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  • 6 days ago
The Story of Abdullah bin Kalaba _ Paradise Of Shadad _ شَدّاد کی جنت _ Islamic Stories Urdu_Hindi
Transcript
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00:28यمن کے علاقے میں عبداللہ بن کلابا نام شخص رہتا تھا
00:31سادھا مزاج گنات پسند لیکن اپنی محنت سے جوڑی ہر چیز کا خیال رکھنے والا
00:37ایک دن اس کا ایک نہایت قیمتی اونٹ اچانک نظروں سے اوجل ہو گیا
00:42یہ حادثہ اس کے لیے کسی صدمے سے کم نہ تھا
00:46اونٹ اس کے لیے جانور نہیں بقاقہ ذریعہ تھا
00:50اپنی چادر جھاڑ کر وہ فوراں تلاش میں نکل کھڑا ہوا
00:54भाई, जरा ध्यान से देखना, कहीं इस रंग का उंट तुमने गुजरते देखा हो?
01:01ए आदमी, हमने तो ऐसा कोई उंट देखा ही नहीं है
01:05अल्ला तुम्हारी मुश्किल आसान करे, लेकिन हमें कुछ खबर नहीं
01:11वो हर दर्वाजा खटखटाता, हर गाउं में सदा देता, मगर जवाब एक ही मिलता, हमें नहीं मालूम
01:18उसकी उमीद कम होती गई, मगर उसके ख़दम रुकते नहीं थे
01:22उन्ट की दलाश ने उसे यमन से दूर अदन के मुझाफात में एक घने जंगल तक पहुँचा दिया
01:29एक ऐसा जंगल जिसके बारे में मुसाफिर भी बहुत कम बात करते थे
01:34सूरज की रोजनी दरख्तों में उलजकर जमीन तक बड़ी मुश्किल से पहुँचती थी
01:39चिडियों की आवाजी भी यहां खोफ जैसी लगती थी
01:43अब्दुल्ला ने आस्मान की तरफ देखा
01:46या अल्ला ये कैसा रास्ता है जिस पर तूने मुझे डाल दिया है
01:49फिर भी वो आगे बढ़ता रहा
01:52घंटों के सफर के बाद अचानक मनजर बदलने लगा
01:56दरख्तों के बीच में दूर कहीं गुम्बत चमके
02:00अब्दुल्ला ने आँखे मली
02:01जैसे जंगल के सीने से कोई बड़ा शेहर उपर आया हो
02:05ऐसा शेहर जिसकी बुलन तुबाला दिवारे नीले आसमान से बातें करती हूँ
02:10वो हैरान रह गया
02:27ये कैसी जगा है ये शेहर
02:29मैंने जिन्दगी में ऐसा शेहर नहीं देखा
02:33वो महतात कदमों से आगे बढ़ा जैसे कदम जमीन पर नहीं बलके किसी खाप पर रख रहा हो
02:40थोड़ी ही देर बाद वो एक अजी मुशान दाखली दर्वाजे के सामने खड़ा था
02:45दो दर्वाजे जिनके बलंदी का अंदाजा भी मुश्किल था
02:49लकड़ी नहीं बलके खुश्बू बगहरने वाली किसी नायाब दर्खत की लकड़ी
02:54और उस लकड़ी में सुर्ख सुनहरी और सब्स पथरों के लड़ियों जैसी जड़ा उकारी
02:59दर्वाजे की हल किसी चमक जंगल की तारीकी को चीरती महसूस होती थी
03:05अब्दल्ल्ला ने खुद से कहा
03:07ये जगा दुनिया में तो ऐसा कुछ ना देखा ना सुना
03:11आखिर ये शेहर है किसका
03:13उसने गर्दन घुमा कर आखरी बार जंगल देखा फिर हिमत की एक सांस ली
03:18और शेहर के अंदर कदम रख दिया
03:21अंदर दाखिल होते ही उसकी सांस जैसे थम गई
03:24आगे जो पहला हुआ था वो किसी इनसान की दुनिया का नहीं लगता था
03:29सड़कें कीमती पत्थरों से जुड़ी थी
03:32घर नहीं महल थे
03:34सोने के सतून चांदी की दिवारें मौतियों की खिड़कियां या खोद की महराबें
03:39जमुर्थ के गुमबद
03:40हवा में फलों की खुश्बू खुली हुई थी
03:43मंजर ऐसा था जैसे जन्नत जमीन पर उतराई हो
03:46अब्दुल्ला ने एहरत में गदम पीछे किये
03:49क्या ये वही जन्नत है
03:52जिसका वादा अल्लह ने अपने बंदों से किया है
03:55अगर वाकिया ये जन्नत है
04:00तो यहां इतनी खामोशी क्यूं है
04:02इतना सुनाटा क्यूं है
04:05वो आवाज देते हुए महलात के बीच चलता रहा
04:09किसी को मेरी आवाज आ रही है
04:11कोई है यहां बर
04:13अगर शहर मुर्दा था खामोश विरान बेजान
04:16अब्दुल्ला की नजर दीवारों पर जुड़े कीमती पत्थरों पर पड़ी
04:20उसने एक जमुरत के बड़े टुकुड़े को खेंचा
04:23मगर पत्थर अपनी जगा से नहिला
04:25या खुद को तिर्शे हाथ से दबाया
04:27मगर पत्थरों की गिर्फत लोहे जैसी सخت थी
04:30बिलाखर वो कुछ चोटे पत्थर उखाड़ने में कामियाब हुआ
04:34मैं शहर में जाकर सब लोगों को इस जन्नत का बताता हूँ
04:40उतना ही सामान लेकर वो शहर से बाहर आया उंट खोला
04:46और यमन की तरफ रवाना हो गया
04:48यमन पहुँचते ही उसकी कहानी आग की तरह पहल गई
04:51लोग पत्थर देखकर दंग रह गए कोई कहता
04:55ये दुनिया की चीज़ नहीं कोई कहता ये जिन्नात का शहर होगा
04:59कोई कहता शायद कोई कुमशुदा तहजीब
05:02ये शोर खलीफा मौविया रजियल्ला अन्हों तक पहुँच गया
05:05अब्ल्ला बिन किलाबा आओ मेरे करीब बैठो
05:11मुझे तफसील से सुनाओ तुमने क्या देखा
05:17आए खलीफा मैंने एक अजीब जन्नत नमा शहर देखा
05:24ऐसा शहर जो आँखों को हैरान कर दिया
05:28अब्ल्ला ने पूरा वाक्या शुरू से आखिर तक दुरा दिया
05:32खलीफा हैरत से सुनता रहा
05:34ऐसा शहर दुनिया के किस गोशे में हो सकता है
05:38फिर उसने हुकम दिया कि गाब अल-अहबार को बलाओ
05:41गाब अब्ल्ला ने अजीब शहर देखा है
05:50क्या तुम इस शहर के बारे में जानते हो
05:53अमीर अल-मॉमिनीन
05:56मेरा गुमान है कि यह शहर शद्दाद बिन आद का होगा
05:59खलीफा
06:00बताओ क्या तुमने उस जैसा शहर किस किताब में पढ़ा है
06:05काब
06:06हाँ
06:07वो शहर जिसे शद्दाद ने जन्नत की नकल में बनाया था
06:10सुनो मैं तुम्हें उसकी पूरी तारीख सुनाता हूँ
06:26में ही मर गया मगर शद्दाद जिन्ता रहा और पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत पाइंगी
06:30वो इल्म का दिल दादा था
06:32जब वो जन्नत के महलात की तफसीद पढ़ता तो उसके अंदर एक खतरना का खाहिज जन्नम ले थी
06:38मैं भी ऐसा शहर बनाऊंगा जो जन्नत जैसा होगा
06:42उसके हुकम पर सो माहर तामिर कार मंतखब हुए
06:45और हर माहर के साथ हजार हुनर्मन
06:48दस बरस तक दुनिया के हर मुलक से सोना चांदी जवाहरात मरजान फेरोजा मोती जमुरत एकठे किया गए
06:54फिर तीन सो बरस तक वो शहर बनाता रहा
06:58आखिर एक ऐसा शहर खड़ा हो गया जो इनसान की अकल से मावरा था
07:02लेकिन जब शदाद अपनी जमीन की जन्नत देखने चला
07:06मन्जिल से एक रात पहले
07:09आसमान से एक ऐसी होलनाक चीखाई के शदाद और उसका पूरा शहर वहीं दफन हो गया
07:15जिस शहर को बनाने में तीन सदियां लगी
07:18उसे देखने की महलत एक लम्हा भी ना मिली
07:21काब अलाहबार ने अबदुल्ला के चेहरे को गोर से देखा
07:25फिर कहा अमीरिल मौमिनी जो निशानिया मैंने कदीम के दाबों में पढ़ी थी
07:30बिल्कुल वही सिफात इस शक्स में मौजूद है
07:32पुझे कसम है उस जाद की जिसने जमीन और आसमान बना है
07:36यही वो शक्से जिसे तकदीर ने उस खोए हुए शेहर तक पहुँचाना था
07:41खलीफा की आँखों में हैरत की चमक थी
07:44अबदुल्ला खामोशी से खड़ा था
07:46जैसे उसे पहली बार एसास हुआ हो
07:49कि वो कोई आम शक्स नहीं
07:51बलके कि सदियों पुरानी पेशनगोई का हिस्सा था
07:54यूँ शदात का शहर जैसे वो खुद न देख सका
07:58सदियां गुजरने के बाद एक भटके हुए इनसान की आँखों ने देखा
08:02एक उन्ट की तलाश ने
08:04उसे तारीख के सबसे पुरा सरार शहर तक पहुचा दिया था
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