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00:00माधफपर नामगे गाओं में थे दो आदमी विनोध और सात्विक जो पडोसी थे
00:07विनोध था बहुत आलसी और कोई काम नहीं करता था
00:11पर सात्विक के पास बहुत गाय थे जिनका दूद बेच कर वो पैसे कमाया करता था
00:18इसी दोरान दूद का धंदा काफे बढ़ रहा था
00:23तो सात्विक ने सोचा कि अब वो पडोसी गाओं में भी दूद बेचना शुरू करेगा
00:30अपने जमाय हुए पैसों से उसने नई साइकल खरी दी
00:35जिससे वो बाकी के गाओं में जाकर दूद बेचने लगा
00:38एक सुभा जब सात्विक काम के लिए अपनी सैकल पर निकला तब विनोध ने उसको दिखा
00:45अरे मुझे बिना बताय सात्विक ने नई सैकल खरी ली उसके लोटने के बाद पूछोंगा
00:53विनोध उसके घर के बाहर सात्विक के लोटने का इन्तिजार करनी लगा
00:58कुछ समय बात सात्विक दूद बेच कर वापस आया, जब हो सात्विक
01:03तुमने नई सैकल खरेद ले?
01:09हाँ विनोद, क्यों क्या हुआ?
01:12अरे कुछ नहीं बस यही जाना चाता था कि नई सैकल के लिए पैसे कौन से आये?
01:18भाई, आज तक जो भी दूद बेचा ना, उसमें से मैंने थोड़ा थोड़ा जमाया इस सैकल के लिए, जिसकी मदद से अब मैं पास वाले गाओं में भी जाकर दूद बेचनी लगा हूँ
01:31अच्छा, आरे तू तो काफी समझधार निकला सात्विक
01:37विनोध हसते हुए सात्विक के लिए खुश होने का नाटक किया और फिर अपने घर चला गया
01:43घर जाकर विनोध सोच में पढ़ गया कि इतने कम समय में सात्विक ने नई सैकल खरीत कैसे ली
01:51विनोध ने खुद तो कुछ नहीं लिया, उदास होकर विनोध के हिरी सोच में ही टूबा रहा
01:56मैं क्यों इतना उदास रहूँ, अगर मैं भी सात्विक की तरह कुछ काम करूँ तो पैसे जमा कर, मैं भी अपनी मन पसंद चीज़े खरीच सकता हूँ
02:06पर मैं करूँ क्या, अरे हाँ, मुझे तो जिलेबी बनाना बहुत अच्छी तरह से आता है, हाँ, मैं एक जिलेबी की दुकान शुरू करूँगा
02:17फिर अगले दिन विनोध ने अपनी एक छोटी सी दुकान खोल दी और गरम गरम जिलेबी बेचने लगा
02:24एक जिलेबी पांच रुपे, आधा किलो पचास रुपे और एक किलो सो रुपे में
02:30इस प्रकार विनोध ने बहुत स्वादश जिलेबी कम भाबने बेचनी लगा
02:36उसके गरमा गरम जिलोबियों की सुगंध गाउं के कोने कोने तक पहुँच गई
02:42गाउं के सारी लोग विनोध की दुकान पर आने लगे मज़ेतान जिलेबियों का सुवाद लेने के लिए
02:48कुछ ही दिनों में विनोध की जिलेबी बहुत मश्यूर हो गई
02:52एक दिन रमेश नामा के एक आदमी उसकी दुकान पर जिलेबी खा रहा था
02:59वहाँ विनोध दुभारे हातों की बनाई हुए जिलेबी बहुत ही मज़ेतार है
03:06इतने कमाल की जिलेबी मैंने आज तक खाए ही नहीं भाई वाह
03:11ऐसा कहकर रमेश जिलेबी की मज़े ले रहा था और बागी के लोगों ने भी उसकी बहुत तारीफ की
03:18पूरे गाउ में विनोध की दुखान और भी मशूर हो गई
03:22अब धीरे धीरे विनोध थोड़ा घमन भी बनने लगा
03:26मेरे जैसे जिलेबी तो और कोई बना ही नहीं सकता
03:30मुझे जिलेबियों का दाम भी बढ़ाना पड़ेगा
03:33इससे मैं और ज्यादा मुनाफा कमा सकता हूँ
03:37दुखान पे आई हुए सब लोगों को विनोधनी बोला
03:40जे आज से एक जिलेबी दस रुपे आधा किलो सो रुपे और एक किलो दो सो रुपे में
03:46एक आदमी उदे जो जिलेबी खरीदने आया था उसने कहा
03:51अरे भाज साब जिलेबी इतने मेंगी कब से हो गई है
03:55बाकी के दुखानों में तो किलो सो रुपे में ही मेज़ते है
03:59अगर मेरे जैसे स्वादिश जिलेबी कहीं और मिलेना
04:03तो वही जाकर खाली जिएगा
04:05मुझे कोई फरक ने पड़ेगा
04:07विनो जैसी स्वादिश जिलेबी कहीं और नहीं मिलेगी
04:11ऐसा सोचकर लोगों ने अब महंगी जिलेबी खरीदना शुरू कर दी
04:15इस गाउ में मेरे जैसे जिलेबी को टक्र देने वाला और कोई है ही नहीं
04:21गाउवालों को तो अब मेरे स्वात की लट लग चुकी है
04:25ऐसा सोचकर उसने जिलेबी को तोलने वाले तराजू के नीचे सब की नजर सिर्चोरी
04:31एक छोटा सा भार लगा दिया जिससे वे लोगों को स्ध्यादा पैसों में कम जिलेबियां बेच सके
04:38इसी तरह विनोथ का कारोबार उसके अंसार चलता रहा
04:42एक दिन गाउं के जामिंदार को विनोथ की जिलेबियों के बारे में पता चला
04:47तो उन्होंने अपने नोकरों को उसके पास एक किलो जिलेबि लाने के लिए भेजा
04:52नोकर गए
04:54और विनोत के यहां से एक किलो जिलेबी ले आए
05:00और जामिनदार जी को दे दिया
05:08जामिनदार जी ने देखा कि जिलेबीया तो एक किलो से कम है
05:13मैंने तो एक किलो मंगवाय था ये तो उससे कम है
05:16मेरे आदेश का पालन क्यों नहीं किया
05:19कहां जामिनदार जी ने हुस्से से
05:21साब जी हमने तो दुकानदार को एक किलो ही देने को बूला था
05:26और फिर उसने इतना ही दिया
05:28हमारे कोई गल्दी नहीं है प्रबू
05:30हम हम
05:31चलो हम इस जिलेबी वाले के पास जाकर देखते हैं
05:34कि वह असल में कर क्या रहा है
05:36दुकान के पास पहुंचने ही वाले थे
05:39जब जामिनदार जी ने एक बिखारी को उस जिलेबी की दुकान की और जाती हुए देखा
05:43तो वह रुख गए और अपनी नौकरों को भी रोग दिया
05:46जामिनदार जी देखना चाहते थी कि दुकानदार उस बिखारी को किस तरह जलेबी बेचेगा
05:51जामिनदार और उनके नोकर पास वाली दुकान के पास खड़े होकर नजारा देखनी लगी
05:56एक जलेबी कितने की है भैसाब
05:59एक जलेबी दस रुपे
06:00बिखारी के पास थे सिर्फ दो रुपे
06:03तो उसने वो निकाला और बोला
06:05बस एक जिलेबी दे दो
06:07विनोध ने कहा
06:08दस रुपे की एक जिलेबी है
06:10दो रुपे में नहीं मिलेगी
06:12ये सुनकर बिखारी वहां से जाने ही वारा था
06:16जब विनोध ने उससे रोकतर कहा
06:18हो तूने यहाँ पर खड़े होकर मेरे जिलेबियों का सुगंद लिया है
06:23उसके लिए वो दो रुपी थे भगवान मेरे पास तो ये दो रुपीय ही है
06:28और तुम ये भी इतनी बेरहमी से मांग रहे हो मैं नहीं दूँगा
06:33इसी दोरान जामिनदार जी वहाँ पर पहुंचे और अपने पास रखी हुए पैसों का थेला बिखारी को दिया
06:40और कहा
06:41तुम्हारे दो रुपीय के बदले में इस दुकानदार को तुम ये पैसे का थेला दे दो
06:47अरे आप तो बड़े लोग हो साहिब आपको तो नियाय करना चाहिए अगर आप इस दुकानदार को पैसे दे दोगे तो कैसे
06:55मेरी बात मानो और दुकानदार को ये पैसे दे दो
06:59बिखारी ने माना और पैसे विनोट को देनी गिया जब जामिनदार नी कहा
07:03एक मिनिट रुको, इस थेले को पहले जोर से हिलाओ
07:07बिखारी ने थेले को जोर से हिलाया, तो थेले में सी सिक्के छन छन करनी लगे
07:13पैसों की आवाज सुनाई दी केविनोट
07:15सुनाई दी साहिब
07:17अगर ये बात है, तो फिर बिखारी ने अपना भुगतान दे दिया है
07:21क्या साहिब, पैसे तो इसने दिये नहीं और आप बोल रहे हो कि दे दिये
07:26पैसे की आवाज तुमने सुन ली ना, बिलकुल उसी तरह जिस तरह बिखारी ने तुम्हारी जिलेबियों की सुगन सुंग ली थी
07:34तुम्हें तुम्हारी जिलेबियों की सुगन के पैसे, इस थेले के पैसों की आवाज से ही मिल गई
07:41तुरंत विनोत को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने जामिंदार जी से माफी मांगी
07:47तुमने केवल यही गलती नहीं की
07:50तुम्हारे जिलेबियों का मूल्य बाकी के दुकालों से बहुत ही ज्यादा है
07:55और उसके उपर गलत तरीके से तोल कर तुम ज्यादा पैसो में कम जिलेबियां बेशते हो
08:01साब जी बस एक बार के लिए मेरी गलती को माफ कर दो
08:06मैं ऐसे गलती तुमारा कभी नहीं करूंगा
08:09तुमने आज तक बहुत गलतियां की है
08:11तुम्हें तो इस गरीब को एक जिलेबी भी देने का मन नहीं किया
08:15अब मैं तुम्हें ये आदेश देता हूँ
08:18कि अभी इसी वक्त अपनी इस जिलेबी की दुकान को बंद करो
08:23ये बात सुनकर विनोद दास हो गया
08:26जब उसी रास्ते साथविक आया
08:28विनोद की परिस्तिती देखकर साथविक उसकी दुकान पर आया
08:32और बोला
08:33जामिंदर साथ मैं आपसे विंती करता हूँ
08:36कृपिया आप विनोद को इस बार माफ कर दे
08:39साथविक के अच्छे स्वभाव के बारे में जानते हुए
08:42इस बार तो साथविक की बात सुनकर उसके अच्छे बरताव को ध्यान में रखते हुए
08:48मैं तुम्हें माफ कर देता हूँ विनोद
08:50कम से कम अब से पूरा मन लगाकर मेहनत से और इमामदारी से अपना काम करो
08:57ऐसा कहते हुए जामिंदर जी वहां से चले गए
09:00साथविक और जामिंदर जी की बात सुनकर विनोद ने अच्छा नाम कमाने का ठान लिया
09:07इस वज़े से अब और भी लोग उसके पास जिले भी खाने आनी लगे
09:12अंत में विनोद खुशी-खुशी से और सच्चाय से अपना जीवन बितानी लगा
09:18एक लंबे समय पहले एक गाउ में जगन और सरस्वती नामक पती-पत्नी रहते थे
09:25उनका प्रित्विक नामक एक होशियार बच्चा भी था
09:28उनके खुद का एक होटेल भी था
09:31वहां हर रोज स्वातिष्ट और अच्छा सुगंदाने वाला बच्ची बना के बेचते थे
09:37रित्विक भी पढ़ते हुए उसके माबाब का मदद करता था
09:41हमेशा की तरह जगन बच्ची बना के बेचने लगता है
09:46आलू बच्ची, मिर्ची बच्ची, ओनियन बच्ची, आईये बाबो आईये
09:50ऐसे जोर जोर से चिलाने पर उस रस्ते में जाते हुए लोग सारे
09:55उस सुगंद के वज़े से बच्चीया खरीद के चाते थे
09:59रित्विक होटल में अपने माबाग की सायता करने के बाद
10:02अपनी मा को बताके कुछ बच्चीया अपने दोस्तों को खिलाने
10:06अपने साथ लेके खेलने चला जाता था
10:09ऐसे उस दिन रित्विक हर रोज के तरह उसका काम खतम करके
10:14होटेल में से कुछ बज्जिया लेके
10:17अपनी मा को बोलके निकल पड़ा
10:19बज्जिया लेके जाने पर भी
10:21मा इसलिए कुछ नहीं कह रही है
10:23क्योंकि मैं उनकी मदद कर रहा हूं
10:26मैं भी सिर्फ इसलिए उनकी मदद कर रहा हूं
10:30मेरे दोस्तों के लिए काम करना ही पड़ेगा
10:32ऐसे सोचके बज्जियों को लेके अपने दोस्तों के पास जाता है
10:37मैंने ये बज्जिया अब सब के लिए लाया है
10:40लेके खाओ
10:41रित्रिक, हमें ये बज्जिया नहीं चाहिए
10:45क्यों? बज्जिया क्यों नहीं चाहिए?
10:49तुम हर रोज बज्जियां के सिवा कुछ नहीं लाते हो
10:53रोज रोज ये खा के अब हम पग गए
10:55हाँ यार, अब से तुम बज्जिया लाना बंद करो
11:00और हमारे साथ खेलने भी बताओ
11:02ऐसे मत कहो, मैं तुम लोगों के लिए कुछ भी करूँगा
11:06अच्छा, तो फिर तुम्हें हम सब के लिए आईस्क्रीम खरीद के लाना होगा
11:12मन्जूर है?
11:15तुम लोगों को आईस्क्रीम खरीदने के लिए मुझे बहुत पैसों की ज़रूरत है
11:19मेरे पापा भी मुझे उतने पैसे नहीं देंगे
11:22कुछ और पूछो, मैं करूँगा
11:24तुम इसी लिए सोच रहे हो क्योंकि तुम्हें अपने पापा से पैसे पूछना पड़ेगा ना?
11:31हाँ, उनसे बिना पूछे, पैसे लेने का मेरे पासे कुपाय है
11:36अगर तुम पक्का करोगे, तो ही बोलूँगा
11:39तुम लोगों के लिए मैं कुछ भी करूँगा
11:43क्या है वो पाई?
11:45तुम्हारे होटल में खाने बहुत लोग आते हैं
11:49उस समय में तुम्हारे माबाप कामे व्यस्त रहते हैं
11:53तो तब तुम जितने पैसे चाहिए, उतने पैसे लेके आजाओ
11:57किसी को तुम पे शखी नहीं होगा
12:00कोई ये भी नहीं जान पाएगा कि पैसे गायब भी हुए
12:03हाँ, ये भी सच है
12:06कर में पक्का तुम लोगों को आईस्क्रीम खिलाओंगा
12:10ऐसे अपने दोस्तों को कहके खुशी-खुशी घर चला जाता है
12:15अगले दिन जब उसके मापाप काम में लगे हुए थे
12:20रुद्विक किसी को दिखे बिना शुप के से पैसे लेके अपने दोस्तों के पास चले जाता है
12:26मैंने कहा था ना कि तुम सब को मैं आज आईस्क्रीम खिलाओंगा
12:30चलो जाके खाएंगे
12:32ऐसे पोस्तों को लेके आईस्क्रीम बेशने वाले के पास जाता है और सब को आईस्क्रीम खिलाता है
12:39कल क्या चाहिए बोलो मैं खरीदूँगा
12:42कल तुम जो कहो वही चाहिए हमें
12:44ठीक है, कल मैं तुम लोगों को मेरा मन पसंद खाना खिलाओंगा
12:49ऐसे कहकर वो घर चला जाता है
12:52रात में सोई बिना अपने दोस्तों के बारे में सोचते रहता है
12:56कल मुझे अपने दोस्तों को कुछ अनपेक्षत खिलाना होगा
13:00मतलब मुझे कल और पैसे लेके जाना होगा
13:04ऐसे रित्विक अपने दोस्तों के कहा मान के
13:07हर रोज अपने माबाप को बताये बिना
13:10उनके मन पसंद चीज़े खरीद के देता था
13:12आखिर में ये उसका एक बूरी आदत बन चुका था
13:16हर रोज की तरह जब एक दिन
13:19रित्विक उसके मापाप की काम करते वक्त
13:22पैसे लेने गया था तो उसकी माउसे देखती है
13:25रित्विक यहां आओ
13:27हाँ माा क्या हुआ
13:30तुम वहाँ क्या कर रहे थे
13:32मैं कुछ नहीं मा
13:35सच कहो
13:36मैंने तुमें पैसे लेते हुए देखा
13:38ऐसे बिना पुछे पैसे लेना गलत है
13:41क्या तुम्हें नहीं पता
13:43तुम अब पैसे भी चोरी का नसीख है
13:45माँ, मुझे माफ करो
13:48मैंने अपने दोस्तों के रिए ये सब किया है
13:50आइंदा ऐसे कभी नहीं करूँगा
13:53पहली बार है इसलिए कुछ नहीं कह रही हूँ
13:55आइंदा ऐसे करोगे तो चुप नहीं रहोंगी
13:58जी माँ
13:59लेकिन उसकी माँ ये सोच में पढ़के दुखी होती है
14:03कि उसके बेटे को ये बुरी आदत आया कैसे
14:06उसकी माँ को जब रत्विक ने ऐसे देखा
14:09तो वो तो नंद बदल गया
14:10अपने दोस्तों के पास जाना बंद कर दिया
14:13हर रोज अच्छे से पढ़के
14:15अपने माबाब की मदद करते हुए रहता था
14:18ऐसे कुछ दिनों बाद
14:20अचानक पैसों की पेठी में पैसे नहीं दिख रहे थे
14:24उसे उसकी माँ को तृत्विक पे ही शकाता है
14:28और जो कुछ भी उससे पहले हुआ उसके पदी को बताती है
14:31तब जगन और सरस्वती तोनों रित्विक के पास जाके पूचते हैं
14:37रित्विक पैसों की पेठी में पैसे नहीं है
14:40तुमने ही लिआ है न?
14:41मा, जब से तुमने बोला, तब से मैंने चोरी करना बंद ही कर दिया
14:46मेरे दोस्तों के पास भी जाना बंद कर दिया
14:49मुझे उन पैसों के बारे में कुछ नहीं पता
14:51बेटा, अगर तुमने उस पेठी से पैसे लिये हैं, तो कैदो हमें, हम कुछ नहीं कहेंगे
14:57मा, मुझे सच में नहीं पता है कि पैसे कहां गए, इससे पहले मेरा पैसे लेना सची है, मगर मैंने वो सब बंद कर दिया
15:11अब तो मैंने नहीं लिया, जब से पैसे खो गए, तब से जगन और सरस्वती बहुत ध्यान से सब पे नजर रखके काम करने दगे
15:19मेरी पास पैसे खतम हो गए, कुछ दिन पहले एक होटल से बहुत आसानी से पैसे चोरी कर लिया था मैंने, वापस वही जाके पैसे लेके आओंगा
15:28ये फैसला करके वापस उस होटल को जाता है, बज्जियां खाके पैसे देने का नाटक कर रहा था और कोई ना देखने की समय में पैसे चोरी करने वाला था, जब जगन उसे रंगे हाथ पकड़ लेता है
15:42इतने उमर के आदमी होके भी महनत की ये बिना पैसे चोरी करते हों शरम नहीं आती
15:47इससे पहले भी तुमने यहाँ चोरी किया था ना, वो चोर पिटने के डर से सरच बोल देता है
15:53मुझे माफ कर दीजे, ऐसे कभी नहीं होगा, महनत से ही काम करूँगा
15:59चोर को उसकी गल्ती का एसास होने पर जगन उसे माफ कर देता है
16:04रित्वे पे उसकी गल्ती के बिना शक करने के लिए उसके माबाब दुखी होते है
16:08आप लोग दुखी क्यों हो रहे हो, माँ?
16:12उस दिन मैंने तुम्हें तुम्हारे गल्ती के बिना शक किया
16:14और आज तुम्हारी पापा ने असली चोर को पकड़ा है
16:17मुझे तुम पे शक नहीं करना था बेटा
16:20मुझे पर शक करने की वज़ा तो भी मैं ही हुना मा
16:23अगर मैं वो नहीं करता तो आपको मुझे शक नहीं होता
16:26आपने मुझे मेरी गलती समझाया
16:28इसलिए मैंने वो करना छोड़ दिया
16:30परा मैं शायद बड़े होके भी यहीं करता
16:33आइंदा ऐसे कभी नहीं होगा मा
16:35तापसे जगन होटल में साथान रहके काम करने लगा
16:39अलग प्रकार के बच्चिया बनाना शुरू करके
16:41उन्हें बेच के खुशी से जीने लगा
16:58अदम उठाना चाहिए विश्णपूरम नामक एक सुन्दर गाव में
17:06शरत और श्रीदर नामक दो दोस्त अगल बगल घरों में रहते थे
17:11शरत एक अच्छा आदमी था और दूसरों की सहायता करता था
17:15श्रीदर बहुत लालची था
17:18वो दोनों रिक्षा चलाते हुए खुशी से जी रहे थे
17:22एक दिन सुबह वो दोनों रिक्षा स्टैंड में रिक्षा को रखके
17:27ग्राहक के लिए इंतजार कर रहे थे
17:29तब एक आदमी शरत के पास जाता है
17:32सुनिये, बस्टैंद को आओगे
17:35ये क्या, वो आदमी रिक्षा के लिए मेरे पास नहीं आया
17:39बलकि मेरे दोस्त के पास गया
17:41कुछ भी करके मुझे ही उस आदमी को बस्टैंद तक लेके जाना होगा
17:45आरे आईए ना, बस्टान तक मैं आपको लेके जाऊंगा भाई सब, मेरी रिक्षा चड़िये
17:51शीदर के ऐसे कहने पर वो आदमी उसका ही रिक्षा चड़ता है
17:55उसके बाद शीदर उस आदमी को लेकर बस्टान के और बढ़ने लगता है
18:00आरे मेरा ही तो दोस्त है मेरे बजाए उसके रिक्षा में वो आदमी चला गया इसमें क्या बात है ऐसे उसका दोस्त सोचते रहता है और ठीक तब ही तीन आदमी उसके रिक्षा के पास आते हैं
18:15सुनिए बस्टान को आएंगे आप जी साब आईए रिक्षा में बैठिये तब शरत भी उन तीन आदमीों को लेकर रिक्षा चलाते हुए बस्टान तक पहुँचता है रिक्षा चलाते हुए शरत सोचता है मेरे दोस्त के उस आदमी को ले जाने के कारण ही मुझे अब तीन �
18:45पैसे दे रहे थे तो शरत का दोस्ट श्रीदर उसे देखता है चाह जल्द बाजी में मैंने गलत फैसला लिया पहले जो एक आदमी आय था उसको मैंने ले लिया अगर रुका होता तो ये तीन आदमी मेरे रिक्षा में आते और मुझे ज्यादा पैसे मिलते ऐसी सोच कर श्र
19:15स्टैंड में ग्राहब के लिए इंतजार कर त Pont अरे शरत एक समय में हम और रिक्षा स्टैंड में इंतजार करते जह तो बहुत चारे ग्रहाक आते थे हैं और आज के समय में कोई नहीं आ
19:29रहा है क्योंकि सबके पास अभी ऑटो है कार है और उनी में जाना पसंद करते हैं इसलिए हम चाहे जितना इंतजार करें लोग तो नहीं आएंगे अरे हां शीदर लेकिन अब हमें अगर ऑटो खरीदना भी है उतने सारे पैसे तो हमारे पास नहीं है ना वैसे भी रिक्षा म
19:59किसे जी सकते हैं शीदर चाहे जो भी हो जाए मैं अपना चोड़कर कहीं नहीं आओंगा मुझे तो हर जगा होंगी ना इसका मतलब ये थोड़ी है कि हम गाउं चोड़कर कहीं और चले जाए और इस बात की क्या यकीन है कि कल हम शहर में जाएंगे तो वहां मुझे नहीं �
20:29ऐसे कहकर वो उसकी बीवी बच्चों के साथ सच में शहर चले जाता है, वहां जाकर वो कार चलाते रहता है, मेरे साथ अगर मेरा दोस्त भी होता, तो हम दोनों मिलकर कोई न कोई काम ढून लेते, अब मुझे अकेले ही कुछ करना पड़ेगा, ऐसे वो बहुत दिन दुखी �
20:59प्याज, ऐसे जोर से एक आदमी चिला रहा था, उसे देख शरत को एक विचार आता है, अरे हाँ, मेरे पास आटो खरीदने के लिए तो पैसे नहीं है, लेकिन खुद से मैं एक प्यास का वाहन तो बना सकता हूँ, और गाव में उसी वाहन को चलाते रह सकता हूँ, और इ
21:29ज्यादा लोग बैट पाए, और तब नए दिखने वाले वाहन को देख, गाव वाले सारे मेरे वाहन में आएंगे, और मैं ऐसे पैसे भी कमा सकूँगा, उस आदमी का प्यास प्यास करके चिलाने के कारण ही मुझे ये विचार आया है, ये सोचकर शरत तुरंत उस काम में
21:59से चलाते हुए गाव में जाता है, बस स्टान, रेल्वे स्टेशन, रामा ले नगर, आए बाबू आए, जल्दी आए, और तुरंत उसके गाड़ी में बैट जाते हैं, ऐसे ही कम दिन में, शरत का प्यास की तरह दिखने वाले वाहन में,
22:28बहुत सारे लोग बैटते हैं, और वो बहुत प्रसद हो जाता है, इतना कि कुछ ही दिनों में, वो और थोड़े प्यास के वाहन बना कर, उनमें दूसरों को चलाने के लिए नौकरी भी देता है, ऐसे वो वाहन चलाते हुए बहुत खुश रहता है, तब एक दिन, शीदर
22:58हुँ जो शहर जाकर कार चलाते हुए, आई हुए पैसे कम पढ़ जाने के कारण कर्ज लेकर दुख में जी रहा हुँ, और मेरा दोस्त यहां इसी गाव में, इतना प्रसद गाड़ी चलाते हुए, इतनी प्रशन सब पाते हुए खुश है, अगर मैं भी इसके साथ यही र
23:28उसे मैं अपने साथ शहर ले जाओंगा, फिर उसके सारे वाहन को मैं ले लूँगा, और उसे वहाँ छोड़ कर मैं दूर भाग जाओंगा, तब उन सारे वाहन को बेच कर आई हुए पैसों से मैं अपना कर्ज चुका पाऊंगा, और खुश रह पाऊंगा, लेकिन मेरा द
23:58यह सोचकर शृदर उसके बीवी के पास जाता है
24:02नर्मदा, तुम मेरे दोस्त की पत्नी के पास जाकर उससे बात करू
24:08और उससे मनाओ कि हमें शहर जाना होगा
24:10और ऐसे वो जो कुछ भी सोचता है उसकी बीवी को बताता है
24:15थीक है जी, मैं वही करूंगी
24:17ये कहके नर्मदा शरत की बीवी के पास जाती है
24:21अरे भाबी आप भी मेरे साथ शहर आ जाएगा
24:25वहाँ अगर आप ये प्यास की वाहन चलाएंगे न तो बहुत सारा पैसा मिलेगा
24:31हाँ और उतना ही नहीं यहाँ से वहाँ रहने में भी दूगना अच्छा होगा
24:38हाँ मेरे पती भी वहाँ कार चलाते हुए बहुत सारे पैसे कमा रहे हैं
24:44आपके पास तो पहले से ही बहुत वाहने वहाँ आएंगे तो और भी पैसे कमा पाएंगे
24:50जी भाबी ये तो अच्छा विचार है जरूर हम सब आपके साथ शहर आएंगे
24:56ये कहके वो उसके पती शरत के पास जाकर
25:00सुनिये हम भी आपके दोस्त के साथ शहर जाएंगे ना जी
25:05वहाँ यहाँ से दुगना अच्छा होगा
25:08और दुगने पैसे भी मिलेंगी पता है आपको
25:11अच्छा तो तुम ही चले जाओ
25:14मैंने पहले भी कहा है
25:16मुझे ये गाँ छोड़कर कही नहीं जाना है
25:18यही मेरा घर है
25:20उसके पती के ऐसे कहने पर
25:22इसी बात को कहने वो नर्मदा के पास जाती है
25:26वहाँ पहुचते ही पती पत्मी को कुछ बात करते हुए सुनकर
25:30वो दर्वाजे के पास ही रुख जाती है
25:32नर्मदा क्या तुमने मेरे दोस्त की बीवी से बात किया है
25:36कुछ भी करके उन्हें हमारे साथ शहर ले जाना ही होगा
25:41आरे हाँ जी उसने तो मेरी बातों पे यकीन कर लिया है
25:46वो दोनों पक्काएंगे शहर
25:48तब हम उनके पास मौझूद सारे वाहन को बेच कर हमारे कर्ज चुकाएंगे
25:54और हम खुश रह पाएंगे
25:57दर्वाजे के पास खड़े हुए शरत की बीवी ये सब सुन लेती है
26:02और भागते हुए उसके पती के पास जाती है
26:05सुनिये हम शहर नहीं जाएंगे
26:09ये सब अपके दोस्त का चाल है
26:11और ऐसे उसने जो कुछ भी सुना अपनी पती को बताती है
26:16क्या मेरा दोस्त कर्जों में फसा है
26:20इसलिए वो ऐसा है
26:21कुछ भी करके मेरे पास मौझूद वाहन को बेच कर भी उसका कर्ज चुकाना होगा
26:28क्या एक तरफ आपका दोस्त आप पे जाल बिचा रहा है
26:33आपको धोका दे रहा है
26:35और आप सोच रहे हैं कि आप उसकी मदद करेंगे
26:38ये क्या है जी
26:39वो चाहे अच्छा हो या बुरा हो
26:41वो मेरा दोस्त है
26:43और वो अभी कश्टों में है
26:45तो मुझे उसे बचाना होगा
26:47और मुझे उसकी सहायता करना होगा
26:49ये कहके
26:51वो वहाँ से उसके दोस्त के पास चले जाता है
26:54श्रीदर
26:56मुझे नहीं पताता कि तुम यहां आये हो
26:58वरना मैं तुम्हारे पास आ जाता
27:00और अगर मुझे पहले ही पता होता
27:03कि शहर में तुम्हारी इतनी मुश्किले हैं तो मैं तुम्हारी मदद कर देता
27:08इसके लिए मुझे धोका देने की कोई जरूरत नहीं
27:11मैं खुद एक वाहन बेजकर तुम्हें वो पैसे दे दूँगा
27:15और तुम अपना कर्स चुका सकते हो
27:17उसके बाद तुम भी यहां मेरे साथ रह जाओ
27:20हम दोनों ये गाड़ी चलाते हुए खुश रह पाएंगे
27:23ऐसे वो अपनी बीवी की बाते शीदर को बताता है
27:28शरत मैं तुम्हें धोका देना चाता था
27:33ये जानकर भी तुम मेरी मदद करने यहां आए
27:36मुझे अपने आप पे घेना रही है
27:39और मुझे अब अपनी गलती का एसास हुआ है
27:42तुम एक अच्छा इंसान हो और उससे बेतर दोस्त हो मेरे
27:46अपसे मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा
27:49और आइन्दा ये गलती नहीं करूँगा
27:51तुम्हें अपनी गल्ती का एसास हो गया ना, और तुम मेरे साथ रहना चाते हो, बस यही चाता था मैं
27:59अब मुझे बहुत खुशी है, हम दोनों को हमेशा ऐसे ही रहना है
28:02तब से वो दोनों दोस्त साथ में रहते हुए उसी गाव में प्यास का वाहन चलाते हुए बहुत खुश रहते हैं