Skip to playerSkip to main content
  • 14 minutes ago
चुनाव लड़कर पछताए Khesari Lal Yadav? बोले...

Category

🗞
News
Transcript
00:00एक वक्त था जब शुक्रवार का मतलब होता था नई फिल्म, थियेटर के भीड, टिकेट के लाइने और पॉपकॉन के खुशबू
00:06लेकिन आज वो जोश कम होता जा रहा है
00:09आज लोग कहते हैं रुको कुछ हफतों में फिल्म OTT पर ही आ जाएगी
00:12इस साल कुछ ही हिंदी फिल्में ऐसी रही जो दर्शकों को थियेटर तक खीच पाई
00:17कांतारा चैप्टर वान, मिशन इंपॉसिबल और जरासिक वर्ड जैसी फिल्में देश भर में आउसपुल रही
00:23जबकि हिंदी सिनेमा में छावा ये साही आराने थोड़ी रहत दी
00:26वहीं जॉली एलेल विद्फ्री हाउसफुल फाइब, थामा और एक दिवाने के दिवानियत जैसी फिल्में चली तो सही
00:31लेकिन हिट नहीं कह सकते क्योंकि इनकी कमाई दर्शकों के दिवाने की से नहीं बलकि स्मार्ट बजेटिंग से हुई
00:38ट्रेड आनलिस्ट रमेश बाला के मताबिक अब थेटर जाना एक लग्शुरी एक्सपीरिंस बन गया है
00:43एक फैमिली को फिल्म देखने में 2-5 जार उपए तक खर्च होता है
00:47ऐसे में दर्शक वही फिल्म चुनते हैं जो बलॉकबस्टर एक्सपीरिंस दे सके
00:52बाकी फिल्मों के लिए OTT का इंतजार जादा असान और किफायती लगता है
00:57सोशल मीडिया और रियल्स ने लोगों का ध्यान बाट लिया है
00:59तीन घंटे की फिल्म वीकेंड लक्शुरी बन चुकी है
01:02और सिनमा फिर से वही जादू ढून रहा है जो सिफ थीएटर में महसूस होता है
Be the first to comment
Add your comment

Recommended