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  • 1 day ago

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00:00बाहर के श्रम को विज्ञान ने खटा दिया, जो अंदर का श्रम है तो अंदर का श्रम ये विचारी तो हुआ, शुक्तर में
00:07ये इतना चोटा सा हमारा ये ब्रेन है, ये जितनी शरीर की उर्जा खाता है, उसका अनुपात लगातार बढ़ता ही जा रहा है
00:15आपको पता है हमारे खोपड़े का आकार भी बढ़ता जा रहा है, ये जिस मासपेशी का, जिस जगे का जादा इस्तिमाल करो नो बढ़ी हो जाती है
00:22तो जो आने वाला इंसान हो कैसा दिखाई देगा, उसकी जो आप तस्वीर पाएंगे वो योगी इतना बड़ा उसका खोपड़ा, बाकी शरीर उसका सूखा हुआ खोपड़ा इतना बड़ा
00:30विचार में अपने आप में कोई पुराई नहीं है, आत्म विचार करिये, अहंकार क्या कर रहां इसका विचार किया जाए, विचार अक्सर किया जाता है, पस इस द्रिष्ट से कि हम को बचाना है
00:46बाहर के श्रम को विज्ञान ने अटा दिया, मलब हमको आराम दे दिया, मास पेश में हम आराम हो गया, जो अंदर का श्रम है तो अंदर का श्रम ये विचारी तो हुआ, शुक्षू कर्म है, उन्हों ने, उसी ने ही मन को पूरा घेर रखेंगे, बाहर स्थूल कर्म भीतर?
01:16आपको पता है, हमारे खोपड़े का आकार भी बढ़ता जा रहा है, क्योंकि जिस मास पेशी का, जिस जगे का जादा इस्तिमाल करो नो बढ़ी हो जाती है, आज का जो आदमी है, हमारे ये सब जो हैं, ये कम होते जा रहे हैं, ये बढ़ता जा रहा है, आप इस पर थोड�
01:46तो उसकी जो आप तस्वीर पाएंगे वो योगी इतना बड़ा उसका खोपड़ा
01:53अब बाकी शरीर उसका सूखा हुआ खोपड़ा इतना बड़ा
01:57क्योंकि सारी मेहनत बस यहीं से हो रही है
02:03वो कौन सा था हमारा वो जो वो
02:07जो स्पिनाच खाता था तो उसके मास पेशी निकाए उसका बीज़ी जो दिखाते थे
02:16कि उसका एक हाथ जो है वो ऐसे इतना हो गया तो वो ही है
02:22हारा वी बस यह
02:28एक और इसमें आपको बताता हूँ यह इतना ऐसा छोटा सा हमारा
02:35यह ब्रेन है
02:36यह
02:40जितनी शरीर की उर्जा खाता है उसका अनुपात लगातार बढ़ता ही जा रहा है
02:46आप कोई
02:51पता होगा नहीं पता होगा तो आप अनुमान लगाईए
02:54कि इतना छोटा सा ब्रेन होता है बहुत छोटा सा
02:58यह ही है
02:59यह पूरे शरीर की उर्जा का कितना प्रतिशत खाने लग गया है अब आज के इंसान में
03:0625 से 30 प्रतिशत
03:10और आज से 20,000 साल पहले यह कम था
03:15उससे 20,000 साल पहले और भी कम था
03:18आप जितना खाना खाते हो
03:20उसका समझी है कि एक चौथाई कभी-कभी एक तहाई
03:24सिर्फ इसको चलाने में जा रहा है
03:26यह इतनी मेहनत करता है
03:27और मेहनत इसकी सारी क्या है
03:29संकल्प विकल्प
03:30आने वले समय में
03:35संभव है कि आप जो खाना खाएं
03:37उसमें से तीन चौताई भस ये खा जाए
03:38इसमें अचार जी जो
03:43क्रिश्मूरती साहँ को मैं पढ़ रहा हूँ
03:45साथिसा तो उसमें जो बात
03:47है जो वो मन्ट शान्थ होगा सांती से निर्वर करता है कि आशय क्या
04:05है व्यावहारिक जीवन में जब तक शरीर है तब तक विचार तो कर नहीं पड़ेगा पर जैसा हमने कहा
04:13कि वो जो विचार है उन विश्यों पर होना चाहिए
04:15जो विचार के अंतरगत आते हैं
04:19जो चीज विचार से कभी जानी नहीं जा सकती
04:21विचार अगर उसमें लगा हुआ है
04:23तो पहली बात तो विचार सिर्फ ठकता रहेगा
04:27दूसरी बात विचार की चक्की लगातार चलती रहेगी
04:30तीसरी बात हाथ कुछ नहीं आएगा
04:33तो विचार में अपने आप में कोई बुराई नहीं है
04:37आत्म विचार करिये ना
04:40अहंकार क्या कर रहा इसका विचार किया जाए
04:42सामने जीवन में तत्थ्य क्या है उनका विचार किया जाए
04:46पर विचार अकसर किया जाता है पस इस दिरिष्ट से कि हम को बचाना है
04:56ऐसी चीज़ को बचाना है जो बचाई
04:58क्योंकि वह सच मुझ ही नहीं तो बचाएगा
05:01तो वहां विचार सिर्फ ठकता है
05:05आपने विचार को एक ऐसा काम दे दिया है
05:08जो विचार की हैसियत के बाहर का है
05:11आपने विचार को हम सब ने
05:13हम सब ने विचार को एक ही काम सौप रखा है
05:16क्या किसी भी तरीके से एहंकार को बचा के रखो
05:21ठीक है और जब किसी तरीके से
05:23वो विचारा इस काम से छूटता है हंकार को बचाने के
05:27तो हम उसे अगला गाम थमाते हैं
05:29हम कहते हैं जाओ सत्य ले गया हो
05:31जाओ मुक्ति खोज लाओ
05:33अब वो सत्य कहां से लाए
05:36सत्य को विचार की पकड़ में आने आली चीज है
05:39मुक्ति विचार की तो वहां भी असफल रहेगा
05:42असफल रहेगा वो स्प्रेत्न करता रहेगा
05:45दूसरा अंकार को बचाओ
05:49अंकार को कुछ भी कर ले विचार बचा नहीं सकता
05:52विचार माने सारी जोड तोड जुगाड युक्ति उपाय विधी
05:59जो कुछ भी विचार कर ले अंकार बचने से रा
06:04तो विचार बस ठक जाता है
06:07और दिन भर चलता है
06:08विचार हमारा ऐसा है जैसे
06:11नूट्रल पर खड़ी गाड़ी को हम रेस दे रहे हो
06:13कुछ नहीं हासिल होता
06:17बस इंजन
06:19गरम हो जाता है और सारा जो इंधान है उसको पी जाता है
06:23पहुचते हो कहीं कुछ भी नहीं
06:28धुआ धुआ गर्मी गर्मी गंदगी गंदगी बस यही
06:31यही रूपक चक्की और चक्र का भी यही बात विचार घूम रहा है
06:38विचार घूम रहा है और केंद्र में हंकार है
06:41केंद्र में हंकार
06:43हंकार के इरदगरद घूम रहा है
06:45यही विचार आत्मा का गुलाम हो जाए
06:49तो क्या बुराई है
06:50ऐसा थोड़ी है कि जो आत्मस्त व्यक्ति हो विचार ही नहीं करता
06:54विचार सूक्ष्म कर्म ही तो है
06:58तो क्या जो आत्मस्त हो जाता हो कर्म छोड़ देता है
07:02कृष्णी तो गीता में साफ बोल रहे थे कि मैं तो कर्म कभी नहीं छोड़ता
07:06तो जब कृष्ण ने इस थूल कर्म नहीं छोड़ा तो क्या सूख्ष्म कर्म छोड़ दिया होगा
07:11तो माने विचार तो आत्मस्त वेक्ति भी करी रहा होगा ना
07:15तो विचार में नहीं कोई बुराई हो गई है
07:17विचार से वो काम करवाना जो विचार के बूते का नहीं है
07:21इसमें बुराई है
07:23वो काम होनी पाएगा
07:26हम सब ने धुरा रहा हूं
07:28हम सब ने विचार को क्या जिम्मेदारी सौप दिये
07:32अहम को बचाओ जा तरीका खोज के लाओ कि
07:37अहम को सुरक्षा देनी है
07:38अब विचार लगा रहता है लगातार यही उधिरबुन की किस तरीके से अहम को बचाए अहम को बचाया जा पता नहीं तो विचार बस गरम होता रहता है लगातार चलता है गरम होता है पस यही है
07:53और इसके लिए उसने तैनात किसको कर दिया है
08:07अब विचार कहां से लाए सेक्यूरिटी
08:10विचार सेक्यूरिटी कहां से ले आएगा
08:14सूच सोच के भी
08:17सोच्चे सोच न हुए
08:23कुछ चीज़ें दोडने से नहीं मिलती न सोचने से मिलती है
08:31वो काम फिर धावक से और विचारक से नहीं कराना चाहिए
08:39आप किसी को पकड़ने अच्छा धावक हो उसको बोलें जाओ
08:43शितिज छूकर आजाओ
08:45वो कहां से शितिज विचारा छूकर लाएगा दोड़ दोड़के मर और जाएगा बेहाल
08:49यह हमने विचार का हाल कर रख़ा है
08:52एक और भ्रहम जैसे आज बात भी डर कामना ही है कामना कुछ कहती है कि लेके आएंगे पूरा करेंगे अपूर है डर डर को डर यह भ्रहम बन देता है कि कुछ है जिसको बचाना है
09:13तो जो मेरे अंदर भाव है डर का बहुत है इसका मतला आत्ममलोकन में कहीं ब्रहम है कि कुछ है आपके पास
09:22जो जिस बहुमुल्य है जिसको बचाना है जबकि उसका परिक्षणा भी नहीं हो पा रहा है कि ऐसा कुछ नहीं है
09:30बस बिलकुल एक दम आपने नबस पर उंगली रख दिए यह हैं प्रणाम अचारे जी अचारे जी आज आपने जो सत्रम बताएं चीज़ें और आपने जो वह चीज़ बताएं कि असली समझत हुआ है कि तुम भूली गए कि और कोशन्स जो थे तुमारे वह भूल गए त�
10:00में वह चीज़ें करने लगे लाइफ में तो आप वह सब भूल गया मैं मैं यह प्रशन के जगा स्टेटमेंट जादा रहेगी मेरी अब आज आपने जो बताया आपने मैंने उसको निचोड़ यह लगा कि जिन्दगी से जोड़ गए बता रहा हूं कि पहले अपने अनु�
10:30तो आपने जो बताया आदती बैड हैबिट्स वह लगी हुई हैं और दीरे दीरे कोशिश कर रहा हूं मैं चेंज हूँ एक साथ के अंदर बट मैं चानना चाह रहा हूं आपनी ही कलपना की अनुसार कुछ और
10:57तो ये सारा काम कुछ और बनने की कोशिश से नहीं होता जानने से जो होना होता है वो सतस्पूर्थ होता है आप कोई टैशुदा उद्देश चे लेकर अध्यात में नहीं आ सकते कि मुझे ऐसा होना है और वैसा होने में अध्यात मेरी सहायता करेगा ये सब नहीं होता
11:24कि फिर वही बात हो जाएगी कि अभी हम कह रहे थे कि
11:30अध्यात्म से चेहरा निखर उठता है
11:35तो कोई यही सोच के घुसे यहाँ पर
11:40कि चेहरा खुबसूरत बनाना है उसका नहीं बनेगा खुबसूरत
11:44जिसको नहीं चाहिए उसको मिलेगा ना वो चीज
11:48आप जब कोशिश बोलते हो तो कोशिश में तो हमेशा लक्षे पहले ही तै होता है
11:54और जो तै किया है लक्षे उसी में हंकार बैठा होता है नहीं
12:00हंकार तो अपने अनसाब से ही लक्षे तै करेगा ना हंकार यह भी कहे कि मुझे
12:05निरहंकार होना है तो उस निरहंकारिता में भी क्या बैठा है हंकारी बैठा है
12:11हंकार ये भी बोले मुझे मुक्त होना है तो वो जो मुक्ति का उसका कॉंसेप्ट है सिद्धान था उसमें भी क्या बैठा है
12:21कांकार इसलिए मैं मतलब पांच साथ सो आठ सो बार दो रहा चुका हूँ कि हमें कुछ और नहीं बनना है हमें देखना है कि हम वर्तमान में ही क्या बन बैठे हैं हमें मुक्ति नहीं मांगनी है हमें देखना है कि हमारे बंधन क्या है कल्पना को मार्गदर्शक बना करके आ�
12:51हो सकती है कि कल्पना किसकी है मेरी है अपनी कल्पना पर चलूंगा तो मैं बदल जाओंगा क्या बदल जाओंगा रूप रंग बदल सकता है वो सब चीजे हैं तो इसमें यह नहीं देखना होता कि मेरे उद्देश पूरे हो रहे हैं कि नहीं या कि अब ठ्छे महीने गीता मे
13:21कि क्यों आये हो भी भाई तुम बोध प्रतिवशा में बोला 75 डे हार्ड चैलेंज
13:26ऐसे थोड़ी होगा
13:29जो होगा लेकिन वो बहुत बढ़िया होगा
13:36लेकिन वो जो बढ़िया शब्द है वो भी बढ़िया कि आपकी वरतमान परिभाशा से मेल खायेगा के नहीं हमें नहीं पता
13:43हम इतने ही कह सकते हैं कि जब होगा
13:46तो बहुत अच्छा होगा और जो होगा उसी को अच्छा मानना
13:54क्या होगा हम कोई भरोसा नहीं दे रहा है आपको
13:57कोई गारंटी नहीं है कि आप अभी जिस चीज को अच्छा मानते हो अभी
14:01जो होगा वो वैसा ही होगा नहीं एकदम ऐसे कुछ नहीं पता
14:05तभी तो मिस्ट्री कह रहे ना मिस्ट्री और वरना मिस्ट्री क्यों बोलते है उसको आज लाउजू उसको मिस्ट्री क्यों बोल रहे है तभी तो उसमें फिर साहस चाहिए न क्योंकि जो होता है वो अप्त्याशित होता है अननुमानित होता है आपकी आशा और आपके अनु
14:35मैं आवर अब बंद्रों से मुझे दिक्कत हो रही है और आज मैं भूसे को छोड़ करों समझ करकि
14:51चूटना ही था उसमें जबरदस्ति नहीं करता हूं तो इसी चीज़ को यह बोलूगा कि मैं आगे जैसे बढ़ रहा हूं बंदरों को चोडने में समझ पर रहा हूं देख पा रहा हूं तो क्या इसी प्रक्रिया को मैं कैसे तेज कर सकता हूं और क्या यह चॉइस ही आंस आप
15:21प्रक्रिया स्वतर स्फूर्थ है आप उस प्रक्रिया के बारे में कुछ नहीं कर सकते
15:28वो प्रक्रिया क्या मार्ग लेगी कैसे बढ़ेगी कुछ नहीं कह सकते
15:33एक प्रक्रिया linear हो सकती है एक प्रक्रिया explosive हो सकती है
15:38आप किसी चीज़ को तेज करना चाहते हो
15:41मैं क्या बता हूँ आपको
15:42नदी लगभग
15:45लिनियरली भेहती है
15:46लेकिन आप
15:48बीज गारदो मिट्टी में
15:51बिलकुल हो सकता है आठ महीने तक कुछ पता न चले
15:53और फिर एक दिन अचानक उसमें
15:55बांस होता है
15:59बांस आपको पता है कैसा
16:00जब बांस की कुछ प्रजातियां होती है
16:02जिनको अगर अनुकूल महौल मिले
16:04तो प्रति दिन इंच के हिसाब से बढ़ती है
16:06ये होती है गति उनके बढ़ने की
16:08एक दिन में
16:10फिर वो इंचों के हिसाब से बढ़ती है
16:12कोई क्या बताए
16:13और ये भी हो सकता है कि बीज गड़ा हुआ था और आट महीने तक
16:16कुछ भी नहीं हुआ
16:18तो प्रक्रिया तेज होगी
16:20कि धीरे चलेगी, कब तेज होगी
16:22कब धीरे चलेगी, भूल जाईए
16:24जो काम है
16:28आपना आप वो करिए, आप result
16:30फोकस्ड हो रहे हैं
16:32बंधन
16:34को तोड़ने का काम क्या होता है
16:36आत्मग्यान
16:37उसको जितना जानेंगे
16:40आगे का काम बोध पर छोड़िए
16:42जूठे करता हम है
16:45जैसे ही हम जानेंगे
16:46तो जो असली करता होता हो सक्रे होता है
16:48जितना आप जूठे करता
16:50को जानते जाते है असली करता उतना ज्यादा सक्रे होता जाता है और वो आपको बिना बताए काम करता है आपको बताए कर नहीं करता गाम इसी में तो फिर आनंद है न कि कुछ हो रहा है जो अपूर है आनंद नुमानित है आप करते तो अपने अनिसाब से करते आप बस अपन
17:20इसके तरीकों को जानने का प्रयास भी उसके तरीकों में हस्तक्षेप है तो जानने का प्रयास भी मत करिये कि गती कैसे तेज होगी कैसे धीमें होगी क्या होगी अरे मेरा क्या हक है मेरा हक इतना है कि मैं जानू कि मेरे बंधन क्या है और वो जानना तो निरंतर प्रक्रिया �
17:50तो जिन अनुभवों से बच्चते हो उसमें जाओ
17:53जिन अनुभवों से आप बच्चते रहे हो
17:58आप उनमें जाईए वहां अपने बारे में कुछ आपको नई बात है
18:01जादा तेजी से पता चलेंगी
18:02कुछ भी हो जाए
18:07चाहे प्रत्यक्ष दबे छुपे किसी भी तरीके से
18:11परिणाम की अपेक्षा मत करने लग जाईएगा
18:21परिणाम की अपेक्षा का मतलब होगा जो परिणाम आ रहा है उसको बाधित करना
18:25आपको कैसे पता कि आप जिस परिणाम को चाह रहे हो वो परिणाम आपके लिए अच्छा है
18:31आप कह रहे हो मैं अपने बंधन काटना चाहता हूँ
18:33आपका काम है यह देखना कि आप जिसको बंधन बोल रहे हो वो बंधन है भी कि नहीं है
18:39दुनिया में कोई आदमी नहीं मिलेगा आपको जो कह दे कि मेरे बंधन नहीं है
18:44हर आदमी कहता है मेरे पास बंधन है
18:46फिर भी हो व्यक्ति बंधनों में है
18:48और आत्मगान का सिध्धान तो ये कहता है कि अगर बंधन को बंधन जान लिया तो बंधन तूट जाता है
18:54हर आदमी कह रहा है उसके पास बंधन है
18:56फिर भी हो बंधन में इससे क्या पता चल रहा है
18:58आपको आपके असली बंधन पता ही नहीं है
19:01आप जिस चीज को अपना बंधन बोल रहे हो
19:05आपका वास्तविक बंधन नहीं है
19:06आपका काम है अपने वास्तविक बंधन की खोज, उसको करिए, वो खोज आपका काम है, उसके बाद की गति छोड़ दीजिए, हमारा कोई मतलब नहीं है, निश्कामता अचारे जी मैं स्वोग, वेशन जी मुझे आदा रहे हैं, यही निश्कामता है, अपने आपको honestly भुज
19:36बादो बादो, पर लाता है इए, एए, एए, एए, एए, एए, ए ए ए उन्हें
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