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#BhagwanShreeRajneesh #SpiritualGuru #Spiritualism #Meditation #Zen #Enlightenment #Consciousness
Transcript
00:00मैं कुंडलनी जगाना चाहता हूँ
00:03अभी तक जागी नहीं
00:07क्या मुझसे कोई भूल हो रही
00:09मार्क दरसंदे जगदीस
00:12भया कुंडलनी ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा
00:18सोई है बिचारी को सोने तो
00:22काहे पीछे पड़े हो
00:27तुम्हें और कोई काम नहीं
00:30कुंडलनी क्यों जगाना चाहते हो
00:38फिर जग जाया तो फिर आके कहोगे
00:44कब इसे सुला हो
00:45कब ये कुंडलनी जग गई
00:48अब ये चैन नहीं लेने दे थी
00:49सब्द सुन लिए
00:57और सब्द सुन लिए हैं तो
01:01सब्दों के साथ वासना जुड़ जाती
01:03कुंडलनी जगाने की भी कोई जरुवत नहीं है
01:09कुंडलनी जगाने का भी एक सास्त है
01:14लेकिन उससे गुजरना आवश्चक नहीं
01:19जीसस बिना उससे गुजरे पहुँच गए
01:23बुद्ध उससे बिना गुजरे पहुँच गए
01:24महावीर पहुँच गए
01:25उस रास्ते से जाना आवश्यक नहीं
01:30और उस रास्ते से जाना खतरनाग भी है
01:34क्योंकि सरीर के प्रसुप्त सक्तियों को छेड़ना
01:42खतरे से खाली नहीं
01:46अच्छा तो यह है कि उन्हें बिना छेड़े को जर जाओ
01:55उन्हें छेड़ने का सबसे बड़ा खतरा तो यह है
01:58कि हो सकता है
02:02तुम फिर उन पर काबू न पासको
02:06तुम्हारे भीतर इतना बड़ा विस्फोट हो
02:10कि तुम्हारी समझ के बाहर पढ़ जाए
02:15और समझ के बाहर पढ़ी जाएगा
02:17और तुम अगर नियंतर न पासको तो विक्छिप्त हो जाओ
02:22इस सदी का एक बहुत बड़ा सद्गुरू था जार्ज गुर्चिएफ
02:29वो कुंडलनी के बहुत खिलाफ था
02:33खिलाफत के कारण वो कुंडलनी को उसने नया नाम ही दे दिया था
02:39कुंडा बफर
02:40बफर लगे रहते हैं ने तुमनें देखे हूँ
02:45ट्रेन के दो डब्बों की बीच में जो लगे रहते हैं उनको कहते हैं बफर
02:48उससे कभी टककर वगएर हो जाया है तो डब्बे एक दूसरे पर नहीं चड़ जाते
02:54वो जो बीच में बफर लगे रहते हैं वो धक्के को पी जाते
03:00ऐसे कार में ही स्प्रिंग लगे रहते
03:04वो भी बफर है
03:05उनके कारण
03:07भारती रास्ते पे भी कार चल सकती
03:12नहीं तो पूना से बंबई ही नहीं पहुंच सकती
03:20और दूर की तो बात छोड़ो
03:22इस स्प्रिंग तुम्हारी चोटों को पी जाते
03:30नहीं तो वो चोटों तुमको पी नहीं पड़ेंगी
03:33मल्टी फ्रेक्शर हो जायागा बंबई पहुंचते पहुंचते
03:37उतरोगे नीचे तो घर के लोग नहीं पहसान पाएंगे के तुम ही हो
03:47सरीर की एक उर्चा है जो सरीर और आत्मा के बीच बफर का काम करती
04:12नहीं तो सरीर के भीतर आत्मा का रहना मुस्किल हो जाए
04:16असंभव हो जाए
04:19उस उर्चा की एक पर्थ तुम्हारी आत्मा को घेरे हुए है
04:25तुम्हारी आत्मा और सरीर की बीच में उस उर्चा की एक पर्थ है
04:29इसलिए सरीर को लगी चोटने आत्मा तक नहीं पहुंसती
04:33इसलिए सरीर जवान हो, बुड़ा हो, जीए, मरे, कोई घटना आत्मा तक नहीं पहुंसती
04:43गुर्जेफ ने सब्द ठीक चुना था, कुंडवफर
04:47इसको जगाने की कोई जरुवत नहीं
04:55इसका काम भली भांती हो रहा है
05:03इसे जगा के भी स्वयम तक पहुँचा जा सकता है
05:07लेकिन वो नहा की जंजटे मोल लेनी
05:11वो ऐसे जैसे को कान अपना उल्टे आँ घूम के सिर के पीछे से पकड़ने की कोशिस करे
05:16कोई प्रियोजन नहीं
05:19मगर योग की बहुत सी प्रक्रियाएं
05:24उल्टी हो गई
05:26उल्टी हो गई इसलिए कि कठिन एहंकार को बहुत ज़स्चता है
05:31सिर के बल खड़ें तो बहुत ज़स्चता है
05:34जैसे कोई महनकारी कर रहे है
05:36सिर्फ बुद्धु मालम पढ़ते हैं
05:40मगर सिर के बल खड़ें तो महनकारी कर रहे है
05:42सिर्शासन कर रहे है
05:45सरीर को इरच्छत रिच्छा कर रहे हैं
05:50सरीर को ऐसा आरात रिच्छा कर रहे हैं
05:53कि कोई दूसरा न कर सके
05:55और दूसरे न कर सके
05:57क्योंकि इसके लिए आप ब्यास चाहिए
05:59तो आप महात्मा हो गए
06:01महान योगी हो गए
06:03क्योंकि कोई दूसरा इसको एकदम नहीं कर सकता
06:06जो आप कर रहे हैं
06:07ठीक उसी तरह कुंडलनी का भी
06:11उपद्रो मोल लिया
06:13एहंकार नहीं
06:16इसको जगाने से
06:19कुछ सिद्धियां उपलब्ध हो सकती है
06:22और एहंकार सिद्धियों से बहुत प्रसंद होता है
06:25जिससे अगर कुंडलनी को तुम जगाओ
06:30उसकी जगाने की प्रिक्रियां है
06:33प्रिक्रियां सब जटिल हैं और कठिन है
06:38उल्जन भरी
06:39सुगम नहीं सरल नहीं
06:42इसलिए भारत में एक परमपरा चली है
06:45जो इसके बिल्कुल बिपरित रही
06:47सहज परमपरा
06:49सहज यान
06:51जिसका कहना किसी तरह के उपदराओं में मत पढ़ो
06:55क्योंकि छोटी मोटिशी हैं पैदा हो जाएंगी
06:58जिससे अगर तुमारी कुंडलनी जाग जाए
07:00तो तुम दूसरे के विचार पढ़ सकते हो
07:02मगर अपने विचार काफी नहीं है पढ़ने को
07:05अब दूसरे की खोपड़ी का कचरा तुम पढ़ोगे उससे क्या मिलने वाला है
07:10अपनी खोपड़ी में ही काफी भरा है
07:13इससे ही तो निपट नहीं पा रहा हूँ
07:16कि अब दूसरों के विचार पढ़ोगे
07:19हाँ थोड़ा बहुत चमतकाल लोगों को दिखाने लगोगे तुम
07:23जैसे कोई आया और उसने पूछे नहीं कि समय कितना और तुमने बता दिया कि साड़े नो बज़े
07:31तो वो चौके गया एकदम क्यों कि पूछने आया था कि कितना बज़ा है
07:35मगर इसका सार क्या है
07:49कुंडलनी जगाने में वर्सों लगेंगे और ये काम तो च्छन भर्म हो जाता उसको पूछना तो तो पूछ ले था
07:57रामकर्ष्ण के पास एक आदमी आया जिसकी कुंडलनी जग गई थी
08:01वो बोला एक मैं पानी पे चल लेता हूं
08:03कुंडलनी जग जाया तो पानी पे चलने की संभावना है
08:06क्योंकि कुंडलनी तुम्हें पृत्वी के गुरत्वा कर्षन से तोड़ दे सकती
08:12मगर खत्रे भी हैं उसके
08:16क्योंकि पृत्वी के गुरत्वाकर्षन से तूट गए
08:21तो तुम्हारे सरीर की बहुत सी प्रक्रियां अस्तिवेस्थ हो जाएंगी
08:24जो कि गुरत्वाकर्षन से बंदे होने के कारण नहीं देवस्थी थे
08:28वो आदमी पानी पे चल लेता था
08:34उसने रामकृषन को आती से चनवती दी कि तुम बड़े परमहंस
08:38लोग कहते हैं महात्मा अगर हो महात्मा तो आओ चलो गंगा पर
08:42मैं पानी पे चल सकता हूँ रामकृषन ने कहा कि बहुत बढ़ी है
08:47कितना समय लगा पानी पे चलना सीखने में
08:51उसने का अठारा साल लगे रामकृषन का हद हो गए
08:55मुझे तो जब उस पार जाना हो ता दो पैसे में पार जला जाता हूँ
08:58दो पैसे का काम अठारा साल में तुमने किया
09:03और ऐसे मुझे ज़्यादा जाना भी नहीं पड़ता कभी चार च्छे मेंने में एक दफ़ा
09:09सुसाल में समझो कि एक चार पैसे का खर्च है
09:15अठारा साल में समझ लोगे एक रुपईए का खर्च है
09:18एक रुपईए के बीचे अठारा साल गमा दी
09:22भाई ये तू होस में है
09:24और पानी पे चल के करेगा क्या
09:28सगूम फिर के फिर यहीं आ जाया
09:32राम किशन ठीक कह रहे है
09:42मगर वो आदमी अकड से बरा हुआ था
09:46वो एहंकार से बरा हुआ था
09:48अब जगदिस तुम्हें क्या फिकर पड़ी
09:51कहते कुंडलनी जगाना चाहता हूँ
09:54कुंडलनी तुम्हें सिद्धी देगी
10:00ये तो सिर्फ एक संभावना है
10:03ज़्यादा संभावना तो यह है कि विक्षिप्तता देगी
10:07इसलिए तुम अनेक सादू सन्यासियों को पागल होते देखोगे
10:11और पागल हो जाने का कारण क्या होता है
10:17उन्होंने जीवन का जो सहज क्रम है उसको तोड़ दिया
10:21जो उर्जा किसी और काम के लिए एक बनी थी
10:27उसको उन्होंने मस्तिस पे चड़ा लिया
10:29कुणलनी जगने का आर्थ होता है
10:32कि जो उर्जा तुम्हारे काम केंदर पर सोई हुई है
10:37उसे उठा के मस्तिस में चड़ा लो
10:40ये खतरनाक धंदा है
10:45क्योंकि खोपड़ी में वैसे ही काफी उपद्रो मचा हुआ है
10:52वहीं तो तुम्हारा पागल खाना है
10:55और काम उर्जा को भी वहां ले जाओ
10:59तो तुम विक्षिप्त हो सकते हो
11:05कुंडलनी जगाने वाले अधिक लोग विक्षिप्ता में पहुँच जाते
11:12मस्तिस फटा पड़ता है
11:15क्योंकि उर्जा सम्हाले नहीं समगती
11:18और उर्जा इस हालत में ले आती
11:22कि फिर संगत असंगत कुछ भी नहीं सूझता
11:25मुझे ऐसे कई लोगों को मिलाया गया है
11:29जो सर्फ विक्षिप्त है
11:33जिनको मांसिक्षी किस्सा की जरूरत है
11:37और उनकी बुनियादी भूल
11:40वह यह जग्दी जो तुम करना चाहते हो
11:43और एक दफ़ा मस्तिस में उर जाया
11:49तुम्हारे सामर्थ के बाहर पहुँच जाया
11:53कुण्डलनी जगाने की आवशकता नहीं है
12:07यहां भी हम कुण्डलनी ध्यान करते हैं
12:12लेकिन प्रीयोजन कुण्डलनी जगाना नहीं है
12:17प्रीयोजन कुछ और है
12:18प्रियोजन है भीतर वो जो कुंडलनी की उर्जा है उसको न्रत्य देना
12:28प्रियोजन बड़ा अलग है
12:30तुम्हारे भीतर जो उर्जा है अभी सोई है
12:36या तो जगाई जाए
12:39तो जगाने के लिए धक्के देने होंगे
12:46जगजोरना होगा
12:49मेरा अपना अनुभोई यह है कि जगाने की कोई ज़रुवत नहीं
12:54इससे सिर्फ नरत्य दिया जाए
12:56इससे संगीत पून किया जाए
13:00इससे आनंद उत्सव में बदला जाए
13:05तो धक्के देने की कोई ज़रुवत नहीं
13:10पस्षिम का एक बहुत बड़ा नरतक निजिन्स की हुआ
13:15अभी इसी सदी में हुआ
13:17वो जब नास्टा था तो कभी कभी ऐसी घटना घट जाती थी
13:22कि वो इतनी उची छलांग लगाता था जो कि गुरत्वा कर्षन के नियम के विप्री थे
13:27विज्ञाने खहरां थे यो हो नहीं सकता
13:32इतनी उची छलांग लगी नहीं सकती
13:34लगनी चाहिए नहीं क्योंकि गुर्तवा कर्ष्ण का नियम इतने दूर तक तुम्हें उठने नहीं देगा
13:41और भी चमतकार की बात थी वो ये कि जब वो इतनी उची छलांग लगाता था
13:47और वापिस लोटता था तो इतने आहस्त लोटता था
13:51जैसे कि कोई पक्षी का पंक आहस्त आहस्त दोलता डोलता हवा में तैरता तैरता नीचे आ रहा हूँ
13:59वो भी बिल्कुल उल्टी बात है गुर्तवा कर्ष्ण एकदम से खींचता है चीजों को
14:04जैसे कोई पत्थर गिरे ना कि कोई पंक निजिंस्की से जब भी पुछा गया कि तुम कैसे करते हो तो वो कहता कि यह
14:16मैं खुद भी सोचता हूं लेकिन मैं करता हूँ ये बात ठीक नहीं है यह हो जाता है
14:23मैंने जब भी करने की कोशिस की तभी ये नहीं हुआ
14:26करने की मैं कई दफ़ा कोशिस कर चुका
14:29क्योंकि इसका एकदम चमतकार की तरह प्रभाव पड़ता है
14:31एकदम सन्ना टचा जाता है
14:32दर सक एकदम बिमुक्त हो जाते
14:35एकदम सांसें रुख जाती हैं लोगों की
14:53ये कभी-कभी होता है जब मैं करने की कोशिस में होता ही नहीं
14:58जब मैं नाच में लीन होता हूँ
15:00ऐसा लीन होता हूँ कि मेरा एहंकार बिलकुल मिठी जाता है
15:03तब ये घटना घटती
15:05तो अब तो मैंने करना छोड़ दिया निजिंस की कहता थे
15:08अब तो जब ये घटता है घटता है नहीं घटता नहीं घटता
15:13एक सुत्र मेरी समझ में आ गया है
15:16कि ये किया नहीं जा सकता है
15:19सिर्फ घट सकता है
15:22और घटने का अर्थ है
15:24कि मेरा एहनकार लीन हो जाए
15:27तो बस कुछ रहसपून ढंग से ये घटना घटती है
15:34निजिन्स की अंजाने उस अवस्था में पहुँच रहा था
15:38जिसमें मैं कुंडलनी ध्यान के द्वारा तुम्हें ले जाना चाह रहा हूँ
15:42कुंडलनी ध्यान का वही प्रियोजन नहीं जो सद्यों तक रहा है
15:47मेरे हिसाब से हर चीज का मैं प्रियोजन बदल रहा हूँ
15:53कुंडलनी ध्यान का यहां अर्थ है
15:59तुम नाचो, मगन हो, डूबो
16:03ऐसे डूब जाओ कि तुम्हारा एहंकार अलग न रह जाए
16:07बस फिर तुम्हारे बीतर कुछ घटेगा
16:11तुम एकदम गुरत्वा कर्शन के बाहर हो जाओगी
16:14और तुम अचानक धीतर पाओगे ऐसा सन्नाटा चाया है
16:18ऐसा कुआरा सन्नाटा जो तुमने कभी नहीं जाना था
16:22तुम गदगद हो जाओगी
16:26तुम लोटोगे जब वापिस तुम दूसरे ही व्यक्ति हो जाओगी
16:31ये कुंडलनी जगाने की पुरानी परक्रिया नहीं
16:34ये कुंडलनी को नरत्थ देने की परक्रिया है
16:39ये बात ही और है
16:41अगर तुम्हें कुंडलनी जगाना तो भईया कहीं और
16:48अगर कुंडलनी को नरत्थ देना है
16:55तो यहां ये गटना गट सकती
16:58और फासले बहुत है
17:03कुंडलनी को नरत्थ मिल जाए भीतर की उर्जा नाचने लगे
17:06तो कोई खत्रा नहीं है तुम विक्षिप्त कभी नहीं होगी
17:10तुम और भी ज़्यादा स्वस्थ हो जाओगी
17:14तुम्हारी विक्षिप्ता कुछ होगी तो समाप्त हो जाएगी
17:18और तुम्हारे एहंकार को कभी बल नहीं मिलेगा
17:24कि पानी पे चल के दिखा दूँ
17:26कि बादल में आकास बेट के दिखा दूं
17:28कि हवा में ओड के दिखा दूं
17:30क्योंकि एहंकार मिटेगा
17:31तभी ये नरत्य होगा
17:33और जब भी एहंकार वापस लोटेगा
17:36तुम ये करी नहीं पाओगी
17:38ये तुम्हारे एहंकार के बसमन ही होने वाली बात
17:41कुंडलनी जगाने की जो प्रक्रियाँ हैं
17:44वो तुम्हारे एहंकार को भर सकती
17:46ये प्रक्रिया तुम्हारे एहंकार को मिटाती पौँचती
17:54पतंजली ने जब सुत्र लिखेते उस समय को
17:575000 साल बीट गए
17:595000 साल में आदमे को बहत कुछ अनभा हुए
18:04पतंजली खुद भी अगर आज वापिस लोटे
18:07तो मुझ से राजी होंगे
18:09क्योंकि पांच जार साल में जो मनुझ सुकौन भो हुए
18:13पतंजली को उनका हिसाब रखना पड़ेगा
18:16उनके आधार पर फिर से योग सुत्र लिखना होगा
18:19बुद्ध को हुए धायाजार वर्स हो गए
18:24महावीर को हुए धायाजार वर्स हो गए
18:26काफी समय है ये
18:28दुनिया बैल गाड़ी से
18:30जैट बिमान तक पहुँच गई
18:32मनुझ वैसा ही नहीं रहा जैसा था
18:36और इस बीच हमने जो अनुभव किये
18:40उन अनुभवों नहीं हमें बहुत कुछ सिखाया है
18:43मैं जो भी ध्यान की प्रक्रियाएं दे रहा हूँ
18:47वे अधुनातन है
18:50अगर पुरानी प्रक्रियाएं भी उपयोग कर रहा हूँ
18:54तो उनमें से उस सब को काट दिया है
18:57जिन से तुमें खत्रे हो सकते
18:59और उस सब को जोड़ दिया है
19:01जो कि इन धाई तीन हजार पांच हजार सालों के अनुभव से जोड़ा जाना चाहिए
19:10यह एक अभीनाव प्रियोग हो रहा है
19:14अगर सब्द मैं पुराने भी उपयोग कर रहा हूँ
19:19क्योंकि सब्द तो पुराने ही है
19:21सबी सब्द पुराने कोई ने कोई सब्द उपयोग करना होगा
19:24तो भी मैं उनको अर्थ अपने दे रहा हूँ
19:28पुराने सब्दों के ब्रक्षों पर
19:31अपने अर्थ की कल में लगा रहा हूँ
19:34इसलिए तुम मेरे सब्दों को ठीक पुराने अर्थों में मत लेना
19:40नहीं तो तुम मुझे नहीं समझ पाओगे
19:47तुम कुछ का कुछ समझ लोगे
19:48तुम वंचिती रह जाओगे उस अनूठे
19:52प्रियोक से जो यहां चल रहा है
20:10प्रियोक से जो यहां चल रहा है
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