Skip to playerSkip to main content
  • 4 hours ago
साहित्य आज तक 2025: भाषा और साहित्य की पहचान पर चर्चा

Category

🗞
News
Transcript
00:00नमस्कार आप देख रहे हैं आज तक आपके साथ मैं हूँ सहीद अनसारी, बहुत धन्यवाद
00:06आज का हमारा ये जो साहत्य आज तक का सत्र है
00:12भाशा और साहत्य, क्षित्रिय सवाल
00:18ये इसलिए बहुत महचपूर्ण हो जाता है
00:21क्शेत्रिय साहित्य जब हमारे देश भर में टहलता है, धूमता है, विश्रण करता है, तो वो देश के अलग-अलग संस्कृतियों, बोलियों, भाशाओं को पूरे देश तक पहुँचाता है
00:42एक बार जोरदार तालियों के साथ विकास सर, भरनौट सर और उर्मिला श्रीश माम का आप स्वागत कीजे, वरिष्ट साहित्यकार सभी ऐसे हस्ताक्षर कि जनको सुनना अपने आप में एक सुख़द अनुभफ होता है, और आप सभी के साथ मंच साजा करने योग योग यो
01:12ना चाहूंगा, क्षेत्रिय सवाल माम, आखर क्यों उठते हैं जब भाशा और साहित्यकी हम बात करते हैं, बहुत बहुत धन्यवाद, आप बहुत अच्छा बोलते हैं, पिछली बार का सेशन मुझे याद है, लेकि अभी सचमच आपना सर्प्राइज दिया, आप सभी को
01:42पहला सेशन से अभी आम उबरे ही नहीं हैं, वहीं गूम रहे हैं, वहीं विचलन कर रहे हैं, लेकि शेत्र का सवाल इसलिए उठता है, कि मैं हिंदी भाशी प्रदेश से आती हूँ, मध्य प्रदेश से, तो हिंदी सारे देश में दुनिया में बोली जाती है, पढ़ी जा
02:12की बात आती है तो उसकी जो उपबोलियां है बोलियां है बुंदेली है वगेल कंडी है ब्रज भाशा है भील भाशा है निमाडी है ये तमाम तरह की जो बोलियां है या जिने हम उपबाशा हैं बोलते हैं उनके साहित को लेकर उनके अस्तित को लेकर बहुत बड़ा सवाल उ
02:42और आप ये मान के चलिए कि भारतिये सभ्वेता, संस्कृति, लोक, कला और तमाम तरह की जो चीजें जिससे भारत जाना जाता है, वो इन बोलियों में समाहित है, तो इनकी जो परंपरा है, वो बहुत संब्रिध है, लोक से ही सारी चीजें आती है, लोक जिवन से सारी चीज
03:12आधिवासी समाज को, उनकी सभिता को, उनकी संस्कृती को, इन भाषाओं के माध्यम से, तो इनका पूरी तरह से आना, लिखा जाना, साहित का होना, और उसको पाठिकरम में समाहित करना, और जादा से जादा प्रचार प्रसार करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है, एक बा
03:42आधिवासी शेतर में, या बुंदेली के लिए, बगेल खंडी के लिए, काफी काम किया है, लेकिन लगता है कि नई पीडी तक उस काम को पहुंचाने के लिए, अभी भी बहुत जादा जरूरत है, इसलिए बार बार हम शेतरिता के सवाल को उठाते हैं, उस पर चिंता करत
04:12हमें पहाडों के सुंदर्ता तो पता चलती है, लेकिन हमें वो कष्ट, वो कठनाई, जो वहाँ के लोगों के जीवन में है, वो भी पता चलती है, लेकिन क्या आपको लगता है सर कि उस सिर्फ सुंदर्ता के अलावा, वहाँ के कष्ट, वहाँ की तकलीफें, वहाँ की पर
04:42हमें उस प्रदेश के लिए
04:45उन लोगों के लिए भी सम्वेदन शील
04:47बनाते हैं क्या साहित
04:49ये असर डाल पा रहा है
04:50भाशा ये प्रभाव डाल पा रही है
04:53सबसे पहले तो मैं
04:56आज तक मंच का बहुत अभारी हूँ
04:59और आपको बहुत
05:01अरसे से सुनते रहें लेकर
05:02मुला काताज हो रही है
05:03इतनी प्यारी आवाज है आपकी जैसा मैं साब में बोला
05:06तो क्योंकि
05:08मैं हीमा चल से हूँ
05:10तो निस्तंदे जो पहड़ी परदेश हैं
05:13उनकी समस्याएं मेदानों से
05:15अलग रहती हैं
05:16अलग होती हैं
05:18वहाँ बहुत लेकर है
05:20लेकिन हमारे साथ
05:23क्योंकि
05:23वहाँ हिंदी प्रचलन ने हैं
05:26लेकिन जो लोक बोलियां हैं
05:28हमारी तो कम से कम
05:3030 लोक बोलियां हीमा चल परदेश की थी
05:32जिन मैसे मुश्किल से
05:34आज जो प्रचलन में हैं
05:36वो 6-7 बोलियां रही होगी
05:38बाकी दीरे-दीरे खत्व हो रही है
05:42और हिमाचल परदेश पहड़ी रियास्तों से बना हुआ है
05:53जो राजा बाहराजा होते थे
05:55तो उनकी अलग-लग बोलियां थी और अलग-लग लीपियां थी
05:59जैसे आप ब्रह्मी लीपी है, शार्दा लीपी है
06:03जो शीलाले को वहां मिले हैं, वो इनी लीपियों में हैं
06:07और थोड़ा सा परयास सरकार करती रहती है, बाशायवा करती रहती है
06:12कि वो बोलियां बचे, लेकिन फिर भी उस तरह का परयास नहीं हो रहा है
06:17और जहां तक पहाडों के जो दर्द हैं, हम कोशिश कर रहे हैं
06:21कि साहितिय के माद्यम से वो भाहर तक जाएं और पहुंचे भी हैं
06:28क्यूंकि जो पहाड की जो समस्या हैं, जो क्षेत्री समस्या हैं
06:33तो फोड़ी अलग हट्के हैं, जैसे आप बिमर्षों की बात करेंगे, तो स्त्री बिमर्षों या जो साहितिंए में पहले आया, अब भी है और दलीथ बिमर्ष हैं, तो जब आप उन बिमर्षों को, जो महानगरों के बिमर्ष हैं,
06:51जो महालंगरों की इस्त्रिया है, जो महालंगरों के दली थे, अगर पाड़ों के संदर्म में आप देखेंगे, तो वो विमर्ष वहाँ नहीं चलते, क्योंकि आप देख रहे हैं कि पाड़ों की इस्त्रियों के संगर्ष है, वो बहुत ही बड़े संगर्ष हैं के, और वो ख
07:21हो रहा है दूसरी दली स्वस्या है क्योंकि जो आप महानगरों में दली स्वस्या देखेंगे वो पाड़ों में वो उससे वो दिखती नहीं है सामने नहीं दिखेगी लेकिन वो भैयो समस्या है यह वो क्योंकि वहां कम से कम कई दली जातियां है वहां पे और जो दली जातिय
07:51होगी और नहीं है तो हिमाचल परदेश में बहुत सी ऐसी जातिया है जो अलग-लग काम करती है और उन जातियों में भी वो भेदभावर रहता है तो हलांकि वो उसमें आती हैं चीजें सारी साहिते में आती हैं तो लेकिन वो बाहर तक नहीं पहुंचती दूसरा सबसे बड�
08:21आठवी अनुसुची में आएं और कम से कम हमारे पास एक उस भाने हम लोक बोलियों को तो कम से कम बचा सकें क्योंकि वहाँ जो हिंदी के लेकक है उनमें बहुत से ऐसे लेकक भी है कि जो पाड़ी में लिख रहे हैं उनकी किताबें आ रही हैं अकाश बाणी से कई कारेक्
08:51उनका उसके प्रयास को अगर हम सफल करना चाहें तो वो लोक बोलियों में जो क्योंकि पाड़ी भाशा में अलग लग बोलिया हैं तो जैसे मासुई है हमारे पास हनूरी है चंब्याली है उनमें बहुत लेकक लिख रहे हैं लेकिन वो ही है कि मैंने लिखा मैंने पड़ा �
09:21अधर में हमारा जो क्षेत्रिय प्रशन के आप बात करते हैं तो मैं अगले राउंड में एक बहुत अपुण बात करूँगा जो जमजाती एक शेत्रे हमारे कि वहां एक जमजाती है उसकी असमिता का संकट मतलब अगर साहिते के प्रशन भी हम देखे तो कैसे हैं वो अग
09:51आप अपने प्रदेश को लेकर, अपने प्रदेश की बोलियों को लेकर, वहां के संस्कृति को लेकर, वहां के लोगों के कष्टू को लेकर, आपकी आवाज में वो कष्ट नजर आ रहा था।
10:02ये दोस्तों एक साहितिकार की बीड़ा होती है और ये एक साहितिकार जब लिखता है जब बोलता है तो वो महसूस हम लोग करते हैं
10:11जासर जासर आपने अपनी नमस्कार साहित साधना में साहित स्रजन में और साहित सेवा में
10:21क्या कभी ऐसा महसूस हुआ आपको सर
10:25क्योंकि सवाल उठाने का काम भी आपने किया
10:30तो आपकी भूमी का दोहरी हो जाती है
10:34क्या आपको महसूस हुआ सर कि ये जो प्रशन है
10:38इन प्रशनों पर गंभीरता से कभी विचार ही नहीं किया गया
10:44कभी इस तरह की चर्चा ही नहीं हुई
10:46कभी मद्रिपर्देश में जस परिश्ट का उलेख
10:48औरमिला मैम ने किया
10:50उस तरह से देश भर में हमने
10:52प्रयास ही नहीं किया
10:53हम सिर्फ हमारी सब्हिता, संस्कृती
10:56को नाच, गाने
10:58ख्शमा के साथ, माफ किजिएगा
11:00मेरी बात मैम अगर जरा से भी बुरी लगे
11:03तो जहा सर हम उसी तक सीमित करते रहे
11:06और हर्नोट सर ने का जो दर्द है
11:10वो शायद कभी बाहर नहीं आ पाया हूँ सर
11:12पहले तो आप के इस मंच को
11:17इस आयोजन को मैं नमस्कार करता हूँ
11:19सर आप तीनों के यहां आने से
11:22हमारे इस मंच की शोभा बढ़ी है
11:24और हम आप तीनों के बहुत आभारी है
11:27शुक्रिया
11:27कि आप जैसे वरिष्ट साहितिकार यहां पर आए
11:29और आपने इस मंच की गरिमा को बढ़ाया
11:32दिखे सबसे बड़ी बात जो अभी उर्मिला मैम ने कही फिर विस्तार दिया हमारे हरनोद भाई साहम ने
11:39मैं
11:40अलबर्ट आइंस्टाइन को को कोट करना चाहूंगा
11:47उन्होंने कहा था कि अगर संसार से इस स्रिष्टी से
11:52मदुमक्खिया समाप्त हो जाए
11:54तो चार महिने के अंदर में मनुष्य का अस्तित धर्ती पर नहीं रहेगा
12:00मेरा मानना है इसका उदारन इसलिए मैं दे रहा हूँ
12:04कि अगर छेत्री भाषाएं लोक बोलिया जिसका जिक्र भी आदिवासी जन जाती की
12:10बोलियों भाषाओं को लेकर आदरनिया उर्मिला जिने की
12:13हमारे हर्नोद भाई साहब ने की
12:16तो मैं यह मानता हूँ कि चैतरी भाषाओं का अस्तित अगर लुपत होगा
12:20वो मदुमक्खिया है
12:21वो अगर लुपत हो जाएंगी
12:24साहित लुपत हो जाएगा
12:26संसार का साहित लुप तो हो जाएगा
12:28इसलिए
12:30मैं यह सोचता हूँ
12:32उर्मिला जी, अर्नोद भाई सहाब
12:34और आप सब, हम सब सोचें
12:36कि ये जो
12:38जिल, ये जो छेत्रिय भाशाएं
12:41हैं, ये जो छेत्रिय
12:42सवाल और मुद्द्द हैं
12:44वो क्या है?
12:46वो धूलमे धूलमे
12:48लिप्टे हुए जिलमिल तारे हैं
12:51वो दिखते हैं
12:52धूसर और वो कहते हैं
12:55कि हमको साहित के आकास में
12:56टाक दो, हम सितारों
12:59की तरह जिलमिलाएंगे
13:00मैं आपसे कहना चाहता हूँ
13:04मैं बिहार से हूँ और आपने आप सबने रेनु जी का साहित पढ़ा होगा फणिश्वर नाथ रेनु का बाबा नागार जोन की रचना है उपन्यास से लेकर कविताय तक आपने पढ़ी है राशकमिल चौधरी जी की कृतियां पढ़ी है कविताय से लेकर के मचली मरी हुई �
13:34चेतर से हैं पूर्णिय से नागार जून साक्षात मितलांचल से हैं बदबनी के तरोनी से राशकमल जी भी मितलांचल से हैं वह उस लेखक का परिवेज कहीं ने कहीं ज्छांक जाता है
13:48जिस मिट्टी से वो आया है
13:51वो जहाकता है
13:53तो ये उसमें चेतरी भाशा का मैथली का जादू आप देखेंगे इन उपर नियासों में
13:59अब रेनु जी जब कहते हैं
14:02कि सारे गाउं में ये खबराग की तरह पहली पंगती है
14:05मैला अचल की आप याद करेंगे
14:06सारे गाउं में ये खबराग की तरह फैल गई
14:09कि मिलिटरी ने बहरू चेतरू को गिरफ कर लिया है
14:12वो गिरफतार भी नई उप्योग करते है
14:14तो ऐसा है कि मिलिटरी आकर के
14:20लोबिल लाल के कुएं की बाल्टी खोल कर ले गए है
14:24और बहरू चेत्रू को गिरफतार कर लिया है
14:27सारे गाउम में एक खबर फैल गई है
14:29तो मैं ये कहना चाहता हूँ
14:31कि जैसे किसी प्रूफ रीडर को
14:33अगर दिया जाए
14:35या ऐसा एक बार ऐसी दुगटना हुई भी
14:37कि रेनु जी कि इस वाक्य को
14:40उसने गिरफतार कर लिख दिया
14:42गिरफ नहीं लिखा
14:44तो उस उपरन्यास की जो शोभा है
14:47वो नस्त हो गई है
14:49तो रेनु जी ने कहा कि
14:50अरे गिरफतार क्यों लिख दिया
14:52उसे गिरफ ही नहने में मज़ा है
14:55मैं अब मैंने मितला की बात की
14:58कि रेनु नागार जोन राशकमल चौधरी दिनकर जी सिमर्या के थे मैचली स्पिकिंग एरिया है उसकी आभा आती है चंदर शेखर जी को जब भी मैंने अंग्रेजी में भाशन करते सुना तो लगता था एक भोजपुरिया बोल रहा है
15:13प्रणव बाबु आधर निया जब कभी हमारे माननी आधर निया राश्रफदी वो अंग्रेजी बोलते थे तो लगता था है बंगला भाशी प्रणव बाबु बोल रहे हैं तो उस मिट्टी की जो खुश्बु और आभा है मेरे भाई वो तो आ जाती है तो मैं ये कहना चाहत
15:43वो गाऊँ बसा हुआ है दुनिया का इक लाटा गाऊं है मैकलस की गंच। उसमें जो आदिवासी मजधूर पलायन करते हैं तो लोग गीत उसमें मैंने दर्ज किया है
15:53कहा जाई छिला
15:56कहा जाई छिला
15:57असम जाई छिला
15:59दिल्ली जाई छिला
16:01कीरे अमबा मजर
16:02कहियो घुर्वे की न
16:04ओ आम के मजर
16:05असम जा रहे हो
16:07दिल्ली जा रहे हो
16:08ओ आम के मजर
16:09कभी लौटो गे की नहीं
16:11कभी लौटो गे की नहीं
16:13अब सोचिए कि क्या बिम्ब है उसमें
16:15यह ओ आम के मंज़र
16:16मेरा पुरा शरीर रोमांचित हो रहा है
16:19क्या दुलार है
16:22वो यह भी जानता है
16:23कि शायद ही यह लोट पाएगा
16:25यह जो बंदा जा रहा है
16:27यह शायद ही लोट पाएगा
16:28अब मौरिसस की मिट्टी का सवाल लीजे
16:30मौरिसस में जो गिर्मिटिया मजदूर गए
16:33भोजपूरी छेतर से
16:34वो आज भी
16:37जब बिहार उत्तरपरदेश
16:39आदी अंचलों से जहां जहां से वो गए थे
16:41सरसिप सागर राम गुलाम जो राश्टरपिता
16:43मौरिसस
16:44वो बिहार के बोजपूर से गयत
16:46उनके लड़के डॉक्टर नवीन राम गुलाम
16:49वो भी प्रधान मंत्री बने
16:51और डॉक्टर साहर राम गुलाम
16:53तो खैर राम प्रधान मंत्री राश्टरपती सब बने
16:55आप वहां के लोग जब मिलेंगे
16:56तो वो कहेंगे कि
16:58भई हमारे उस अंचल का
17:01क्या हाल चाल है
17:02तो उन छेत्रों को लेकर
17:05के जहां से माइग्रेशन हुआ है
17:07दरसल उनके साथ बहुत सारी
17:08परिशानिया रही है आर्थिक संकट जैसा कि
17:10आपने खुद इंट्रोड़क्शन में कहा है
17:12आर्थिक संकट की वज़े से वो माइग्रेशन है
17:15और लेकिन वो मिट्टी
17:17वो मिट्टी याद आती है
17:18उनके दर्द याद आते है
17:20उनको जोपडी सी याद आती है
17:22तो ये कहना मैं यही चाहूंगा
17:25कि छेत्रिय भाशाओं के दम पर ही
17:27हिंदी साहित टिका हुआ है
17:30और हम सब कम्निकेट कर पाते हैं
17:33उस तरह से
17:34अब किसी भी अब हमारे अर्नोद भाई साहब है
17:37अब ये हिमाचल के जीवन की पहाड के जीवन का दर्द लिख रहा है
17:41उसमें बहुत सारे ऐसे शब्द हैं
17:44जो आएंगे आपको
17:45जिसमें की
17:47उस वो एक शब्द जो है वोबहुत बढ़ा गाड़ा है
17:50जिसमें सारे भाव भरे पड़े हैं
17:53हमारे बित लानचल में एक शब्द कहा जाता है
17:55जैसे
17:56इस ड्रिज्लिग
17:58इस ड्रिज्लिग
17:59फाइन ओ आपको ठीक है
18:02हिंदी में का है
18:03बूदा बांदी हो रही हमारे मिखला में इसको कहा जाता है जीसी हो रही है जीसी पर रही है जीसी पर रही है इतना सुक्ष्म वो जो बारिश होती है वो जब लोग कहेंगे अरे कहा है हमें बारिश हो रही है अरे जीसी ही तो पर रही है आ जाई ये मतलब आप बहुत नहीं
18:33आप वो नहीं करेगा, आप वो भीगता रहेगा अंदर तक, तो बहुत सारे ऐसे शब्द है मित्र, जिसमें जिसको ले करके जब हम हिंदी में, क्योंकि हिंदी की नईया बहुत बड़ी है, और मैंने प्रियोग छोटा सा किया, मैं इस राउंड में, मैं आखरी बात कह रहा ह
19:03तो मतलब यह है कि यह जो हिंदी की नईया बहुत बड़ी है, आज आ गारी में बैठ जा, कहीं अगाने मिले है कि आज आज़ा सवार हो जा, हम ले चलेंगे तुमको अपनी नाओ पर, हम तुमको अपनी नाओ पर लेचलेंगे, कोई घबढानी की बात नया पार करेंगे त
19:33बात को के रेनु जी जैसे महान लेखक उन्होंने मैलाचल लिखा बहुत चर्शी तरह उर्मिला जी आप सब उसकी बहुत प्रसंदक हैं लेकिन जब परती-परिकथा की रचना उन्होंने की अपने दूसरे उपन्यास की बेशक वह उपन्यास बहुत अच्छा है लेकिन वह �
20:03मैलाचल भी लिखा तो लोगों ने कहा ये रिपीट है ये रिपीट है तो मुझे मेरे मन में एक भावना आई मैं एक बहुत चोटा सा जीव हूँ भईया है मैंने सोचा कि हम क्यों नहीं अस्थल परिवरतन करें ग्रेट अंग्रेजी उपन्यास का राजा राओ कहते हैं अ
20:33नए पात्र मिलेंगे और नई भंगिमा मिलेगी जैसे हम जब कहीं जाते हैं तो मेरा एक कुछ मेरे फिक्स फार्मूले है मैं मैंने गोवा पर उपरन्यास लिखा मैंने जगा छोड़ी मैंने का मैकलसी गन जहारखंड गया सुर संधार मेरा उपरन्यास बिहार पर है गया �
21:03नहीं जाता हूं तो मैं वहां मुहावडे की एक किताब नूटता हूं कि इस इलाके के मुहावडे क्या है तो जब मैं वर्षावन की रूप का था लिख रहा था करनाटका के प्रिस्ति मुही बढ तो उसमें मैंने एक लिया उसमें कई मुहावडे थे उसमें एक था आप क
21:33तो अब ये कहके एक मुहावरे में आप बहुत सी बात क्या जाते हैं अच्छा भोजन भी आता है उसमें तो मैं ये कह रहा आता है जैसे हमनों की तरफ में है चूड़ा के गवाही दही भोजन भी उसमें शामिल है संगीत भी सामिल है तो अब आप दूसरा राउंड शुरू
22:03और बिला जी के बद्रदेश में जड़ी भी लगती तो यही भाषा और यही मुहावरे मेरी माम दोस्तों वो कुछ भी प्रशन पूछती थी कुछ भी बात कहना होता था तो हम छोडे मेरी तीन बेने और हम भाई बेन नहीं बोलने का मूड होता था तो हाँ या नहीं में �
22:33और जो भाशा आपने गई कि सर का खेत्रिय भाशाओं के बिना हिंदी साहित्य नहीं हैं, खेत्रिय भाशा है हमारी हिंदी साहित्य को सम्रिध कर रही हैं, उसे परिपक्व बना रही हैं, उसे बड़ा कर रही हैं और उसे सम्मान भी दे रही हैं, यह मेरा आप विद्व जनो
23:03उनकी संस्कृति की, आपने भीलों का उलेख किया, इनके कुछ उत्सफ होते हैं, वो धीरे धीरे ऐसा लगता है माम भगोरिया, ठीक कहा रहे हैं, घलत तो नहीं कहा रहे हैं, वो विलुक्त होती जा रही हैं चीजें, क्या आपको लगता है कि आजकल साहित में उर्भिला माम
23:33तो मैं इस मंच को या साहित आज तक को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ, कि उन्होंने इस बिश्य को चुना, शेत्रियता के सवाल को वो भी भाश्या और साहित के संदर में, जो बहुत ज़्यादा पीछे छूटा जा रहा था, और हम लोग प्रहया बात न
24:03हैं, बोलियां हैं, उनकी शब्द संपता बहुत ही जादा सम्रिद है, और वो हिंदी में आते हैं, जब भी आप कहीं का भी यदी बिहार की बात कर रहे हैं, या बुंदेल खंड की बात करेंगे, या हिंदी का साहित यदी पढ़ेंगे, और उस परिवेश विशेश को लेक
24:33मालवी भाशा के शब्द बहुत ज़्यादा आते हैं, और साहित उस तरह से नहीं लिखा जा रहा है, वो बाजारबाद का सब जगे प्रभाव है, बाजारबाद हमारे साहित पर भी हाबी है, और बाकी सुक्षा जगत में भी हाबी है, कौन सी चीज किस तरह से बिकती है, �
25:03दिहान में फसल काटते हुए, पानी भरते हुए, कारती का इस्नान करते हुए, सकी छेड़ते हुए, चकी चलाते हुए, हर एक उतसब में अपने लोग गीतों को, बहां की जो इस्थानी जो भाश्या बोली है, उसमें वो अपने उद्गार व्यक्त कर दी थी, तो वो एक �
25:33प्रिम, और जो इस्त्रियों की भाश्या, मन के भाव, किसानों के भाव, या बारिष से जो पीड़ा हो रही है, विप्ताएं आ रहे हैं, वो तमाम तरह की चीज़ें उस साहित में, उस लोग में अभी हैं, मतलब मौजूद हैं, हमें जरूरत इस बात की है, कि इन तमाम त
26:03जो इस्थानिय भाशा है, लोग भाशा है, या उपबोलियां हैं, उनको हमें बहुत ही शिद्दत के साथ हमारी नई पीड़ी के सामने लाना है, क्योंकि नई पीड़ी के पास बिलकुल भी ये समझ नहीं है, या वो जानना नहीं चाहते इस इलेक्ट्रोनिक और मीडिया �
26:33वो लोग में हैं, वो जैसे आप कहा रहें कि समझ में अनेक नदियां आकर मिलती हैं, इसी तरह से एक बड़ी भाशा को उसकी उपबोलियां या वहां की जो भाशा हैं, लोग भाशा हैं, वहां के शब्द हैं, प्यालू, संजाबाती, बाई, दद्दा, मतलब भाईया, भ
27:03संबोध हैं, जिसमें आत्मियता रहती है, जिसमें रागात्मक तरहती हैं, तो ये तमाम तरह की चीज़ें आज हमें अपनी युबा पीडी तक लाना हैं, जो मैं अंग्रेजियत के प्रभाव में आकर ये भूल गए हैं कि हिंदी के लिए हमें इतना संगर्ष करना पड़
27:33जैसे एक पेड़ कट जाता, मैंने एक पिक्चर देखी ती जहां पर पूरे उसमें आग लग जाती हैं अंगूर के बेलों में, शायद आपको फिल्म यादो, लेकिन एक जो बेल रहती है, उसमें एक पत्ती रहती है, और वो नायक जाता है और उसको दुबारा ये आशा �
28:03कर रहे हैं, और मैं बार-बार कॉलेज में रही हूं, तो उन आदिवासियों को भी देखती थी, उनका आकर्शन रहता था, अंग्रेजी पढ़ना है, तो वो उनके लिए क्योंकि अपने करियर का सवाल है, अपने भवेश्य का सवाल है, तो यहां तक कि बो लोग भी जैसे
28:33या निमाडियों की, या दूसरी जो लोग हैं, जनजातियां हैं, उनकी भाषा, उनकी संस्कृति, उनके रीतिरवाज, उनकी जीवशेली, उनकी बोली, सब कुछ हमने बाजार बाद के हवाले कर दिया, जो आप कह रहते हैं न, कि नरत्य हैं, वो केबल एक शोपीस बनके �
29:03बाज करने की जरूरत है, और जो लेखक हैं, एक मातर लेखक, या भाषा बिद्ध, भाषा तो विद्धवान हो जाता, लेखक ही एक मातर ऐसा प्रानी हैं, जो इस पीडा को समझता है, इन चीजों को बचाने की कोशिश करता है, और वो उस कोने में जाता है, जहां पर की �
29:33प्रक्षा कर पाएंगे उसाहिक मिला पाएंगे
30:03इतना सम्मान सूचा कि जैसे बाबू एक दम प्रेम बातसल अपनत नेए वाला है वैसे बाएंगे इतना सम्मान सूचा कि आप
30:09प्रेम बादसल अपनत स्नेहे वाला है
30:12वैसे बाई इतना संबान सुचा के माम
30:14काका काकी चाची चाचा मामा मामी खेर
30:20लेकिन आपने हमारे इस विमर्श को मैं बिलकुल
30:23एक अलग दिशा में मोड दिया
30:25और वो दिशा है सर हरनोट सर पहले तो बाजारवाद
30:29और दूसरा युवा पीड़ी
30:31मैं आपसे समझना चाहता हूँ सर कि क्या
30:35आपकी जो अगली पीड़ी है
30:39आपकी जो शिश्य हैं
30:41क्या वो लिख रहे हैं अपनी भाशा में
30:43या वो भी अंग्रेजियत उन पर हावी हो चुकी है
30:47माइक लीजे सर
30:48आपने बहुत बढ़िया और बड़ा प्रशन पुछा
30:53सही माइनों में आप देख रहे हैं
30:56जो हमारी पीड़ी है
30:57हम लोग वास्तों में
31:01लोग बोलियूं के साथ
31:04और किताबों और अख़बारों के साथ बड़े हुए है
31:09और जो नई पीड़ी है
31:11वो निसंद है मोबाइल के साथ बड़ी हो रही है
31:15तो यह जो पीड़ीों का अंतराल है
31:21इसमें जैसे बेशिबला में बहुत कारेक्राम करता हूँ
31:26हम बोलियों के लिए भी करते हैं
31:27कहीं भी करते हैं
31:29लेकिन बहुत सचबुस दूख होता है
31:31कि जो नई पीड़ी है
31:32वो अपनी भाषा नहीं जानती
31:36गाओं के जो बच्चे हैं
31:39क्योंकि वो थोड़े से बिस्तापन से शहर आ जाते हैं
31:43तो वो अपनी बोलियां नहीं जानती
31:45आप बहसूस करते होंगे
31:48कि जो हमारी ये लोक बोलियां है
31:50इन्हें मैं इस तरह देखता हूँ कि जब आप इन बोलियों के बीच बैठते हैं
31:56या किसी बुजूरुक के बीच बैठते हैं
31:59तो वो ऐसा ही है जैसे आप मतलब एक बच्चा या स्कूल का चात्र
32:06किसी 80 साल के बुजूरुक के सानिदियों में बैठ रहा हो
32:09तो वो एक सीखने का एक होता है कि जब हम किसी बुजूरुक की चाओं में बैठेंगे
32:15तो एक बहुत अनन्द और एक बहुत अनन्द महसूस करेंगे
32:21तो उसी तरह जो लोक बोलियां हैं उनकी मिठास उनका अपन पन वो इतना गहरा है
32:28इतना है कि अगर आप को वो बोलियां नहीं आ रही है एक गाउं से रहते हुए भी
32:36तो मुझे लगता है कि मतलब आपके वो जो उन बोलियों के जो सल्सकार है
32:43उन बोलियों के जो लोक भावना है या उन बोलियों के जो सल्सकृती है लोक गीत है
32:49उनसे आप अनभीगे हैं बिलकुन अनभीगे हैं उनसे तो जो नई पीडी है नई पीडी आप देख रहे हैं कि जो हिंदी भाषा भी है वो मतलब कितने परकार से बोली जा रहे हैं आज कि हमारी लिखने की भाषा कुछ हैं इंटरनेट की कुछ हैं आप फिल्मों में चले ज
33:19और आप हिंदी भाषा का संसार आप देखोगे, तो आप देखेंगे कि विदेशी शब्द, आप एक पेरा कोई भी लिख लो, और फिर उसका धहन करो, तो उसमें आपको चार अगर हिंदी के शब्द मिलेंगे, तो दर शब्द आपको कोई फार्सी मिलेंगे, कोई उर्दू
33:49शब्द इस तरह यूज़ करता हूँ
33:52इस तरह यूज़ करता हूँ
33:54कि ताकि यो लगे ही ना
33:55कि ये कोई पाड़ी शब्द है
33:57मेरा एक
33:58मैं कुछ कहानियों के
34:00उधार्म देता हूँ
34:02जैसे मेरी बिलिया बत्यादी ये कहानी है
34:05और उसमें
34:06सबसे पहले मनिशा जी ने उसमें लिखा था
34:08उस कहानी पे बहुत बड़ा
34:10नोट लिखा था तो उसमें
34:12उन्होंने मुझे आज भी
34:14वो एक याद है
34:16जिसमें उन्होंने कोई 15-20 शब्द
34:18लिखे थे कि ये जो पाड़ी शब्द
34:20आपने प्रयोग कर रखके
34:21ये रास्थाने भी बोले जाते हैं
34:23और पंजाब में भी बोले जाते हैं
34:25और आप
34:27जो लोग बोलियों के शब्द
34:30आप देखोगे
34:31या जितनी भी हमारी
34:33शायद 22 भाशाएं हैं
34:35तो उनके अगर आप अध्यायन करोगे
34:38तो कही ना कहीं से
34:39हम एक दूसरे हैं
34:41हलाकि उनके उचारन
34:42या उनकी मात्रा ही अलग है
34:43लेकिन वो एक परिवार लगता है
34:47मुझे उन बोलियों का
34:48एक परिवार
34:49लेकिन ये बहुत जूरी है
34:51क्योंकि लेखक तो प्रयास करी रहे हैं
34:54जैसे हम लोग है
34:56तो हम अपने शिश्चक भी
34:58कहानियों के उन लोग बोलियों से ही रखते हैं
35:00किनौर जन जाती एक शेत्र है
35:02तो उसमें एक दारोश डबडब
35:04एक बहुत बड़ी प्रता है
35:06जो पॉलिंडरी से है उप्रता
35:08तो मेरी जो
35:10तीसरी किताब थी
35:13जिससे मुझे लोग जानने लगे
35:15वो दारोश और अन्यकानिया थी
35:17और दारोश कानियी उसी किनौर की संस्कृती पह हो
35:20दारोश का मतलब होता है जबरन
35:22और जब आप दारोश डबडब करेंगे
35:25तो जबरन विभापरपरा
35:27वो आ जाती है
35:28तो उसमें वो पूरी संस्कृती है
35:29और एक उपनाद हिडिम्ब है मेरा
35:32जिसमें बहुत लोग के शब्दे हैं
35:33लेकिन वो लगते नहीं है
35:34तो मुझे आज भी याद है कि
35:37कृष्णा सोब्ती जी ने उपनाद पढ़ा
35:39और वो शिमला आया करती थी
35:41तो उन्होंने मुझे फोन किया
35:43कि मैं शिमलाई हुई हूँ
35:44और मुझे मिलो
35:45तो उन्होंने बोला कि यह जो लोग के शब्दे
35:48इनको कभी आपने बुलाना मत के दे
35:51क्योंकि आप बचा रहे हो इन बोलीयों को
35:54जैसे यह मैंने अभी कहा
35:57कि हम लोग प्रयास कर रहे हैं कि इन लोग वोलियों को अपने भली चाहे सरकारी तरुपे बचे या ना बचे
36:04लेकिन हम प्रयास कर रहे हैं कि अपनी उसमें काहनियों में उपनियासों में उनको बचाएं
36:10अब आप देखो कि घर की एक संस्कृती होती है
36:13गरमें जो जो काओं के घर है
36:15उसमें अगर आप चुले के पास जाओगे
36:17तो कितनी चीजें होती है
36:19कि जिनके आपको हिंदी में नाम नहीं मिलेंगे कोई नहीं
36:22आपको वही यूज करने पढ़ेंगे उनाम
36:25उन्हीं काई प्रयोग करना पड़ेगा
36:26मुझे लगता है अलांकि आपको ना लगता हो
36:29तो उसमें जैसे जिससे आग जलाते हैं
36:32आप वह एक फुकरनी है
36:33उसमें फिर किसी और बोलेंगे
36:37धूडू है जिसमें वो
36:39मतलब नहीं
36:41जिसमें दूद छोला जाता है
36:43तो मतलब इस तरह कितनी चीज़ें आपको
36:47वहां मिल जाती है
36:48तो अब यह बहुत जरूरी है
36:51हमारे स्कूलों में भी
36:52और सरकारों से भी हलाकि उन्होंने
36:55कुछ प्रयास किया है कि लोग बोलियों को
36:57मत दो दिया जाए लेकिन फिर भी
36:59उस तरह के जो हमारे संस्कृती विभागे
37:01संस्कृती मंत्राल्या है
37:03उसमें इन बोलियों के लिए एक अलग
37:05मंत्राल्या ना भी हो
37:07लेकिन ऐसे सेंटर्स जरूर होने चाहिए
37:09और फिर बहुत पहले एक परमपरा भी होती थी
37:14कि रास्ताने के लोग हिमा चला रहे है
37:16हिमा चलके बंगाल जा रहे है
37:17तो सारा तकरिवन खत्म है
37:19क्योंकि उससे हम एक दूसरी की संस्कृती और वो भी देख रहे है
37:23तो इसलिए जो हमारी आगे आने वाड़ी पीड़ी है
37:28वो आप लोग बोलियां तो छोड़िये
37:30लांकि मैं क्रमा चाहूंगा
37:32लेकिन वो हिंदी भी ठीक डंग से
37:35उनको वर्रमाला ही पता नहीं है
37:37क्योंकि उनके बस मुबाइल है
37:39उससे वो जो भी मशीनों से लिखा जा रहा है
37:43उनको पता नहीं है कि लिखते कैसे हैं
37:48उनको वो लिखने का सुख है
37:50वो नहीं है उनको
37:52जो समेधना है उस만 मैं वो नहीं है
37:54अब मैं जो एक महतवपुर्ण बात कर रहा था
37:57कि किस तरह चीजें विक्रीत होती है
38:00आदीवाशिक आप बात कर आना
38:02तो हीमाचल प्रदेश में या उत्राखन में आप देख रहे हैं पहली तो सबसे बड़ा परमर्श भारा परेवन का परमर्श है कि परेवन ने जो हमने प्रदूशित किया है प्रकृती को वो किस तरह उगर रूप लेके एक बिनाश कर रही है
38:17दूसरा जनजाती एक शेत्रों में कुछ ऐसी चीजें हो रही हैं कि मैं एक मुद्दा दो हजार से उठा रहा हूँ क्योंकि आप शेत्रिये प्रशन की बात कर रहे हैं साहिते में तो मैं किनर का एक बहुत बड़ा एक मुद्दा इस मन से उठाना चाहता हूँ कि किनर शब्�
38:47वो सर्टिफिकेट मिलता है तो उनको यही कहा जाते कि सथर्जन बिलॉंग्स टू किनरा किनरा क्योंकि जैसे महाभारता हो जाता ना अंग्रेजी में वसी किनरा ओब्लीक किनरा जन जाती तो दो हजार में जब मदूर बढ़ार कर की फिलम रिलीज हुई दुनिया में तो �
39:17अलागि थर्जन जन्डर के लिए हमारे मन में बहुत बड़ा सम्मान है लेकिन आप किनर शवद को आप देखो कि आप पुराणों के पास जाओ आप बेदों के पास जाओ आप तुलसी दास जी का मानचित वो देख लो कि जिसमें 31 वारों में प्रयूख किया हुआ है आप
39:47तो वहां किनर और किरात ही वहां रहे हैं लोग आप किनाओर में जाओगे तो सबसे सुन्दर लटकियां किनाओर की जिनको किनरियां बोलते हैं और अगर आप गूगल पर साह्च करोगे तो आप उनको खुद देखोगे कि
40:02ये मतलब कितनी सुन्दर लड़किया हैं और कैसी बेश भूशा है उनकी
40:07अब दूसरी बात ये हैं कि हलांकि मेरे रिक्वेस्ट पे
40:13ट्रैफिक सिगनल बैन होगी थी माचल परदेश में
40:17और विधान सवा ने इस मुद्य को लेके दो पर निंदा प्रताप पास किया लेकिन आगे नहीं बड़ा आप तो प्रचलर में शब्द हो तो आज आता है आप गूगल में डूंडोगे तो एक दम से आज आएगा थर्ड जेंडर उसमें
40:29तो आप फिर मेरा प्रशन है इस सबसे होता है मेरा प्रशन कि मालो आप कि नर थर्ड जंडर को नाम दे रहे हैं
40:38तो रहू संकृत या ने जो इतनी चरचित किताब बंकी किनर डेश में तो वो किस पे लिखि और जो किन लोग साहित है किस में लिखा गया है
40:47और आप बिश्वाशनी करेंगे जब मुद्दा उठा तो JNU के दो चात्र मेरे पास आए और रोए वो मेरे पास
40:54कि सर्थ हमारे हम बता नहीं पाते किसी को क्योंकि थोड़ी में शर्म महसूस करते थे
40:59तो उन्होंने PSD छोड़ दी वो किंदर लोग साइटिया पर काम कर रहे थे
41:03और मत कितनी भी ढम मना है सारी है क्योंकि अब पता क्या हुआ
41:07मैं तो कूब लड़ता हूँ इस बात को लेके बली किसी को अच्छा लगे या ना लगे
41:11कि आप किंदर शब्द को थर्ड जेंडर को कैसे कह सकते हैं
41:15अब जो सुप्रीम कोर्ट ने 102 पेस की जो जज्जमेंट दे रखी है
41:19उसमें कहीं किंदर शब्द नहीं है उसमें थर्ड जेंडर नोंने यूज़ किया
41:24आप कहीं भी चले जाओ किसी भी ग्रंथ में आप विशो शब्द कोष देख लो
41:27आप जो पुराने हैं अब तो वैसे ही है जैसे
41:31अब अगर गूगल में जाओगे तो कई जगा आ जाता है कि भारत बीसो तेरा के बाद आजाद हुआ
41:39वैसे ही किनर शब्द के भी कई वो मैने आ जाएंगे तो लेकन मेरा यही कहना है
41:45कि जो हमारे लेखक हैं क्योंकि सबसे बड़ी बात है आप तो लोग बोलियों की बात कर रहे हम हिंदी में भी मैं माफी चाहूंगा रिसर्च नहीं करते
41:55जैसे मनिशा जी बैठी हुई है इनके अगर उपनियास देखो तो कितने रिसर्च अभी इनका जो महा त्रीमाया आया कितना रिसर्च नहोंने कर रखा है उसमें
42:03तो हम लोग जो हैं हमारे को अपना इतिहास संस्कृती बहुत जरूरी है उसका अधहन करना भी
42:10तो अब क्या हो रहा है कि जो प्रचलन में शब्दा है मेरे किनर काहनी भी यह 2008 में छपी थी वो कही पीएसडी में कोर्ट होती हो क्योंकि करने पड़ती है जो किनर अब किनर बिमर्श हमारे जो साहीते कारे वो अब आगया शब्दा आगया और वो धरा-धर उसमें हो रहा
42:40अब कितनी ब्रामक स्थितिया हैं यह सारी तो मेरे कहना का यहीं मतलब है कि जो ख्रेत्रिय जो प्रेशन है या जो ख्रेत्रिय संस्क्रिती है वो भी हम लोगों को हम लोगी ध्यान में रख सकते हैं उसको हम लोगी रख सकते हैं कि मैं साहीते कारों से भी जो इस पर काम कर �
43:10जासर हमारी भाशा ही हमारी नई पीड़ी युवा पीड़ी एक एक एक नई प्रजाती था हमारे देश में आ गई है उसे यह ते जेंजी आपका पाला पढ़ा है सर अब पढ़ा है।
43:40Sir, you are looking very pooky today.
43:44आराम से बूछो, और एक सिकेंड.
43:46Sir, you are looking very...
43:47pooky today.
43:48Pooky. Pooky क्या होता है, sir?
43:50बताई है, जहाँ, sir?
43:52नहीं पता, आप बता.
43:53माम से बूछो क्या?
43:54बताई.
43:55Slangs.
43:56माम, you are such a baddie, we respect you.
44:01क्या बोली हुआ? पिर से बोल, बिटा?
44:02माम, you are such a baddie, we respect you.
44:06You are such a baddie, we respect you.
44:09क्या मतलब हुआ?
44:10और कोई जैंसे, सर से भी बूछेंगे, क्या मतलब हुआ?
44:15ने, ने, रुको, रुको, कोई और भी है?
44:17नहीं आप ही बूछो, बच्चे, सर को भी कुछ कॉछ कॉम्पलिमेंट करो.
44:24Sir, it's sling.
44:27Sorry?
44:28Sir, it's sling.
44:29Sir, क्या बोल रहे आपको, बच्चे?
44:38मैं हमको लगड़ा ये कोई उल्टा-pॉल्टा तो नहीं बोल रही हो.
44:40अच्छी, आपो बैडी बोली हो.
44:43बैडी.
44:44माम, when we call someone baddie, we are meaning कि, we respect you a lot.
44:49You are in whatever field you are, you are the topmost person in that field.
44:53Okay, you are very knowledgeable.
44:55What you do for the world, we are respecting it, we are looking at it.
44:58And we are warned that other person, people should follow you.
45:02But इनकी सर अलग भाशा है.
45:04ये इन लोगों ने अलग भाशा बना ली है सर अपनी.
45:06जो बिलकुल हम लोगों के समझ में नहीं है.
45:08अज पत्रकारिता में भी कुछ कुछ आये हैं, जो आप सब परचित होंगे.
45:11आज हमारे संजा भाई बता रहा है थे, कि भाई कहा हो?
45:17तो नहीं, आज गमला, आज क्या?
45:20आज गमला पोस्टिंग हमारी हुए.
45:22ये रिपोर्टर से हैं.
45:23मैं भी 40 साल से जर्नलिज्म में हमारे रनजन भाई चालिस बाई शाम ने कहा बैए गमला पोस्टिंग क्या है रिपोर्टर की.
45:30तो नहीं, मतलब एक जगह है रुक के, ये वाच करना की कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, कौन आ रहा है, कौन आ रहा है.
45:35वो जो बीरबल को जो कहा गया बादशाह ने कहा था कि तुम लहने गिनना मतलब वो गमला पोस्टिंग वही है
45:42सर हम आपसे समझना यह चाहर है हमारी जो नहीं पीड़ी है अब यह जेंजी तो देख लिजे इन्होंने तो अपनी नहीं भाशा है इजात कर लिए
45:52जी बिलकुल कर लिए है और बहुत शॉट फॉर्म में जैसे मैं आपको कह रहा हूँ वन फोर थ्री बताईए क्या है आप तो जानते ही होंगे तो बहुत पुराना हो चुका है हाँ लेकिन इनकी इनकी बाश्चा देख रहे हैं ना सर वन फोर थ्री बीच में वन फोर थ्री म
46:22इलू इलू भी आया था इलू इलू इलू जानते हो आप लोग बच्चों जैंजी यह लोग तो जानते हैं सर यह लोग तो तुम बच्चों जानते हो इलू इलू क्या होता है आई लव यू तो ऐसा है कि बाई यह लोग स्वैंग भाशा भी ज्यानी बन गया है मतलब इन �
46:52तो अब उतनी लंबी वो जो प्रेम निवेदन है कि तेरा मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज नहोना कि उतना लंबा नहीं जाना है वन फोर थरी बोल देना है बात कताब अब चली आगे पड़िए कुछ दालोग बताईए तो यह जो हमारे महान भाषा वी ज्ञानी ह
47:22दादा जी थे उनका जनरेशन था तो पिता जी की बातों से हर दम हम लोग 36 में रहते थे एक दम पैदाईशी क्रांपिकारी की अरे पिता जी हमेशा प्रवचन देते रहते हैं मतलब अब यह करो वो मत करो यह करो वो मत करो आज जब अपने पिता की उम्र में आया हूँ त
47:52जनरेशन से ही सुना था मैंने, मेरे जमाने का वो नहीं था, तो धीरे धीरे जो अपने पिता की उम्र में, अपनी मा की उम्र में आएंगे न, तो सोचेंगे कि पिता जी का रास्ता ठीक था, वो ठीक ही कहते थे, इसलिए मैं नई पीडी से बहुत आशा करता हूं, भाशा को
48:22क्योंकि उसके जहन में कही ने कहीं, वो दर्ज हो गया है, अवल बात ये है, अभी राउंड चल रहा है, मेरी पतनी मुझको बहुत विद्वान समझती है, और तब वो इसलिए, जब कभी मैं हिंदी शब्द कोस, अंग्रेजी शब्द कोस से जूच, तो हिंदी अंग्रे�
48:52जब डिक्सनरी की दुनिया में लोटते है, और शब्द कोस बाइसाब, हमारे बड़े पुरोधा है, उडिसा साहित्य और संस्कृति के,
49:15कि अभी भी जब डिक्सनरी की दुनिया में लोटते है, और शब्दों का जो विराट जंगल है, लगता है कि हिंदी के बहुत सारे ओरिजिनल शब्दों को हम लोग यूज ही नहीं कर पाए हैं, सायद एक आना, दो आना यूज किये हों, बहुत से ऐसे शब्द, और सटीक �
49:45और आपको दुख होगा, ये बिचारा तो पड़ा रह गया, जिंदेगी बर हम लोग उपयोग ही नहीं किये इनका, इसलिए, शब्द कोस का अध्यान, मैं नई पीधी को ये कहना चाहूँगा, हिंदी, अंग्रेजी सब में, पलट लिए उसको, पलट लिए उसको, कुछ �
50:15मैं पलटा तो पलते पलते, जैड बाले इसमें, मैंने देखा जिरात, जैड आई डवल आर एट, अच्छा, एंग्लो इंडियन्स के बहुत सारे शब्द, तो अपने देश के थे, अर्मी शब्द, फार्सी शब्द, वगरा वगरा, तो मैं चौका की, मेरे गाओं में एक �
50:45जिसको कि वो इरिगेशन, अपने इरिगेशन का इंतजाम खुद कर लेता है, तो मैंने याद किया कि सच में, उस जिरात बाले खेत में, बगल से रतनावती नदी बहती है हमारे गाओं में, तो वो तो पूरे उसको सिचाई उसकी कर देती है, उसके लिए अलग से जुगा
51:15सबसे बड़ी चीज है उसकता, और वो उसकता अगर बच्चों वाली उसकता आप में रहेगी, तो आप नित रही भाशा है, आखरी बात मैं जो कहना चाहता हूँ, सबसे पहले तो शित्रियत जो ये जो बटबारा है, जैसे आप सुनेंगे कि बड़ाठी लोग हिंदी का �
51:45का था मैंने बहुत ही जान के उसको किया कि करनातक के गाओं की कहानी जो रेन फोरिस्ट में हिंदी में और इजनल लिखू ताकि करनड लोग है एक आपनी अपना ये नहीं मैं कर पुबिसीटी मैं कर रहा हूँ, आपको बात-बत कह रहा हूँ, कि मैंने गोवा के जीवन प
52:15कि लोक गोवा के बारे में जाने अब हुआ क्या जब मैं गोवा मैं पांजिम गया और मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं Mario Miranda सहाब से मिलूं आप सब जानते हैं कितने बड़े काटून इसे Mario Miranda उनको मैंने परिचा दिया कि मैं एक हिंदी लेखा को पर नियासकार हूं तो उन्हो
52:45असल में मैं तुमसे हिंदी में इसलिए लिए के लिए कह रहा हूँ
52:49क्योंकि गोवा की छवी हिंदी पटी में बहुत खराब है
52:52वो अयाश, अयासी और मस्ती का प्रांत मारा जाता है
52:56जो कि सच नहीं है
52:57गोवा गाओं का प्रांत है
52:59भले ही देश का वह सबसे छोटा
53:01और मातर दो जिलों से बना हुआ प्रांत है
53:03लेकिन उसकी छवी बहुत खराब है हिंदी बेल्ट में
53:07गरे वहाँ तो सी बीच पर जाके धूप सेकेंगे
53:10और शराब पीएंगे और ये
53:11तो उन्होंने कहा ये दाई तो मैं तुमको
53:13तो मैंने कई कारेक्रों में कहता हूँ
53:16कि मैं हिंदी में भारत का लेखक होना चाहता हूँ
53:21मैं हिंदी में क्योंकि ओछेत्रियता का जो मेल है
53:24मेल बंदन ऐसे ही होगा
53:26और उसमें जान बूच के
53:28मैं कहीं-कहीं कादलाइन करना डालोग
53:30कहीं कहीं कौंकन ही डालोग जैसे गुवा की उपन्यास में और फुट नोट में उसका मीनिंग लिख देता हूँ कि चलो कम से कब इतना वाक्य भी तो उनको याद रह जाएगा
53:40थैंक यू
53:40बहुत बिलिया सर, मैं मंतिम तीन मिनिट है एक एक मिनिट आप तीनों को
53:44हमारी युवा पीड़ी को भारती भार्शाओं हिंदी साहित के प्रती कैसे आप प्रोचसाहित करेंगे
53:53प्रोचसाहन का जहां तक सवाल है जो सर बात कर रहे थे कि एक जिग्यासा होना चाहिए जानने की
54:02और हम लोगों की पीड़ी की ये दायत तो बनता है कि हम अपनी नई पीड़ी को अपनी संस्कृती के प्रती, लोग के प्रती, लोग भार्शाओं के प्रती
54:14आकरशित करने वाले कुछ प्रोग्राम करें उनकी जो भी चीजें हैं उनको सामने लाने की बहुत ज़्यादा जरूरत है
54:23और मुझे लगता है कि ये पाठी क्रम में भी होना चाहिए कॉलेज लिवल पर होना चाहिए
54:27और साहित है किस तर पर तो ये आयुजन होना ही चाहिए जिसमें हम उस भाशा में लिखने वाले लोगों को युबाओं को आमंतरित करें और उन्हें प्रोचायत करें कि वो कुछ लिखें
54:38हलो सर, सर ये जैंजी जो आ गए है ये नई नई भाशा जो बन गई है इसे आप किस तरह से देखते हैं
54:45वो आपने अभी देखी लिया कि हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा था तो उनके लिए बस मेरा एक नवेदन है जो आगे जो हमारी पीडी है
54:57कि वो अपने पास मुबाइल के साथ एक किताब जरूर रखें और उसके साथ क्योंकि कोई भी बच्चा मुझे लगता है कि अधिक तरगाओं से आते हैं
55:11तो जब भी कोई बजूर्ग हो तो उस बजूर्ग के पास बैठके कुस लोक बोलियों के शब्द वो जरूर संग्रहित करें और सीके उनसे और तीसरा अपने घर में एक कोना किताबों के लिए जरूर बनाएं
55:21जहां सर एक मिनिट आपका और उस एक मिनिट में हम यह समझना चाहते हैं सर यह हमारे बच्चे हिंदी बोलने में शर्माते हैं सर शर्माती हैं अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करते हैं क्यों सर कि इनको कुछ सला दीजिए वो हिंदी बोले फ्रेंश बोले जो भी भ
55:51पूछे उनको अगर अनाज दिखाईए कि आप गेहूं, दान, मक्का, सरसो रख दें, वो नहीं पहचानेंगे. मेरा भाजा आया, ऑस्टेलिया में रहता है, तो जो वो कुम्रा होता है, हमारे भाई लोग जानेंगे, कुम्रा कहते हैं, इसे मुरब्बा बनता है. अच्छा,
56:21मैंने कहा देखो, तुम लोगों को अगर यह पीडा हो, कि हम गाउं देहात में पढ़ते हैं, तो यह पीडा मत रखना है, तुम भागशाली हो, कि सेंट जेवियर्स और बड़े-बड़े अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे, नहीं जान पाते हैं जीवन क
56:51मैं अब सोचने लगा हूँ, कि पिता ठीक कहते थे, और जब हम जवानी के दिनों में थे, तो हमको विरोध रहता था कि पिता ऐसा कह रहा है, हम नहीं करेंगे, हम करांतिकारी थे, तो लेकिन उम्र में आकर कि, तो इसलिए मैं फिर से ही कहना चाहूँगा, मैं आंस्टन को
57:21पर मित्रों ये विद्वजन इतने बड़े-बड़े साहितिकार आज यहां पर आए
57:28और आप सभी ने हमारे आज तक साहिति आज तक की गर्मा को बढ़ाया है
57:35इसके लिए आप सभी का बहुत धन्यवाद आप अपना प्लीस बहुत ख्याल रखेगा धन्यवाद
Be the first to comment
Add your comment

Recommended