सुखी एवं श्रीमान जीवनमुक्त पुरुष, सत्यवादी विषयी के सामान काम करता है, परन्तु विषयी नहीं होता। यह तो संसार का कार्य करता हुआ भी अतिशय शोभा को प्राप्त होता है।
नाविचारसुश्रान्तो धीरो विश्रान्तिमागतः। न कल्पते न जाति न शृणोति न पश्यति॥ (२७)
वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, न देखता है। वो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरुप में विश्राम पा चुका है।
प्रसंग: तुम्हारा स्वरुप क्या? तुम्हें विश्राम कहाँ? क्या धीर पुरुष न त्याग करता है न प्राप्त करता है? सत्यवादी विषयी के सामान कैसे कार्य करें? हम चैन क्यों नहीं पाते है?
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