए नहीं आया है, कि ये समाज इस्त्री और पुरुष दोनों से ही ब
39:54क्योंकि मैंने आपको तब भी बोला था, कि जो जिसका दमन किया जाता है, वो चेंज होता है, वो चेंज होने की प्रक्रिया में रहता है, सतत्री के चेंज होने की,
40:07धाई हजार साल, तीन हजार साल, पाच हजार साल पहले के आप स्क्रिप्चर देख लीजे, पढ़ लीजे, उन में और आज की स्त्री में सतत्री बदलाव है, लेकिन अनफॉर्चुनेटली, पुर्षों की मानसिक्ता में कोई बदलाव नहीं आ रहा है, क्योंकि वो बड़
40:37होता है, वो अच्छी पुजिशन में नहीं होता, जो साहुकार होता है, वो अच्छी पुजिशन में है, हमारे पुर्षों को बदलना बहुत जरूरी है, तब यह हमारी जो स्त्री की लड़ाई है, तब जाके कंप्लीट होगी, तो स्त्री को financially भी सक्षम होना जरूरी है, �
41:07तब ही जाके चीज़ें ठीक होंगी, दस्तक दर्बार के मंच पर हम लोग हला बोल यसी बाते नहीं करेंगे, लेकिन मंडलोई जी और सीमा जी और यतीज जी, तीनों से मैं चाहूंगा, एक एक ही प्रस्ट मेरा है, जो तीनों से मैं पूछूंगा, कि आपके संस्मरण में
41:37उसे मारमिक हिस्सा कौन सा था, जिसे लिखते समय आपको लगा कि मेरे दिल का कोई ऐसी पीडा थी, जो शायद नहीं घटती या मेरे जीवन में ये ना होता तो ठीक था, तो मैं चाहूंगा कि उस हिस्से के बारे में, उस घटना करम के बारे में आप बताएं, बाकी तो ज
42:07पार्चित, मैं इसी लिए इस सत्र को रखते समय एक ही बात दिमाग में थी, कि जो लोग भी इस कारेकरम को देख रहे हूं, कम से कम वो अगर अच्छी आत्मकताएं पढ़ना चाहते हैं, तो इन कृतियों को अवश्य खरीद कर पढ़ें, वो इस सदी की, नहीं तो इस दस
42:37हमारे दर्सकों को, क्योंकि हमारे पास बहुत समय नहीं है, मैं प्रस्ण नहीं ले सकता था, इसलिए मैंने ये रास्ता चुना.
42:45मैं बहुत संक्षिप में बताता हूं, गीता जी से तो मुखातिब है ही हम लोग.
42:50देखी क्या है कि जो मेरा बच्पन या मेरा जो परिवार था, उनको हफ़ते में दो दिन काम मिलता था, और जो पांच दिन थे, उसके लिए खाना नहीं होता था.
43:12तो सत्पुड़ा था, तो हम जंगल में चले जाते थे, जंगल में बहुत सारी निचुल्क चीजें मिलती हैं, फल है, मचलिया है, तेंदू है, मववा है, आम है, चिरोंजी है, ये है, तो कुछ तो उससे काम चल जाता था, लेकिन जब मौसम आप के विपरीत हो, और जं�
43:42खाना नहीं था, अब माँ को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या खिलाए जाए बच्चों को, तो कुछ ना कुछ तो उधार मांगे वो खिलाती थी, लेकिन एक दिन इस्तिती ज़्यादा विपरीत हो गई, हमें पता नहीं चला कि हमको क्या खाना है, क्या मिलना है, तो म
44:12बक्रे कटते थी, तो उस परात में उसने बक्रे काटने से जो खून निकलता है, उसको परात में जमा कर लिया, और आप जानते हैं कि खून का एक सबसे बड़ा गुण जो होता है, कि वो थोड़े ही देर में जम जाता है, तो मा ने उस खून से,
44:38जो जम गया था, उसको काट के उसके पीसेस निकाले, और उसको सिर्फ फ्राई कर दिया, दुनिया में उतना अच्छा खाना मैंने कभी नहीं खाया, दुनिया में उतनी भूख कभी शांत नहीं हुई,
45:00एक पल को लगा कि मैं क्या खा रहा हूँ, क्योंकि मैं देख चुका था, परिवार के दूसरे लोगों नहीं देखा था,
45:09लेकिन मैं मा की तरफ देख रहा था, मा मेरी तरफ देख रही थी,
45:15हम लोगों ने आखों आखों में बात की, और वो चीज जिसको खाने से कोई जुगुपसा हो सकती थी,
45:24कोई घ्रणा हो सकती थी, वो नहीं थी, क्योंकि उसके स्वाद ने,
45:30और मा के प्यार ने
45:32और उसके परिश्रम ने
45:34और उसकी उस तरकीब ने
45:37सारी चीजेशों को
45:39दो दिया था
45:41तो कहना मैं ये जाहता हूँ
45:44कि
45:45आप क्या खाते हैं
45:48वो ज़रूरी नहीं है
45:50ज़रूरी ये है
45:53कि आपके लिए माने
45:54या परिवार के किसी आदमी ने क्या जोटाया किस तकलीफ के साथ कि आप भूके ना रह सके हैं मेरे माता पिता भूके रहते थे लेकिन हम लोगों के लिए कुछ ना कुछ इंतिजाम वो कर लिया करते थे कभी सत्पुड़ा से कभी उधारी में कभी कुछ तो यह जीवन है व
46:24हैं आप किसी ऐसी स्थिति में आ सकते हैं जब आप के पास सब हो और खाने के लिए एक दाना ना हो
46:36तो चीजों के महत्व को पढ़कर सुनकर गुनकर मुझे लगता है ग्रेंट करना चाहिए उससे जिन्दगी
46:47जैसे मुक्तिबोत की एक कविता है यह जिन्दगी जैसी है उससे बहतर होना चाहिए और इतनी बड़ी दुनिया को साफ करने के लिए हमें एक महतर होना चाहिए तो यह सब इस तरों पर होता है शुक्रिया
47:07सिमा जी कोई बात नहीं आप आप पूछ रहे हैं मुझसे के जो सबसे दुखदाई जो लिखने में पीड़ा
47:23मेरे चार घटनाए हैं मैं detail में नहीं बताऊंगी आप किताब में पढ़ लिजे सबसे पहली घटना
47:33जो है वो है मेरे फाधर की ड़ट वो बहुत मेरे लिए यह क्यूंकि वो मेरे लिए बहुत बहुत अजीज थे सबके माता-पिता सबके लिए होते हैं
47:49मेरे कोई अनोखे नहीं थे, मेरे लिए, सेकेंड है, मेरे बच्चे का लॉस,
47:57जो मेरे लिए बहुत दुगदाई था, उसके लिए मैंने बहुत सारे सपने देखे थे,
48:02वो मेरे रक्त और मास का था, तीसरा घटना है, जब पुरी साब से मेरा डिवोर्स हो रहा था,
48:14वो मेरे लिए सहनिय था, उस समय मैं इतनी परिपक्व नहीं थी,
48:20कि मैं उस तरह की चीजों को जहल सकती, बाद में आप मुड़ के देखते हैं,
48:26तो बाउजी और बच्चे और चौती है मेरी मदर का जाना, ये चार घटना हैं मेरे जिंदगी में ऐसी है,
48:35जो बहुत तकलीफ दे थी और उनको लिखते हुए भी मुझे बहुत वक्त लगा,
48:42कि मैं उस जोन में जाऊं या ना जाऊं, जिसमें से तीन घटनाएं आज भी बहुत दुखदाई हैं,
48:50बच्चे का माता-पिता का जाना, वो डिवोर्स वाला जो अब मैटर है, वो अब इतना सालता नहीं है,
48:57क्योंकि आप परिपक वो हो गए हैं, रिष्टे दूसरे हो गए, तो ये चार घटनाएं जो है मेरी जिंदगी की,
49:03बागी तो छुटी मोटी तो चलती रहती है, ये तीज जी जब किताब पढ़ेंगे तो उसमें एक जगह पर एक्स्प्रानेशन है,
49:14कि एक नहर है, वो नहर सूख गया है, उसमें पपड़ी आ गई है, और पपड़ी में जो दरारे हैं उसके अंदर से,
49:22जो मचली तड़ब करके मरी है, उसकी आंक छांक रही है, इस दृष्ष को उदैपरकाश ने मुझसे सर ने बहुत डिटेल में मुझसे डिसकस किया पढ़ने के बाद,
49:32और उस दृष्ष का रिफ्लेक्शन अगर हम देखें तो जो एक मन्हूस गाओं है, जिसका मैंने नाम दिया है, वहाँ पे एक इमानदार डॉक्टर पिता है, और जिनको सस्पेंड कर दिया गया है, जो अपने बच्चे को पसंद नहीं करते हैं, और मा का पूरा ध्यान प
50:02इस किताब में दो-तीन ऐसे संदर्व हैं, तो मैं जानकर चर्चा कर रहा हूं कि लोग पुरुस जो लड़के बच्चे हैं, उनके साथ के योन सोचन को बहुत जादा नहीं लिखा जाता है, तो वैसे जहां-जहां आये हैं इंसिदेंस मेरी किताब में, वहां-वहां लिख
50:32इजनकी मैं चर्चा कर रहा हूं, इतनी बड़ी किताबें हैं हमारे दोसक की, मैं आप सभी से अनुरोद करूंगा कि आप पढ़ेंगे तो निरास नहीं होंगे, उन्हें पढ़ते समय हमें लगता है कि ये गाथाएं हैं, लेकिन उनमें जीवन के बहुत सारे सेट्स हैं, �
51:02लीलाधर मनलोई जी, सीमा कपूर जी, यतीज कुमार जी, आप तीनों का बहुत बहुत आभार और मेरी सुब कामना है कि मैं इन किताबों को पढ़ने के समझ जिस तरह के दोर से, जिस मनहिस्तिती से गुजरा था, कम से कम आपकी आने वाली किताबें थोड़ा खुशी और
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