प्रश्न : तत्त्वज्ञान मस्तिष्क में घुसा रहे यह कैसे हो?
उत्तर - हाँ, बार-बार चिन्तन से पक्का करना चाहिये। सब रोगों की एक दवा है, बस बार-बार चिन्तन जो तत्त्वज्ञान शास्त्र वेद का गुरु से मिले उसका बार-बार चिन्तन हो। जितनी बार चिन्तन करोगे वो पक्का होगा और हर समय हमारी प्रैक्टीकल लाइफ में काम देगा। जैसे संसारी प्यार और संसारी दुश्मनी बार-बार चिन्तन करने से बढ़ती है ऐसे ही भगवद् विषय भी है। भगवान् ने बड़े सुन्दर ढंग से एक बात कही है भागवत में कि
भई दो चीजें हैं- एक माया के एरिया की और एक भगवान् के एरिया की। जिस एरिया के विषय को बार-बार सोचोगे उसी में अटैचमेन्ट हो जायगा। संसार में सुख है ये बहुत सोचा, अनादिकाल से ये सोचते आ रहे हैं इसलिये उसमें गहरा अटैचमेन्ट हो गया है। अब इधर भी सोचना है। तो फिर जब जड़ वस्तु पकड़ लेती है मनुष्य को, ये सिगरेट है, शराब है, चाय है, कुछ दिन सेवन करने से फिर वो कहती है हमको सेवन करो, परेशान करती है; तो भगवान् तो आनन्दसिन्धु हैं अगर कुछ दिन उनके पीछे लग जाओ तो फिर वो पीछे लग जाते हैं, छोड़ते नहीं हैं। सूरदास कहते हैं-
Be the first to comment