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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "राष्ट्र साधना की इस यात्रा में ऐसा नहीं है कि संघ पर हमले नहीं हुए, संघ के खिलाफ साजिशें नहीं हुईं... हमने देखा है कि कैसे आजादी के बाद संघ को कुचलने का प्रयास हुआ। मुख्यधारा में आने से रोकने के अनगिनत षड्यंत्र हुए। परमपूज्य गुरुजी को झूठे केस में फंसाया गया, उन्हें जेल तक भेज दिया गया। लेकिन जब पूज्य गुरुजी जेल से बाहर आए तो उन्होंने सहज रूप से कहा और शायद इतिहास में सहज भाव एक बहुत बड़ी प्रेरणा है। उन्होंने सहजता से कहा था कि कभी-कभी जीभ दांतों के नीचे आकर दब जाती है, कुचल भी जाती है, लेकिन हम दांत नहीं तोड़ देते हैं, क्योंकि दांत भी हमारे हैं और जीभ भी हमारी है।"
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00:00साथियों, आज महा नवमी है, आज देवी सिद्धी दात्री का दीन है, मैं सभी देशवाच्छों को नवरात्री की बधाई देता हूँ.
00:18कल विजिया दस्वी का महा पर्व है, अन्याय पर न्याय की जीत, असत्य पर सत्य की जीत, अंदकार पर प्रकाश की जीत,
00:42विजिया दस्वी भारतिय संस्कृति के इस विचार और विश्वास का काल जयी उद्गोश है।
00:56ऐसे महान पर्व पर, सो वर्ष पूर्व, राष्ट्रिय स्वाइम सेवक संग की स्थापना, ये कोई संयोग नहीं था।
01:16ये हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का उनर उत्थान था।
01:28जिसमें राष्ट्र चेतना समय समय पर उस यूग की चुनोतियों का सामना करने के लिए नए नए अवतारों में प्रकट होती है।
01:51इस यूग में संग उसी अनादी राष्ट्र चेतना का पुन्य अवतार है।
02:01साथियों यह हमारी पीडी के स्वैंशोकों का सवभाग्य है कि हमें
02:23संग के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है।
02:33मैं आज इस अवसर पर राष्ट्र सेवा के संकल्प को समर्पित कोटी कोटी स्वैंशोकों को
02:47शुपकामनाय देता हूँ अभिनंदन करता हूँ।
02:53मैं संग के संस्थापक हम सभी के आदर्स परम्पुजे डॉक्टर हेडगवार जी के चरणों में स्रध्धांजली अर्पित करता हूँ।
03:07साथियों संग की सो वर्ष की इस गवरों मैं यात्रा की स्मृति में आज भारत सरकार ने विशेश डाक्टिकट और स्मृति सिक्के जारी किये हैं।
03:27सो रुपिये के सिक्के पर एक और राष्टिय चिन्न है और दूसरी और सिह के साथ बरत मुद्रावे भारत माता की भव्य चबी और समर्पन भाव से उसे नमन करते स्वश्वक दिखाई देते हैं।
03:54भारत माता की तस्वीर संभवतह स्वतंत्र भारत के इतिहात में पहली बार ऐसा हुआ है।
04:24इस सिक्के के उपर संग का बोध वाक्य भी अंकित है।
04:31राष्ट्राय स्वाहा, इदम राष्ट्राय, इदम नममा।
04:40साथियों, आज जो विशेस मुर्ती डाक्टिकट जारी हुआ है।
04:49उसकी भी अपनी एक महत्ता है।
04:53हम सभी जानते हैं, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड की कितनी एहमियत होती है।
05:051963 में, 1963 में, RSS के स्वैंस्वग भी 26 जनवरी की उस राष्टिय परेड में शामिल हुए थे।
05:20और उन्होंने आन, बान, शान से राष्ट्र भक्ति की धुन पर कदम ताल किया था।
05:32इस टिकट में, उसी एतिहासिक छन की स्मुर्ति है।
05:41साथियों, संग के स्वैंस्वग जो अनवरत रूप से देश की सेवा में जुटे हैं,
05:53समाज को ससक्त कर रहे हैं, इसकी भी जलक एक समारक डाक टिकट में है।
06:02मैं इन स्मृति सिक्कों और डाक टिकट के लिए देश वाचियों को बहुत बहुत बधाई देता हूँ।
06:14साथियों, जिस तरफ बिशाल नदियों के किनारे मानव सभ्यताएं पनप्ती हैं,
06:28उसी तरफ संग के किनारे भी और संग की धारा में भी सेंकडो जीवन पुस्पित पलवित हुए हैं।
06:42जैसे एक नदी जिन रास्तों से बहती हैं, उन ख्षेत्रों को, वहाँ की भूमी को, वहाँ के गावों को, सुझलाम सुफलाम बनाती हुई अपने जल से समृद्ध करती हैं।
07:03वैसे ही संग ने इस देश के हर छेत्र, समाज के हर आयाम उसको स्पर्ष किया है।
07:14यह अविरल तपका फल है, यह राश्ट प्रवाह प्रबल है।
07:22साथियों, जिस तरह एक नदी कई धारों में खुद को प्रकट करती है, हर धारा अलगलग शेत्र को पोशिट करती है, संग की यात्रा भी ऐसी ही है।
07:41संग के अलगलग संगठन भी जीवन के हर पक्ष से जुड़कर राश्ट की सेवा करते हैं।
07:51शिक्षा हो, कृष्ची हो, समाज कल्यान हो, आदिवासी कल्यान हो, महिला श्रसक्ति करन हो, कला और विज्ञान का ख्षेत्र हो, हमारा समीक भाई बेन हो।
08:05संग जिवन के ऐसे कई ख्षेतों में संग निरंतर कारी कर रहा है।
08:13और यात्रा की भी एक विशेस्ता रही है। संग की एक धारा, अनेक धारा तो बनी, मल्टिप्लाएं तो होती गई, लेकिन उनमें कभी विरोवधाबास पैदा नहीं हुआ, डिविजन नहीं हुआ।
08:34क्योंकि हर धारा का विवित ख्षेत्र में काम करने वाले हर संग गठन का उद्देश एक ही है, भाव एक ही है, राश्ट्र प्रथम, नेशन फरस्ट,
08:54साथियों, अपने गठन के बाद से ही, राश्ट्रिय स्वैम सिवक संग, विराट उद्देश लेकर चला, और यह उद्देश रहा, राश्ट निर्मान।
09:11इस उद्देश की पूर्ति के लिए संग ने जो राश्टा चुला, वो था व्यत्ति निर्मान से राश्ट निर्मान। और इस राश्टे पर सतत चलने के लिए, जो कार्यपधत ही चुनी, वो थी निख्यन नियमित चलने वाली शाखा है।
09:34साथियों, परम्पुजे डॉक्टर हेडगेवार जी जानते थे, कि हमारा राश्ट तभी ससक्त होगा, जब हर नागरिक के भीतर, राश्ट के प्रतिदाइत्व का बोध जागरत होगा।
09:51हमारा राश्ट तभी उंचा उठेगा, जब भारत का हर नागरिक राश्ट के लिए जीना सिखेगा।
09:59इसलिए वो व्यक्ति निर्मान में निरंतर जूटे रहे, और उनका तरीका भी कुछ अलग ही था।
10:10परम्पुजे डॉक्टर हेडगेवार जी से हम बार-बार सुना है, वो कहते हैं जैसा है वैसा लेना है, जैसा चाहिए वैसा बनाना है।
10:24लोग संग्रह का, डॉक्टर साब का ये तरीका है, कुछ-कुछ अगर समझना आए तो हम कुमार को याद करते हैं।
10:37जैसे कुमार इट पकाता है, तो जमीन की सामाने सी मिट्टी से शुरू करता है।
10:46कुमार मिट्टी को लाता है, उस पर मेहनत करता है, उसे आकार देकर तपता है, खुद भी तपता है, मिट्टी को भी तपाता है।
11:00फिर उन इटों को इखटा करके उनसे भव इमारत बनाता है। ऐसे ही डॉक्टर साथ बिलकुल सामान्य लोगों को चुनते थे, फिर उनको सिखाते थे, विजन देते थे, उनको घड़ते थे।
11:20इस तरह वो देश के लिए समर्पित श्वंशोग तैयार करते थे। इसलिए संग्य के बारे में कहा जाता है, कि इसमें सामान्य लोग मिलकर असामान्य अभुत्पुर्वा कार्य करते हैं।
11:37साथियों, व्यत्ती निर्वान की ये सुंदर प्रक्रिया हम आज भी संग्य की शाखाओं में देखते हैं।
11:53संग्य शाखा का मैदान एक ऐसी प्रेणा भूमी है, जहां से स्वयू सेवक की अहम से वयम की यात्रा शुरू होती है।
12:06संग्य की शाखाएं ब्यक्ति निर्मान की यग्य बेदी हैं।
12:17इन शाखाओं में ब्यक्ति का शारिक, मानसीक और सामाजिक विकास होता है।
12:30स्वयू सोको के मन में राष्ट सेवा का भाव और साहस दिन प्रतिदिन पनपता रहता है।
12:40उनके लिए त्याग और समर्पा सहज हो जाता है।
12:48स्रे के लिए प्रतिश्परधा की भावना समाप्त हो जाती है।
12:56और उन्हें सामुहिक निर्णय और सामुहिक कारका समस्कार मिलता है।
13:06साथियों, राष्ट निर्मार का महान उद्देश, व्यक्ति निर्मार का स्पष्ट पत्स और साखा जैसी सरल जीवन कार्यपद्धती।
13:23यही संग की सो वर्षों की यात्रा का आधार बने है।
13:30इनी स्तंभव पर खड़े होकर संगे लाखों स्वेंशों को को गड़ा जो विविन्न छेत्रों में देश को अपना सर्वोत्तम दे रहे हैं।
13:47देश को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं।
13:52समर्पन से, सेवा से और राष्ट के उतकर्ष की साधना से।
13:59साथियों, सम जब से अस्तित्व में आया।
14:05संग के लिए देश की प्रात्विक्ता ही उसकी अपनी प्रात्विक्ता रही है।
14:15इसलिए जिस कारखन में जो बड़ी चुनोती देश के सामने आई।
14:21संग ने उस कारखन के अंदर अपने आपको जोक दिया, संग उससे जुजता रहा।
14:31आजादी के लड़ाई के समय देखें, तो पनपुझे डॉक्तर हेड़ के बाद जी समय ताने कारखन ने स्वतंतरता अंदर अलन में हिस्सा लिया।
14:41डॉक्टर थाप कई बंगर जेल तक गए, आजादी की लड़ाई की कितने ही स्वतंत्रता सेनाईयों को संग सवरक्षर देता रहा, उनके साथ कंदे से गंधा मिलाकर काम करता रहा,
14:561942 में, जब चीमूर में अंग्रेजों के खिलाप अंदोलन हुआ, तो उसमें अनेग स्वेंशोकों को अंग्रेजों के भीशन अत्याचार का सामना करना पड़ा,
15:13आजादी के बाद भी, हैदराबाद में निजाम के अत्याचारों से के खिलाप संगर्थ से लेकर, गोवा के सुतंतलता अंदोलन और दादरान अगर हवेली की मुक्ति तक, संगरे कितने ही बलिदान दिये,
15:29और भाव एकी रहा, राष्ट्र प्रथम, लक्ष एकी रहा, एक भारत, स्रेश्ट भारत, साथियों, राष्ट्र साधना की इस आत्रा में, ऐसा नहीं है, कि संग पर हमले नहीं हुए,
15:56संग के खिलाब साजी से नहीं हुई, हमने देखा है, कैसे आजाती के बाद भी संग को कुछलने का प्यास हुआ,
16:08मुख्य धारा में आने देने का, और उसे न आने से रोकने का, अंगिनित शड्यंतर हुए, परम्पुजे गुर जी को जूठे केस में फसाया गया,
16:24उन्हें जेल तक भेज़ दिया गया, लेकिन जब पुजे गुरुजी जेल से बाहर आए, तो उन्होंने सहज रुप से कहा,
16:34और शायद इत्यास की तबारिक में ये भाव, ये शब्द, एक बहुत बड़ी प्रेणा है,
16:45तब पनपुजे गुरुजे ने बहुत सहता से कहा था, कभी कभी जीब दांतों के नीचे आकर दब जाती है,
16:56कुचल भी जाती है, लेकिन हम दात नहीं तोड़ देते हैं, क्योंकि दात भी हमारे हैं, और जीब भी हमारी है,
17:10आप कलपना कर सकते हैं, जीने जेल में इतनी आतनाई दी गई, जीन पर भाती भाती का त्याचार हुए, उसके बाद भी परमपुजे गुरुजी के मन में कोई रोश नहीं था, कोई दुरभावना नहीं थी, यही परमपुजे गुरुजी का रुशी तुलिप व्यक्तित
17:40के जीवन के मारदर्शक बनी, इसी ने समाज के प्रती एकात्मता और आत्मियता के समस्कारों को सजक्त गिया, और इसलिए चाहे संग पर प्रतिवंद लगे, चाहे शरियंत्र हुए, जूठे मुकदमे हुए, संग के स्वैंसों को ने कभी कटूता को स्थान नहीं दिया,
18:10क्योंकि वो जानते हैं, हम समाज से अलग नहीं है, समाज हम सबसे ही तो बना है, जो अच्छा है, वो भी हमारा है, जो कम अच्छा है, वो भी हमारा है, साथियों,
18:31और दूसरी बार, जिसने कभी कटूता को जन्म नहीं दिया, वो है प्रतेग स्वेंशों का लोग तंत्रों और समेधानिक संस्ताओं में अडिक विश्वास, जब देश पर इमर्जन्सी धोपी गई, तो इसी एक विश्वास ने हर स्वेंशों को ताकत दी, उसे संगर्श कर
19:01साथ एकात्मता और संवेधानिक संस्ताओं के प्रती आस्था ने संग के स्वेंशों को हर संकट में स्थित प्रज्य बना के रखा, समाज के प्रती संवेधन सील बनाए रखा, इसलिए समाज के अनेक थपड़े जेल्टे हुए भी, संग आज तक विराट वर्ट वरुक्�
19:31अडिक खड़ा है, देश और समाज की सेवा में निरंतर कार्य कर रहा है, अब यहां हमारे एक स्वेंशेवक ने इतनी सुंदर प्रस्तुति दी, सुन्य से एक शतक बने, सुन्य से एक शतक बने,
19:53अंक की मनभावना, भारती की जय विजय हो, ले रुदय में प्रिर्णा, कर रहे हम साधना, मात्रुभू आराधना,
20:08और उस गीत का संदेश था, हमने देश को ही देव माना है, और हमने देश को ही दीप बना करके जलने का सीखा है,
20:23वाकई, यदभूत, साधियों, प्रारंबत से संग, राष्ट भक्ति और सेवा का परियाए रहा है,
20:34जब विभाजन की पिड़ा ने, लाखों परिवारों को बेघर कर दिया, तब स्वैंस्योकों ने, सरनार्थियों की स्वेवा की,
20:47संग के स्वैंस्योक अपने सीमित संवसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े थे,
20:53यह केवल राहत नहीं था, यह राष्ट की आत्मा को संबल देने का कारिया था,
21:04चाथियों, 1956 में, 1956 में, गुजरात के कच्छ के अंजार में, बहुत बड़ा भूकम पाया था,
21:16तबाही इतनी बड़ी थी, चारों और बिनाश का द्रश्य था, उच समय भी संग के स्वैंस्योक राहत और बचाव में जूटे थे,
21:27तब परंपुज्य गुरुजे ने, गुजरात के वरिष्ट्र संग के प्रचारत था, वकिल साब को,
21:35जो समय गुजरात का कारे समालते थे, उन्हें पत्र लिखा था, उन्होंने लिखा था,
21:42किसी दूसरे के दुख को दूर करने के लिए, निश्वार्थ भाव से खुद कष्ट उठाना, एक स्रेश्ट्र रदय का परिचायक है,
21:56साथ क्यों, खुद कष्ट उठाकर दूसरों के दुख हरना, यह हर स्वैंस्योक की पहचान है,
22:03ज्याद करिए, 1962 के युद्धिका वो समय थे, संग के स्वैंस्योकों ने दिन रात खड़े रहकर, सेना की मदद भी है,
22:14उनका हस्कला बढ़ाया, सीमा पर बसे गावों में मदद पहुंचाईगी, 1971 में, लाग को शानार थी पूर्वी पाकिस्तान से भारत के दर्तिक पर आया,
22:26उनके पाद न घर ता न साधन, उस कठीन घड़ी में, स्वैंस्योकों ने उनके लिए अन्न जुटाया, आस्रे दिया, स्वात्य सेवाय को चाईए, उनके आंसुओं को पूँचा, उनकी पीड़ा को साहजा किया,
22:43साथ क्यों, एक बार, और हम जानते हैं, 1984, सीखों के खिलाब जो कटले आम चलाया गया था, अनेक शिक परिवार संगे के स्वैंसोकों के घरों में आकर के आस्रे ले रहे थे, ये स्वैंसोकों का स्वभा हो रहा है, साथ क्यों, एक बार, पूर्वर राश्पती, डॉक्ट
23:13नाजी देश्मुक जिस कारियों को कर रहे थे, उस आस्रम सान को देखा था, वहां के सिवा कारियों देखे, वह हरान रहे गये थे, उसी प्रकार चे पूर्वर राश्पती प्रमा मुखर जी पी ले, जमिनाकपुर गये, तो वो भी संग के अनुसातन, संग की साथगी, उ
23:43जगह स्वायम सेवग सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं, कोरोना काल में तो पूरी दुनिया ने संग के साहस और सेवा भाव का प्रत्यक्ष प्रमार देखा है, साथियों, अपनी सो वर्सकी इस आत्रा में, संग का एक बड़ा काम ये रहा है, उसने समाज
24:13और इसके लिए संग देश के उन छेत्रों में भी कार्य करता रहा है, जो दुर्गम है, जहां पहुंचना सब्सक्र कठीर है, हमारे देश में लगभग दस करोड आदिवासी भाई भेलें, जिनके कल्यार के लिए संग लगारतार प्रयास्रत है, लंबे समय तक सरकारों ने
24:43और परंपराओं को सर्वोच्य प्रात्फिक्ता दी, सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्याले, बनवासी कल्यार आश्रम, आदिवासी समाज के ससक्तिकरों का स्तंब बन करके उबरे, आज हमारे आदिवासी भाई बेनों में जो आत्म विश्वात आया है, उनके �
25:13मुल्यों को सहज ने समारने में अपना सयोग देता रहा है, अपना कतब भी निभा रहा है, उसकी तपस्याने भारत की सांसकृतिक पहचान, सुरक्षित रखने में बड़ी भूवी का निभाई है, मैं देश के दूर सुदूर कौने कौने में आदिवाचियों का जीवन आ
25:43सदियों से गर कर चुकी जो बिमारिया है, जो उंच नीच की भावना है, जो कुर्पसाएं हैं, छुआ ठूच जैसी गंदगी भरी पड़ी है, ये हिंदू समाज की बहुत बड़ी चुनोती रही है, एक ऐसी घंबीर चिंता है, जित पर संग लगाता काम करता रहा है, एक
26:13उन्होंने भी संग में समता, ममता, समरता, समभाव, ममभाव, ये जो कुछ भी देखा, उसकी खुलकर तारीप की थी, और आप देखिए, डॉक्टर साब से लेकर आज टक, संग की हर महान विभूती ने, हर सरसंगे चालक ने, भेज भाव और छुआ छूत के खिलाब लड
26:43भवेत की भावना को आगे बढ़ाया, यानि हर हिंदू एकी परिवार है, कोई भी हिंदू कभी पतीत या नीचा नहीं हो सकता, पुझ्य बाला साथ देवरजी के सब्द भी हम सबको यार है, वो कहते थे, छुआ छूत अगर पाप नहीं, छुआ छूत अगर पाप नहीं,
27:13पुझे चालक रहते हुए, पुझे रजुबया जी और पुझे सुदसन जी ने भी, इसी भावना को आगे बढ़ाया, वर्तमान सरसंग चालक, आधनिय मोहन भागवे जी ने भी, समरस्था के लिए समाज के सामने स्पस्ट लक्ष रखा है, और गाउं गाउं तक इस बात
27:43इसे लेकर संग देश के कोने कोने में गया है, कोई भेदभाव नहीं, कोई मनध्य नहीं, कोई मन भेद नहीं, यही समरस्था का आधार है, यही सर्व समावे सी समाज का संकल्प है, और संग इसी को निरंतर नई
28:13पहले संग अस्तित्व में आया था, तो उस समय के आवश्यक्ता है, उस समय के संगर्ष कुछ और थे, तब हमें सेंकडो वर्षों की राजनिति गुलामी से मुक्ति पानी थी, अपने सांसकुर्थिक मुल्यों की रक्षा करनी थी,
28:30लेकिन आज सो वर्ष बाद, जब भारत विफ्सित होने की तरफ बढ़ रहा है, जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकामबी बनने जा रहा है,
29:00जब देश, और देश का बहुत बड़ा गरीब वर्ग, गरीबी को पराप्स करके, गरीबी को पराजित करके आगे आ रहा है,
29:14जब हमारे विवाओं के लिए नए नए सेक्टर्स में नए अवसर बन रहे हैं, जब ग्लोबल डिप्लोमसी से क्लाइमेट पॉलिसिस तक, भारत विश्व में अपनी आवाज बुलंद कर रहा है,
29:31तब, आज के समय की चुनवतियां अलग है, संगर्ष भी अलग है, दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता,
29:45हमारी एक्ता को तोड़ने की साजिस हैं, डेमोग्राफी में बढ़लाओ के शडियंत्र, एक प्रधान मंत्री के नाते, मैं नम्रता पुर्वक कहूंगा,
30:02कि मुझे बहुत संतोष हैं, कि हमारी सरकार इन चुनोतियों से तेजी से निपट रही है,
30:15वहीं एक स्वाहिमसिवक के नाते, मुझे ये भी खुशी है, कि राष्ट्री ये स्वाहिमसिवक संग ने ना केवल इन चुनोतियों को पहचान की है,
30:31बलकि इन चुनोतियों से निपटने के लिए ठोस रोड मैप भी बनाया है,
30:36अभी मानिय दत्ताजी ने जिन चीजों का उलेक किया, मैं अपने तरीके से फिर से एक बार उसका उलेक करना चाहूँगा,
30:47साथियों संगे के पंच परिवर्थन, स्वबोद, सामाजिक समरस्ता, कुटुम प्रबोधन, नागरिक सिष्टाचार और परियावरण,
31:02ये संकल्प, हर स्वयम्शब के लिए, देश के समक्ष उपस्तित चुनोतियों को पराज करने की बहुत बड़ी प्रेड़ा है,
31:13साथ क्यों, स्वबोध यानि, स्वयम का बोध, स्वबोध यानि, गुलामी की मानसित्ता से मुक्त होकर, अपनी विरासत पर गर्व करना,
31:32हमें स्वदेशी, आत्म निर्वर होना, और मेरे देश वाच्व ये बात समझ के चलिए, आत्म निर्वर ये विकल्प के तौर पर नहीं है, या निवार यता के रूप में है,
31:50हमें स्वदेशी के अपने मूल मत्र को समाथ का संकल्प बनाना है,
32:01हमें भोकल्फर लोकल के अभ्यान को उतिस अभलता के लिए,
32:09भोकल्फर लोकल ये हमारा निरंतर, एक नई उर्जा प्रदान करने वाला गोश्वाक के होना चाहिए,
32:16प्रयास होना चाहिए
32:18साथियों संग ने
32:20सामाजिक समर्था को
32:22हमेशे अपनी प्रात्भीकता बढाए रखा है
32:25सामाजिक समर्था
32:27यानि
32:27बन्चित को वरियता देकर
32:31सामाजिक न्याई की
32:32स्थापना करना
32:33देश की एक्ता को बढ़ाना
32:36आज जास के
32:38सामने ऐसे संकट खड़े हो रहे हैं जो हमारी एकता हमारी संस्कृति और हमारी सुरच्छा पर सिधा प्रहार कर रहे हैं
32:45अलगावारी सोच छेत्रवात कभी जाती कभी भाषा को लेकर विवात कभी बाहरी शक्तियों द्वारा भढ़का ही गई विवाजन करी प्रवुतियां ये सब अंगिनित चुनोतियां हमारे सामने खड़ी है
33:03भारत की आत्मा हमेशा विवीदता में एक ताही रही है अगर इस सुत्र को तोड़ा गया तो भारत की शक्ति भी कमजोर होगी और इसलिए हमें इस सुत्र को निरंतर जीना है उसे मजबुति देनी है
33:21साथ क्यों सामा जीक समरस्ता को आज डेमोग्राफी में बढ़लाव के शडियंत्र से गुस्पेटियों से भी बड़ी चुनोति मिल रही है
33:32यह हमारी आंत्री सुरक्षा और भविश की शांती से भी जुड़ा हुआ प्रश्चना है और इसलिए मैंने लाल के लिए से डेमोग्राफी मिशन की गोश्चना की है
33:45हमें इस चुनोति से सतर्क रहना है इसका डटकर मुकाबला करना है साथियों कुटुम्ब प्रभोधन आज समय की माग है
34:01जो समाज सास्त्र के सदियों से चलियाई पंडितों की भाषा है उनका कहना है
34:08हजारों साल तक भारत के जीवन में जो प्राण शक्ती रही है उसके अंदर एक कारण उसकी परिवार संस्ता है
34:17भारतिय समाज वबस्ता की सबसे मजबुत इकाईकर कोई है तो भारतिय समाज में पनिपी हुई एक मजबुत परिवार वबस्ता है
34:28कुटुम प्रमोधन यानी उस परिवार संसकृति का पोष्ण जो भारतिय सभ्यतकाधार है जो भारतिय संस्कृति से प्रेलित है जो जड़ों से जुड़े हैं
34:42परिवार के मुल्य, बुजुर्गों का सम्मान, नारी शक्ति का आदर, नव जवानों में संस्कार, अपने परिवार के प्रति दाइत्वों को निभाना, उसे समझना, उद्धिशा में परिवार को समाज को जाकुरूप करना बहुत ही आवश्यक है,
35:00साथियों, अलग अलग कार्खन में जो भी देश आगे बढ़ा, उसमें नागरिक सिस्टाचार की बहुत बड़ी भूमी का रही है, नागरिक सिस्टाचार अरफार्त, कर्तव्य की भावना, नागरिक कर्तव्य का बहुत हर देश बाची में होगा,
35:19स्वच्चता को बढ़ावा, देश की संपत्य का सम्मान, नियमों और कानूरों का सम्मान, हमें इसे लिएकर आगे बढ़ना है, हमारे सम्विधान की भावना है, नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करे, हमें सम्विधान की इसी भावना को निरंतर ससक्त करना है,
35:37साथियों परियावरण की रक्षा वर्तमान और आने वाले पीडियों के लिए बहुत जरूरी है
35:44ये पुरी मानवता के भविस्थे जुड़ा है
35:47हमें एकोनमी के साथ ही एकोलोजी की भी चिंता कर दी है
35:53जल सवरक्षन, green energy, clean energy ये सारे भ्यान इसी दिशा में है
35:59साथियों संग के ये पंच परिवर्तन ये वो साधन है जो देश का सामर्थ बढ़ाएंगे
36:08जो देश को विविन चुनोतियों से निपटने में मदद करेंगे
36:12जो 2047, 2047 तक विख्सीद भारत के निर्मान का आधार होंगे
36:21साथियों, 2047 का भारत, तत्वज्ञान और विज्ञान, सेवा और समरता से गढ़ा हुआ वैववसाली भारत हो
36:41यही संग की दर्ष्टी है, यही हम सब स्वेंचों के साधना हो, और यही हमारा संग कल्प है
36:51चाथियों, हमें हमेशा हमेशा याद रखना है, संग बना है, राष्ट के प्रती अटूत आस्था से
37:04संग चला है, राष्ट के प्रती अगहाद सेवा के भाव से, संग तपा है, त्याग और तपश्या की अगनी में,
37:16संग निखरा है, संवस्कार और साधना के संगम से, संग खड़ा है, राष्ट धर्म को जीवन का परमधर्म मान करके, संग जुड़ा है, भारत माता की सेवा के विराठ सप्न से,
37:32साथियों, संग का आदर्ष है, संस्कृती की जड़े गहरी और ससक्त हो, संग का प्रयास है, समाज में आत्म विश्वास और आत्म गवरव हो, संग का लक्ष है, हर रुदय में जन सेवा की जोती प्रजवलित हो,
37:53संग का द्रस्टि कोण है, भारतिय समाज, सामाज एक न्याय का प्रती की बने, संग का देः है, विश्व मंच पर भारत की वानी और प्रभावी बने, संग का संकल्प है, भारत का भविश, सुरक्षित और उद्वल बने,
38:12मैं एक बार फिर आप सभी को इस आइतिहाचिक अवसर की बदाई देता हूँ
38:18कल विज्या दस्वी का पावन परवह है
38:20हम सब के जीवन पे विज्या दस्वी का एक विशेश महत्वा है
38:24मैं उसके लिए भी आप सब को शुब कामना ही देते हुए
38:29मेरी वानी को विराम देता हूँ
38:32बहुत बहुत धन्यवार
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