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00:00एक गाउं की एक छोटी सी घर में मधुकर नामक एक आदमी रहता था वो गन्ने की रस बना के बेचता था
00:08मधुकर को बहुत महनत करके काम करने की मान सिकता था
00:13एक दिन मधुकर गन्ने की रस बना के बेच रहा था तब
00:17मधुकर तुम गन्ने की रस बहुत अच्छा बनाते हो
00:26हाँ मधुकर तुम्हारे हाथों में जादू है
00:29ऐसे गन्ने की रस पीते मधुकर की प्रशंसा करते थे लोग
00:34मुझे आलसी ना होके मेरे गन्ने की रस के बारे में
00:39सबको पता चलने के लिए अच्छा और स्वादिष्ट रहने वाली गन्य की रस बनाना होगा।
00:46ऐसे हर रोज वो और स्वादिष्ट गन्य की रस बनाने का प्रायत्न करता था।
00:51वो दिन प्रती दिन स्वादेश्ट और ताजा गन्य की रस बनाने के कारिन उस गाउ में बहुत प्रसित था।
01:00एक दिन मदुकर देर रात तक दुकान में ही रहके और नए तरीके से गन्य की रस बनाने का प्रयत्न कर रहा था।
01:09मुझे कल आज से पहतर गन्य का रस बना के बेचना होगा।
01:14ऐसे सोचकर दुकान में ही रहके गन्य का रस बना रहा था।
01:18इतने में उस गाउं में घूम रही एक देवता उस तरफ से गुजरते हुए
01:24प्यासी होने के कारण गन्य की रस का दुकान को खुला देख सोचती है
01:29लगता है वहाँ कोई गन्य की रस का दुकान खुला है
01:33कम से कम उससे मेरा प्यास बुचेगा
01:36लेकिन मैं ऐसे नहीं जा सकती हूँ
01:38ऐसे सोचके देवता एक आदमी की नकल में दुकान को जाती है
01:43भाई साब मुझे बहुत प्यास लगी है एक गलास गन्ने का रस मिलेगा
01:51जी भाई साब अभी मैं इनको अधरक और निम्बू को मिला के बनाए हुए गन्ने की रस देता हूँ
01:58अगर अच्छा है तो वो मुझे बोलेंगे और मैं कल से ही सब को बेच सकता हूँ
02:04ऐसे सोचकर वो अधरक और निम्बू मिला के गन्ने का रस पना के उस आदमी को देता है
02:12वो आदमी रस स्वादिश्ट रहने पर एक और गलास मांगता है
02:16अरे वा तुम गन्ने का रस बहुत अच्छा बनाते हो
02:20अगर तुम हर रोज इसी वक्त पे अपना दुकान खुला रखते हो
02:24तो मैं आकर गन्ने का रस पी के चला जाओंगा
02:27मेरे पास पैसे नहीं है
02:31ऐसे कैकर मदुकर को स्वादिश्ट करने का रस बनाने के लिए
02:35एक बैक दे कर चला जाता है
02:37मदुकर उस बैक को जब खोल के देखता है
02:40तो उसमें सोने को देख खुलश होता है
02:43मुझे हर रोज इस समय तक दुकान को खुला रखना होगा
02:48तबी मैं और पैसे कमा पाऊंगा
02:51ऐसे हर दिन वो उस आदमी के आके रस पीने तक दुकान खुला रखता था
02:57वो तेरता एक आदमी के नकल में हर रोज आके
03:01रस पीके
03:03उसे एक सोने का बैग देके चली जाती थी
03:09मदुकर हर सुबह ज्यादा मेहनत करके गन्य का रस बनाके उसे बेच के
03:17मिलने के पैसे से ज्यादा उसे शाम में उस आदमी के एक गलास पीने से कमा रहा था
03:23और इस वज़े से वो दिन पूरा मेहनत करने के पजाए सिर्फ शाम में ही दुकान खोलने का फैसला लेता है
03:31मुझे हर रोज सुबह गन्ने का रस बना के बेचने की ज़रूरत नहीं है
03:37अब से सिर्फ उस आदमी के आने के समय पर दुकान खोल के स्वाधिश्ट करने का रस बना के उन्हें देना है बस
03:45उनके दिये हुए सोने से मैं आराम से जी सकता हूँ
03:50ऐसे सोचकर मदुकर उस आदमी के आने के समय पर ही दुकान खोलता था
03:55ऐसे उनके देवे सोने से खुशी खुशी जी रहा था
03:59एक दिन मदुकर उसके दोस से मिलता है
04:02क्या हुआ मदुकर आजकल दुकान नहीं खोल रहे हो
04:06कुछ नहीं दियापार अच्छा नहीं चल रहा इसे दुकान नहीं खोल रहा हूँ
04:12मुझे अब से दुकान खोलने की कोई जरूरत नहीं है
04:16मैं अगर थोड़ी देर शाम में दुकान खोलूंगा
04:19तो मुझे दिन पूरा मैनत करने से भी दुगना पैसा मिलेगा
04:22हर रोज उस आदमी के आने के टाइम पे वो दुकान खोलता था
04:28और उसे ताजे गनने का रस बना के देता था
04:33ऐसे कुछ दिनों में सुबा दुकान ना खोलने के कारण उसकी आदते बदल गई थी
04:39मैनत से काम करने वाला मदुकर अब कोई मैनत के बिना आराम से रहने लगा
04:45एक दिन मदुकर उसके पास के सारे पैसे गिनते हुए उस आदमी के आने के समय पे दुकान नहीं खोलता है
04:53वो आदमी आके देखता है कि दुकान खोला नहीं है और वहां से चले जाता है
04:58गिंती में व्यस्त मदुकर को अचानक याद आता है कि वो दुकान खोलना बूल गया
05:04लेकिन समय तब तक बहुत हो चुका था और वो दुखी होता है कि अब तक वो आदमी चला गया होगा
05:10अरे रे, आज के आने वाले पैसों को खो दिया मैंने
05:15कल मैं उस आदमी के आने के समय से पहले ही दुकान खोल दूँगा
05:20ऐसे सोच कर पैसे कमाने की सोच में मगन होकर और दुख के कारण वो पूरी रात नहीं सो पाता है
05:27सुबह होने के बाद भी वो सोई बिना सोचते ही रहता है
05:32आज मैं उस आदमी को ताजा गन्य का रस पिला के ही चैन से सो पाऊंगा
05:37ऐसे सोच के वो सोई बिना बैचे रहता है
05:41मगर शाम को वो अपनी नींद रोक नहीं पाता है
05:44उस आदमी के आने से पहले बहुत समय है न
05:48इस पीच मैं थोड़ी देर के लिए सो के उठ जाओंगा
05:51और सो जाता है
05:53ऐसे उस आदमी के आने के समय पे भी सोते ही रहता है
05:57आदमी जब गन्य का रस पिने दुकान आता है
06:01तो दुकान फिर से बंद रहता है
06:03ये दुकान दार न जाने क्यों आजकल अपना दुकान नहीं खोल रहा
06:07कल भी दुकान बंद ही था
06:09कल से यहां ना आना ही बैतर होगा
06:12ऐसे सोचके वो आदमी वहां से चला जाता है
06:16और जब तक मदुकर उठता है
06:18तब तक तो बहुत देर हो चुकी होती है
06:20हाई भगवान आज भी मैं दुकान खोल नहीं पाया
06:24वो आदमी आकर देख के चला भी गया होगा
06:27अगले दिन वो ध्यान से दुकान उस आदमी के आने के समय पे खोलता है
06:33लेकिन बहुत देर इंतजार करने पर भी वो आदमी लोट के नहीं आया
06:37ऐसे मधगर कुछ दिन और इंतजार करता है
06:41मगर वो आदमी लोट के नहीं आता है
06:44उस आदमी का लोट के नआने का वज़ा मैं ही हूँ
06:47मेरे दो दिन दुकान ना खोलने के वज़ा से ही उसने आना बंद कर दिया
06:52मुझे दुगना पैसा मिलने पर मैंने मेहनत करना बन कर दिया
06:56मेरे पास के पैसे सारे खतम हो जा रहे हैं
07:00अगर मैं कल से वापस दुकान को हमेशा की तरह सुबा नहीं खोला तो मुश्किल हो जाएगा
07:06अगले दिन से वो सुबही दुकान खोल के गन्ने का रस बना के बेशना शुरू करता है
07:13मगर बीच में कुछ दिन आलसी बनने के कारण काम नहीं कर पाता है
07:18लेकिन खुशी से जीने के लिए अपने आपको बदल के महनत से गन्ने का रस बेचके काम करने लगता है
07:25कुछ दिनों में वापस उसे महनत की आदत लग जाती है
07:29उसे उसकी गलती का एसास होता है
07:32और तब से वो आसानी से गन्नी का रस बना के उसे बेच के उसे पैसों से खुशी-खुशी जीता है
07:39तो इस कहानी का नैतिक क्या है?
07:41महनत से जीने की जरूरत एक आदत बना चाहिए
07:45तब ही हम अच्छे स्तान में रहेंगे
07:47और साहस से हर मुश्किल का सामना कर सकते है
07:50एक लंब ऐसा में पहले एक गाउ में रत्नदीब और रानी नमत पती-पत्नी रहते थी
08:00रत्नदीब खुद के होटल में दोसा तयार करके बेचता था
08:05वो दोसा बनाता था और उसकी पत्नी सबको वो परोषके उनसे पैसे लेती थी
08:11रत्नदीब सिर्फ स्वादिश दोसा ही नहीं बनाता था
08:15बलकि उन्हें बहुत ही कमदाम पे बेचता था
08:18इस कारण गाउं के सारे लोग उसी के पास आके दोसा खरीत के खाते थी
08:25वो एक अच्छा इंसान था और सबके मदद करता था
08:29लेकिन उसकी पत्नी लालची थी
08:32उस गाउं में उसके हाथ का अंडा दोसा पहुत प्रसत था
08:36क्योंकि उसकी ही तरह और कोई अंडा दोसा नहीं बना पाता था
08:41इतना ही नहीं उस दोसा को कम दाम पे बेचने पर सभी वही आते थे
08:47उसके पत्नी को दोसा को कम दाम पे बेचना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था
08:53इतना ही नहीं गाव में कोई भी उसके पती की तरह दोसा नहीं बना पाएगा
08:58इस बात का उसे पहत गर्व था
09:01एक दिन जब रत्नदी दोसा बना रहा था
09:04उसे कुछ दूरी में एक बूड़ा आदमी बैठे हुए और कामते हुए दिखाई देता है
09:09आरे रे दिखने में बहुत बूड़ा है पता नहीं कि उन्होंने कुछ खाया भी
09:15ऐसे सोचकर उनके पास जाता है
09:18भाय साब आप यहां क्या कर रहे हो
09:22बेटा चलने की ताकत नहीं होने के कारण यहां थोड़ी देर रुक के जाने के लिए बैठा हूँ
09:31आपको देखके लग रहा है कि आपने शायद कुछ नहीं खाया
09:35मेरे साथ आईए बगल में ही मेरा होटेल है कुछ खाके जाईए
09:40मगर मेरे पास पैसे नहीं है बिटा पैसे देने की कोई जरूरत नहीं है
09:46होटेल मेरा ही है आप बस मेरे साथ आओ
09:49ऐसे कहके उस बूड़े आदमी को उसकी साथ अपनी होटेल लेके बिठाता है
09:56वो गरम गरम दोसा बना के उसके पत्नी को उनको परोसने के लिए कहता है
10:01उसकी पत्नी को वो करना अच्छा नहीं लगने के बावजूद उस बूड़े आदमी को दोसा परोसती है
10:08भूका रहने के कारण वो बूड़ा आदमी दोसा को जल्दी जल्दी खा लेता है
10:14उस आदमी को ऐसे खाते हुए देख रतनदीब उसके लिए पानी लेके आता है
10:19मेरे भूके पेट को तुमने भरा है
10:23इसके बदले में मैं मेरे पास की चोटा सा तौफ़ तुमें देना चाता हूँ बेटा
10:28आपको कुछ भी देने की कोई जरूरत नहीं है भाई साब
10:32मेरे खुशी के लिए तो स्वीकार करो बेटा
10:34ऐसे बोलके वो बुड़ा आदमी उनको दोसा बनाने के लिए एक तवा देके वहाँ से चला जाता है
10:42उस आदमी के जाने के बाद उसकी पत्नी उसके पास आकर कहती है
10:48क्यों जी पहले तो आप सब को दम दम में दोसा बेच रहे हैं
10:53और उपर से अप रस्ते में जाते हुए अंजान लोगों को बुला के उन्हें मुफ्त में खिला के भेज रहे हो
10:59इससे क्या कोई लाब है?
11:02ऐसे दोसा बनाने से हमारे पास कुछ नहीं बच रहा
11:05अब हमारा इतना कटन स्तिती भी नहीं है कि हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है न?
11:13जितना है उतने में दूसरों का साहयता करते हुए खुश रहना चाहिए
11:17अपने पती के बाते सुनकर रानी गुसे में वहां से चले जाती है
11:23जितनी भी बार कहूँ इन से ये नहीं बदलेंगे
11:29सबकी साहयता करते ही रहते हैं
11:32अगर मैं उनको बताए बिना दोसा का दाम बढ़ाओंगी
11:36तब ही हमारे पास कुछ तो पैसे बचेंगे
11:39ऐसे फैसला करके अपने पती को बताए बिना दाम बढ़ाती है
11:45आम दोसा 15 रुपे का और अंडा दोसा 25 रुपे का
11:50ऐसे होटल को आए हुए लोगों को बोलती है
11:54आपके होटल में स्वादिश्ट खाना बनने के अलावा
11:58कम दाम पर मिलने के कारण ही हम सब आपके पास आते हैं
12:02मगर अब आप ऐसे दाम अच्छानक बढ़ाते हैं तो कैसे होगा
12:07आरे आपको दोसा चाहिए तो खाएए वरना नहीं
12:11मेरे पती की तरह अगर कोई और इस गाओ में स्वादिश्ट दोसा बनाता है
12:15तो उसी के पास जाके दोसा खाओ
12:17ऐसे कचिन तरीके से कहती है
12:21दाम बढ़ाने के बावजूत खाने के लिए सभी उसी होटल को आते है
12:26कुछ दिन बाद पैसे बच्चते हैं और ये देख रानी बहुत खुश होती है
12:32मेरे दाम बढ़ाने के बावजूत अगर लोग इसी होटल में खा रहे हैं
12:38तो इसका मतलब ये है कि मैं दाम और थोड़ा बढ़ा सकती हूँ
12:42आज से अंडरा दोसा पच्चास रुपए और आम दोसा पच्चीस रुपए का है
12:48ऐसे होटल को आए हुए सब को बोलती है
12:51अरे आपके होटल के दोसा चाहे कितना पी स्वादिष्ट क्यों न हो
12:56ऐसे दाम बढ़ाते जाओगे तो लोग कैसे खरीद पाएंगे
13:00अरे आपको अगर चाहिए तो इदार आके खाईए वरना चले जाएए
13:06ऐसे अभिमानी स्वबाब से कहने के कारण
13:09वो आदमी उसके सामनी से ही दूसरे होटल को चला जाता है
13:14उसको देख बाकी लोग भी चले जाते हैं
13:18तब से सब उनके होटल को आना ही बन कर देते हैं
13:22रानी, क्या हुआ? कुछ दिनों से कोई भी होटल को नहीं आ रहा
13:27हमारे जैसे और दूसरा कोई भी दोसा नहीं बना सकेगा
13:32इसलिए कभी ना कभी उन सब को लौट के आना ही पड़ेगा
13:37मेरी पत्नी की लालच की बारे में तो मुझे पता ही है
13:41या तो उसने होटल को आई हुए लोगों को कुछ कहा होगा
13:45या फिर क्या मुझे बताए बिना उसने दाम बढ़ा दिया होगा
13:50ऐसे सोचके कुछ नहीं कहता है और वहां से चला जाता है
13:55ऐसे बहुत दिन बीटने के बाद सब ही उसके होटल के बज़ाए उसके सामने के होटल को जाते हैं
14:02मेरे लालची स्वबाफ के वज़े से ही मैंने दाम बहुत ज्यादा बढ़ा दिया
14:08और अभी सारे लोग हमारे होटल के बज़ाए सामने वाले होटल को जा रहे हैं
14:13ऐसे सोचकर दुखी होती है
14:17उसको ऐसे दुखी देख उसका पती उसके पास आकर पूछता है
14:22कम से कम अब तो सच बोलो लोग हमारे होटल क्यों नहीं आ रहे हैं
14:28ऐसे पूशने पर रानी अपने पती को सब सच बता देती है
14:32देखा तुमने तुम्हारे लालच के वज़े से हमें क्या बुकतना पड़ रहा है
14:38कम से कम तुम्हारा सुवबाव अब बदलो और हमेशा की तरह वही दाम लगाओ
14:44तभी हमारे पास सारी ग्राहक आ जाएंगे
14:47आइंदा मैं ऐसे कभी नहीं करूँगी अब सब आप ही की मर्जी
14:52रत्नदीब अगले दिन से उसी दाम पे दोसा बना के बेशने लगता है
14:58आम दोसा सिर्फ 10 रुपे का और अंडा दोसा सिर्फ 15 रुपे का
15:03ऐसे जोर-जोर से चलाने पर उसकी सारे ग्राहक सामने के होटल से उसके होटल वापस आ जाते हैं
15:10ऐसे कुछी दिनों में वापस होटल भीड़ित रहने के खारण दोसा बनाने में देर लगता है
15:17इसलिए रत्नदी फैसला करता है कि एक और तवा खरीदने की आवश्यक्ता है
15:23आरे हाँ उस बूड़े आदमी का दिया हुआ तवा तो है ही
15:28ऐसे सोचके अंदर जाके उस तवे को बाहर लेके आता है
15:34उसमें एक दोसा बनाते ही वो एक दोसा बहुत सारा दोसा बन जाता है
15:41और ये देख वो आश्यर चके तरह जाता है
15:44हाँ ये क्या माया है रानी रानी एक बार दर आओ
15:49हाँ जी क्या हुआ ये देखो तो सही
15:54ऐसे उसके विसान में उस तवे पे दोसा बनाता है
15:58और तुरंत वो कई दोसा बन जाना देख वो भी दंग रह जाती है
16:03ये कौन सा जादू है जी?
16:06एक दोसा कई दोसा में बदल रही है
16:08तुम्हें वो बुड़ा आदमी याद है?
16:11उसी का दिया हुआ तवा है ये
16:12और तुमने उस दिन उनको दोसा मुफ्त में देने के कारण गुसा किया था
16:17ये सब आपके सहायता करने के वज़े से ही मुम्किन हुआ है जी
16:21ऐसे उस दिन से अंडा दोसा को कम दाम पे बेचके
16:26बचे हुए दोसा को गरीब लोगों को मुफ्त में देखके
16:30पते पत्नी दोनों खुशी से जीने लगते हैं
16:34एक बार की बात है रामू नाम का एक लड़का रहता था
16:38वह अपनी दादी के साथ रहता था
16:42क्यूंकि रामू के पास उसके माता पिता नहीं थे
16:45इसलिए उसकी दादी ने उसे बहुत लाट प्यार दिया
16:49रामू को अपनी दादी के साथ समय बिताना बहुत पसंद था
16:53रामू हर दिन स्कूल जाता था
16:56घर लोटता था और अपनी दादी की कहानिया सुनता था
17:00जल्दी ही उसने अपनी सात्वी कक्षा पास की
17:04आगे की पढ़ाई के लिए उनके गाओं में कोई स्कूल नहीं था
17:08इसलिए रामू घर पर वापस आ गया
17:12और अपनी दादी की दैनिक कामों में मदद करने लगा
17:16जब वे घर के कामों में मदद कर रहा था
17:19तब उसने अपनी दादी की मदद से चाय बनाना सीखा
17:23रामू बहुत कुशल था
17:26और वे जो चाय बनाता था वे स्वाद में बहुत लजीज थी
17:30हर बार जब वे अपनी चाय का स्वाद लेती थी
17:37तो उसकी दादी उसकी तारीफ करती थी
17:40रामू हमेशा महमानों और अपने दोस्तों को चाय परोस्ता था
17:45एक बार उसकी अंकल दिवाकर ने कहा
17:55आहा रामू तुम्हारे हाथों में जादू है
17:59क्या चाय है
18:01यह सच में बहुत स्वाज़िष्ट है
18:04धन्यवाद अंकल
18:05मुझे खुशी है कि आपको मेरी चाय पसंद आई
18:09मेरी चाय का स्वाज चखने वाले सभी लोगों ने मेरी बहुत तारीफ की है
18:14रामू तुम बाजार में हमारे गाओं के लोगों के लिए अपनी चाय क्यों नहीं बेचते
18:20मुझे यकीन है कि तुम इससे कुछ पैसे कमा सकते हो
18:27रामू ने उनका सुझाओ लिया और गाओं में बेचने के लिए चाय बनाई
18:35सभी को चाय का स्वाद बहुत पसंद आने लगा
18:38और ये बात पूरे गाओं में फैल गई
18:41अहा, वह, क्या चाय है
18:52ग्राम प्रधान ने रामू के इस हुनर के बारे में सुना
18:59और उन्होंने रामू को मिलने के लिए कहा
19:02रामू, तुमारे हाथों में एक जादू है
19:06तुमारी चाय कमाल की है
19:08जी, शुक्रिया, मुझे बहुत खुशी है कि आपको मेरी चाय पसंद आई
19:14रामू, अपने भविश्य के बारे में सोचो
19:17अब तुम बच्चे नहीं हो
19:18अब जब तुमने चाय बनाने में महारत हासिल कर ली है
19:22तो तुम शहर में अपनी चाय बनाने क्यों नहीं जाते
19:25शहर के लोगों को भी अपनी चाय का स्वाद लेने दो
19:31और मुझे यकी है कि शहर के लोग तुम्हारी चाय को बहुत बसंद करेंगे
19:37और तुम इससे अच्छा पैसा कमा सकते हो
19:40रामू ने प्रधान के शब्दों के बारे में सोचा
19:43और उसे लगा कि यह करना सही है
19:46मैं आपसे सहमत हूँ
19:49आप पूरी तरह ठीक हो
19:51लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं तुरंट शहर जा सकता हूँ
19:56अरे रामू बेटा तुम इसकी चिंता ना करो
20:00मैं अभी के लिए खर्चा सम्हाल लूँगा
20:03पैसे ले लो और तुरंट शहर जाओ
20:05रामू गाउं के मुख्या से सहमत हो गया
20:08अपने पैसे लेकर शहर चला गया
20:11उसने चाई की थड़ी में एक व्यक्ति से संपर्क किया
20:20और उससे एक रोजगार मांगा
20:22मालिक ने उससे अपनी दुकान में काम करने का मौका दिया
20:28रामू तो बहुत खुश हुआ
20:29कि उसे एक चाई की दुकान में नौकरी मिल गई है
20:32लेकिन रामू को वहाँ चाई बनाने का तरीका पसंद नहीं आया
20:38दूद के बजाए वे दूद पाउडर का उप्योग करते थे
20:42एक अच्छी गुणवत्ता वाली चाई पती के बजाए
20:46वे सस्ती चाई की पतियों का उप्योग करते थे
20:49और कुलड के बजाए वे प्लास्टिक के कप का उप्योग करते थे
20:53इतना ही नहीं
20:54वे एक विशेश चाई बेचने का दावा करते थे
20:58रामू इसे देख कर एक पल भी वहाँ नहीं रुखना चाहता था
21:01और अपने गाउं वापस जाना चाहता था
21:04उस घटना के बाद रामू चाय की दुकान के मालिक को देखने गया
21:08सर मैं यहां काम नहीं कर सकता
21:12मैं यह नौकरी छोड़ना चाहता हूँ
21:14क्या तुम्हें तो यहां एक भी दिन नहीं हुआ
21:17और तुम छोड़ना चाहते हो
21:19कम से कम मुझे कारण तो बताओ
21:21कि तुम क्यों छोड़ना चाहते हो
21:22मुझे यह चाय बनाने का तरीका पसंद नहीं है
21:25चाय बनाने के लिए आप जिस दूद का इस्तमाल करते हैं
21:29वे मिलावट है अच्छा फिर चाय कैसे बनाई जाती हैं हमारे पास रोजाना 20 नियमिद गरहक आते हैं क्या वे हमारे चाय के सौध को पसंद किये बिना ही रोज आते हैं अगर हम असली दूद के साथ गुणवत्ता वाली चाय बनाते हैं तो सिरव 20 नियमिद गरहक क्यूं म�
21:59मेरे द्वारा बनाई गई चाय का स्वाथ सभी को पसंद है।
22:04ओ, सच में? क्या इतनी कमाल है? ठीक है फिर, आईए देखें, आप चाय कैसे बनाते हैं?
22:13मालिक रामु को रसोई में ले गया।
22:16और रामु को यह दिखाने के लिए कहा कि वैं चाय कैसे बनाता है।
22:21फिर रामु ने चाय बनाने की प्रक्रिया शुरू की। उसने शुद्ध धूद, अच्छी गुणवत्ता वली चाय की पत्ती, शुद्ध चीनी, और प्लास्टिक के कप की बजाए मिट्टी के बने कुल्लड का इस्तमाल किया।
22:36जिसने चाय को शांदार स्वाद दिया। चाय बनाने की पूरी प्रक्रिया देखने में शांदार थी। मालिक और अन्य लोग जो इस प्रक्रिया को देख रहे थे। वे हैरान थे। और रामु की चाय बनाने की प्रक्रिया को देखते रहे। उसने चाय तयार की और वहां क
23:06हम तुमारे नुकसे के अनुसार चाय बनाएंगे। हम अब पुराने नुकसे का उप्योग नहीं करेंगे।
23:14तब से मालिक ने चाय बनाने के लिए रामू के तरीके का इस्तमाल किया।
23:19लोग चाय की दुकान पर रोज जाने लगे
23:23चाय का स्वाद लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते थे
23:27और दुकान में खड़े होने की भी जगा नहीं थी
23:29पहले से भी अधिक मुनाफ़ा किया
23:32रामु को एक अच्छा नाम मिला
23:35उसके कौशल को पहचाना गया
23:38और लोगों ने उसके हाथों में जादू
23:40और उसकी चाय के दिव्यस्वाद के लिए उसकी सरहाना की
23:44रामु को शहर में एक अच्छा नाम मिला
23:48और वहे अपने गाउं लौट आया
23:50उसकी दादी को उस पर बहुत गर्व था
23:53और वह दोनों गाउं के मुख्या को देखने गए
23:57और उनका आशिरवात लेने गए
23:59रामु ने मुख्या से लिया पैसा वापस कर दिया
24:02मुख्या को रामु पर पहुत गर्व था
24:05और उसकी कड़ी महनत के लिए उसकी सरहाना की
24:08रामु को ग्रामीनों के सामने सम्मानित किया गया और जमीनदार ने उसकी सफलता की कहानी सभी ग्रामीनों को सुनाई
24:16रामु ने गाउं के कई युवा बेरोजगारों को प्रेरित किया
24:20सभी ने रामू से प्रेरित होकर अपने लक्ष के प्रती मेहनत करना शुरू किया
24:26किसी ने भी गाउ में गरीबी या बेरोजगारी नहीं देखी