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00:00कर दो कर दो जल्दी से दूसरी चोगी में सुजित करो जल्दी
00:30कि नहीं नगरी से कुछ लोग राज परिसर में घुसने का प्रेप्न रहे हैं
00:37महराज का जीवन संचक में है हमें उसे किसी भी हालत में ढूंगा होगा
00:41कर दो
00:45कर दो
00:53कर दो
00:57महराज नगर कोट की भित्ती फांद कर कोई शत्रू घुसाया है को शत्रू नहीं
01:03आप इधी प्रदा है महराज
01:07काउं तो चील लिया अप्ता से भी चिना चाते हैं
01:13क्या बोल रहे हो तुम
01:16मैंने लोगों को गाउं से दूर किया ताकि रूग्यों को चिकित्सा मिले गरीबों को रोटी मिले
01:21किसी को किसी बाद की कभी नहो जेतना चीना है उससे अधिक देने का प्रयत ने किया है
01:27मैंने पर तच्छाई तो यह है है महाराज
01:30वहां अन्न का एक दाना तक नहीं है
01:35फूखा लोग पर रहे हैं वहां
01:40अपने प्राड़ों पर खेल यह यात्रसना ने आया हूं महाराज
01:46किसी पी चड़वा प्रित्सी वहां
01:57कि ओक झाल एक था जर्णा प्रीको झालों
02:15कि को लूभा च्रीको लो प्रहे है
02:21को बदित्सी प्राड़ों आया है
02:25कि यह जो उख कियो आप Bennett हो उख क्यों क्या उख कोगर तो
02:38कि अ अट्था टो हूं इसम्राश पीलिया था इसने कि अथिक सुम्रस पीलिया थासने अपना संतुलन कोगड़
02:47कि एचाव सएड्स
02:55माय, जब तुम बड़े हो जाओगे, ना, आएंगे वागा ना, जब तुम बड़े हो जाओगे, ना,
03:25तो मा, हर बात क्यों समझने के लिए बड़ा होना आवश्यक है?
03:31हर प्रेशन को आयू के अनुसार ही समझा जाता है.
03:35जब हर प्रेशन का उत्ते बड़े होने के पष्टात ही मिलना है.
03:40तो एस आयू में मुझे ये प्रेशन क्यों आते हैं, मा?
03:43महामंत्री, इस माही के बाद पर तुम्हें कितना बिश्वास?
03:53महाराज, माही का वचन और उसकी तलवार का पिलवस्तू के लिए हमेशा से निश्रावान रहें.
03:58यदि आज वो रोगी नहीं होता, तो हमारी सेना का नेटित्त कर रहा होता.
04:03पुरुनोदन?
04:04जी, जी भाई महाराज.
04:06नहीं नगरे में अनाष पहुचाने का दाईथ तो किसका?
04:09वह शी गौरी गजानन का महाराज.
04:13यह वह वह शी है जो उस दिन न्यासभा में आसत्य बूलते पकड़ा गया था?
04:16जी महाराज.
04:17कालो सन्यासभा में प्रस्तूत किया जाए?
04:22जो आग्या महाराज.
04:29नहीं भाई महाराज.
04:32वैश्ची गौरी गजानन का न्यासभा में प्रस्तूत.
04:35नहीं.
04:37मुझे तो लगता है गौरी,
04:39जैसे ही तुम न्यासभा पहुचोगे,
04:42बंदी बना लिये जाओं.
04:43लेकिन क्यों?
04:45मुझे क्यों बंदी बनाएंगे?
04:47मेरे पास तो महाराजी का आदेश है.
04:50जिसमें स्वायम उन्होंने नई नगरी में अनाज पहुचाने पर रोग लगाई है.
04:53जैसी मूर्खों जैसी बातें करते हो गौरी.
04:57अगर वो आदेश देतें,
04:58तो क्यों तुम पर क्रोथित होते हैं?
05:00क्यों तुम्हें लियाई सभा में बुलाते हैं?
05:03सोच गौरी, सोच!
05:05मेरे भाई मुझे तो कपट लगता है.
05:07एक बार बंदी बना लिये गए, तो बस गए.
05:11तो मैं क्या करूँ?
05:13मेरी बात मान, तो भाग जाए यहां से, और फुन्दू स्थैनिक को, जिसने महाराज का वो आदेश पत्र तुझे दिया था.
05:23सोच मत गौरी, भाग जाँ!
05:25क्या वेश गवरी गजानन उबस्ते था हैं?
05:44जी नहीं महाराज, जैनिकों न राज के हर कोने में च्छानविन की, तिन तो गवरी गजानन की कोई सूशनाने मिलीगी.
05:55कदाजी, वो राज जी है.
05:58क्या उसके अनुपस्तरी है, उसके अतराज होने की पुरुष्टी नहीं?
06:01जी महाराज, इसके लिए शाक की नहीं में क्या प्रवधान है?
06:07जब तक गवरी नहीं मिलता महाराज, तब तक इस विशय को स्थगित कर दें.
06:12महाराज इसके पहले कि मैं आगे कुछ कहूं, आपको अभयवचन देना होगा मुझे.
06:22महाराज इसके पहले कि मैं आगे कुछ कहूं, आपको अभयवचन देना होगा मुझे.
06:37अभयवचन?
06:39जी हां, महाराज.
06:41मैं तुम्हें अभयवचन देता हूं, मात्य.
06:47महाराज नई नगरी में अन पहुचाना राजी का उत्तरदैतु था.
06:52और इस कारे के लिए गौरी को नुक किया था, वो असफल रहा.
06:57और कोई नहीं जानता कि इस समय वो कहां है.
07:00पहले भी गौरी इस न्याय सभा में अपरादे सिद्ध हो चुका है.
07:04नहीं सभा ये बात जानती है, मात्य.
07:07तो महराज अब उसके अपराद का उत्तरदैत उसी का बनता है.
07:14जिसने गौरी का उत्तरदैत लिया है.
07:18भाए माराज, आप क्रोधित नहीं जानता है.
07:40और इसे इसे शमा करतीजे.
07:46भाए माराज, कदाचित अमात्य थी कह रहा है.
07:51हमें इस न्याय को स्थागित कर देना चाहिए.
07:56भाए द्रोडदन, याय होगा.
08:00अवश्य होगा.
08:02परंतु भाए माराज, यूराज सिद्धार तो बालक है.
08:06वो कैसे गौरी के अपराद के उत्तरदाई हुए?
08:09उत्तरदाई तो लेने वाले को कल दंगरा में प्रसुत किया जाए.
08:14याय होगा.
08:16यह तुम क्या करें?
08:34यह तुम क्या करें?
08:36सिद्धारत पर दया कीजिए दे.
08:39मुझे दंड़त कीजिए.
08:42मैं कोड़े काने को तयार हूँ किंतु.
08:45किंतु सिद्धारत को दंगरा मत ले जाए.
08:48जब न्यास हवा ले जाने से नहीं रोका,
08:52दंगरा ले जाने से क्यों?
08:56तर क्या यह उच्छत है भाया,
08:59कितनी कम उमर में वो दंगरा देखे.
09:04आप तो चाहते थे कि सिद्धारत पर दुख की छाया भी न पड़े.
09:09जब नहीं नगरी के निर्मान के लिए आप प्रजा के प्रती निष्ठुर हुए,
09:14तो मैं आपकी पुत्र इसने को समझ सकती थी.
09:18किन तो आज आज आज आज आपके उसी पुत्र के प्रती निष्ठुर होगे, तो अब येसने किस के प्रती?
09:27जाय के प्रती.
09:32जीवन नंग तक सिद्धा तब कभी नयाय नहीं करेगा.
09:36हाँ, और किसी का उत्तर दायत्व तो तब ही ना लेगा.
09:42मैं चाहता हूँ कि वो प्छत्रिय बन थे, संबराड बन थे, अपने खुल का नाम उजबन करे.
09:51क्या राजा राम हमारे खुल के नहीं थे?
09:56क्या राम राजिस से बढ़कर और कोई धारन है क्या देख?
10:12मैं पिता के साथ साथे कराजा वी हूँ.
10:15जब नयाहसन पर बैटता हूँ तब तो उतर जाएए ऐसे नयाहसन से.
10:20मैं शाख के कुल की ऐसी साशन प्रणाली को नहीं मानती.
10:24जहाए एक तेरदोश को उसकी करुणा के लिए तंड दिया जा रहा है
10:30आट वर्षों में सुख के अतिरिक्त कुछ नहीं देखा
10:34अब आट कोड़ों में आट जन्मों का दुख देख लेगा आपका बदीचा
10:42उसने न्याय सभा के समक्ष कवरी का उत्तरदाई तो लिया था
10:47तर वो अभी पालक ही है भाईया आरिया आरिया आरिया आरिया ओ आरिया पता नहीं अब महराज क्या न्याय करेंगी
10:59उस दिन पूरी सभाने सितार्थ की न्याय को माना अब सभा के न्याय को उसे मानना ही होगा
11:07ऐसा न्याय जो शाक्यों के इतिहास में कभी किसी राजाने ने गिरा
11:29मा अब सोबह से डून रहा था तुमें और तुम यहां तुम रो क्यों रही हो मा
11:47पिछली बार जब मैं गुरु कुल जा रहा था तब भे तुम रो रही सी जब भी मैं कोई नई जगा जाता हूँ तब तुम रोने लग जाती हो
11:59और लोशिका कह रही थी कि आज में डंड्रह जा रहा हूँ
12:02महादेवी हम यह उराज को लेने आए हाँ चलो मा डंड्रह देखकर आता हूँ
12:29आज मज़न मेरे संदात के रक्षा करना में
12:43इतनी चोटी आयू और इतना बड़ा दन्ट
12:54इतनी चोटी आयू और इतना बड़ा दन्ट
13:13महाराज यह भीड न्याय की विंती के लिए कृपा कर आप अपने न्याय को स्थागित करते हैं महाराज
13:31हाँ भाई महाराज मैं आकाश पाता लेकर उस वैश गोरी को ढून निका दूँगा
13:36उत्तरदायत वलेरे वाले को उपस्तित किया जाए
13:40वाले के लिए बड़ा यप स्थागी का लेकर आप दूपा दूपा निका भाई महाराज पाई पाता एंदे पाता हैं
13:44शुपा दोरी के लिए भाई निका आप पाता हैं
13:48बड़ा आप बढ़ा हैं
13:50झाम हां अप्स्तित किया उन्या हैं
14:10मैं लज्जित हूँ के नहीं नगरी के लोगों के साथ अन्याय हुआ
14:21अन्न पहुचाना राजा का कर्तव्य है और ये दाइत वो मैंने गौरी को दिया था
14:28उस दोबारा प्राद किया तो उसका उत्तर दाइत वो लेने वाला उसके दंड का अधिकारी है
14:37श्वा किजे महाराज मैं आई सभा में आपने एक राजावत कर सोचा अब एक पिता बन कर सोची
14:58उत्तर दाई दंड भुगनने के रिए सक्षम नहीं
15:04इसलिए उसका दंड उसके पिता को दिया जाता है
15:13आप जिए अटे जिए आप अपते क्या कह रहें जएख गोड़ देना राजा का धरम था और दंड भुगतना इता का धर्म है परंदु बार्म नाच इसका युगराज सिधार्द पर क्या असर पड़ेगा युगराज शिद्धार पर्ड़ेग दिया ठाजव औरच्छ प�
15:43मेरे पुत्र को ये ग्यात हो जाएगा कि बिना सोचे समझे जूटे मनुष्य का उत्तरदाई तो लेना भी अप्राध है
15:52कुवरा से राज नहीं चलते
15:56महाराज
16:01उठाओ कोड़ा मैं तयार हो
16:13कोड़ा उठाओ अन्यदा तुवे भी दंडेत क्या जाएगा
16:19महाराज
16:42as
16:44है
16:50कि
16:51उस
16:52उस
16:52है व है ठीख ुपós
16:56को
16:56म्हाराज समा है नगरी में आन्न पहुचाने का दाई तो तुम्हारा थाया नहीं का ओर्या
17:01हा मार turns are
17:03जई जए लए Il
17:06क्योंकि माराज वों भी तो आपी का आधिश था
17:08स्या
17:09मेरा आदेश
17:15यह देखिए यह रहा आदेश पत्र
17:20बैश्य गौरी गजानन इस पत्र के साथ तुम्हे आदेश दिया जाता है कि आज तक
17:27राज के आदेशा नुसार जो अन्न तुम नई नगरी को भेज रहे थे
17:31इसे ठगित कर दिया जाए
17:39यह पत्र खोटा है
17:47मैंने असे कोई आदेश नहीं दिया
17:50जी माराज यह आदेश पत्र खोटा है
17:59परन्तु इसका प्रमान क्या है इस पर तो राज की महर लगी हुई है
18:05महर लगाने वाले से एक भूल हो गई है
18:08लोहे की नकली मुहर लगाने के फलस्फरो इसके सता पे उभरी वी हाथी की चित्र
18:14खुरदुरी जो की असली स्थोने के मुहरते नहीं होती
18:18यह पत्र तुम तक किस ने पहुँचाया
18:22राजी के एक सेरिकन महराज
18:24कहा है वो सेरिक
18:25महराज मैं उसी को ढूंड रहा था
18:27सुयम को निर्दोस प्रमारित करने का बत वही एक मात्र प्रमार था महराज
18:33पर वो अभी तक मिला ही नहीं
18:35तुम नाय वेवस्था को भ्हमित करे हो गवरे
18:38शमा महराज शमा मैं दंड भुगतने को तैयार हूं महराज
18:43शाक के नयत अणाली के हरुसा तुमारे पास केवल दो ही परिया है
18:48एक तो कोड़े अन्यता नगर निकाला
18:52महराज मैं नगर छोड़ दूँगा और जाने से पहले
18:56मैं एक बार यूराज सिधार से मिलना चाहता हूं
19:20आपने मुझे सत्य के मार पर चलना सिखाया
19:25आपका विश्वास बना रहे
19:28इसलिए मैंने किसी भी तरह कर लालच ना करके
19:33कोई भी छलगपड नहीं किया
19:36सत्य स्वेम प्रकाशेत होता है
19:42आज नहीं तो कल अप्रादी अवश्य डण पाएगा
19:56महाराज कलकुली नरेश, महाराज मादन पानी, महादेवीमिता को
20:16प्रजापती लगता है वो आगए तुम देखना उनके स्वागत में कोई तुटी ना रहे अमिता दीदी आप निश्चिंत रहें यदि वो आपके स्वामी है तो मेरे भाई है प्रजापती तुम देखना के शुब अफसर पर भाया और उनके बीच कोई राज्किय बाते ना �
20:46मैं ऐसा होने नहीं दूँगा
20:48कपिलवस्त में कोलिया नरेश महाराज दंडपानी के आगमन से हमारा अभिमान और बढ़ किया है
21:08स्वागत हैं आपका
21:09कदाचित आप सम्मंद भूर रहें महाराज
21:13कोलिया नरेश इस घार के जमाई है
21:16और एक जमाई ससुराल स्वागत का अफसर कैसे जाने दे सकता है
21:22महाराज दंडपानी जमाई होने का लाब उठा रहे हैं
21:32आप से अपने चरन धुलवाना चाहते
21:36तशलाल आईए चरन प्रक्षालन के बाद ही जमाई बीतर कदम रखेंगे
21:45चरन तसले में रखे भाईया
21:57ये तुम क्या कर रही हो प्रजब
21:59मैं कपिलवस्तु के महराज के अर्धांग में हूँ
22:03अर्थात ये धर्म मेरा भी उतना ही हुआ
22:06और आप मेरे बड़े भाईया तो ये दोरा आफसर में कैसे छोड़ दू चरन तसले में रखेंगे
22:12तुम भली भाती जानती हो कि कोलिये पुत्रियों और भगिनियों से चरन सपर्ष नहीं कराते
22:23वेने लुए
22:25कपिल वस्तु में आपका सुआगत है भाईया
22:32सुआगत है आपका
22:34जैसे समाज को सही मार्व दर्शन देना भामन का कर्तव्य है
22:44वैसे ही
22:46समाज की रक्षा करना शत्रिय का कर्तव्य है
22:50और शत्रिय बिना शत्र के अधूरा है
22:53शत्र हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं
22:57और इन शत्रों का ग्यान देने आए हैं
23:00राजा में तो दन
23:03आज हम धनुर विद्या सीखेंगे
23:09ये कमान है
23:12इसे प्रत्यंचा कहते हैं
23:16और ये है तीर
23:17इस तीर को इस कमान पर रख लक्षन इस्चित कर
23:22इस तरह प्रत्यंचा को खीच छोड़ते हैं
23:27ये तो सरल है इससे तो उड़ते पक्षी भी किर सकते हैं
23:37हां कुमार देवदत परन्तु ये विद्या निरंतर अभ्यास से ही प्राप्त होती है
23:44ये
23:50अच लो भो चाहत है
23:53कि ब्रूप ले ब्रूप होता
23:56कि ब्रखूँग track
24:00तुम देवदत की तरह शस्त्रों का भ्यास क्यों नहीं करते हैं?
24:17मुझे शस्त्र अच्छे नहीं लगते हैं
24:19अब अश्त्र?
24:20मुझे सारे प्राणी बहुत अच्छे लगते हैं
24:23कितने संदर पुष्प हैं
24:30तुम इतने सारे पुष्प का क्या करोगी?
24:35मैं इन्हें देवदता ले जाऊंगी
24:37हमारे यहां ऐसे संदर पुष्प नहीं होते हैं
24:40यह लेची
24:55यह लेची
24:57यह लेची
25:01इतुगा यह लेची
25:03यह लेची
25:31इतने संदर पुष्प
25:33मैंने उुड़ते पक्षी को मार गिराया
25:35ले लो
25:37मैं राज आमितोधन को दिखा हूंगा
25:42सुना नहीं तुमने
25:44यह मेरा खेट है
25:47इसे मैंने बचाया है
25:50यह पक्षी न्या है
25:52तुम अपने जेष्था का अपमान कर रहे हैं उसे धार्त
25:55सब्सक्राइब कर रहा हूं जेश्टा आखे एक शत्रिय गुन है रक्षा शत्यों का करताव यदी तुमने मुझे ये पक्षी नहीं लोटाया तो अच्छा नहीं होगा नहीं देगा वापको क्या कर लो के वैसी घरी म्याइस्वाव में जाकर महाराज से याशना करूंगा हा
26:25कर रहा हूं जाकर महाराज से याशना कर रहा हूं
26:55कुरुनोदान ये न्याय घंट किसने बजा है मैने महाराज मुझे न्याय चाहिए देवदत क्या वाथ है तुम इतने क्रोधित क्यों आप ही बताए महाराज मैने तीर चलाया एक पक्षी का अखेट किया तो उस पर किसका थी कार हुआ
27:12ये तो उजाले में परचाई जैसे सरल बात हुई जिसका तीर अखेट उसी का अखेट मैने किया पर यूराज सिर्धार्त ने वो पक्षी मुझे चीन लिया उजे अपना अधिकार चाहिए
27:26ये न्याए मांगने का उचित समय नहीं देवता तर तर तो उचित समय कम है यार के लिए न्याए सभा होती है अब चाल ना से जोधित क्यों होते हो अनुच
27:48अश्य बच्चों की हठ और जिग्यासा दोनों पर ही ध्यान देना चाहिए
27:55कि यो महराज शुद दोधा तो उचित कहाना आप जैसे गुनिजन अनुचित कैसे कैसे जब देवदत ने न्याए घंग बजा ही दिया है तो उसे न्याए भी अवश्च से मिलना चाहिए
28:16महराज महादे भी अचानक अस्वस्त हो गई है
28:20क्या हुआ माँ आखे खोलो क्या हुआ इने सुबह प्रात्ना करते समय अपना संतुलन खो गैठी और गिर गई
28:42माँ क्या आपने भी माही जैसे सोम्रस पान क्या था जो गिर गई
28:49क्या हुआ प्रजाद
28:57शुप समाचार है भईया इस बुआ को एक और अफसर मिलेगा नामकरन संसकार में आने का
29:18महादेवी माँ बनने वाली है बदाई हो प्रजबदी बदाई हो महाराज धोधन बदाई हो
29:28बदाई हो भाई महाराज गुल गुरु से शुब मोहरत निकाल कर यह समाचार कपिल वस्तु में पहुचा दो
29:36उच्छब का आगमन होने वाला है कोई कमी नहीं होनी चाहिए
29:40हाँ महाराज अब कपल वस्तु को कोई चिंता ही नहीं रही
29:47अब यह दि असित मुनी की वानी सत्य भी होती है तो भी राजे को भैबीत होने की कोई बात ही नहीं
30:02नया उत्रादिकार चौने वाला है क्यों महादेवी है ना
30:09मेरा मित्र कुंच आगया चलिए मैं आपको उस्ते मिलवाता हूं अरे अभी ना अरे चलिए
30:25वैसे सत्य कहा है आपने सिधात को एक और भाई मिल जाएगा लड़ने के लिए
30:34लड़ने के लिए ये कैसी अशुब बाते कर रहे हैं आप भी जो देखकर आ रहा हूं वही कह रहा हूं अमीता कुमार देवदत ने आज ही युवराज के विरोधि
30:47नयाय याचना की है याचना हाँ और कल भरी सभा में उस पे सुनवाई भी होगी
30:57कहो कुमार देवदत आप दरवार से क्या नयाय चाहते हैं महराज मैंने पक्षी का अखेट किया वह पक्षी मेरा हुआ
31:15महराज ये पक्षी मुझे घहला आफस्ता में मैंने मैंने मुहां रक्षा की और ये मेरे पास रहेगा
31:25को भी अन्याय करना है कि ये पक्षी किसे दिया जाया जिसने उसे घहल किया उसे य insecticте रक्षा की उसे
31:33आखेट करना तो क्षत्रियों का गुण धर्म है युवराज
31:39निर्बल की रक्षा करना शत्रियों का करतव है माराज
31:44पक्षी देवदत के तीर से घायल हुआ ये तुम मानते हो न तुम
31:50पर अब ये मेरी शर्ण में है ये बात आप मानते हैं या नहीं
31:55मुझे तुम्हारी क्षत्रियता पर संदेह है और मुझे तुम्हारी मनिश्रता पर
32:00घायल करने से पीडा होती है चुतकार उठता है
32:06पर रक्षा करने से स्लेह बढ़ता है जगत में स्लेह बढ़ना चाहिए या पीडा
32:15जिस तरह हर बादल से पानी नहीं बरसता जिस तरह हर वर्ष खेट में एक सा अनाज नहीं उपता
32:26जिस तरह मनुश्य की पाचों में एक सी नहीं होती उसी तरह आखेट भी हर शत्रियत का गुन धर्व नहीं हो सकता
32:33सच्चे शत्रिय रक्षक होता है ऐसा अचारे कहते हैं ज्रम रक्षा शत्रिय द्रम जीव रक्षा पर मो द्रम
32:46अब आप की नहीं कीजिए
32:52दाद भी मेरे और होडी भी मेरे
32:59कुल्गुर वाचस्पती किरपा करके आप ही नियाय करें
33:06राजर प्रश्टी यह है कि इस पक्षी पर अधिकार केस का है एक निशत्रिय गुन धर्म दिखाएं और एक निशत्रिय धर्म
33:23मैं भी असमर्थ हू राजर अब यह नियाय तो स्वेम पक्षी ही कर सकता है
33:30मैं भी असमर्म
33:40वाचस्पत्रिय तो स्वेम
33:46झाल झाल
34:16जबराश सधार्थ गेग
34:46यह सब क्या है प्रजापती?
35:00माई किसे जारी हो मितादीदी?
35:02इतना प्रेंस ताज जाएगा ही जाएगा
35:04मैं तो कहती हूँ इस बार तुम भी हमारे साथ देवदा चली चलो
35:08बर्शो से तुम नहीं आई हो वहाँ
35:10असे एक बार यो व्राज पड़े हो जे
35:13फिर निश्चिन्थ होकर आजा सकूँ
35:16इतने सारे के लिए देवदा तक जाएगा ये इसे भूत लगे और रास्ते में कुछ ना मिले तो
35:26पित्र होने के नाते मेरा भी तो करता है कि मैं इसका ध्यान रखू
35:31मैं भी तो तमारी मित्र हूँ तम मेरे लिए कुछ नहीं लाए
35:34इतने सारे पुष ये तुम लाए नहीं मैं लाया हूँ देवदा तुम आ तुम्हें ये पुष बहुत पसंद है ना हाँ बहुत पैसे अब पता नहीं सिर्क कब मिलना हो बहुत चल्द ये बुआ नामकरण के समय तो आएगी ही और कह देती हूँ आने वाले युवराज का
36:04सिधार कहा है पता नहीं मैं भी उससे ही धून रही हूँ सिधार सिधार ये देखो कुंछ ने देख लिया सिधार को
36:22कहां थे तम तुम्हारे लिए भेट लाने गया था कहां है दो
36:34यह क्या है एक जंगल है यह तो भीज है यह कोई भेट करने की चीज है हमारे आचारे कहते हैं हर आख में कई सपने होते हैं हर आसु में एक समुंद्र होता है हर तलवार में एक सीना छुपे होती है
36:57उसी तरह हर बीच में एक जंगल छुपा होता है इने बहुगी तो सारा देवता पुष्प से खिल जाएगा
37:10तुमादी याद आएगी याद आने से स्नेहें बढ़ता है
37:25जगत में स्नेहें बढ़ना चाहिए ऐसा अचारियों कहते हैं
37:30महादेवी आपके औशिदी का समय हो गया है लोशिका औशिदी बाद में बहुता है
37:32महादेवी आपके औशिदी का समय हो गया है लोशिका औशिदी बाद में पहले तू तेल लगा ठीक है
37:34महादेवी आपके औशिदी का समय हो गया है लोशिका औशिदी बाद में पहले तू तेल लगा ठीक है
38:02महादेवी शुप समाचा सुनकर मन प्रसन हो गया है मानो पंख लगे हो हट ऐसा लग रहा है जैसे मैं हवा के साथ दौर रही हूँ
38:22पर सुबाद इस परिशद में लोरियां गूजेगी तेल थारियां सुनाई देगी है ना हाँ
38:34पर एक बात समझवे नहीं आई महादेवी वो क्या मंगरा थे थी
38:41सराब वहां तो देखो उस कोने में वो मूर्ती वो वो राम की मूर्ती महादेवी माया लाई थी
38:57अच्छा अब सराब वहां तो देखो वो कोने में वो क्रिश्न की मूर्ती मैं लाई थी अब सराब
39:12तोनों मूर्ती को एक ही समय एक साथ देखो तो
39:18यह क्या ठिटोली है मंगला दीवी ठिटोली नहीं है महादेवी सत्य है
39:30अब यही सुचो एक कोने में सिथार्थ खड़े और दूसरे कोने में आपके होने वाली संतान
39:45तो तो दोनों का ज्यान एक साथ कैसे रख पाओगी महादेवी तो दोनों मेरी दो आखें होंगी मंगला दीवी
39:54तो आखें एक ही मन निशक्य होती है फिर भी इनमे कितनी पेनिता एक फड़ पड़ाए तो शगन होता है
40:09और यदी तूसरी फड़ पड़ाए तो अब शक्र
40:16कर दो
40:17केवर सथार को देखोगी तो अपनी संसान के साथ अन्याइए करो
40:25और केवर अपनी संसान को देखोगी
40:31केवर सथार को देखोगी तो अपनी संसान के साथ अन्याइए करो
40:38और केवर अपनी संसान को देखोगी तो अराज को दुख पोचाओ
40:47कर दो दूख अजहां
40:50मुझे वचल देखोगी तो मेरी सिधार को उसके सभी मा बनकर पादेगी
41:00सिधार को एक और भाई में जाएगा लड़ने के लिए
41:07यह संतान हर शक्रण आपके आज एत उसके बनकर भड़ी रही रही देखोगी
41:13कि अजया चटे कि टुवी के तो मेरी से बादे
41:20साहे जाएगी जाएगी
41:25कि वह एक यह और भाई
41:29कि यह प्राई
41:32कि उख प्राज़
41:37कि यह प्राई
41:41झाल
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