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  • 2 days ago
Transcript
00:00एक पुरानी गली में एक छोटा सा बुक स्टोर था, रोज वहां बच्चे बस्ते लटकाए, कॉपियां और पैंसिले खरीदने आते, दुकानदार उन सबको खुशक लाकी से देखता, मगर एक दिन उसकी निगाहा एक नन्ही सी बच्ची पर जा रुकी, उम्र बमुश्किल
00:30दुकानदार ने मुस्कुरा कर चीजे पैक की, बच्ची ने सिक्के हथेली पर फैलाए, बड़े एहतियात से गिने और दुकानदार को थमा दिये, चीजे लेने के बाद वो कुछ देर खामोश खड़ी रही, जैसे दिल में कोई बात छुपी हो, आखिरकार हिम्मत करके ध
01:00टीचर ड्रॉइंग की क्लास में ना लाने पर बहुत डांटती है, बलकि मारती भी है, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं, अगर अब चाहें तो मैं थोड़े-थोड़े पैसे देती रहूंगी।
01:30ना मांगना, सब लोग ऐसे नहीं होते जैसे मैं हूँ, दुनिया में अच्छे भी हैं और बुरे भी, अपने दिल के भरोसे सब पर एतिमाद मत करना।
02:00भी हो सकता था, वो देर तक गुमसुम बैठा रहा, फिर दिल में सोचा कि असातिजा को चाहिए कि वो गुर्बत को सजा ना बनाएं।
02:09अगर कोई बच्चा कॉपी या पैंसिल ना ला सके, तो उसे मारने के बजाए समझें, सहारा दें।
02:15चंद सौ रुपएं खर्च कर देना बड़ी बात नहीं, मगर इससे एक बच्ची की दुनिया बदल सकती है।
02:21इस दिन के बाद दुकानदार ने अपने काउंटर के एक कोने में एक डबबा रख दिया।
02:26लिखा था बच्चों के लिए। जो भी गाहक आता वो उसमें कुछ न कुछ डाल देता।
02:32और उसके जरीए कई गरीब बच्चों के बस्ते, कौपियां और रंग भरते गए।
02:37क्यूंकि हकीकत ये है कि कभी कभी एक छोटी सी मदद किसी के खाबों में रंग भर देती है।
02:44और एक पूरे मौशरे को रोशनी दे जाती है।
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