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  • 3 months ago
'फूड विथ डिग्निटी' को सफल बनाने के पीछे एक छोटी सी टीम है. इस टीम में केवल एक वॉलेंटियर और 9 महिलाएं शामिल हैं.

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00:00पश्यम देली के मायापूरी के नजदेग मायापूरी इंक्लेव के सोसाइटी गेट पर ये फूड स्टॉल देखी और इसके आगे लगी ये लाइन
00:15इस स्टॉल पर ना कोई नाम है, ना बैनर और ना ही कोई विज्ञापन
00:19मजदूर लाइन में लगकर अपने नंबर का इंतिजार करते हैं
00:23यहां महज 10 रुपे में खाना मिलता है
00:26मजदूर भर पेट कम पैसों में खाना खा सके ये सोचकर ये वैवस्था की गई है
00:31एक NGO की ओर से इन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए या इंतजाम किया गया है
00:37हमारी उडान नाम की संसाथ चलाने वाले संजय बताते हैं
00:41कि 2014 में एक हवाई दुरखटना में एक करीबी दोस्त की मौत हो गई थी
00:46इसके बाद कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने इस NGO की शुरुआत की
00:50हमारी उडान का जो आप देख रहे हैं पीछे मेरे 10 रुपे में
00:54Food with Dignity के नाम से सेवा करते हैं हम लोग
00:57इसका हमने साड़े छे साल पहले स्थापित किया था
01:00यहां पर आप देखेंगे मेरे पीछे और मेरे आसपा देखेंगे तो मजदू लोग
01:13रेडी रिक्षा वाले और आजकल तो डिलीवरी बॉइस वगरा आटो रिक्षा वाले यह सब लगबा की रोज खाने आते हैं
01:19और प्रती दिन करीब 220 से 250 फ्लीट खाना जाता है हमारा इसके पीछे शचिकला जी कारण था कि हम ना हमने इसका नाम फूड वी डिग्निटी रख रहा है
01:33हम किसी के आत्मसमान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते कि कोई हमारे आगया कि हात पहला एक खाने के लिए
01:38इसलिए हमने इसको 10 रुपे का रखा कि आदमी अपने स्वाभीमान से 10 रुपे देखकर इस खाने को खरीदगा खा रहा है प्लस एक हमारे को एक चेंज का भी वो था कि ऐसा आमोंट रखा जाग एजली आदमी के पास चेंज अवेले बोलो या हमारे पास चेंज उनको वा
02:08और पांच लोग यहां पर डिस्ट्रिगुशन में काम करते हैं और हमारे साथ यह आप देखेंगे 80 साथ से ऊपर एक वाले इंटर अंकल जी जुड़े में यह हमारे स्वाल का सारा देख भाल करते हैं ख्यार लगते हैं
02:18देखें अच्छे काम की खुश्बू अपने आप फैलती है धीरे धीरे लोगों को आते जाते लोग दो रुके चार रुके रुके रुकते गए और जैसे उनको खाना पसंद आया तो अपने आप आप आटोमेटिकली लोग रेगुलरली आने लगे लगवक 70-80% यहां पर �
02:48दिगनिटी मुहिम के साथ यह समाज सेवा का काम किया जा रहा है ऐसा करने का विचार नौइडा में लोगप्रिय दीदी की रसोई से आया
03:18अब रोज सुबा ग्यारब बजे समान लेकर स्टॉल पर आ जाते हैं दो बजे तक खाना खत्म हो जाता है
03:48यहां सभी को खाना खिला कर बहुत कुशी मलती है
04:18अच्छा लगता है यहां आकर के यहीं खाकर तो जाते हैं आ रहा था हूँ जैसे तो देखाना पूंट रहा था लो तो में खाना शुरू किया वो दिन से अब उधर होटल में बंद कर दिया यहीं से शुरू कर दिया खाना खाने कर दो लिए
04:40दस रुपए में मिलने वाले खाने की असल लागत 25 रुपए है छे साल पहले इसकी लागत 16 रुपए हुआ करती थी
05:10दस रुपए के बाद की जो लागत आती है उसकी भरपाई संस्था करती है
05:15बहुत सारे ऐसे मज़़ूरे जो डेली आते खाने पुछले 6 सालों से यह दोर चला आ रहा है
05:20कई वॉलेंटियस जुड़ थे उन्होंने भी बताया कि उनके जीवन में इस काम में जुड़ने के बाद काफ़ बदलाब देखने के लिए मिला है
05:27मैं से शिकरा सिंग इटीवी भारत दिल्नी से
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