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  • 6 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१४ अप्रैल २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से

येन दृष्टं परं ब्रह्म सोऽहं ब्रह्मेति चिन्तयेत् ।
किं चिन्तयति निश्चिन्तो द्वितीयं यो न पश्यति ॥१६॥

जिसने अपने से भिन्न परब्रह्म को देखा हो, वह इस तरह चिंतन किया करे कि मैं ही ब्रह्म हूँ, सोऽहं, सोऽहं। किन्तु जिसे कुछ दूसरा दिखता ही नहीं, वह निश्चित ही क्या चिंतन किया करे।

प्रसंग:
सोऽहं का क्या अर्थ है?
परमसत्ता क्या है?
जिसने अपने से भिन्न परब्रह्म को देखा हो, वह इस तरह चिंतन किया करे कि मैं ही ब्रह्म हूँ, सोऽहं, सोऽहं। किन्तु जिसे कुछ दूसरा दिखता ही नहीं, वह निश्चित ही क्या चिंतन किया करे। ऐसा अष्टावक्र क्यों बोल रहें है?

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