00:00दोस्तों क्या आपने कभी सुचा है कि असली आजादी क्या होती है, क्या वो जो हमें समाज देता है, या वो जो हमें हमारे भीतर से मिलती, ज्यादा तर लोग जिंदगी भर बाहरी आजादी के पीछे भागते रते, लेकिन सची स्वतंता तो भीतर से सुरू होती है, वही स्
00:30पच्चाओं का डर है, समाज की राय का भाय है, तो वो भीतर से कैदी है, या बंधन इतने गहरे होते हैं कि इंसान नीद में भी मुक्त नहीं हो पाता है, सची कला, सचा अभिनय, सच्चा लिखन या कोई भी रशनात्नक कार है, तभी जीवन तो होता है जब उसके भीतर करने
01:00प्रिखी राता है, क्योंकि वह उस अवस्था को सच्चाई मान चुका होता है, यहां फर्क यही है, एक व्यक्ति जानता है कि वह सतनता है, और दूसरा अपने बंधन को ही जीवन का सत्य मान लेता है, दुख परिस्थिती से नहीं आता, बलकि बधे होने की चेतना से आता ह
01:30सी सन्यासी के लिए नहीं बलकि हर उस इंसान के लिए है जो अपने सची स्वरूप से परचित होना चाहता है जब हम भीतर से आजाद हो जाते हैं तभी हम हर भूमिका को सहजता से निभा सकते हैं चाहे हम से छप हो या छात्र राजा हो या विखारी क्योंकि तब हम भूमिका
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