00:00एक खुबसूरत जायल के किनारे एक बूला कच्छवा अपनी एनक लगाए, सुकून से एक पत्थर पर बैठा था।
00:06पानी में एक छूटी, रंग बरंगी मचली बेचैनी से तेरती जा रही थी।
00:10कच्छवा मुस्करा कर इसे गोर से देख रहा था।
00:13मचली बुलबुलों के साथ बोली, मैं ठक गई हूँ इनतिजार से, मैं अभी दर्या तक पहुँचना चाहती हूँ।
00:20कच्छवा नर्मी से बोला, बेटी जल्दी हमेशा नुकसान देती है, सबर करो, वक्त खुद रास्ता दुखा देगा।
00:27कच्छवा अपने नर्म पंजे उठाते हुए बोला, सबर सबसे बड़ी ताकत है, जब वक्त आएगा, पानी खुद तुम्हें मन्जिल तक पहुँचा देगा।
00:36मच्छी ने शक में सरहिलाया मगर खामोश रही, अचानक आस्मान पर बादल च्छा गए, पानी पर बारिश के कत्रे गिरने लगे, और जेल से एक नया नाला बहने लगा, मच्छी ने खुशी से कहा, देखा, रास्ता खिल गया, कच्छवा मुस्करा कर बोला, लेकिन एहत
01:06नाले में एक भनवर बन गया, मच्छी बुरी तरह फंस गय, वो चीखने लगी, बचाओ, कच्छवा पुरसकून रहा, आहिस्ता आहिस्ता तेरता हुआ पहुंचा, और अपने खौल से इसे बाहर धकेल दिया, मच्छी हामते हुए बोली, शुक्रिया दानिशमंद कच्छ
01:36मच्छी बोली, अब मुझे समझा गया, सबर हमेशा काम्याबी लाता है, इस किरीन पर लिखा आया, सबर काम्याबी की कुंजी है