00:00महाराना प्रताप को राजपूत वीरता, शिष्टता और द्रिधता की एक मिशाल माना जाता है.
00:06वह मुगलों के खिलाफ युध लडने वाले अकेले योध्धा थे.
00:09उन्होंने स्वयम के लाब के लिए भी कभी किसी के आगे हार नहीं मानी थी.
00:13वह अपने लोगों से बहुत प्यार करते थे और उनके साथ आजाधी की लडाई में भी शामिल हुए थे.
00:19वह अकबर के साथ हुए हल्दी घाटी के युध में हार गये थे.
00:23परन्तु कभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया और जीवन के अंत तक संघर्ष करते रहे.
00:29वीर्ता और आजाधी के लिए प्यार तो राणा के खुण में समाया था क्योंकि वह राणा सांगा के पोते और उदै सिंघ के पुत्र थे.
00:37एक ऐसा समय आया जब कई राज्जियों के राजबूतों ने अकबर के साथ मितरता कर ली थी.
00:43परन्तु मेवाड राज्य स्वतंतर ही बना रहा, जिससे अकबर बहुत अधिक क्रोधित हो गया था. उन्होंने राजस्थान के मेवाड राज्य पर हमला किया और चितोड के किले पर कभजा कर लिया और उदै सिंघ पहाडियों पर भाग गये. लेकिन उन्होंने अपने र
01:13पूंजी, धन का आभाव था और पडोसी राज्य भी अकबर के साथ मिल गये थे. अकबर ने प्रताप को अपने घर रात्री भोज पर आमंत्रित करने के लिए मान सिंघ को उनके पास अपना दूद बना कर भेजा, जिसका मुख्य उद्देश उनके साथ बातचीत करके शा
01:43तथा जल्द ही 1576 में हल्दी घाटी का युद्ध शुरू हो गया. प्रताप की सेना के मुकाबले मान सिंह के नेतरित्व वाली अकबर की सेना के पास अपार बल था. फिर भी प्रताप ने अपने विरोधियों का बड़ी वीर्टा के साथ मुकाबला किया. प्रताप की मद�
02:13प्रताप के लोगोंने उन्हें युद्ध के मैदान से हट जाने की सलाह दी.
02:17मुगल सेना के प्रकोप से बचने के लिए महान पुरूष जला सिंह ने प्रताप सिंह की युद्ध से भाग निकलने में काफी मदद की थी.
02:25गंभीर रूप से घायल प्रताप को कोई मार पाता, उससे पहले ही वह अपनी सुरक्षा के लिए अपने वफादार घोड़े चेतक पर सवार होकर भाग गए.
02:35प्रताप को अपने भगोड़े जीवन में बहुत कठिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा, किन्तु वह स्वतंतरता के लिए संघर्ष करते रहे. भामा शाह जैसे भरोसे मंद पुरूषों की मदद से उन्होंने दोबारा युद्ध लड़ा और प्रतेश के अधिकांश हि