अर्थ: जब आत्मा के निम्न और उच्च पहलुओं का मंथन किया जाता है, तो उससे ज्ञानाग्नि उत्पन्न होती है। जिसकी प्रचंड ज्वालाएँ हमारे भीतर के अज्ञान-ईंधन को जलाकर राख कर देती है।
प्रसंग: व्यर्थ चीज़ों को जीवन से कैसे हटाएँ? जीवन को साफ़ नज़र से कैसे देखें? आत्मबोध ग्रन्थ को कैसे समझें? निम्न श्लोक को कैसे समझें?