झारखंड की सोहराई चित्रकला...इसको आज भी जिंदा रखे हुए हैं हजारीबाग की सुगिया देवी. इस कला की जड़े हज़ारों साल पुरानी हैं. इस कला की उत्पत्ति लगभग 7000 ईसा पूर्व के गुफा चित्रों से जुड़ी है. ये चित्रकारी झारखंड के आदिवासी समुदायों, कुर्मी, संथाल, मुंडा और उरांव जनजातियों की महिलाओं द्वारा पीढ़ियों से की जा रहा है.सोहराई केवल एक कला नहीं, बल्कि जीवन के उत्सव की अभिव्यक्ति है. फसल कटाई के बाद, जब धरती हरी-भरी हो जाती है, तो महिलाएँ अपने घरों की दीवारों को मिट्टी, गोबर और खनिज रंगों से सजाकर देवी-देवताओं और जानवरों के चित्र बनाती हैं...और जीवन के विभिन्न रंगों को उकेरती हैं.राजधानी रांची में स्थापना दिवस की तैयारी चल रही है. शहर को सजाया-संवारा जा रहा है. जिसक लिए सुगिया देवी और उनकी टीम सोहराई पेंटिंग बना रही हैं. 2020 में सोहराई-खोवर चित्रकला को जीआई टैग मिला चुका है.
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