जैसलमेर की परंपराएं सिर्फ देखी ही नहीं जाती महसूस भी की जाती हैं। ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब पर मंगलवार शाम कजली तीज के अवसर पर सजी-धजी महिलाएं और युवतिजैसलमेर की परंपराएं सिर्फ देखी नहीं, महसूस भी की जाती हैं। यां पारंपरिक वेशभूषा में पूजा-अर्चना करती नजर आईं। घाघरा-ओढ़णी की रंगीन छटा और आरती की लौ से झिलमिलाता वातावरण जैसे मरु-धरा की जीवंत संस्कृति का आईना बन गया। सरोवरके समीप कतार और श्रद्धा से झुके माथे देख तालाब का हर कोना आस्था में डूबा लगा। इस अनूठे दृश्य ने वहां मौजूद देशी-विदेशी पर्यटकों को भी मोहित कर लिया, जो न केवल कैमरे में इन पलों को कैद कर रहे थे, बल्कि कजली तीज की कथा और महत्व को जानने के लिए उत्सुकता से स्थानीय लोगों से बातें भी कर रहे थे। लोकगीतों की मधुर गूंज, झूलों पर झूमती महिलाएं और चारों ओर फैली उल्लास-भरी हलचल ने शाम को और भी अनुपम बना दिया।
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