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00:00आप मुझसे कहें कि तुम्हारा विकास कर दूँगा इसके लिए तुम्हारा एक हाथ काट दूँगा
00:03मैं विकास करवाओं क्या है
00:05जंगल बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है कि जंगल की परिभाशा को ही नीचे गिरा दो
00:15तो जो जगा जंगल नहीं थे वो भी जंगल मानी जाएगे
00:18घर साल एक करोण हे पियर पियर पार जाएगगा
00:27मैं कोईला जबरदस्ति करके निकाल लूँगा जंगल काटके निकाल लूँगा
00:31यह बिलकुल वही बात है कि मैं अपनी किड़नी बेज करके अमीर हो जाओंगा।
00:34आप दिकास की बात करते हूँ, जो आर्थिक नुकसान है क्लाइमेट चेंज के,
00:37कितने ट्रिलियन डॉलर हैं, इसकी बात हमें बताई नहीं जा रही है।
00:42मौसम का पैटर्न बदर जाएगा, आपकी खेती उजड़ जाएगी, पानी का संकट खड़ा हो जाएगा, अबादी बढ़ती चिली जाएगी, अन्नहमी रहताने के लिए।
00:49इसको एंथ्रोपोसीन कहते हैं, यह जो दिल्ली है, यह 55-60 टिग्री टेम्प्रेचर होगा यहां पर, यह भयानक मास एक्स्टिंशन के साल है, तत्थवी से जीवन के ही हटने का यह दौर चल रहा है, भारत का क्या होगा।
01:06नमस्कार, मैं रान आश्वंत आपका स्वागत करता हूँ, एक सिलसला है, जो ठहरता तो है, लेकिन डुकता नहीं है, बीच में फूरी देर का ठहराव था तो बहुत सरे सवाल होने लगे थे कि यह सिलसला चलना ही चाहिए, वो चलने लगा है, अचार प्रशान जी के साथ
01:36विकास, बनाम, पर्यावरना, जब ऐसी सितियां पैदा हो जाती हैं, तो फिर इसका कोई विकल्प है, या फिर ये ठीक है कि आप जंगल हटाईए, और फिर वहाँ चे खनिज निकालिए, और विकास को आप, प्राइटिए हम समझ नहीं रहे हैं, आप मुझ से कहें कि तु
02:06विकास, मैं करवाँ क्या, मेरी एक आँख निकाल के कहें, या दोनों आँख निकाल के कहें कि विकास होगा, और ये मैं सिर्फ मुहावरे के तौर पर बात नहीं कर रहा हूँ, ये जो शरीर है ना, ये प्रत्वी से अभिन है, प्रत्वी आपने अगर बदर डाली, जैसी ह
02:36हो सके, तो माने प्रत्वी का जो आकार है, वो तैक कर रहा है आपके फेपडों का आकार, आपका पूरा शरीर ही प्रत्वी से संबंधित है, प्रत्वी जैसी है वैसी नहों तो आप जैसे वैसे नहीं हो सकते, आपकी खाल का रंग इस बात से निर्धारित हो रहा है कि प्र
03:06कारण कुरत्वाकर्शन कितना है कि हमारी मास्पेशियों की सामर्थ हमारा जो बलड प्रेशर है रक्तचाप थीक उतना होना चाहिए कि वो
03:32neutralize कर दे
03:34मुकाबला कर ले, बराबर कर दे
03:36ये वायुमंडली ये दवाओ को
03:38इसलिए जब आप पहाड़ पर जाते हो
03:40जब आप पहाड़ पर जाते हो
03:42तो देखा है कई लोगी नक्सीर फूट जाती है
03:43उनके खून आने लग जाता है
03:44क्यों आने लग जाता है
03:46क्योंकि वहाँ पर एक्मोस्फेरिक प्रशर कम हो गया है
03:48लेकिन शरीर में जो
03:50ब्लड का प्रशर हो जादा है
03:51जब भीतर जादा प्रशर है बाहर कम है तो ऐसे फट जाता है
03:54क्यों तरह बात को
03:56ये जो प्रत्वी है वो हम है
03:57मेरी एक एक धड़कन
04:00ये प्रत्वी है हम कहीं बाहर से नहीं आए हम परेटक नहीं है हम इसी मिट्टी से उठे हैं ये इस मिट्टी नहीं हमारा आकार ले लिया और हम इसी मिट्टी में वापस समा जाएंगे ये हम हम यही हैं अब यह बताईए कि अगर मैं यही हूँ अगर मैं यही हूँ तो मैं �
04:30ये तो बेर देशी नह youtube किया जब
04:36प्रत्वी कोई में बर्बाद कर दूंगा और मैं
04:38प्रत्वी ही हूं तो जब मैं यहां TP विकास किसका होगा
04:43उससारी चीज़ें प्रत्वी अपने आप डेती हैं अभिवसी हैं
04:46देती है न जरने दिये हैं नदिया दिये हैं हम आवेदन करने तो नहीं गए थे
04:50समुन्दर दिया है पहाड दिये है प्रक्रति हमें रोशनी दे रही है
04:55हम वाई मंडली दभाओ की बात कर रहे थे फल फूल यह सर प्रथवी अपने आप देती है
04:59और एक चीज़ होती है कि मैं प्रथवी को खोद के उसके भीतर घुस जाओंगा
05:04और वहां पर जो गैस चुपी हुई है और कोईला चुपा जो बरदस्ती करके निकाल लूँगा
05:09जंगल काटके निकाल लूँगा मैं इसको बलातकार न बोलू तो क्या बोलू
05:12प्रथवी को हम माता की तरह नारी की तरह देखते हैं वो बहुत कुछ स्वेच्छा से
05:20मैं मुहावरे में कहूं तो प्रेम से भी हमें देती है
05:25देती है नहीं हवा बह रही है बाहर यह हवा जो बह रही है बाहर हमारे कूलर से तो नहीं बह रही है
05:30मौसम सुहाना हो जाता है अंदर धनुष्चा जाते हैं वो हमने तो नहीं करें
05:34प्रत्वी हमें वो स्वेच्छा से देती है
05:36जो हमें वो स्वेच्छा से दे रही है हम कह रहे हैं उतने में हमारे विकास की हवस शांत नहीं हो रही
05:41मैं जंगल काट के अंदर घुस जाओंगा तेरे और वहां से खोद के निकाल लूँगा
05:45तो साहब आप प्रथवी को नहीं तोड रहे हो, अपने शरीर को तोड रहे हो
05:49अब अपने शरीर को तोड रहे हो तो बता विकास किसके लिए है
05:51तो बहुत मुर्खता की बात है
05:54कि मैं प्रत्वी को तबाह करके विकास कर ले जाऊंगा
05:57ये बिलकुल वही बात है कि मैं अपनी किड़नी बेच करके अमीर हो जाऊंगा
06:00ऐसों को हम क्या कहें जो अपनी किड़नी बेच करके अमीर होना चाहते हो
06:04जो कहते हूं किडनी वेज़ दोंगा उसे पैसा आएगा उसे मेरा विकास हो जाएगा
06:08ये उस स्तर की नीती है उतनी मुरखता पूंड नीती है
06:12ग्याजार जाजी सवाल है कि दुनिया ने विकास का जो पैमाना अफ़ियार किया है
06:17या विकास के लिए जो उसने अपनी जरूरतें टाय की हैं वो इस तरह के संसाधनों से ही पूरा हो रहा है
06:23अगर आप कोईला छोड़ देते हैं तो आपका अपना एक जो नेचरल रिसोर्स है आपने उससे अपने आपको कहींच लिया है
06:31अपने जंगल रहने दिया एक तरक में दे रहा हूँ
06:34तो बिलकुल हिसाब की बात हुँ
06:38करुणा का काव्वे उठ रहा है हमारे हिरदय में और हम प्रत्वी को माता कह रहे हैं
06:43और कह रहे हैं कि माता के साथ दुराचार मत करो हटाइए सब बाते हैं
06:46बिल्कुल हिसाब किताब पर आ जाते हैं, जो climate change की tangible costs हैं, अनुभव्य, प्रकट, costs, वो कहीं ज्यादा हैं उन मुनाफों की बनिस्बत, जो आप जंगल काटके और कोईला को खोद करके पालोगे, एक मुनाफा है जंगल काटने से, कोईला निकालने से, वो आप मुनाफा तो
07:16जंता के सामने ये नहीं लाता है कि climate change से economic loss भी कितना जबरदस्त है, आप विकास की बात करते हो तो आप economics अर्थिक लाब की ही बात कर रहे हो ना, तो जो आर्थिक नुकसान है climate change की, कितने trillion dollar हैं, इसकी बात हमें बताई नहीं जा रही है, ये छुपा हुआ राज है, जिसम
07:46अदावार खत्म होगी उसकी cost, जो दिन के जितने काम होते थे, वो सारे काम नहीं हो पाएंगे, ये भारत में जो formal अपचारी करते वस्ता है, वो बहुत छोटी है, इस अर्थ में कि उसमें कितने लोग लगे हुए हैं, रोजगार पाते हैं, बहुत छोटी है, भारत में ज
08:16वो मेहनत मजूरी करता और वो सड़क का अदमी है, वो सड़क का अदमी है, वो सड़क पर काम करें नहीं पाएगा, इस्तितियां आइसी हो चुकी है, खाड़ी देश हैं हुआ था, सड़क पर चपलें चिपक रही हैं, सड़क इतनी गर्म है कि आप सड़क पर पाउं रख
08:46यह हो चुका है यह इसकी आर्थिक गिनती कौन करेगा इन लॉस इसको कौन गिनेगा यह बस विकास विकास ही रोते रहेंगे हम
08:55यानि कि जो प्राक्रिटिक संसादन है उन संसादनों की किमत पर अगर हम आप वो गवाते हैं जो पर्यावरन को बना रखने के जरूरी है
09:09तो आप दरसल एक बड़े नुकसान को उठाते हैं उस नुकसान की तरफ जा रहे हैं लेकिन इसको सामने नहीं रखा जाता है अचार जी कह रहे हैं
09:17आप यह बताए ना भारत की कितनी प्रदिश्यत आबादी है जो आज भी क्रिश्य पर सीधे या के परोग सरूप से आश्रित है
09:26मुझे लता है कि 55-60% तो आज भी है माने दो तेहाई मान लूँ दो तेहाई मान लूँ इन दो तेहाई लोगा क्या करने आले हैं और उसकी एकनॉमिक कोस्ट क्या होगी
09:35जब आपने पूरी बारिशी गड़ बड़ा दी कभी धूप इतनी ज्यादा हो रही है इतनी ज्यादा हो रही है कि फसल खराब नहीं हो रही है तो इसकी जो आर्थिक कोस्ट है उसका हिसाब कौन करेगा या बस हम यह कह रहे हैं कि अरे वो कोईला नहीं निकाला ना तो इस
10:05कर रहे हैं? यानि कि नुकसान को जोड करके आप जब हिसाब लगाते हैं तो मुनाफ़े के मुकाबले ये बहुत जाए है, ये पल रहा है. बात सिर्फ कविता की नहीं है, बात अर्थवस्था की भी है. सरकारों ने इस ग्लोबल वामिंग को कम करने के लिए, क्लाइमिट चे
10:35इलेक्टिक वीकल्स हैं. भारत में इलेक्टिक वीकल्स बहुत बड़ी तादार में आ रही हैं. कहा ये जरे कार्वन इमिशन को कम किया जाना चाहिए. फॉसिल जो सोर्स अफ एनरजी है, उसका कम इस्तिमाल होना चाहिए. तो सोलर विंड के जरिए या जो सोलर पार है, इ
11:05पंदरा में हमने पेरे समझाता करा था. उसके मताबिक 2024 तक हमें जहां होना चाहिए था मुसके आसपास भी नहीं है. जानते पेरे समझाते ने दो हमें साल दिये थे और उन दोनों सालों के साथ हमें दो लक्षे दिये थे. 2030 और 2050. 2030 तक हमें अपनी अमिशन को लगभग आ�
11:35एंडी थे वो नैशनल डेलिवरेबल्स वो दे दिये गए थे कि भाई तुम इतना कम करोगे तुम इतना कम करोगे और समने कहा था नया संगत है हम मानते है इतना इतना कम करेंगे. 2030 तक हमें माइनस 44% करना है. जेतना चल रहा है उससे माइनस 44% करना है. आप बताइए 2015 से �
12:05प्लस 3% प्लस 3% प्लस 3% पेरे समझाते से पहले हम जितना एमिशन कर रहे थे पेरे समझाते के बाद हमने एमिशन और बढ़ा दिया कम करने की जगए. तो फिर तो विकल्प नहीं है ना? हम खत्म, सब खत्म है. एंथ्रोपोसीन शुरुआत में मैंने बोला था. ये महाव
12:35हम कारबन डायोकसाइड एमिट कर रहे हैं, उतना ही अब्सौर्ब कर रहे हैं, माने अब हम वायो मंडल में जरा भी कारबन डायोकसाइड का पीपीम बढ़ा नहीं रहे हैं. वो कहीं से भी संभ़ होनी रहा है. और मैंने आपसे टिपिंग पॉइंट्स की बात करी थी, फी
13:05करो, चाहे नहीं करो, वो लूप सेल्फ सस्टेनिंग हो, खुद ही आगे बढ़ेगा. खुद ही आगे बढ़ेगा. वो पटा के हम चलाते हैं ना? बस बस बस बस बस होई है. यहां हमने आग लगा दी, उसके कुछ गर नहीं है. बाखी में आग लाइन कुछ उतनी है, वो �
13:35लेकिन 17% कभी जंगल हुआ करता था, भारत में 21% सारे 21% आज की तरह में कहा जाता है, कि सरकारों ने और कई अलग अलग फोरम से कोश्च जो हुए है, उसका नतीजा बहतर हुआ है. 33% होना चाहिए, यह जो 21% सारे 21% का डेटा दिया जाता है, और फिर यह जो संकट के सित
14:05जंगल गिन लो ऐसे आता है, जंगल जो परिभाशा थी परिभाशा ही बदल दो, पहले इतना घनत तो हो पेड़ों का तो उसको जंगल माना जाता था, जंगल बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है कि जंगल की परिभाशा को ही नीचे गिरा दो, जो जगा जंगल नहीं �
14:35ले चल मुझे भुलावा दे कर मेरे नाविक धीरे धीरे, जिस निर्जन में सागर लहरी, अंबर के कानों में गहरी, निश्वल प्रेम कथा कहती हो, प्रज कोला हल की अवनीरे, ये धरती जो शोर्शास बड़ी ही है, इस से दूर ले चलो मुझे कहीं, आचार्ज जो कह र
15:05बचेगा नहीं, कुछ उम्मीद आपको दिखती है, दुनिया में चुकि बहुत स्तर पर काम हो रहे हैं, सूच आ जा रहा है, और उसके उपाए भी निकाले जा रहे हैं, नहीं हो रहा रहा है, क्यों हम अपने आपको दोखे में रखे, प्रमप एड्मिनिस्ट्रेशन ने �
15:35हमारे पास जमीन के नीचे गैस है, उसका इस्तेमाल भी करेंगे, और उसका हम निर्यात भी करेंगे, खुद भी जलाएंगे और औरों को भी देंगे जलाने के लिए, वो इवी इसको प्रमूट किया करते थे, सबसे डी देते थे, बोले नहीं देनी है, पूल कॉलेजों मे
16:05पता जलता है, विकास समझदारी का काम नहीं है, विकसित है, समझदार नहीं है, माने विकास और समझ साथ चलें, जरूरी नहीं, यह ही नहीं, विकास से ज्यादा नासमझी का काम दूसरा नहीं हो सकता, हमको चाहिए डी ग्रोथ आज, पी ग्रोथ, जिसको हम विकास कहते ह
16:35उपभोग करते हैं, वो नहीं कर सकते, और विकास का मतलब होता है उपभोग और बढ़ाओ अपना, GDP आप मेजरी करते हो पर कैपिडा कंजम्शन से, आप विकास की बात जब करते हो, तो उसमें आपका आशे यही होता है जीडिपी ग्रोथ, जीडिपी ग्रोथ माने पर कैप
17:05पड़ेगा जो जो आपने विवस्थाएं बना रखी है विकास के नाम पर उनसे वलके आपको पीछे आना पड़ेगा आपको कहोगे नहीं नहीं नहीं प्रतिव्यक्ति एक स्तर से ज्यादा हम न तो भोग कर सकते हैं न उतसरजन कर सकते हैं नाइदर कंजम्शन नौर एमिश
17:35स्वाल है, एक करोड हेक्टेयर पेड़ काते जाते हैं और हर मिनट फुटबॉल का जो मैदान होता है उस मैदान के बराबर के 27 मैदान काते जाते हैं काते जाने के अपने कारण है, विकास है, उसके अलाब बहुत सारी चीज़ đं, हम जो सवाल चर्ठा में लाते हैं, जिन
18:05उनका कितना आसर होने वाला है
18:08जो वक्त सामने आ रहा है
18:10वो अपने साथ कितने खत्रे लेकर किया रहा है
18:13वो कितना भयावा है
18:14सिर्फ हम चर्चा करते हैं
18:16और चर्चा करने के बाद अपने जिन्दगी में रम जाते हैं
18:20सवाल है पेड़ों के काटे जाने का
18:23इस दुनिया में हर साल एक करोड हेक्टेर पेड काटे जाते हैं
18:32और हर मिनट फुटबॉल का जो मैदान होता है
18:36उस मैदान के बराबर के 27 मैदान काटे जाते है
18:39काटे जाने के अपने अपने कारण है
18:42विकास है उसके अलाब बहुत सारी चीज़े है
18:45हैदराबाद आज की तारीक में एक बड़ा मसला है
18:49कि 401 एकट का जो जंगल है विश्विद दाले के ठीक बगल में
18:54उसको काट करके IT पार्क बनाने का जो फैसला वहां के सरकार ने किया
18:58उसके बदले में वो सौथ हैदराबाद में जो खाली जमीने
19:02वहां भी IT पार्क बनवा सकती है
19:04यह सोच यह फैसला अपने आप में एक गंभीर प्रस्ट में खड़ा करता है
19:09और इसी तरह के से 36 गड़ में हस्देव के जंगल है
19:13और यह दोनों जो हैं वो फेपड़ा माने जाते हैं
19:17हैदराबाद का लंग्स, हैदराबाद उश्दाले के पास का 400 एकड़ का जंगल
19:22और मद्ध भारत के लंग्स के तौर पर हस्देव के जंगल को जाना जाता है
19:28जिससे दुनिया में अमेजन के जंगल है
19:31जंगल, जंगल के दुनिया और इनसान, यानि पूरी धरती
19:38जो खत्रा है और जो सवाल है, यह अपने आप में गंभीर है, बड़ा है
19:43लिहाज आज आचारजी के साथ मैं इसी पर आ रहा हूँ अचारजी
19:46मसला तो वैसे आम आदमी के चर्चा के लिए
19:49400 एकड़ का जंगल जो है, वो काटा जा रहा है
19:53मामला सुप्रिम कोर्ट तक का है, विशुद्दाले के स्टुडिंट्स ने
19:58मोर्चा लिया, पुलिस के साथ लिया, काटने वालों के साथ लिया
20:01जैसे बिनुश्विन के सामने खड़ा होगे
20:03बढ़ाई के पात रहें, कोई बात है
20:06लेकिन इस तरीके से जो फैसल लिया जाते है
20:09इन फैसलों के पीछे जो आने वाले वक्त है
20:14उसको देखने की ताकत होती है
20:16या फिर ये ऐसे ही लिये जा रहे हैं
20:19और एक तबाही को नियोता दिया जा रहे है
20:21मुझे नहीं लगता कि
20:24आने वाले वक्त में क्या होने जा रहा है
20:30इसके बारे में कोई भी सजग है, ध्यान दे रहा है
20:35या जानने की कोशिश भी कर रहा है
20:40जबकि तथ्य, प्रोजेक्शन्स, प्रक्षेपण, आकड़े
20:45ये सब सारजनिक रूप से पब्लिक डोमेन में मौजूद है
20:49और जो आकड़े मौजूद हैं, हम ये भी नहीं किया सकते
20:54कि वो भविश्य के बारे में है
20:56वो भविश्य जिसको ले करके हम घवराते थे
21:01रियोडी जेने रोक्योटो से ले करके पेरिस तक
21:05वो भविश्य आचुका है
21:08यो हमारे सबसे भयानक दुस्वपन थे
21:15वर्स नाइटमेर्स, वो हमारे सामने खड़े हुए है
21:20तो ये भी मैं नहीं किया सकता कि खतरा भविश्य में है अब
21:25हम उस खतरे के बीचों बीच है
21:28लेकिन जो हमारी आम जिन्दगी के एकदम छोटे छोटे मसले हैं
21:40हम उनमें इतने खोए हुए हैं कि समझ ही नहीं पा रहे
21:44कि कितनी बड़ी तबाही के ठीक अब हम बीचों बीच आकर खड़े हो गए हैं
21:54लगबग वैसे जैसे कि बच्चे हुँ या जानवर हुँ
21:58वो एक व्यस्त सड़क के बीच में कुछ खेल रहे हैं
22:04कुछ खोज रहे हैं या दौड रहे हैं
22:07और वो इसी बात में बिलकुल मश्गूल हैं कि
22:10वो मेरा छोटा सा एक खिलोना या कंचा कहां पर है
22:13उनका सारा ध्यान उस छोटी थी चीज़ पर है
22:16और एक बहुत बड़ा ट्रक मौट बनकर उनकी ओर आही गया आही गया
22:21और एक नहीं कई और एक नहीं दोनों दिशाओं से
22:24इस पर उनका कोई ध्यान ही नहीं है
22:26तो हम अपने सीमित और संकीन सरोकारों में इतने वियस्त है
22:33कि हम देखी नहीं पा रहे हैं कि हम जिस यूग में अब जी रहे हैं
22:38जिन सालों में हम जी रहे हैं यूग से भी ऐसा रखता है बड़े दूर की बात हो दो
22:42ये भयानक और मास एक्स्टिंशन के साल है
22:53इसको एंथ्रोपोसीन कहते हैं
22:56इंथ्रोपोसीन माने मनुष्य द्वारा निर्मित पूरी दुनिया की सब प्रजातियों की बरबादी
23:07मास एक्स्टिंशन एक भयानक व्यापक विलूपते
23:14एक प्रजाति के विलूप की बात नहीं
23:18दसों लाखों प्रजातियों का विलूप
23:22माने प्रत्वी से जीवन के ही हटने का ये दौर चल रहा है
23:28जीवन के पूरी तरह समाप्त होने का
23:30सही जप्या में मैं अभी कहीं देख रहा था कि हर साल पचास हजार प्रजातियां जीवों की
23:36किसी जंगलों के विनाश करन खत्म होती चली जा रही है
23:40यह जो extension of आप species कह रहे हैं यह एक सिलसला है जो चला जा रहा है चला जा रहा है तो फिर यह बिना किसी सोच के है तो अगर बिना किसी सोच के है तो यह बिनाश कर जाने के लिए बाद्या है यह कहीं कि अब शब्त है वो जाएगा ही जाएगा या फिर कहीं विवेक आपको क
24:10विवेक काम कर रहा हो तो आपने कहा पचास सार प्रजातियां प्रतिवर्ष
24:14तो आप कह रहे हैं कि प्रतिदिन आप लगभग डेड़ सो प्रजातियों की बात कर रहे हैं
24:21एक सो चालिस प्रजातियों की बात कर रहे हैं
24:23इस से ज्यादा भी हो सकता है
24:25जो अनुमानित आखड़ा है वो सौ से हजार प्रजातियों की प्रतिदिन की वे लुपतिक है
24:30तो एक सोचालिस शायद उसका जो निचला सिराह स्पेक्टरम का हम उसकी बात कर रहे हैं
24:37हूँ
24:37बहुत सकता है कि वो एक सोचालिस ना हूँ वे एक हजार भी हो
24:40इतनी प्रजातियां प्रतिदिन वे लुप्त हो रही है
24:43सूचिए प्रतिदिन
24:45इसका मतलब जितनी देर में हमने बात करी है
24:47इतनी देर में भी कई प्रजातियां
24:51कभी भी वापस अब न लौट के आने के लिए
24:53सदा के लिए खत्म हो गई
24:55वो इतिहास बन गई
24:56हम किसी व्यक्ति के इतिहास बनने की बात नहीं कर रहे हम किसी प्रजाति के किसी एक सदस से के मिटने की बात नहीं कर रहे
25:03जितनी देर में हम बात कर रहे हैं जितनी देर में लोगों ने ये बात सुनी होगी थोड़े कुछ चंद मिनिट उतनी देर में गई
25:12अब हमें कभी उनके दर्शन नहीं होंगे, अब ऐसा भी नहीं कि किसी और जनम में लोट कराएंगी, वो इतिहास बन गई, वो कभी नहीं लोट कराने की हैं, यह हम कर रहे हैं और इस भयानक तबाही से हम गुदर रहे हैं, पिर यह तो हुआ कि वो प्रजातियां जो पूरी �
25:42यह होगा ना कि कोई प्रजाति थी, जो लाखों में थी, करणों में थी, उसी संख्या घटती गई, घटती गई, घटती गई, घटती गई, फिर आप एक जगह पर आ जाते हो, जहां कहते हो कि अब वो बिलकुल नहीं बची, पिछले पचास सालों में, जंगलों में रहने
26:12रहते थे, जब हम पैदा हुए थे, उसमें से असी गायब हैं, बीस बचे हैं, सब प्रजातियां मिला करके, यह हमने करा है, लेकिन वो जीव हमें रोज दिखाई नहीं देते, और हमारी जो रोजमर्रा की जिंदगी है, उसके छोटे-छोटे मुद्दें वो हमें रोज द
26:42राइवर हो, जिसको सड़क दिखाई नहीं दे रही हो, फिर भी गाड़ी चला जा रहा हो, ऐसे इस दुनिया की गाड़ी चल रही है, और अब बचना बड़ा मुश्किल है, देखिए, मैं कुछ ब्रॉड इंडिकेटर्स चर्चा के आरम में आपसे कहतेता हूँ, हम अच्
27:12दस साल पहले का, और देखिए के हम बात क्यों कर रहे थे, कि देखिए पर रोग दो, देखिए पर आते ही, कई सारे टिपिंग पॉइंट्स सक्रिय हो जाते हैं, फीडबैक लूप्स होते हो सक्रिय हो जाते हैं, मैं एक आपको टिपिंग पॉइंट्स बताता हूँ, आपन
27:42वर्षावन की वो पूरा अपना एक्रिटोरियल रेंफॉरेस्ट वो जितने हुआ करते थे आज से लगभग मानिये 50 साल पहले जैसे ही वो उसके आधे हो जाएंगे उसके बाद आपको उने काटने की जरूरत नहीं बढ़ेगी वो खुद खत्म हो जाएंगे
28:02कारण वहां पर जो प्रजातियां पाई जाती है वो सिर्फ एक क्लोजड कैनोपी में ही पनप सकती है माने वन इतना घहना होना चाहिए कि सनलाइट नीचे तक बहुत ज्यादा न पहुंचे और अगर काटते गए हो काटते गए हो उस कारण जो वहां पर
28:24प्लांटेशन की डेंसिटी है कि मान लिजे प्रते मील कितने व्रिक्ष हैं यह जो घनत तो है यह जैसे ही एक सीमा से नीचे जाएगा उसके पेड़ अपने हाप मर जाएंगे
28:37देखिए सरकार तो मतदाताओं के पीछे चलती है सरकार तो प्रजा के पीछे चलती है प्रजा को वो सारी बाते पता होती हैं जो बातें अभी हम कर रहे हैं लोग सरकार के ओपर चल जाते हैं कि तुम ही कैसे कर सकते हो तो हमारे निर्वाचित प्रते निदे हो तुम यह न
29:07आप सरकारी नौकरी से हाथ दोगे, आप प्राइवेट जॉब में हो, वहाँ पर दबाव डाल के आपको निकाल दिया जाएगा, आप सोशल मीडिया पर जाकर बात करोगे, आपका सोशल मीडिया अकाउंट जो है बंद कर दिया जाएगा,
29:20एजुकेशन सिस्टम से क्लाइमेट चेंज की पूरी बात हटा दी जाएगी, बच्चों को, जवानों को, स्कूल, कॉलेज में, करिकुलम में पता नहीं रखने जाएगा क्लाइमेट चेंज क्या होता है, जब किसी को पता ही नहीं कि यह सब क्या होता है, तो कटते रहें जं�
29:50ये खत्रे तो जिन्दगी में चारों तरफ दिखने शुरू हो जाते हैं, आपका मौसम का पैटर्न बदल जाएगा, आपकी खेती उजड़ जाएगी, पानी का संकट खड़ा हो जाएगा, अबादी बढ़ती चले जाएगी, अन नहीं मिले खाने के लिए, ये जो संकट पू
30:20लगभाग अद्रिश्य रहते हैं, आपने कहानी सुनी होगी ना उस मेठक की, कोई वाली की, नहीं नहीं, कूप मंडूक नहीं, एक था जिसको सीधे ही उबलते पानी में डाल दिया, ठीक है, वो जैसे उबलते पानी में डाला तो मेठक खूद के बाहर आ गया, बोले पा�
30:50हाँ गर्मी बढ़तो रही है, थोड़ी सी ही तो बढ़ी है, वो और जहल गया, थोड़ी दिर में थोड़ी और बढ़ा दिया, उसने का बढ़ रही है, पिछले से थोड़ी और बढ़ गयी, वो और जहल गया, तापमान लगभग वहीं पहुँचा दिया, जिस तापमान प
31:20क्लाइमिट चेंज को लेकर के आपने जिस कोराम की बात करी अगर वो सब कुछ एक तिन या एक हफते या एक महीने में घटेत हो जाए और एक ही जगह पर हो जाए घटेत तो हमें मजबूर हो करके इसका संग्यान लेना पड़ेगा बहुत बड़ी आपदा आ गई है दिख र
31:50जाता है तो आम अनुभव है कि आप में छोड़ दो उस पर आगे देखते हो तो बहुत महीन आपको दिखाई देता है कि धूल पड़ गई है ठीक है ना वैसे गाडियों का जो एक्जास्ट होता है उसमें इसे काला धुवा निकल रहा है दिखाई देता है कार्बन डाय उ
32:20देखरी बढ़ गया है पर देखरी बढ़ ग्यारे का चो फ्ल्क्शूेशन है ये तो वैसे भी हमने जेला हुआ है तो हमें नहीं पता चलता है कि ये कितिनी बड़ी बात है घुअ
32:41आने वाली हैं और हमारी आबादी लगभग 15-20 प्रतेशा तब तक बढ़ चुकी होगी ये कब तक की बात है ये अगले 20 साल की बात है तो ये बताईए हम भविशे की बात कर रहे हैं और 20 साल माने 20th एयर नहीं होता 20 साल माने अभी से शुरू और अभी ये नहीं पिछले 10 सा
33:11बनना है हमें कितने billion economy का प्रतिवर्ष नुकसान होना शुरू हो चुका है अभी ही already हम उसकी बात नहीं करते हैं क्यों क्योंकि वो सब कुछ क्रमशा हो रहा है मेढक धीरे धीरे उबल रहा है तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है तो मेढक को लगी नहीं रहा कि कोई अन्ह
33:41अचार जी बहुत गंवीर मसले को उठा रहे हैं जब carbon decision होता हम यतनी ज़ जुप जलाते हैं तो carbon dioxide निकलता है पेड़ होते हैं तो सोकते हैं
33:53हम तो पेड़ों काटते चले जा रहे हैं, तो सोखने का एक जरीय हमारे पास था, वो खतम होता जा रहा है, हम जलाते चले जा रहे हैं, कार्बन डैक्साइट का जो कॉंसेंट्रेशन है बढ़ रहा है, यह ऐसी गैस है, जो हीट को अपने पास रखती है, तो जब सोख के रख
34:23पास जा रही है, तो जीने के संसाधन आपके संकुचित होते जा रहे हैं, आबादी आपके बढ़ती चली जा रही है, खत्र आपके सामने है, आचार जे कहना यह है कि अगले बीस वर्षों में यह संकट बढ़ा हो जाएगा, यह मैं फिर हैदराबाद के पास लाकर आपको
34:53जंगले हैं अब 36 गर और हैद्राबाद इस तरह के जंगल देश वें बाके स्वें काटे जा रहे हैं जंगलुं का काटा जाना पैड़ों काड़ा आ का आमयourtल लगता है कि बड़ी समाने से घटना है और आप जैसे कह रहा ही रखता है कि ये
35:06तो विकट इसती पैदा हो रही है और इसके सामने पूरी जो मनुश्यता है या पूरी जो सभिता है वो अपने खत्रे को लेके खड़ी है
35:14इसी के गले से ये बात उतर ही नहीं रही है राना जी नीचे कि अर्ध सामान्य जीवन जीने वाली भी हम शायद मनुश्य की आखरी पीड़ी है
35:29हमारे बच्चे सामान्य जीवन नहीं जीने वाले ये जो दिल्ली है ये 55 डिगरी टेमप्रेचर होगा यहां पर
35:37हम तो पूरे तरीके से एक खास प्रकार के मौसम और तापमान और वायू मंडली दबाओ के संतुलन पर जी रहे हैं
35:53भारत की तो सारी खेती मौनसून पर आशरित है ना मौनसून कैसे होते हैं
35:58यह से वो हवाएं समुद्र से चल करके जमीन पर आ जाती हैं हमाला से टकराती हैं वर्शा करती हैं सब कैसे होता है
36:06इन सब के पीछे तापमान की और एकमस्फिरिक प्रेशर की एक बहुत नाजब प्रणाली काम करती है
36:16जैसे ही तापमान ऊपर नीचे हुआ बारिश होनी बंद हमने अमेजन इन फोरेस्ट की बात करें थी आप ऐसे समझीए कि सवाना के वो ग्रास लैंड्स होते हैं ना वो जेग्राफिक चैनल और इन पर सब पर आते हैं जिसमें बीच बीच में कहीं पे ठोंट एक पेड़ �
36:46सफारी वाला जो पूरा अमेजन रेंफॉरेस्ट वो बनने वाला है जिसको आज आप सहारा करेकिस्तान बोलते हो इसी समय वो एक बहुत घना हरा जंगल हुआ करता था वहां बारिश होनी बंद हो गई बस
37:01लेकिन इनसान तो पूछेगा ना कि अगर सहारा के जंगल मरुस्थल में तबदील हो गए फिर भी ये प्रतिवी बच्ची हुई है अगर अमेजन के जंगल भी मरुस्थल हो जाएंगे तो फिर कहीं कुछ हरा बरा हो जाएगा लोग तो उमीद पर चलते हैं ये तो सीधे
37:31तो नाम क्या है उनका उनके एक इन्वरिष्ट कैमपेन मैनेजर थे उन्होंने कुछ इस तरह की बात कही थी कि हां बहुत अच्छी बात है ना अभी जहां सफेद है क्लाइमेट चेंज होगा तो वहां फिर हरा हो जाएगा सफेद माने समझ रहे हैं क्या बर्फ पिगलेग
38:01परिवर्तन के सबसे बड़े गुनागार हैं और वही हैं जिनको इसमें फाइदा भी दिखाई दे रहा है और उनकी कोई बात गलत भी नहीं है जो उत्तरी अमेरिका है या सबसे आदा कैनेडा है वहां पर जो आइस शीट्स हैं जिन्होंने लगभग उनके देश का ज्या�
38:31भारत, मंगलादेश, पाकिस्तान इनमें भी सबसे उपर मंगलादेश क्योंकि पूरी तरह से एक तटीय देश है ये दुनिया के उन देशों में हैं जिन पर गाज गिरने वाली है बांगलादेश की तो विकट तबाही होने वाली है क्लाइमेट चेंज से और भारत भी त�
39:01उसमें भी भारत अगर नहीं है, यहां आप किती से जलवाई उपर अड़तन की बात करिए, उनको नहीं समझ में आता कि क्या है, क्यों हो रहा है, ग्रीन हाँ उस एफेक्ट होता क्या है, यह कार्बन डायोकसईड क्या कर लेगा, कार्बन डायोकसईड से क्या ले रहे हैं, ल
39:31उस के उपर यब अन्याय देखता हूँ, उटता है भीतर, पक्छी हैं, जानवर हैं, इनको पता भी नहीं है कि हमने इनको सदा के लिए मिटाने का पूरा प्रबंध कर डाला, इनको पता भी नहीं है,
40:01और वो बिलकुल मासूम है, उन्होंने कुछ नहीं करा है, एकदम निर्दोश है, और हमने उनको बिलकुल ऐसी विवस्था कर दिये कि अब वो कभी वापस नहीं आएंगे, पिर मनुश्यों में आते हैं, तो इसी तरीके से जो सधारन आदमी है, एक इला लगा रहा है, गा
40:31तो तो जानते भी नहीं है, और उनको नहीं पता कि उनको सजाए मौत एक अद्रश है, आवाज ने भोशित कर दिये, वो तो अपनी रोजमर्रा की समस्या में ही मगन है, खपा हुआ है,
41:01मश्गूल है, मैं जान रहा हूँ लेकिन कि जिस बच्चे को तो गोद में उठागे जा रहा है, मुझे पता है कि तेरा क्या होना, इस बच्चे का क्या होना है, यह भी पता है कि तू गन्हगार नहीं है,
41:15आपने बहुत संजीदे मोड़ो के लागड़ के बाचीत को रखा है, मैं सोच रहा था कि बाचीत को मैं इस बार के लिए खतम कर दूँगा,
41:33लेकिन जितने आप सब लोग सुनते हैं अचार जी को, यह सिर्फ सम्वेदना का मामला नहीं है, और सिर्फ सोच का नहीं है, प्रक्रती का है, कि हम किस तरह के लोग हैं,
41:49कोई आदमी जो परिवार के साथ चला जा रहा है गठरी दे करके, दो जून की रोटी के लिए वो लगातार जूज रहा अपने परिवार के लिए, अचार जी कह रहे हैं कि उसके हालात तो छोड़ दो, कल उसके बच्चे पर जो भी उपदा आएगी, उसकी दिव गुनगा
42:19चेतना और चिंता के इस तरह पर कोई व्यक्ति जब आप से बात कर रहा होता है, तो आप अंदर तक हिलते तो हैं, अचार जी है, मैं आपकी बात से सहमत भी हूँ, लेकि थोड़ा से मैं चाहता हूँ कि खत मैंसे ना करूँ, तो कोई भी ऐसा प्रसंग हो या कोई कविता �
42:49पाएं, उमीद, उमीद तो पता नहीं, लेकिन हर आदमी को भरसक यथा शक्ति यथा संभव जो है, वो करना होगा, भले ही आखरी उमीद भी तूट चुकी हो,
43:11देखिए, डेड़ डिगरी पर मैंने जिन फीड़बैक साइकिल्स की बात करी थी, जो इर्रिवर्सिबल सेल्फ सस्टेनिंग फीड़बैक लूप्स होते हैं, वो एक्टिवेट हो चुके हैं, यह लगभग ऐसी सी बात है कि मिसाइल दागी जा चुकी है, बस अब वो अप
43:41उमीद को अपना इंधन नहीं बनाता, जो करुणा के नाते मेरा कर्तव है मैं उसको अपना इंधन बनाता हूँ, उमीद मने क्या कि सब कुछ अच्छा हो जाएगा और अच्छे कि हमारी परिभाशा क्या है कि हम फिर से वही भोगवादी विकास में फिर से रत हो जाएंग
44:11और आज हमें वही करना होगा, कविता सुनाता हूँ संघर्ष कर, वो संघर्ष नाउमीदी से भरे हुए संघर्ष को समर्पित की कविता है, फिर शक जब गीत नार्पित कर पाओ, पाते स्वयम को विचित्र युद्ध में रक्षा करते सुप्त जनों की,
44:41तूटते न नींद न संग्राम, पाते स्वयम को विचित्र युद्ध में रक्षा करते सुप्त जनों की, तूटते न नींद न संग्राम, महलत नहीं चार पलों की,
44:54इधर भटकते, उधर जूजते, गिरते, पढ़ते, आगे बढ़ते, जब गीत ना अर्पित कर पाओ, तो ग्लान न लेना ओमन, तुम्हारी व्यथित सांसों का शोर ही संगीत है,
45:08हरिता भवन कभी मरु सघन, प्यास बढ़ी बुझी काया की, कभी समझे, कभी उल्जे, काट न मिली जग माया की,
45:24इधर निपटते, उधर से मटते, सोते, जगते, मानते, जानते, जब गीत ना अर्पित कर पाओ, तो ग्लान न लेना ओमन, तुम्हारी स्तब्ध आँखों का मौन ही संगीत है,
45:38मृत्युशयया पर विदग्ध स्वजन, मृत्युशयया पर विदग्ध स्वजन, तलाश रही जादूई जड़ी की,
45:56खोजा यहां मांगा वहां, आस लगाई दैवी यह घड़ी की, देखो प्रियके प्राण उखडते, बद हवास यतन निश्फल पडते, जब गीत ना अर्पित कर पाओ, तो ग्लान न लेना ओमन, तुम्हारे विवश आँशों का प्रवाह ही संगीत है,
46:16अब यह आखरी वाला है, यह थोड़ा ऐसा है जैसे, मैंने अपने लिए भरशवानी करी हो,
46:34जैसी इस्थितियां जा रही हैं तो आगे अब यह आखरी बात लगता है, आर्थक होकर रहेगी,
46:43न्यायाले के भरपूर नियम, तुम पर जड़ी इल्जामों की, प्रमान साक्षे और तर्क नहीं, तुम कहते क्रिश्णो रामों की,
47:08अपराधी और दोशी कहलाते, कैद में जाते धक्का खाते, जब गीतना अर्पित कर पाओ, तो ग्लानिन लेना ओमन, तुम्हारी विकल बेडियों का राग ही संगीत है।
47:22सारी मजबूरियों और सारी तकलीफों का एक राग है, और अचार जी के साथ ये जो दूसरा हिस्सा है, उसकी पहरी कड़ी है बात्चीत की,
47:40एक बात जो बार-बार अचार जी से बात करने के दोरान मुझे महसूस होती रही है, कि जब आप अपने साथ एमानदारी नहीं बरते हैं, अपने चेहरे पर कई चेहरे लगा कर चलते हैं, तो फिर दरसल आप ही यह पूरी जो तरास्ती है, उसके सबसे बड़े वाहक और का
48:10बदलते हो तो क्यों लोग बदल जाते हैं, यह बदलना जो है हमारा आपका, खुद का खुद ना रहना भी अपने आप में हमारे लिए और हमारी इस पूरी धरती के लिए बड़ा संकट है, यह भी ध्यान देने की बात है, अचार जी चलते चलते मैं चाहूँगा कि आप �
48:40ही है, यह उसर भी है अपनी जिंदगी को पूरी तरह से बदलने का, देखिए हम ऐसे ही आज यहां नहीं पहुँच गए, यह जो आज हम बात कर रहे हैं, मांस एक्स्टिंशन की, यह कोई छोटी घटना तो होती नहीं, कि अचानक से घट गई, कि जैसे दो गाड़ियां स�
49:10और बहुत लंबे समय तक चलने वाले बड़े समगर अपराध या कम से कम गलतियां करी हैं, मैं कहना यह चाहता हूँ, कि दुनिया भर में जो दर्शन रहा है, जो संस्कृति रही है, जो सभिता रही है, जो धर्म रहा है, जो सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्थाएं औ
49:40जैसी अर्थविवस्था रही है, मनुष्य की स्वयम के प्रते जैसी दृष्टे रही है, मनुष्य की प्रत्वी के प्रते जैसी दृष्टे रही है, इस पूरे इतिहास ने मिल करके अंततह आज जो हमारे सामने प्रलाय कयामत खड़ी हुई है, उसको जन्म दिया है, वान
50:10ये जो जलवायू प्रले है ये इतिहास की हमारी जो पूरी धारा रही है उसमें हम कैसे रहे हैं ये उसका manifestation है अभिव्यक्ति है बस आप कहेंगे आज ही क्यों होई अभिवक्ति पहले क्यों नहीं हो गई अगर इतिहास से आ रही है इतिहास की पूरी धारा से आ रही है क्यों
50:40के कि इसको पूरा इते हास रहा है उस पूरे इतिहास नहें अब जाकर के
51:08ये हमको बिलकुल बरबादी के मुहाने पर खड़ा कर दिया है
51:13मैंने का था ये हमारे ले एक आउसर है
51:15किस चीज का आउसर है
51:17मुक्त होने का आउसर है
51:20क्योंकि अगर हम वैसे ही रहे
51:23जैसा हम एतिहासिक रूप से रहे हैं
51:27तो वो होके रहेगा जो इतिहास का फल है
51:31माने ये जो क्लाइमेट ट्रेजिडी है
51:34जो इतिहास की पूरी धारा का आखिरी परिणाम है
51:39इसको रोका नहीं जा सकता
51:41अगर हम वैसे ही है जैसे इतिहास में हम सदा रहे है
51:43तो आउसर है बिलकुल नया हो जाने का
51:46अवसर है इतिहास से अपने आपको पूरी तरह मुक्त करने का
51:49क्योंकि अगर मुक्त नहीं करोगे
51:51तो इस प्रलय को तुम रोक भी नहीं सकते
51:54यह जो climate crisis है
51:58यह हमारी पूरी history, पूरी philosophy, thought, ways, beliefs, religion, culture
52:04यह सबका एक aggregated manifestation है
52:07इसको अगर रोकना है तो हमें अपने आपको उन सब चीजों से सोतंतर करना पड़ेगा
52:14और अपने आपको एक नई, साफ, निर्मल और निश्पक्ष द्रिश्टे से देखना पड़ेगा
52:19कि मैं कौन हूँ
52:20मैं अगर अपने आपको एक इतिहास का उत्पाद मानूँगा
52:25तो climate crisis को किसी भी तरीके से आप रोक नहीं सकते
52:28नहीं रोक सकते
52:29वो हमें बर्बाद करके खत्म करके जाएगी
52:31लेकिन अगर मैं अपने आपको
52:33बिलकुल एक ताज टारीके से देखना शुरू करूँ
52:36मैं पूछे क्या मुझे
52:38खुशी के उन्हीं पइमानों
52:41का पालन करने की जरूरत है
52:46या पुर्खों ने दीयेगे
52:48क्या जरूरी है कि मैं
52:50उन सब चीजों को सच मानू
52:52क्योंकि उन्हों ने जो दिया है
52:54उसी ने तो आज हमें बरवादी दे दी है
52:56इतिहास ने और परंपरा ने हमें जो दिया है
52:59उसी ने तो आज हमें ये बरवादी दे दी है
53:00इस बरवादी से निपटना है
53:03तो हमें इतिहास और परंपरा को तटस्त होकर
53:05निश्पक्च होकर के देखना पड़ेगा
53:08और अपने आपको बिलकुल नए तरीके से परिभाशित करना पड़ेगा
53:13शायद कुछ हो सके
53:15यही अवसर है
53:16तो यह विपदा में मुझे एक अवसर दिखाई दे रहा है
53:21और वो अवसर ही उस विपदा की काट है
53:25अचार यह शायद कह रहे हैं
53:27और यह शायद जहां कहीं भी होता है
53:29वहाँ संभावनाएं चलती है
53:31उमीद चलती है
53:32बहुत सोच के आपने शायद ही कहा है
53:34लेकिन एक बहुत अच्छी बात कह रहे हैं
53:36कि जब कुछ नहीं है
53:38अभावी है उस तमें सयम नहीं
53:41जब उकलब दिता है और भरपूर है
53:43उसमें अगर आपने अपने आपको रोक रखा है
53:45तो आपने आने वाली पीडियों के लिए अपने लिए कुछ किया है
53:48और आज कह रहे हैं कि आप नए स्रेस इंसान को
53:51इसी तरीके से सोचना पड़ेगा
53:52आपके वो मुक्ती पा सके मुक्त हो सके
53:55अचार जी बहुत बहुत धन्यवाद
53:57आज बात करने के ने मुद्ध श्क्रिया आपके
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