"जब शिव ने तांडव किया, तो पूरा ब्रह्मांड कांप उठा!"#shiv #shorts #ytshorts
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00:00क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी चेतना की सीमा केवल जागरित, स्वप्न और सुशुप्ति तक ही सीमित है?
00:05क्या सच मुछ ये तीन अवस्थाएं ही हमारी सारी चेतना को परिभाशित करती है?
00:10प्राचीन भारतिय दर्शन में इस सवाल का जवाब नहीं है.
00:13विदान्त ग्रंथों में बताया गया है कि जागरित और स्वप्न एवं सुशुप्ति से उपर भी चेतना की एक अनुभूत अवस्था है, जिसे तुरिया कहते हैं, और उससे भी परे एक सर्वोच अवस्था है, जिसे तुरिया तीत कहा गया है.
00:25इश्वरिय विद्या ये रहस से उजागर करती है कि आत्मा की यात्रा जागरित अवस्था से शुरू होकर तुरिया और अंततह तुरिया तीत तक जा पहुंचती है.
00:35आईए इस गूड विशय की तह तक उत्रें और जाने की चेतना की ये उच्चितर पड़तें क्या है और आत्मा की अंतिम अवस्था का रहस से क्या है?
00:43चेतना की चार अवस्थाए जागरित, स्वप्न, सुशुप्ति और तुरिया भारती उपनिशदों में चेतना को परंपरागत रूप से चार अवस्थाओं में बाटा गया है. इन चार अवस्थाओं का विवरण इस प्रकार है. जागरित या वैश्वानर. जागरित अव
01:13इस थिति में शरीर विश्राम की अवस्था में होता है, पर मन अपनी भीगर की कलपनाओं और स्मृतियों में विचड़ता है, यहां भारी जगत का ज्यान नहीं रहता, पर कलपना शक्ती सक्रिये रहती है, इस अवस्था को तैजस कहा जाता है, क्योंकि चेतना आंतरीक प्र
01:43पर आत्मा निर्विकार रूप में विद्यमान रहती है, अज्याद भाव में सब कुछ जानती है, इसे प्राध्य यानि सब कुछ जानने वाला, पर अनुभवी रहत कहा गया है, तुरिये, चौथी अवस्था उपनिशित का सबसे गूड रहस्य, यह तीनों अवस्थाओ
02:13इन अवस्थाओं का सार समझने के लिए उपनिशत कहता है कि वो तत्व जो भूत भविश्य और वर्तमान से परेभी सर्वत्र व्याप्थ है, वही ओम है, वो सर्वत्र भ्रहम है, और आत्मा स्वयम भ्रहम है, अर्थात, जागरिद, स्वप्न, सुशुप्ती में हम अलग
02:43को अद्वैत चेतना कहा गया है, क्योंकि इसमें द्वैत या द्विविद के सभी बंधन तूड़ चुके होते हैं, यहां मैं और तेरा का भेद मिट चुका होता है, किवल अखंड चैतन्य का अनुभाव होता है, मांडुक की उपनिशत स्पष्ट रूप से कहती है कि ये �
03:13निराकृत हो चुकी वस्तु मिठ्या को पार कर जाती है और आत्मा अपने शुद्ध प्रकृति का बोध करती है, तुरी अनुभव से आत्मा को उपच्ता ज्यान इतना गहरा होता है कि जगत की त्रिगुणी अत्वा त्रिलो की विभेदना समाप्त हो जाती है, अद्वै
03:43संकेति किया है, तुरिय से भी परे तुरियातीत अवस्ता का रहस्य, क्या तुरिय अवस्ता के अनुभव के बाद भी कोई सीमा बचती है, वेधानतियों का मत है कि तुरिय भी मात्र चेतना की एक अवस्ता है, पर आत्मा की पूर्णता यहीं समाप्त नहीं होती, तुरिय
04:13प्राप्त कर ली है और आत्मा स्वयम अपनी प्रथम तीन अवस्थाओं से भी परे हो गई है इसे आत्मा की सर्वोत कुरुष सिध्धी और ब्रह्म रूपता की चरम सिध्धी माना गया है तुरियातीत को समझना बहुत कठिन है क्योंकि यह अनुभव उनतह निराकार, नि�
04:43सारी अवस्थाएं ओत्प्रोथ हो जाती है तब मनुष्य को देह भिमान भी भ्रम लगता है और आत्मा का स्वरूप निखर जाता है इसी अपरिवर्तनी अवस्था को तुरियातीत कहते है अखंड निर्मल चेतना इस अवस्था में चेतना पूरी तरह निर्मल और अवि�
05:13आत्मा का अनुभव मात्र आत्म सुरूप में होता है शिव सुरूप ता प्राचीन मानिता है कि तुरियातीत अवस्था को शिव दशा कहा गया है क्योंकि इसमें आत्मा शिव सुरूप की भाती निर्विकार और निर्विकल्प हो जाती है प्राचीन ग्रंथ में तुरिय
05:43अर्थात समाधी में लहते हुए व्यक्ति बहार से अकलपनिये तो होता है पर देह त्याक के बाद पूर्णत है चिन में यानि ब्रह्म में होकर ये पद प्राप्थ होता है।
06:13प्रेटिड योगी की विशेस्ता ये है कि वो ना तो कोई संसकार करता है ना कर्मकांडों में लिपत रहता है। वो समस्त ब्रह्मवाक ओम स्वरूप हो जाता है और हर्क्षन शुद्ध ब्रह्मरूप हो जाता है।
06:43ये इन तीनों का आधार है। उनका तात्पर ये था कि तीनों अवस्ताएं क्षनिक छवियों की भाती हैं और तुरिय वो क्षितिज है जो उनमें अंतर नहित है।
06:53पौण ज्यान का उदय होता है तो ये समझ आता है कि तुरिय ही सत्तिका आधार है और आत्मा के अतरिक्ट सब मिथ्या है।
06:59रवन महर्शी के अनुसार तुरिय तीत में आत्मा अपनी परम चैतन्य स्वरोपता का अनुभव करती है और आत्मा के अतरिक्ट अन्य कुछ नहीं बचता।
07:07संक्षेप में तुरिय तीत अवस्था वो परम स्थिती है जहां आत्मा और भ्रम का पूर्ण अभेध हो जाता है।
07:13इस अवस्था में आत्मा सभी रूपों को त्याक कर स्वयम मिस्थिर हो जाती है।
07:17कोई सुख, दुख, जन्म, मरण, काल, स्थान या कारण प्रभाव की बाधा इसे विभक्त नहीं कर सकती।
07:22प्राचीन ग्रंथों में इसे परम प्रकाश, परम शान्ती या सर्वोच आनंद की अवस्था कहा गया है।
07:28जहां जीवन की तीनों अवस्थाएं सापेक्ष और मिथ्या हैं, वहीं तुरिय तुरिय तुरियातीत में आत्मा की अपनी सनातन सत्यता प्रकट होती है।
07:35पुनेम चंद के शब्दों में जागरित स्वप्न और सुशुप्ति अवस्थाएं जीव दचा हैं, लेकिन तुरिय और तुरियातीत को शिव दचा कहा गया है।
07:43शिवकार्थ अनादी है, निराकार है, अखंड सुक्ष्वरूप है।
07:47तुरियातीत में आत्मा इसी शिव सुरूपता को प्राप्त कर लेती है, यही आत्मा की अंतिम यात्रा का रहसे है, आत्मा अन्ततह अपनी अनादी सार रूपता में विलीन हो जाती है और सब कुछ अपनी ही आत्मा से संबंदित समझ जाती है।
07:58प्रतिपादित नहीं बलकि प्राचीन आत्मबोध ग्रंथु में प्रतिपादित एक गहन सकते है।
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