00:00मैं कैसे किसी को दुख दे सकता हूँ, मार कैसे सकता हूँ किसी को
00:03जब आप अपने प्रतिक करुणा से भरे होते हैं
00:05और यह पहली चीज़ है जो चाहिए अगर मुक्ते हो
00:07अपने प्रतिक तो सद्भावना होगी न
00:09आप कैसे अपना कल्यान कर पाओगे अगर आप अपने शुपचिंता की नहीं हो
00:13कर पाओगे उसकी गर्दन पर जब सुईकार कर लोगे कि कोई छूरी चला रहा है
00:17तो तुम्हारी भी गर्दन पर जब छूरी चलेगी तो बरदाश्ट करना पड़ेगा
00:20फर्स्ट अमांग इकुल्स गाये होती है गाये में पौरानिक देवी देवताओं की छवी होती है
00:28इसके बारे में हमें वेदान से क्या पता है
00:30तो जिसको वेदान समझ में आएगा वो कहेगा चेतना जहां भी मिले
00:34वो वास्तों मेरी ही तो चेतना है
00:36और अगर चेतना का कल्यान ही धर में तो मैं कैसे कह दूँ
00:40कि इस चेतना को मुक्ति देनी है और उस चेतना को मृत्यू देनी है
00:44जिन्होंने जाना है उन्होंने काए पीर सबन की एक है
00:48मुर्गी हिरनी गाये धर्थ तो सबको एक सा होता है न
00:51उर चेतना की मूल पहचानी क्या हमने क्या का जनमगत हमें क्या मिलाये पशु हिंसा के विरोध में जितना मुखर कवीर साब हुए उतना कोई और नहीं हुआ
01:00और ऐसे समय में जब पशु लगभग सामान ने हो चली थी
01:04इसलिए बार बार बोलता हूँ जो व्यक्ते एक के प्रते हिंसक है
01:08सब के प्रते हिंसक होगा और साथी साथ अपने प्रते हिंसक होगा
01:11नमस्य आचारे जी
01:16जो हम पौरानिक विचारधाराएं सुनते हों
01:20और हम बड़े लूजली सनातन परंपराओं जैसे शब्द बोलते हैं
01:26उसमें एक खास प्रकार की महत्वता हम किंचित पशुओं को देते हैं
01:32चुकि मैं पशुओं के ही उसमें काम करती हूँ कल्यान के शेत्र में
01:38तो हिंदू होने के नाते हमें बताया जाता है कि
01:41इसके बारे में हमें वेदान्स से क्या पता लगता है
01:54या इसका हम क्या आर्थ निकाल सकते हैं
01:57क्या यह बिलकुल ही ऐसा सोच है जिसको नकारात्मक कर देना चाहिए
02:03या इसमें कोई सचाईए
02:04वेदान्स बारे में बहुत सपश्ट है
02:06और बहुत सीधी बात करता है
02:10सनातन धर्म की परिभाशा से ही शुरू करते है
02:13चेतना का कल्याण ही धर्म है
02:19यही परिभाशा दी थी न
02:21जब हम कहा रहे हैं मन को आत्मा की ओर ले जाना ही सनातन धर्म है
02:23तो उसी को दूसरे शब्दों में कहेंगे
02:26चेतना का
02:27दो राइए
02:29चेतना का कल्यान ही धर्म है
02:33इसके अतरिक्त और नहीं कुछ धर्म होता
02:35क्या इस परिभाशा में कहीं कहा गया है
02:37मनुष्य की चेतना का कल्यान धर्म है
02:39चेतना मात्र का
02:43consciousness wherever it is
02:47उसका कल्यान ही धर्म है
02:50अगली बात
02:51क्या चेतना अलग-अलग प्रकार की अलग-अलग रंग की होती है या चेतना एक ही होती है अपने मूल सो रूप में
02:58जिन्होंने जाना है उन्होंने का है पीर सबन की एक है मुर्गी हिरनी गाए
03:08दर्द तो सबको एक सा होता है न और चेतना की मूल पहचान ही क्या, आमने क्या कहा, जन्मगत हमें क्या मिला है, तो चेतना की मूल पहचान ही क्या है, दुख और बंधन, और पीर, पीर मने, पीड़ा, और पीड़ा तो मुर्गी हो कि हिर्नियों कि गाय हो कि उसके आगे आप
03:38जो मूल विर्थिया ऐं क्रोध पशुओ को आते
03:44मनुश्य हिए मूम थे जससे सी हपर इसको बच्चे
03:48ते पैदा होता ही मंत्ै है गाय को भी है लेकिन वही मम्त्य तो
03:52आप अन्य जीवों में भी पाते हो बच्धियों में भी पाते हो कि ने पाते हो
03:57वही ममता तो आप मुर्गी में भी पाते हो कि नहीं पाते हो तो चेतना तो सब में ही एक सी है बस उसकी अभिवयक्ते अलग-अलग तरीके से होती है अब मनुश्यों में भी ऐसे तो इस्तरी की चेतना और पुरुष की चेतना की अभिवयक्ते अलग-अलग तरीके से होती है
04:27जनम से ही, और पुरुष भी जो बात कर रहा हूँ, चाहता तो, क्योंकि उसको भी जनम से क्या है, देह भाव ही, और दुख तो सब जीवों को है, तो जिसको वेदान समझ में आएगा, वो कहेगा, चेतना जहां भी मिले, वो वास्तों मेरी ही तो चेतना है, और गर चेतना का
04:57मार कैसे सकता हूँ किसी को, नहीं समझे आप, वेदान्ती होने का मतलब, वेदान्त समझने का मतलब है, कि आपके लिए ये जो है, the conscious element, उसके अलावा कुछ और महत्वपूर्ण नहीं रह गया, यहां तक कि सत्य और आत्मा भी महत्वपूर्ण नहीं रह गया,
05:27क्योंकि उनको किसने देखा, उन्हें कौन जानता है, मुक्ति में जानता है, नहीं मैं तो, मैं तो बंधन जानता हूँ, तो मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण सबसे यादा है, मेरे बंधन ही सबसे महत्वपूर्ण है, और बंधनों में एक बंधन यह है, कि मैं उसकी चेतन
05:57म画 है नै वह पर अपनी सामिल है
06:01पर एंद भाई इन यह से अही करे तो अपने मेरे उ Yo
06:18udah अपने अपने लिए दूढ़ा लिया उसको मार के खारा हूं तो बोगा है
06:24मैं खतुम हो गया
06:27सबच में आरी बात, जब आप अपने प्रतिक करुणा से भरे होते हैं, और पहली चीज है जो चाहिए अगर मुक्ति हो, अपने प्रतिक सदभावना होगी न, आप कैसे अपना कल्यान कर पाओगे अगर आप अपने शुपचिंतक ही नहीं हो, कर पाओगे, अपना शुपचि
06:57अपना से अंडे या उसका फर, कुछ भी लूटूंगा, जितने तरीकों से अम तड़पाते हैं, तड़पाऊंगा, नहीं समझे महारी बात, मनुष्य के कल्यान की बात नहीं है, क्योंकि मनुष्य से तो ऐसा लगता है कि मनुष्यमाने ये सब भी आ गया, फिर तो आप य
07:27उधर भी है, उसकी पीडा मेरी मुक्ते के साथ कैसे चल पाएगी भाई, कैसे, अगर मैं उसकी चेतना को दुख दे सकता हूं, तो माने मैं चेतना को दुख दे सकता हूं, अगर उसकी चेतना को दुख दे सकता हूं, तो अपनी चेतना को भी तो दूँगा, ना इसलिए ब
07:57सबके प्रतिहिंसक होगा और साथी साथ अपने प्रतिहिंसक होगा तुम किसी को भी अगर दुख दे सकते हो तुम बरदाश्ट कर लोगे कि कोई तुमें भी दुख दे दे तुम किसी के सामने भी अगर जुक सकते हो तुम बरदाश्ट बरदाश्ट ही नहीं करोगे तुम च
08:27शोषक को बरदाश्ट करा था तो इसलिए घर आके स्वयम शोषक बन गए उसकी गरदन पर जब सुईकार कर लोगे कि कोई छूरी चला रहा है तो तुम्हारी भी गरदन पर जब छूरी चलेगी तो बरदाश्ट करना पड़ेगा और कहीं दूसरे लोग में जाके नहीं यही
08:57अब इतना क्यों शोर मचा रहे हो जब दूसरों का दमन कर रहे थे तब होश कहा था अब तुम्हारे साथ हो रहा है तो क्या रो रहे हो
09:10देखिए कोई वजह है कि ज्यानियों में मैं सबसे अग्रणी संथ कबीर को मानता हूँ
09:20करुणा की बात सब ने करी है और सब मेरे लिए आदर निये हैं सब संत लोग
09:26लिकिन पशु हिंसा के विरोध में जितना मुखर कबीर साहब हुए उतना कोई और नहीं हुआ
09:37और ऐसे समय में जब पशु हिंसा लगभग सामान ने हो चली थी
09:46मुसल्मानों में तो मास और गोष्ट का रिवाज था ही था और हिंदू अपने कर्मकांड के चलते खूब बलिया दिया करते थे
10:03तो दोनों ही पक्षों में जानवरों का खूब भाया जा रहा था ऐसे समय पर उन्होंने खूब बोला खूब बोला खूब बोला खूब बोला पशु हिंसा के विरुद्ध उन्होंने यहां तक कह दिया
10:25कि वेद भी जूटे हैं अगर वेदों में पशु हिंसा की बात है एक है उनका कर लीजेगा पर मैं मोटा मोटा उसको उद्रुद करें देता हूँ कि
10:44अश्वमेध अजमेध गौमेध ऐसे कुछ करके कहें कबीर अधर्म को धर्म बतावें वेद
10:53करें वेदों में भी अगर यह सब बात है न अजमेध हमाने बकरे को काटना अश्वमेध हमाने घोड़े को काटना गौमेध हमाने गाये को काटना वेदों में भी अगर यह सब मेध की बात है तो कहें कबीर अधर्म को धर्म बतावें वेद वो जाके वेदों से भी भिड�
11:23वो जो पूरा महसाहार की साख्षियों का संकलन कोई मुझे अगर इस वक दे दे मैं चाहता हूं पूरा सुनाओं पूरा साख्षी गृंतों भी होगा नहीं न पूरा संकलन दो मुझे 30-40 साख्या है
11:47सुनिए
12:07आगे से सत्र में मेरा चश्मा भी ले आया करो जब पढ़ने ही पढ़ता है तो
12:11मासाहारी मानवा प्रत्यक्ष राक्षस अंग ताकी संगत मत करो पढ़त भजन में भांग
12:21कोई मिलावट नहीं कोई अंबिविटी नहीं सीधे मासाहारी हो तो राक्षस हो तुम्हें मनुष्य नहीं मानते हटो यहां से
12:32मासाहारी मानवा प्रत्यक्ष राक्षस अंग ताकी संगत मत करो पढ़त भजन में भंग
12:42मास मचरिया खात हैं सुरा पांसो हेत तेनर जड़ से जाएंगे जो मूरी को खेत उपर उपर से नहीं कटोगे जैसे मूरी मूली होती है ना उपर पत्ता ही थोड़ी काटते पूरा उखाड लेते हो इतने जड़ से मारे जाओगे यह जो
13:06कि मास अच सब एक है मुर्गी हिरनी गाय आख देख नर खात है ते नर नर कही जाए चीशसराफ कर गाय गाय को
13:28साथी साथ, मुर्गी और बाकी इनको काट रहे होते हैं, जीवजी जवजभ एक है, मासमास सभ एक है, पीर सबन की एक सी, और किसी को भी तुम अगर दुख दे रहे हो, तो,
13:40अब ये बात कि एक निचली चेतना को शुभा देता है कि वो दूसरे का मास खा ले, उची चेतना को नहीं
13:52तो का ये कूकुर को भक्ष है, मनुश देह क्यों खाए, मुख में आमिश मेली है, नरक पड़े सो जाए
13:59एक निचली चेतना का जीव कुट्ता, वो मास खा गया, तो चलो उसकी माफी है, पर तुम तो अपने आपको इनसान कहते हैं, तुमने मास कैसे खा लिया
14:07जिसका तात्पर ये है कि अगर तुम इनसान खा रहे हो, तो फिर अपने आपको कुट्ता ही बोलो
14:12ब्राह्मनों को आड़े हाँ थो लिया है, तामस बेदे ब्राह्मना मास मचरिया खाए, पाए लगे सुखमा नहीं, राम कहे जरी जाए
14:32कि ये जो ब्राह्मन सब हैं, जो मास मचली खाते हैं, कभी यग्य करके, कभी बली देखे, बोले ये उसी तरीके के हैं, जो बस ये चाहते हैं, कि इनके पाउं लगो तब ये सुखमानते हैं, लेकिन इनके मूँ से राम नहीं निकलता, मूँ जल जाता है राम बोलते हुए
15:02सकल बरन एकत्र हुए, शक्ति पूजी मिली खाएं, हरिदासन को भ्रमित करी केवल जंपुर जाएं, यह जो तंत्र की दिशा के लोग होते हैं, जो शक्ति के उपासक होते हैं, शाक्त पंथी, उनको का है, कि यह सारे सब इकठा हो करके, कहते हैं कि शक्ति की पूजा कर रहे ह
15:32जीव हने हिंसा करे प्रगट पाप सरी होए, पाप सबन को देखिया, पुन्य ने देखा कोई,
15:52जीव की हिंसा करकि अगर तुम सोच रहे हो, किसी भी तरह कोई पुन्य मिल सकता है, तो बिलकुल भूल जाओ, फिर पाप तुम्हारे सर लग रहा है,
15:59ये भी उसी तरीके का है, फिस्त न गया कोई,
16:13तिल भर मचरी खाए किये कोटी गव देदान, कासी करवट ले मरे, तो भी नरक निदान, कह रहे, तुम हजारों गाएं भी दान देदो, माने सो तरह का तुम कर्मकांड कर लो, और कहो कि जिससे पुन्य मिलता है,
16:27तो भी अगर तुमने तिल भर भी मचली खा ली है, इतनी सी मचली खा ली है, तो उसका जो पाप है, उससे नहीं छूट पाओगे,
16:35इतना साभी अगर मासाहार कर लिया, तो उसके बाद तुम सो तरह के उसके उपाय करो, या शुद्धी करो, तो भी उससे तुम उबर नहीं सकते,
16:43यह सब जो काटा कूटी करते हैं, यह पाखंडी है, यह राम को नहीं जानते, यही कभीर का संदेश है, यह बहुत बढ़िया,
17:01पीर सबन की एक सी मूरख जाने ना ही, अपना गला कटाय के भिस्त बसे क्यों ना ही, अक्सर जब कुर्बानी वगरा दी जाती है, बकरीद पर, या कि मंदिरों में भी जब बले दी जाती है, तो उसके पीछे तरक यह दे देते, कहते हैं, जैसे ही इस बगरे के गले पे छ
17:31जाती है, तुम यह क्या मूरखता कर रहे है उसकी गरदन काट के, और अगर गला कटाने से जननत मिल जाती है, तो अपने गला काट के सबसे पहले जननत काये नहीं जा रहे, अपना गला गटाय के भिस्त बसे क्यों ना ही, जाओ तुम ही जाओ वहां पर, अजा मेथ गोमे�
18:01तुम काटे हो, सो फिर काट तुमार, जिसका गला तुम आज काट रहे हो, वो वास्तों में उसका नहीं गला काट रहे हो, तुम अपनी गला काट रहे हो, मत करो
18:12और भी यह मुर्गी कहे मुलना से, बकरी कहे मुलना से, वो बहुत सारे हैं उसमें, कि मौलाना से, मौलवी से, बकरी कह रही है, पता नि क्या कह रही है, अब भूल गया मैं,
18:33हाँ यही कह रही है कि बिटा तुम अभी मेरी खाल उतार रहे हो एक दिन ऐसा आएगा जब में तुम्हारी खाल उतारूंगी यही है श्लोक
18:45कुल मिला करके यहां पर जो पात है वो यह है कि उस जीव को भी ऐसे देखा जा रहा है जैसे मैं हूँ
19:02उधर भी उतनी चेतना है जितनी इधर है उसको भी एक परसन की तरह देखा जा रहा है और जब आप जीव को परसन की तरह देखते हो न तो फिर उसे परसनल राइट्स भी देते हो और राइट्स में सबसे पहले कौन सी राइट आती है जीने का अधिकार उसके पास भी तो ज
19:32और चीन चाहता है, तुमने उसे कैसे मार दिया, सिर्फ तुम्हारे पास एक तर्क है, ताकत का तर्क, कि मेरी ताकत ही मैंने मार दिया, और कोई तर्क नहींches तुम्हारे पास。
19:42आजके लेगा थरिब नहीं Voice है, पेड़ पौधो में ही तो जान होती है.
19:47तो मैं उनसे कहता हूँ बिलकुल मैं आपकी करुणा का दीवाना हो गया कि आप में पेड पौधों के प्रतिभी इतनी करुणा है।
19:57लेकिन साब, अगर आप पेड़ पौधो को ही बचाना चाहते हैं, आप कहरें पेड़ पौधो में भी जान होती है, तो बखरा मत खाऊ ना, क्योंकि जब आप शाकाहार करते हो, तो आपने मान लीजिए एक पौधा मारा, लेकिन जब आप मासाहार करते हो, तो उस बखरे को �
20:27आप आधा किलो चावल तैयार करते हो, तो उसमें आपने कितने पौधे मारे वो गिन लो, और आप आधा किलो मतन तैयार करते हो, तो उस आधे किलो मतन के लिए बखरे ने कितने पौधे खाए होंगे, अब ये देख लो, और बखरा कोई प्राकृतिक रूप से पैदा होत
20:57ये भी आपका तर्क है जो कि बिल्कुल गलत तर्क है पर अगर ये भी मानलो तर्क है कि पेड़ पौधे तो मारे जा रहे है न तो पेड़ पौधों को बचाने के लिए भी जरूरी है कि मासाहार न किया जाए पेड़ पौधे भी तभी बचेंगे जब मासाहार न किया जाए
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