वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२५ जून २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
मरूँ पर मांगूँ नहीं, अपने तन के काज |
परमारथ के कारने, मोहि न आवे लाज ||
प्रसंग:
पूर्ण और बेशर्त तुम्हें देता विधाता है,पर सहज लेने में अहंकार शर्माता है?
सहजता हमें क्यों नहीं भाती है?
कबीर ने कब मंगाते हुए लाज नहीं बताया है?
शब्दयोग सत्संग
२५ जून २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
मरूँ पर मांगूँ नहीं, अपने तन के काज |
परमारथ के कारने, मोहि न आवे लाज ||
प्रसंग:
पूर्ण और बेशर्त तुम्हें देता विधाता है,पर सहज लेने में अहंकार शर्माता है?
सहजता हमें क्यों नहीं भाती है?
कबीर ने कब मंगाते हुए लाज नहीं बताया है?
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