ज्वालामुखी का नाम है Heyli Gubbi। यह Ethiopia के अफ़ार क्षेत्र में है जो दुनिया के सबसे भूगर्भीय रूप से सक्रिय इलाकों में गिना जाता है। यह जगह अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में रेड सी (लाल सागर) तटरेखा से कुछ ही दूरी पर और एक ऐसी जगह पर, जहाँ धरती की पपड़ी लगातार टूट रही है जिसे 'Great Rift Valley' कहा जाता है। यह वही इलाका है जहाँ पृथ्वी की तीन टेक्टोनिक प्लेटें एक दूसरे से अलग हो रही हैं। और जब प्लेटें खिंचती हैं—तब ज्वालामुखी शांत नहीं रहते। हेयली गुब्बी का यह विस्फोट बेहद दुर्लभ था। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह लगभग 12,000 सालों में पहली बार फटा। यानी जब मिस्र में पिरामिड भी नहीं बने थे, जब भारत में हड़प्पा सभ्यता नहीं उभरी थी, जब मानव सभ्यता शुरुआत में थी, तब यह ज्वालामुखी आखिरी बार सक्रिय हुआ था। इतिहास की पुस्तकों में इसका कोई दर्ज रिकॉर्ड नहीं मिलता। कोई दस्तावेज़, कोई पुरातत्व खोज—कुछ भी नहीं। यह पूरी तरह "Dormant Volcano", यानी मरा हुआ ज्वालामुखी माना जाता था। लेकिन इस रविवार…धरती के अंदर दबी आग फिर जाग गई।
00:00ये धर्ती का गुसा था इतना प्रचंड इतना उचा कि उसने देशों की सिमाएं लांग दी।
00:04एथोपिया में हजारों साल बाद फूटा एक जौला मुखी और उसकी जहर मिली राख हजारों किलोमीटर का सफर तैकरती हुई भारत के आस्मान तक महुच गए।
00:13और फिर चीन की ओर बढ़ चली। सोचिये हवा में तैरती वो महीन राख जहरीली कैसे और 40 किलोमीटर के उचाई पर बना मौत का साया।
00:21इस राख ने विमान रूट बदले वेग्यानकों को सतर्क किया और पूरी दुनिया का ध्यान खीच लिया।
00:26आज हम आपको दिखाएंगे वो पूरा सफर, वो विस्पोर्ट, वो राख, वो खत्रा जो इंसानी आख को दिखाई नहीं देता लेकिन पूरी एवियेशन इंडरस्टी को ठप कर सकता है, पलूशन बढ़ा सकता है।
00:37नमस्कार, मैं हूँ आसे फिक्बाल और आप देख रहे हैं वनेटिया।
01:07टेक्टॉनिक प्लेटें एक दूसरे से अलग हो रही हैं और जब प्लेटें खिछती हैं तब जौला मुखी शान्त नहीं रहती।
01:14थेली गुब्बी का ये विस्पोर्ट बेहत दुरलब था, रग्यानकों के मताबिक ये लगभग 12,000 सालों में पहली बार भटा।
01:21यानि जब मिस्र में प्राइमिट भी नहीं बने थे, जब भारत में हडपा सबिता उभरी भी नहीं थी, जब मानो सबिता शुरुआत में थी, तब ये जौला मुखी आखरी बार सक्री हुआ था।
01:30इतिहास के पुस्तोकों में इसका कोई दर्ज रिकॉर्ड नहीं मिलता, कोई दस्ता वेस्ट, कोई पुरातत तो खोज, कुछ भी नहीं, ये पूरी तरह डॉर्मेंट वैलकैनो यानि की मरा हुआ जौला मुखी माना जाता था, लेकिन इस रवीवार धर्ती के अंदर दभी
02:00कहा जाता है, इस से धर्ती के भीतर मैगमा गैसों से भर जाता है, गैसें दबाव बनाती है, अचानक वो दबाव बाहर निकलता है और राख का बादल उपर की योर छूटता है, यानि ये एक तरह का विस्पोर्ट तक धुआ बम था, इस विस्पोर्ट ने चट्टानों के
02:30गर्म हवा हलकी हवा होती है और तेजी से उपर उठती है, इसी उठती हवा ने राख और गैसों को भी साथ उठा लिया, इसके बाहरी कर्ण तुरंत आसपास गर गए, महीन कर्ण वायू मंडल की उपरी परत तक पहुँच गए, यही वही परत है जहां से विमान उडते है
03:00इसकी उचाई 10 से 14 किलो मीटर थी, यानि वही उचाई जहां बोईंग और एयर बस जैसी अंतरराश्टी उड़ाने उरती हैं, इसी वज़े से सबसे बड़ा खत्रा विमानों को था, एवियेशन विभाग ने दिखाया है कि जो अला मुकी राख के बादल विमान के लिए क
03:30उपर राख के बादल में घुज गया था, इसके बाद चारों इंजन बंद हो गये थे, हलाकि विमान दुर घटना गरस्त होने से बाल बाल बच गया था, यही वज़े है कि दुनिया भर में वाल्कैनो एश एडवाईजरी सेंटर्स यानि की वी ए ए एसी उपगरेट ट्र
04:00गयसे, यह गयसे सांस से अंदर जाएं तो खतरनाक हो सकती है, लेकिन यह बादल बहुत हुचाई पर था, इसलिए धरती पर आम लोगों के लिए कोई खतरा नहीं था, पर विमानों के लिए यह अभी भी घातक था, काला कि जौला मुकी की राख का सफर लंबा नहीं होता ह
04:30राख का बादल भारत के उपर से घुजरा और अब चीन की ओर बढ़ रहा है, इस घटना ने एक बार फिर याद दिलाया कि पृत्वी का हर आंदूलन, हर सांस, हर विस्वोट हमारी दुनिया को पलग छपकते बदल सकता है, टेकनलोजी कितनी भी आगे बढ़ जाए, कु�
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