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  • 3 months ago
मोक्ष तक पत्नी का साथ

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00:00नमस्कार आईए आज आपको सुनाते हैं राजस्तान पत्रिकाथ की प्रधान संपादक डॉक्टर गुलाब कुठारी का शरीजी प्रभ्भान श्रिंखना में पत्रिकायन में प्रकाशित आलेग जिसका शीर्षक है मोक्ष तक पत्नी का साथ
00:16स्वयम्भू लोक आगने प्राणों का लोक है स्वयम्भू को स्रिष्टी करने के लिए युगल चाहिए स्रिष्टी कामना के तपन से जो स्वेद पैदा हुआ उससे आपधत्त्व पैदा हुआ एक ही प्राण अब प्राण आप दो भागों में बढ़ गया जो भाग पानी �
00:46प्राण आप दो भागों में इसकी प्रथम विकास भूमी स्वेंभू वित्य विकास भूमी सूर्य तथा त्रितिय विकास भूमी भूबिंड है
01:13इन ही को ब्रम्हागनी, देवागनी एवं भूतागनी कहा जाता है इनका ही दूसरा नाम प्राणागनी, बागागनी और अन्नादागनी है
01:21ब्रम्हागनी से विधरन प्रतिष्ठा होती है, देवागनी से रूप और विकास होता है, भुतागनी से पाक और विलेयन धर्म की पूर्ती होती है
01:314. अगनी यग्यागनी रूप वैश्वानर है
01:34यह ताप और दाह धर्मा है
01:36पानी उत्पन करना अगनी का स्वाभाविक धर्म है
01:39ब्रह्मागनी से परमेश्ठी का अंभव पैदा होता है
01:44देवागनी से मरीची, भुतागनी से मर तथा आंतरिक्षिय चंद्रमा
01:49प्राण में वैश्वानर से श्रद्धा नामक पानी पैदा होता है
01:53अगनी उर्जा है, पानी पदार्द है
01:56वायों से अगनी उत्पन होता है, पानी से प्रिच्वी की उत्पत्ती होती है
02:015.
02:135.
02:23अर्थवाख है सरस्वति शब्द वाख है शर्पुरुष की पांच कलाय टान आप पाक अन्नाद के पंची करन से ही विश्व स्ट पंच जन 25 पुरंजन पुर आधी का निर्मान होता है ये सारा अर्थवाख है विश्व का स्थूल स्वरूप है शरीरों का निर्मान भी पं�
02:53का निर्मान करता है अन्न से ही देह धातों के अंत में मन का निर्मान होता है जिसकी कामना का आधार अन्न ही होता है कृष्ण का खथन है कि भूमी रापो नलो वायू खम मनो बुद्धी रेवच अहंकार इतियम में बिन्ना प्रक्रती रष्टिधा गीता 7.4 यहां अश्ट
03:23और एहंकार इसमें संबिलित रहते हैं इस अपड़ा प्रक्रती का निर्मान अन्न से ही होता है जीवात्मा को यही आकरती रूप में आवरित करती है मन बुद्धी एहंकार प्रक्रती विग्धर रूप में कारे करते हैं शरीर के उपकरण रूप है मन की मर्जी ही शरीर के
03:53अक्षर पुरुष रूप पराप्रक्रति जीर की क्रियाओं का मूल संचालन करती है।
04:01एक और इसका संभन्द अव्यपुरुष कारण शरीर से होता है।
04:05अक्षर और अव्यपुरुष दोनों की मिलकर सूख्ष में शरीर संग्या है।
04:09दोनों साथ रहते हैं। रिदय चेंद्र में ही ब्रम्भु की प्रतिष्ठा रहती है।
04:13वही ब्रम्भा अक्षर प्राण की रूप में रिदय कहलाता है।
04:17गति, आगति, इस्थिती रूप यही यज़ू पुरुष है।
04:21रम्मा ही इंद्र रूप गती और विष्नु रूप आगती होता है।
04:25अतह तीनों ही अक्षर प्राण मिलकर रिदय कहलाते हैं।
04:29अक्षर पुरुष के दो अन्य प्राणों अगनी और सो्म के मिलन से अक्षर ही अमरित-मृत्य रूप कार्य करता है।
04:36जीव भूता महा बाहो ये येदम धार्यते जगत गीता साथ पॉइंट माच.
04:41अक्षर पुदुष श्रिष्टी का निमित कारण है, शर्पुरुष उपादान कारण.
04:46इस थूल स्रिष्टी में मानव योनी में यही इस्त्री योशा का स्वरूप है.
04:50निमित कारण ही वही बनती है, उपादान कारण तो इस्पश्टी ही है.
04:55संपून भूत दोनों प्रक्रतियों से ही उत्पन्न होते हैं.
04:59अव्य पुरुष ही संपून जगत का प्रभव तर्था प्रलय है, गीता साथ पॉइंट छे.
05:04अक्षर तथा अत्वा सूख्ष्ण श्रिष्टी, प्राण अत्वा देव स्रिष्टी है, प्राण ही देव कहलाते हैं.
05:11Shri shri ke mul 33 praan hi 33 devtah hai, para prakrati chunki sukshu hai, atah isi isi adhidev kehtethe hai, isi liye Shri ke para rup ki divya sangya hai.
05:23Purush Sampun Shri shri me sakshi rup hi raha hai, janm se moksh pariyant maya hi karta hai, maya aur Shri pariyaya hai,
05:31taw Shri ki para apra shaktiun ka sahaj hi anumahan lagaya jasakta hai, inhii dhu kinaarou ke madhya pravahit rahati hai Shri.
05:41Ant me pura anant me lean ho jati hai, purush swami hai, prakrati rup Shri ka, surya se nirmit buddhi sukshu hai,
05:49chandrma anme prithvi se nirmit deha isthul hai, chandrma man ka bhi Shri hai, atah shari kabhi buddhimaani se kare karta hai,
05:58kabhi manmani se, na keval buddhimaani hithkari hooti hai, na keval manmani,
06:03doonho trihoonhe hootate hai, shodash purush bhi istri purush dhoonho hootate hai,
06:07kintu brahma hansh keval purush me rehatta hai, biji rup me,
06:11yahi karen shari rup ki karend karendr me rehat kar, nai sri shri karendr ke liye vapan karne ka mool tattwa hai,
06:17isi ke vivart ke liye maya istri ko payda kiya gaya,
06:21yaha daayit me bhi maya ko hi saunpa, ki vivart ke baad brahma hansh ko punha brahma me hi lean karayi,
06:27moksh ke liye aatma ke saath jina,
06:29aur mrityu ke liye dheke rup me, yahi maya ki bhoomika hai,
06:33purush apne vivart ka mungk darsak hai,
06:36sarae adhikar maya ke paas saunp rakhye hai,
06:38avyaki, man, pran, vaak, kalau mein,
06:41shvuvasiyas manhi, indriya, sarvendriya,
06:44eva mehen man ke rup me kare kare karta hai,
06:46isi se pran, vaak, akchal, chal rup me kare kare karta hai,
06:50isri jab pihar mein rahati hai,
06:53tab uska indriya man,
06:54char purush ke tattwa,
06:55mukhyo bhoomika mein hotate hai,
06:57vivaha puru to hootate hi hai,
06:59vivaha ke baad,
07:00shesh jiwan bhi,
07:01pihar,
07:02shariir,
07:03poshan,
07:03char,
07:04nimitli hii rahata hai,
07:05vahi alhaat,
07:06khel,
07:06kud,
07:06saheliyan,
07:07manoranjan,
07:08avgash ka vatavaran,
07:09chaya rhatta hai,
07:10आज,
07:11एकल,
07:11परिवारों में,
07:12यह vatavaran,
07:12उपलब्ध नहीं रहा,
07:14अनेक,
07:14इस्थूल,
07:15कुंठित,
07:15उर्जाओं के बंधन,
07:16अब नहीं खुल पाते,
07:18मुक्त भावों की अभिव्यक्ति,
07:19कुंद होने लगी,
07:21ससुराल में,
07:21शरीर की,
07:22कभी प्रधांता नहीं रहती,
07:24आत्मा की तुष्टी,
07:25और पुर्षात्य चतुष्टे के निर्वहन पर तृष्टी रहती है,
07:29जीवन का यह साधना काल होता है,
07:31इसका एक भाग संतान को संसकारित पोशित करने का रहता है,
07:35ताकि वह श्रेष्ट समाज,
07:37एवं श्रेष्ट देश के निर्मान में,
07:39अफ्युदय और निश्रेयस में,
07:41अपनी भूमिका का निर्वहन कर सके,
07:43दूसरी और पुरुष्की पूर्णता का निर्मान,
07:46विवर्ध, दामपत्य रती से देवरती में प्रवेश कराकर,
07:49सांसारिक दाइत्मों से निवरित करानी की भूमिका है,
07:54जीवन में भक्ति सेवा का योग करवाना,
07:56और अंद काल में देह मुक्त होकर जीने का अभ्यास,
08:00शुद्ध शब्द ब्रम्ह रूप में नई जीवन शैली में प्रवेश ही,
08:04सूप्ष में शरीर आत्मा रूप से युक्त होता है,
08:07जीवात्मा यहीं से जीवन मुक्त होकर मुक्ष मार्ग का यात्री बनता है,
08:12माया का अलग हो जाना ही आवरण मुक्ती है,
08:15Ishtri Roop Avalan Se Muktu Ho Na Ya Karna Bhi Ishtri Roop Patni Maya Ka Hi Kari Kshetr Hai
08:21Ataha Mokshu Hoonet Tad Patni Bhi Janm Janm Saath Rheti Hai
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