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  • 6 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
२० दिसम्बर २०१५
रमण केंद्र, दिल्ली

दोहा:
माया मरी न मन मरा, मर मर गया शरीर |
आशा तृष्णा न मरी , कह गये दास कबीर ||

प्रसंग:
"आशा तृष्णा न मरी" शरीर मर गया पर ऐसा क्यों बता रहे हैं कबीर ?
प्रति पल मरने का क्या आशय है?
सत्संग का क्या अर्थ है?
मुक्ति के खिलाफ खुद ही क्यों खड़े हो जाते है?

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