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  • 6 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१७ अप्रैल २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से
मुमुक्षोर्बुद्धिरालंबमन्तरेण न विद्यते ।
निरालंबैव निष्कामा बुद्धिर्मुक्तस्य सर्वदा ॥४४॥

मुमुक्षु पुरुष की बुद्धि कुछ आश्रय ग्रहण किये बिना नहीं रहती। मुक्त पुरुष की बुद्धि तो सब प्रकार से निष्काम और निराश्रय ही रहती है ।

प्रसंग:
मुक्ति क्या है?
अष्टावक्र मुमुक्षुत को भी झूठ क्यों बता रहे है?
हमें मोक्ष क्यों चाहिए?
मुक्ति चाह कर भी बंधनों में क्यों पड़े हो?
मुक्ति की चाह क्यों होती है?
मुक्ति का क्या महत्व है?
बन्धनों की आसक्ति से कैसे बचें?
बंधन क्यों आकर्षित करते हैं?
मुमुक्षा क्या होती है?
मुमुक्षु पुरुष और मुक्त पुरुष में क्या भेद है?
मुमुक्षु पुरुष और मुक्त पुरुष में कौन सर्वोपरि है?
क्यों चाहिए मुक्ति?

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