00:00शवयात्रा
00:30शवयात्रा
01:00मेरे गाउं में तो ऐसा आँखों की सामने होता हुआ देखा है मैंने इसलिए कहती हूँ वन्ना मुझे क्या पड़ोसी को तो नहीं कहना चाती मैं पती है आप मेरे इसलिए बोल रही हूँ
01:11विमल अपनी मिठाय की दुकान चला जाता है दुकान पर पहले से ही ग्राहकों की लंबी लाइन लगी हुई थी
01:19विमल दुकान खोलता है एक के बाद एक ग्राहक उसकी दुकान पर मिठाय ले रहे होते हैं तबी गाउं की एक बुड़ी औरत विमल से कहती है
01:40अरे क्या चाची तुम भी ये सब नजर वजर कुछ नहीं होता है कैसे लोग है मेरे आसपास
01:58अपनी दुकान से शाम को विमल हस्ते कुट्ते वापस घर आता है
02:04आज तो अच्छी खासी विक्री हुई है एक महिने में जितनी विक्री होती है एक ही दिन में आज उतने पैसे कमा लिये मैंने
02:15ये तो बहुत अच्छा हुआ जी आज ही घर की नजर उतारी है मैंने विक्री तो अच्छी होनी ही थी
02:23अच्छा, तुम खाना लगा दो, सारा माल बिक चुका है, मुझे शहर जाना होगा, कुछ चीजों के जुरूरत पड़ेगी, राद भर मिठाई बनाऊंगा, तब जाकर कल सुबर दुकान खोल पाऊंगा
02:36खाना खाकर विमल शहर जाने के लिए निकल पड़ता है
02:41सुनिये जी, ध्यान से जाईएगा, चौरस्ते पर किसी जादू टोने की चीज़ पर पैयर मत रख दीजिएगा
02:49ये भगवान, हद हो गए जूती ये तो, मैं जा रहा है
02:54विमल गुस्से से शहर जाने निकल पड़ता है, राद का काला घना अंधीरा
03:01चांद की एक भी किरण ना होने की कारण, अंधीरे में कुछ भी देख पाना मुश्किल था
03:07जंगल के बीच के एक अदकच्ची रास्ते से विमल जा रहा होता है
03:11चारो तरफ गुफ अंधीरा और सन्नाटा सुनाई दी रहा था
03:16और सुनाई दे रही थी विमल के पैर के नीचे आ रहे सुखे पत्तों की आवाजे
03:22तभी अचानक दूर से उसे कुछ आवाजे सुनाई दीती है
03:26अरे, ये इतनी रात को जंगल के रास्ते कौन चा रहा है
03:32शायद कोई टोली होगी
03:34धीरे धीरे आवाज कुछ कुछ सुनाई पड़ती है
03:51आवाज धीरे धीरे और नजदिकाती सी लगती है
03:56विमल देखता है कि उसके सामने से सजी धजी सफेद कपड़े में लिपटी एक अर्थि निकल रही है
04:03जिसके साथ पांच लोग ही थे
04:05चार आदमियों ने उसे कंधा दिया हुआ था
04:08एक मठकालिये आगे-ागे बढ़ रहा था
04:11विमल के बिलकुल सामने आकर अर्थी रुख जाती है
04:15उसमें से एक आदमी विमल से कहता है
04:17अरे भाई, जरा अर्थी को कंधा लगाना
04:22मैं बहुत ठक गया हूँ
04:24बड़ी महरबानी होगी
04:26हाँ भाई, गंधा तुम्हें लगा दूपर
04:29रात को बारा बजे ये शव यात्रा
04:32इस समय कौन अर्थी ले जाता है
04:35तब ही विमल को ऐसा लगता है कि
04:37शव में से आवास आई
04:39विमल अर्थी को कंधा दिये चल रहा होता है
04:57कि उसे ऐसा लगता है कि हाथ में मटका लिए
05:00जो आदमी शव के आगे चल रहा है
05:02उसके पैर उल्टे है
05:03क्या हुआ भाई
05:09विमल अपनी बाद पूरी भी नहीं कर पाता
05:20कि वो देखता है कि उस साव में के पैर तो सीधे ही है
05:23अरे नहीं नहीं कुछ नहीं
05:27मुझे शायद वहम हुआ होगा
05:29धीरे धीरे सब आगे बढ़ रहे होते हैं
05:33तब विमल को अचानक लगता है
05:34मटकी में से एक हाथ बहार आ रहा है
05:37विमल घबरा जाता है
05:38इसके पहले वो कुछ बोल पाता कल्लू कहता है
05:41मेरा नाम कल्लू है
05:43हम छे दोस्त थे
05:45जिसमे से एक को तो तुम सोया हुआ देख रहे हो
05:49इतनी पक्की दोस्ती थी
05:52कि जैसे हम सब सगे भाई है
05:54पर किस्मत का कोई क्या कर सकता है
05:58आज से चार साल पहले
06:00एक नदी में हम सब नहाने गए थे
06:03जिसमें डूपकर राजेश की मौत हो गई
06:07किसी मजबूरी के कारण हमें उसकी अर्थी को
06:11रात कोई शम्शान घाट ले जाना पड़ा
06:14हम पाँचों उसे ले जा रहे थे
06:17चार साल पहले आप पाँचों में
06:21मैं कुछ समझा नहीं
06:24मंकू अपनी गर्दन पीछे गुमा कर
06:27अपनी आखे बड़ी बड़ी कर बीमल से कहता है
06:30अरे भाई पूरी कहानी खतम होने दो
06:33फिर बीच में बोल लेना ठीक है
06:35तभी रास्ते में एक हादसे में
06:39अपने दोस्त के साथ हम सभी मर गए
06:43वो सामने देखो हमारा दोस्त
06:47बीमल सामनी देखता है
06:49उसे दिखता है कि एक ऐसा आदमी
06:51जिसका शरिर कई जन्मों से
06:53पानी के अंदर रहने के कारण सफेद पड़ गया है
06:56उसकी आँखे बाहर के और निकली हुई थी
06:59फिर ये अर्थी किसकी है
07:03अर्थी के साथ की लोग अर्थी को नीचे रखते हुए
07:07एक साथ बीमल के और देखते हुए कहते हैं
07:11तुम खुद ही देख लो
07:12बीमल शव पर से सफेद कपड़ा हटाता है
07:16शव की जगा खुद को ही देख कर बीमल के होश उड़ जाते हैं
07:21वो शव बीमल की ही थी
07:23पलक जपकते ही बीमल उस अर्थी की जगा पर होता है
07:28छे के छे दोस्त उसी तरह अर्थी को उठा कर चलने लग जाते हैं
07:34राम नाम सत्य है