‘परिवर्तन’ के संस्थापक जनाब ‘अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी’ आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं, इनका मानना है कि ‘अफ़सोस’ ही शाश्वत है जो जीवन भर साथ निभाता है, अपनी चार लाइनों में इन्होंने कहा भी है कि - ‘अफ़सोस बयाॅं करने का सीखें तो सलीका । यूॅं झेल सकेंगे न कभी दर्द किसी का । अफ़सोस के आगोश में ही जी रहे हैं लोग, खुशियों ने कहाॅं साथ निभाया है किसी का ।’ हिन्दी-उर्दू की साहित्य-सेवी संस्था परिवर्तन को न केवल Subscribe और Share करें बल्कि इसे Comments करके हमें उपकृत भी करें ।