इस श्लोक में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से अनुरोध किया कि वे उनका रथ दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करें। श्रीकृष्ण, जो ‘हृषीकेश’ यानी इन्द्रियों के स्वामी हैं, ने अर्जुन की इच्छा पूरी की और रथ को सेनाओं के बीच स्थापित किया।
यह क्षण गीता का महत्वपूर्ण मोड़ है – युद्ध से पहले अर्जुन अपने शत्रु नहीं, बल्कि अपनों को देखना चाहता है। और श्रीकृष्ण केवल सारथी ही नहीं, आत्मा के सच्चे मार्गदर्शक भी हैं।
👉 शिक्षा: हर युद्ध (चाहे जीवन का ही क्यों न हो) से पहले आत्मनिरीक्षण आवश्यक है।
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00:30कहा जाता है, अर्जुन की बात मान कर उस दिव्यरत को दोनों सेनाओं के बीच में स्थापेत कर दिया, ये क्षण बेहद महत्वपोन है, युद्ध से पहले अर्जुन अपने शत्रों नहीं, बलकि अपनों को देखना चाहता है, और श्री कृष्ण सिर्फ सार्थी नहीं
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