Skip to playerSkip to main content
  • 2 days ago
झारखंड के रांची के डॉ आर के नीरद और उनकी पत्नी नीलम नीरद ने अपनी लगन और मेहनत से संथाल की गुम हो रही चित्रकारी की विरासत जादोपटिया को जीवित किया है. यह चित्रकारी संथाल समाज के मृत्यु संस्कारों से जुड़ी हुई है. संथाल समाज में जब किसी की मृत्यु हो जाती थी, तब जादोपटिया कलाकार... उसके घर में जाकर कपड़े या कागज पर मृत आत्मा का प्रतीकात्मक चित्र बनाते थे. चित्र पूरा होने के बाद उस पर दो आंखें बनाई जाती थीं, जिसे चोकदान यानी आंख दान कहा जाता है. ऐसी मान्यता थी कि यह चोकदान मृत आत्माओं को दूसरी दुनिया की यात्रा में दिशा प्रदान करता है और उसे सदगति देता है. बाद में इसे अंधविश्वास से जोड़ दिया गया.. जिसकी वजह से धीरे-धीरे जादोपटिया कला विलुप्त हो गई. संथाल और पहाड़ी जनजातियों पर शोध करते समय युवा पत्रकार आरके नीरद ने एक पुराने दस्तावेज में जादो के बारे में पढ़ा. अपनी सालों की मेहनत से आर के नीरद इस अद्भुत कला के बारे में पूरी जानकारी हासिल की और फिर वो इस कला के संरक्षण में जुट गए. आरके नीरद की मेहनत की बदौलत 1995 में बिहार सरकार ने इसको मान्यता दी.. बाद में भारत सरकार के संस्कृति विभाग ने भी इसे लोककला की विशिष्ट श्रेणी में दर्ज किया. 

Category

🗞
News
Transcript
00:00Dr. R. R.
00:30Dr. R. R.
01:00Dr. R. R.
01:29Dr. R.
01:59Dr. R.
02:29Dr. R.
02:59Dr. R.
Be the first to comment
Add your comment

Recommended