शब्दयोग सत्संग १९ अप्रैल, २०१७ अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से
प्रवृत्तौ वा निवृत्तौ वा नैव धीरस्य दुर्ग्रहः। यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वा तिष्ठते सुखम्॥ २०॥
जो धीर पुरुष है, उसका न प्रव्रृति से, न निवृत्ति से कोई आग्रह होता है। जब जो सामने आ जाता है तब उसे करके वह आनंद से रहता है।
प्रसंग: धीर पुरुष किसे कहा जाता है? मुक्ति क्या है? मुक्ति कैसे पाए? जो धीर पुरुष है, उसका न प्रव्रृति से, न निवृत्ति से कोई आग्रह होता है। जब जो सामने आ जाता है तब उसे करके वह आनंद से रहता है। अहं वृति क्या है? अहं वृति कैसे हटाए? प्रव्रृति और निवृत्ति में क्या अंतर है?
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