Skip to playerSkip to main content
  • 5 hours ago
माया का उछाल

Category

🗞
News
Transcript
00:00मैया की भूमी का
00:30चुकि ब्रह्म के विस्तार से जुड़ी है अतहिसका कार्यक शेत्रदांपत्य कर्म से प्रजिनन कर्म से जुड़ा रहता है।
00:37रिग्वेट में वनन निता है अपश्यम त्वा मनसा चेकी तानम तपसो जातम तपसो विफूतम इह प्रजामिह रईम रराणह प्रजायसु प्रजया पुत्र कामह।
00:51रिग्वेट 10.183.1
00:55पती से पत्नी कह रही है मैंने बुद्धी से कर्मों को अत्यधिक रूप से जानने वाले दीख्षा रूप व्रत से पुनह उत्पन हुए तथा अनुष्ठान किये जाते हुए यग्यों के कारण सर्वत्र विख्यात तुमें देखा।
01:10हे पुत्रों की कामना करने वाले वही तुम इस लोप में पुत्र पौत्रादी संतान का आनन्द लेते हुए गर्भाधान के द्वारा पुत्र पौत्रादी के रूप से तजा उत्पन करो।
01:21पती उत्तर देता है हे पत्मी अपने सौंदाध्य से दीप्ति युक्त शरीर में गर्भाधान रूप कर्म के लिए पती समागम की याचना करते हुए तुम्हें मैंने पुद्धी से देखा।
01:33हे पुत्रों की कामना करने वाली मेरे समीर आकर अत्यदिक तरूणी हो जाओ तरूणी होकर गर्भाधान की द्वारा पुत्रों को उत्पन करो।
02:03हुए द्वारा किये जाने वाले यग्य से सबकी उत्पत्ती होने के कारण मैं सबकी उत्पत्ती का मूल स्रोप्त हूँ।
02:1210.183 प्रजा उत्पत्ती कर्म सभी 84 लाग योनियों में होता है। माया तै करती है कि जीवात्मा को किस योनी में जाना है।
02:22जीव किसी भी योनी में जन्म ले किन्तो श्रिष्टी के सभी तत्व उसके उपादान बनते हैं।
02:52जीव किसी भी तत्व उसके उसके उसके उपादान बनते हैं।
03:22ुद्देश्य बनाकर दोनों अश्विनी कुमार तुम्हारे जिस गर्भ को उद्देश्य बनाकर दोनों अश्विनी कुमार देवों ने स्वाइण मई अरणियों का मन्धन किया,
03:44तुम्हारे लिए हम उस गर्भ का दस्वे माह में प्रसव होने के लिए आववान करते हैं।
04:14यहीं एक अन्यमूल तत्व का सपश्टी करन भी हो जाना चाहिए।
04:19कि स्रिष्टी किसी भी योनी की हो दामपत्य भाव के वर ब्रह्म और माया का ही होगा।
04:25गतिर भरता प्रभु साक्षी निवासह शर्णम सुरित प्रभवव प्रलयह स्थानम निधानम दीजम अप्ययम।
04:33गीता 9.18, प्राप्त करने वाला परमधाम, भरन पोशन करने वाला, सबका स्वामी, शुभार्शुभ देखने वाला, बिना अपेक्षा के हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति प्रलयह का हेतु, इस्थिती का आधार, अविनाशी कारण भी मैं हो।
04:51गीता 9.18, कैसा आश्चर जहें? सभी शास्तर एक ही बात कहते हैं कि ब्रह्म और माया ही 84 लाख योनियों में भ्रमण करते हैं, माया ही किसी भी योनि तक कहुचने का साधन बनती है, वह ब्रह्म को एक योनि से दूसरी योनि तक पहुचाती है, वह मोक्ष्री और धकेलने क
05:21अहिंकार को अप्रा प्रक्रती कहा है, दूसरी और जीव रूप परा प्रक्रती है, माया प्रक्रती से भिन्न है, प्रक्रती ही ब्रह्म और माया को आवरित रखती है, ताके इनके स्वरूप को जाना न जा सके, प्रक्रती से पारपाना मुक्ती का दबार खोलता है, त्रि�
05:51प्राणों की क्रिया के मार्धन से इसी से पराप्रक्रति के हृदय में इस्थित तीनों गुणों में भी स्पन्दन शुरू हो जाता है।
05:58प्रिदय में ब्रह्मा, विष्णू और इंद्र की शक्तियों के साथ परंगुरू की भी इस्थिती होती है।
06:04वही गुणातित अवस्था का प्रेरख तत्व होता है। जीवात्मा, अश्वत्त के उपरी, अमरत भाग की और अग्रूसर होता है।
06:12यही माया के शेत्र में प्रवेश है।
06:15ुप्ति साक्षी शेत्री शरीर में भी प्रान गुनातीत होकर हिदैसे उपर उठते हैं तो भूम अध्य में विदल कमल रूप अथ्वा प्रक्रति के आगे परातपर तत्व का प्रवेश ग्वान है
06:26यही चारों और गहन अंधकार का समुद्र है यही माया का वुधुद रूप अव्वे पुरुश है। यहां यजू पुरुश होते हुए भी रित भाव में है। रिकेंद्र परीध्ी वाक्षी साम है। स्वायं के यह बाक्षी रित रूप ब्रह्मु की प्रत्म सत्या वाक ह
06:56ुद्वुद्ध की परिधी तब से जल समुद्र उत्पन हुआ, तब प्राणों का होता है, मन की कामना का रचना करने योग्य का परियालोचन करना है, ब्रह्मा ने तब द्वारा इस सब को रचाते, तरी आरण्यग, यजु ही प्रथम सत्यरूप अव्यरवना, यही माया ध
07:26संकुचित होती जाती है, बुद्बुद जल शदीर है, यह जल ही शर्था कहाता है, जो की माया का ही परिया है, यही बुद्बुद माया रूप आवरण है ब्रह्म का, तब के प्रभाव से छोटा होते होते मातरिश्वा वायू के द्वारा ब्रह्म के बिंदू भाव में स
Be the first to comment
Add your comment

Recommended