महाराष्ट्र के पुणे के जुन्नर में स्थित इस लेपर्ड सेंटर में उन तेंदुओं को रखा गया है.. जिन्होंने कभी इलाके में आतंक मचा रखा था. जुन्नर का नाम देश के सबसे ज्यादा लेपर्ड अटैक से प्रभावित क्षेत्रों की सूची में शामिल है.. जुन्नर तालुके में गन्ने की खूब खेती होती है और इन्हीं की आड़ लेकर तेंदुए किसानों को अपना शिकार बनाते हैं.. 2002 में तेंदुए के हमले में यहां 11 लोगो की मौत हो गई थी.. लोगों को तेंदुए के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए वन विभाग ने बड़ी मुहिम चलाकर इन तेंदुओं को पकड़ा। चूंकि इन्हें दूसरे जू या रेस्क्यू सेंटर में भेजना आसान नहीं था.. इसलिए इनके लिए साल 2002 में माणिकडोह लेपर्ड रेस्क्यू सेंटर बनाया गया.. जहां इस वक्त 50 से ज्यादा लेपर्ड हैं. यहां तीन प्रकार के लेपर्ड को रखा जाता है. पहले प्रकार में लेपर्ड के वो बच्चे हैं, जो अपनी मांओं से बिछड़ गए.. जब तक उनकी मां मिल नहीं जाती.. तब तक उन्हें यहां रखा जाएगा। दूसरे प्रकार में वो लेपर्ड हैं, जो सड़क हादसों में घायल हो गए... उन्हें इलाज के बाद यहां रखा जाता है.. तीसरे प्रकार में वो लेपर्ड हैं, जिन्होंने इंसानों पर हमला कर उन्हें मारा है.. उन्हें पकड़कर यहां रखा जाता है. यहां लेपर्ड को शंकर, जया, जिया... तितली जैसे स्पेशल नाम दिए गए हैं.. और उन्हें स्पेशल केज में रखा जाता है.. शुरुआत में यहां में 44 तेंदुओं को रखने की व्यवस्था थी.. लेकिन अब यहां 80 तेंदुए रखे जा सकते हैं.
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