Shodh Kya Nahi Hai? शोध क्‍या नहीं है?

  • 4 years ago
Research Methodology in Hindi Lecture-1
Hindi me Shodh Pravidhi
Shodh ki Avdharna
शोध की अवधारणा

किसी भी विषय पर बात करने, उसके विविध आयामों को समझने से पहले स्‍वयं उसकी अवधारणा को समझना जरूरी होता है। मसलन, हम भूमंडलीकरण के भारतीय समाज पर पड़े प्रभावों को जानना चाहते हैं तो पहले हमें भूमंडलीकरण की अवधारणा को जानना होगा। इसी प्रकार शोध और इसके विविध आयामों को समझने से पहले हमें स्‍वयं शोध की अवधारणा को समझना होगा। शोध प्रविधि पढने और शोध की प्रक्रिया में प्रवेश के वक्त‍ उठने वाला पहला सवाल यही है- शोध क्‍या है?

हिंदी में शोध अंग्रेजी शब्‍द 'रिसर्च' के अनुवाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। शोध के लिए खोज, अनुसंधान, अन्‍वेषण, गवेषणा आदि शब्‍द भी प्रयुक्‍त किये जाते हैं। शोध क्‍या है, जानने से पहले यह जान लेना चाहिए कि शोध क्‍या नहीं है!

शोध क्‍या नहीं है!

घंटों इंटरनेट पर बैठे रहना- कई विद्यार्थी रोज घंटों इंटरनेट पर बैठे रहते हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि क्‍या कर रहे हैं तो जवाब आता है, हम रिसर्च कर रहे हैं, या रिसर्च के लिए काम कर रहे हैं। इनमें से ज्‍यादातर लोग रिसर्च नहीं कर रहे होते। इंटरनेट पर अव्‍यवस्थित ढंग से न्‍यूज, सोशल साइट्स, गीत-संगीत, गेम आदि से संबंधित सामग्री एक्‍सेस करना शोध नहीं है। लगभग हर पढा-लिखा खाली व्‍यक्ति ऐसा करता है। चूंकि इसमें एक योजना, व्‍यवस्थित अध्‍ययन, तुलना, विश्‍लेषण और नोटिंग नहीं होती, इसलिए इसे शोध नहीं कहा जा सकता।

किताबें जमा करना- कई विद्यार्थी महीनों तक किताबें जमा करते रहते हैं। आपने देखा होगा कि किसी थीम विशेष पर आपकी लाइब्रेरी में कोई भी किताब उपलब्‍ध नहीं है। जब आप काउंटर पर पूछते हैं कि सारी किताबें कहां गईं तो पता चलता है कि इनमें से अधिकांश एक ही व्‍यक्ति ने इश्‍यू करवाई हुई हैं। लाइब्रेरी में ऐसे विद्यार्थी भी मिल जाएंगे जो एक ही विषय पर एक साथ बीस-पच्‍चीस किताबों की फोटो कॉपी करा लेते हैं। आजकल लोग अमेजॉन, फ्लिपकार्ट आदि से एक थीम पर ढेरों किताब खरीद लेते हैं। अपने शोध क्षेत्र पर किताबें एकत्रित करना तब तक शोध नहीं कहा जा सकता जब तक जब तक इसमें एक व्‍यवस्‍था और समीक्षा की प्रवृत्ति न हो।

पत्र-पत्रिकाएँ व किताबें पढ़ना- पत्र-पत्रिकाऍं और किताबें पढ़ना मात्र भी शोध नहीं है। यूरोप में मेट्रो आदि सार्वजनिक स्‍थानों पर बहुत सारे लोग किताबें पढ़ते हुए मिल जाएंगे। लोग अपने घरों में भी पढते हैं। भारत में ज्‍यादातर लोग नौकरी के लिए पढ़ते हैं और कुछ लोग नौकरी के बाद भी पढ़ते हैं। यह सब कुछ शोध नहीं है। शोध के लिए पढ़ना सामान्‍य पढ़ने से अलग है।

पहले से ज्ञात सूचनाओं को पुन: प्रस्‍तुत करना- किसी डिग्री विशेष के लिए खानापूर्ति करते हुए पहले से ज्ञात सूचनाओं को पुन: प्रस्‍तुत कर देना भी शोध नहीं है। भारत में ऐसी थीसिसें आसानी से मिल जाएंगी जिनमें पहले से ज्ञात सूचनाओं का दोहराव मात्र होता है। शोधार्थी कई किताबों में उपलब्‍ध सामग्री को जोड़-तोड़कर एक जगह प्रस्‍तुत कर देते हैं और शोध का दावा किया जाता है।

नकल करना- जाहिर है, पहले से उपलब्‍ध शोध सामग्री की नकल कर लिखना भी शोध नहीं है। संदर्भ के निर्धारित नियमों का उल्‍लंघन करते हुए दूसरों द्वारा प्रस्‍तुत सामग्री को अपने नाम से लिखना और प्रकाशित करना शोध तो नहीं ही है, गैर-कानूनी भी है।

पूर्वाग्रहपूर्ण लेखन- अपने पूर्वाग्रहों को वैधता प्रदान करने के लिए लिखना भी शोध नहीं है। अक्‍सर हम देखते हैं कि व्‍यक्ति के परिवार और परिवेश से उसके अंदर बहुत सारे

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