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  • 6 days ago

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00:00भोगी बोलता है, हीरो का हार लेके आओ, मन को मुक्ति मिल जाएगी
00:04त्यागी बोलता है, तन के सारे वस्तर त्याग दो और सौ दिन उपवास करो, मन को मुक्ति मिल जाएगी
00:09दोनों ने जान किसकी ले ली?
00:12आपके हाथ पर बहुत चोट लगई है, जल गया
00:14तो भी चिलाता कौन है, मन चिलाता है ना, आप सो रहे हो, आपको मच्छर काड़ गया, कोई नहीं बूलता कुछ भी, क्योंकि मन सो रहा था, आपके कहीं भी चोट लगे, दुख तो मन को होता है, जीना है, पर ऐसे जीना है, जैसे पानी पर तेल की बून जीती है, पूरी प
00:44गीता का जो मर्म है, उसके आधार पर उसके आधार पर एमने क्रिश्न की चवी बाने, क्रिश्न की चवी इतिहास के कैमरे से नहीं आ रही, अगर कोई बोले कि सचमुच ऐसे दिखते थे पुराणों में लिखा है, तो बिलकुल वेर्थ की बात है, क्रिश्न कह रहे है, न �
01:14होतिक है, बट अगर हम ऐसा माने कि जैसे किसी ने किसी वायर में पॉटेंशल डिफनेस लगा दिया और उसमें करंट डॉला दिया, तो वो जो करंट है, वो तो एक मैटर का फिनॉमेन है न, तो सिमिलरली हमारा जो ब्रीन मैटर है, उसके फिनॉमेन का रिजल्ट है न, कॉ
01:44होता है, कि वो मैटर से रियाक्ट भी कर सकता है, मैटर मैटर से हमेशा रियाक्ट करेगा, और मैटर मैटर से अभिन्न होता है,
02:02आप चाहे कोई एलिमेंट ले लिजिए, दूसरे एलिमेंट से फंडमेंटल लेवल पर सेम होता है,
02:07मतलब composition different होता है fundamental particles का
02:11fundamental particles तो same ही होते हैं
02:14लेकिन consciousness और matter को लेके ये बात आप नहीं बोल सकते हैं
02:18हम consciousness की एक ऐसी अवस्था जानते हैं
02:22जो किसी भी matter से react नहीं करती
02:25और अध्यात्म उसी की तलाश में रहता है
02:27consciousness free of matter
02:30matter free of matter आपको नहीं मिल सकता लेकिन
02:34मैं आपके वीडियो तो सब्सक्राइब आपको नहीं मिल सकता यह मिल सकता लेकिन आपको
02:48consciousness free of material मिल सकती है
02:53कि नहीं बट दधिंगेश के जैसे चीनी है चीनी स्वीट है और उसकी
02:59जो उसकी sweetness इस मेटीरियल से रियक्ट करती है तो स्वीटनेस का अनुभव करती है
03:02जो उसकी sweetness है वो किसी के लिए है
03:20जब एक ordinary consciousness इस मेटीरियल से रियक्ट करती है तो स्वीटनेस का अनुभव करती है
03:28जो reaction होता है वो उसका होता है और reaction matter और matter में होगा
03:36आप जिसको inert gas भी बोलते हो सबसे inert matter है आपका
03:39आप उसको भी एक condition में ले जाकर के react तो करा सकते हो
03:43करा सकते हो लेकिन यह जो consciousness है जिसके center में आई रहता है अहम रहता है
03:50अगर यह reactive है तो यह material है जैसा आपने कहा लेकिन अगर यह reactive और material है तो जो आई है वो दुख में भी है
04:02तो दुख से मुक्ते चाहिए तो हमें आई की वो state चाहिए जो reactive ना हो
04:11जाव हाँ पर इसमें इतनी अपनी completeness हो कि उसे किसी से react गरके कुछ electronic exchange की जरूरत ना पड़े
04:19जब तक वो electronic exchange के सहारे है तब तक वो दुख में भी रहेगा
04:25तो जो material basis of consciousness है वो तो well known है very well accepted है
04:33कि भाई हम अच्छे से जानते हैं कि body पर ही consciousness depend करती है
04:37हम यह भी जानते हैं कि अलग-अलग species की अलग-अलग consciousness होती ही होती है
04:43हम यह भी जानते हैं कि consciousness जो sensory input है उससे पर भी निर्भर करती है वह भी material बात है
04:49हम यह भी जानते हैं कि आप कुछ अलग खा लें अलग पी लें जो की material inputs हैं
04:55तो material inputs से consciousness बदल जाती है हम यह सब कुछ जानते हैं
04:58आपने उसको कोई मंचाही चीज खिला दी या आपने उसको एक ऐसा injection लगा दिया जिससे कि वो
05:07stimulate हो जाए लगा दिया क्रोध करने वाला कुछ लगा दिया कुछ ऐसा लगा दिया डूपमीन
05:12secretion होता है यह सब material चीज़ें लेकिन इससे जो consciousness बदल जाती है यह
05:17यह हम सब जानते हैं लेकर हम यह भी जानते हैं कि यही सब तो दुख है
05:21हम यह भी जानते हैं कि जब तक आपकी जो चेतना है वो आश्रित है किसी बाहर की चीज़ पे तब तक आप परेशान रहो गई रहो गई
05:31इसी लिए तो आज कृष्णी ने ये खुबसूरत हमको शब्द दिया है न अर्थ व्य पाश्रयख
05:40किसी और के आश्रय में अर्थ खोजना बंद
05:45बात समझे हैं तो वो हमको चाहिए है वो हमें चाहिए है
05:52अगर वो हम नहीं पा सकते तो फिर हम दुख भी नहीं छोड़ सकते
05:57कि एज लॉंग एज कॉंशियसनेस रिमेंस मेटीरियल
06:03कि एज लॉंग इस टाइट तो मेटीरियल इस अविए टॉट सफरिंग
06:08इस अपनी सीमिच चेतना में हमें ऐसा दृष्टव नहीं हुआ है कि मटीरियल सफर कर रहा है क्योंकि उसके पास वो आत्मतर तो नहीं है
06:24जो फ्रीडम चाहता हो मेटीरियल से ही शुगर नेवर वांट स्फ्रीडम फ्रॉमिट्स शुगरनेस
06:30शुगर कभी नहीं बोलती कि मैं शुगरनेस में फसी हुई हूँ शुगर और शुगरनेस एक ही चीज है
06:39लेकिन आदमी ऐसा है जो अपने आदमी होने से छुटकारा चाहता है और सारा अध्यात में इसी लिए होता है
06:50तो कॉंशिएसनेस एक अजीब सी चीज है जो उठती तो मिटीरियल से हमारे देखे हम देते हैं बच्चा पैदा हुआ उसके साद उसकी चेतना पैदा हुई
06:58और फूसके सबसे आदमी दुख में
07:22तो consciousness एक अजीब वस्तु है जो हमारे देखे उठती तो चेतना से है जो उठती तो शरीर से है लेकिन वो शरीर से बंधी नहीं रहना चाहती इसी को कहते है
07:37क्वेस्ट फॉर लिबरेशन हम जहां से आये थे वहां से हम वहीं के रहनी जाना चाहते है तो जैसे अब सहाब क्या गाते है नई हर्वा हमका नभावे
07:49अब इन दोनों को पकड़ो और बताओ क्या बात हुरी नई हर्माने मटीरियल मायका माने मायका हमें पसंद नहीं आ रहा
08:06कॉंशेस्नेस गाती है कि नई हर्वा हमका यह हम कर तो चुके हैं संसरिता में अच्छा नई हर्वा स्थी था समाइका
08:17मायका नई हर्वा हमका नभावे तो कॉंशेस्नेस कह रही है यह जो मायका है यह मेरी माँ है यह यह शरीर माँ है न चेतना की जब तक ही शरीर नहीं आता तब तक चेतना तो कुछ होती नहीं
08:28तो है तो यह नहीं है मालेया मैं यहीं से आई उचितना गह नहीं है कि मुझे क्या बाता है साई की नगरी परमतेसंदर साइं की नगरी कौन से यह
08:44प्रीडम लिब्रेशन जहां मैं उठी तो शरीर से हूँ पर मैं शरीर में बंद के न रह जाओं
08:54मतलब एक consciousness जो प्रकृति के effect से इनर्ट है एक consciousness जो की
09:00independent of its content है उसको बोल एक तो होता है awareness of something
09:06क्या या consciousness of something ऐसे को एक होता है प्योर चुंशनेस जहां पर
09:12ऐसे लेकिन से अपनी पहचान नहीं ले रही है नहीं तो जो हमारी
09:18कांशलेस्थ आरिश्टनेस है वह जिस चीज़ के साथ होती है उसी से अपनी आइडिंटी भी लेती है
09:23है पिए आप जिस चीज़ जा साथ होते हो आपका कि इंटिटीस बन जाता है आप वाइफ के साथ होते हो तो आप यहानी बन जाते
09:38हो the purpose of spirituality is consciousness free of its content
09:46तो है लेकिन उसको कोई मजबूरी नहीं है कि वह किसी मटेरियल चीज से अपनी पहचान उधार मांगे
09:54तो मतलब यह लेवल मतलब बैटिस क्रिश्न है हां साहीं की नगरी
10:04पुरुष से बताश है लेकिन वहां है ऐसी कॉंशनेस जो प्रकृति से घुली मिली है इसलिए सांख्योग में एक पुरुष नहीं होता
10:28सांख्योग कहता है जितने लोग हैं सबके अपने अलग अलग पुरुष है सबके अपने अलग अलग पुरुष है तो वह उनका पुरुष है न वह शरीर सापेक्ष होता है शरीर सापेक्ष
10:44तो यही जो उनका अलग-अलग होना है इसी से मुक्ति चाहिए होती है तो सांख्ययोग का आखरी लक्षे मुक्ति है
11:08तो सांख्ययोग के योग के मदद से
11:14so
11:34अवाल दुटि द है योग की अपनी कोई फिलोसी नहीं है जिसको आप योग-द रृशन बोलते हैं
11:38की philosophy सांख्य की है
11:40योग
11:42is 90%
11:44techniques
11:45योग का मतलब होता है विधिया
11:48योग की जो philosophy
11:50जो दर्शन है वो उसने सांख्य
11:52से लिया हुआ है अभी
11:54गीता में जो बात हो रही है जैसे दूसरा
11:56अध्याय है सांख्य
11:57तो ये सांख्य
11:59सांख्य दर्शन है इसमें योग कहीं नहीं है
12:02भले हम उसको योग बोल देते हैं
12:04पर ये सांख्य दर्शन है
12:05हम कहते हैं इसको सांख्य योग
12:07पर ये है सांख्य दर्शन
12:09ये सांख्य दर्शन है
12:12खेर जो मुद्दे की बात है
12:14मुद्दे की बात ये है कि
12:16पुरुष्माने consciousness और वो जो हमारी consciousness होती है वो आम तोर पे material से identified रहती है और अगर material से identified है तो समस्या गया है रहने दो, समस्या यह है कि उसी से तो हमें सारी suffering है, यही समस्या है
12:30तो जानने वालों ने कहा अगर suffering हटानी है और उनका जो पूरा प्रोजेक्ट था उनकी जो लक्ष थी कामना उदेश है वो उनका यही था भारत का दर्शन बस ऐसा नहीं रहा है कि मुझे पता करना है
12:46तो निरुदेश कौतुहल नहीं रहा है भारत के दर्शन में जो भारती दर्शन है जो शट दर्शन है वो शुरू ही हुआ है एक समस्या ले करके
12:58एक समस्या पकड़ी है और फिर उसके आगे दर्शन आया है वो समस्या क्या है
13:03मुक्ति
13:05हाँ, suffering, human bondage
13:08is the problem
13:09वहाँ शुरू होते हैं और कहते हैं यह bondage
13:12क्या चीज है क्योंकि यह bondage है तो
13:14हमें चारों और दिखाई देती है, अपने में भी दिखाई
13:16देती है, यह bondage क्या चीज है
13:18फिर वो उस bondage का अपने अपने तरीके
13:20से सब लोग investigation करते
13:22हैं, तो उसमें हम
13:24किस चीज को सही माने, किस को नहीं माने
13:26तो पहले वो तै करते हैं, epistemology
13:28होती है, फिर आगई यह आता है
13:31फिर उसकी metaphysics आती है
13:32फिर conclusion आता है
13:33तो ऐसे करके, लेकिन
13:37सबने एक बात तो मानी है
13:38कि जो हमारी consciousness होती है
13:40यह material की गिरफ्त में होने के
13:42कारण ही सफर करती है, यह तो समने
13:44माना है
13:44It's a tricky thing, आप
13:49यह भी नहीं कह सकते कि आप material
13:52को नहीं देखोगे
13:53क्योंकि material से ही तो consciousness
13:56आई है, और material से ही
13:58consciousness प्रभावित होती है, तो आप यह भी
14:00नहीं कह सकते कि आप material को ignore कर दोगे
14:02और आप यह भी नहीं कह सकते
14:04कि मैं material में ही लटफ़त रहूंगा
14:07इग्नोर नहीं कर सकते क्योंकि
14:10वो संभव नहीं है, practically impossible है
14:13और अगर उसमें लटफ़त रहोगे
14:15तो suffering चलती रहेगी
14:17तो वो एक बड़ी बारीक
14:19समस्या आ गई है, उस बारीक समस्या
14:21का ही फिर दर्शन उने
14:23समाधान कराए
14:24मतलब इनावे हमारी मजबूरी है
14:27हाँ, हाँ, material हमारी मजबूरी है
14:31प्रक्रती, material माने प्रक्रती
14:33प्रक्रती मा है
14:34और मा से बड़ी मजबूरी दूसरी नहीं हो सकती
14:37बताओ क्यों
14:38कि मानी तो हम नहीं होगे हैं कोई नहीं सकते होई जीव बोले सबसे तेरी मजबूरी क्या मा ना होती तो मैं जहां से आता तो प्रक्रति मा हैं मां तो मजबूरी है लेकिन मां की गोड में बैठा रहता हूं तो दर्द बहुत है
14:56तो फिर मा के माध्यम से ही मुक्ति पानी होती है यही तरीका है
15:02तो बिसिकली एक मतलब निशले तल का वो है जो एक पुरुष जो पकड़ती के चकर में फसा हुआ है और उसे और पुरुष के रास्ते होते हुए वो चला जाएगा करश्न की तरह
15:18और उसको बोलते हैं फिर मुक्तपुरुष। एक तो होता है साधारन पुरुष। और फिर आखरी होता है मुक्तपुरुष। पुरुष।
15:27अप्तपुरुष।
15:28कि नाम आचारी जी अचारी जी प्रश न आता तो है आपके सामने आते ही पताने क्यों हम एकदम नर्बस हो जाते हूं और अपना फ्रश्न फ्रूर जाते हैं ये वाई याद करना पड़ा
15:43बार बार प्रश्न मेरा यह है आचारी जी कि आपने बताया कि तन की जो भूख होती है वो बाहर से हम पूरी करते हैं और जो मन की भूख होती है वो बाहर से हम उसको नहीं शांत कर सकते हैं उसके लिए में मन में ही अंदर ही जिखागना पड़ेता है और आचारी जी आपने �
16:13अभी जो पिछली बात्चीत हो रही थे ने बिलकुल उससे संबंध है इसका प्रश्न आपका जो है पहले में सबको बता दू अच्छा प्रश्न है पेचीदा प्रश्न है कि आज तो आपने तन और मन को एकदम अलग कर दिया आज के पूरे सत्र में आपने कि तन की भूख ज
16:43सब लोग है नहीं संसरिता में इसलिए उनको पता रहा हूँ कि जब पहले बात कर रहे थे राम बेनुतन की तापन जाई तब वहां पे बड़ा समय लगा के समझाया था कि हमारा जो मन होता है वो तन से ही बनता है तब बोला था कि मन तन से बनता है और आज बोल दिया कि त
17:13कि अब ही पिछली बात कर रहे थो बिल्कुल वही प्रशना आपका भी है जो मन है वो तन से बनाए और तन की जो भूख है जिसको हम कह देते हैं तन की भूख है अ दाहरन के लिए तन को
17:34हीरों का हार चाहिए तन को आज हीरों का हार चाहिए और तन को रोटी चाहिए यह दो भूखे अलग-अलग है न तो हम कह रहे हैं कि तन की एक भूख होती है जो रोटी से मिट जाएगी क्योंकि वो वास्तों में तन की ही भूख है
17:56वो मन की भूक नहीं है उट तन को ही शक्ती देगी और आप यह नहीं सकते कि मैंने मन को जीत लिया इसलिए प्रोटी नहीं खाऊंगा
18:07आपने मन को जीता है कि नहीं घीता है आप साधु हो कि आप राक्षस हो रोटी तो आपको चाहिए
18:17तो तन की एक भूख है जो सिर्फ तन की है
18:22वो रोटी की भूख हो गई
18:25और तन की एक भूख है जो है मन की
18:29पर मन उसको तन के माध्यम से पूरा गरना चाहता है
18:33तो हीरो का हार
18:33अच्छा एक बात बताईए आप हीरो का हार ना पहने तो तन पर क्या असर पढ़ जाएगा
18:40कुछ भी नहीं
18:41बुरा कौन मानेगा
18:43मन
18:44और आप रोटी न खाएं तो किस पर असर पढ़ जाएगा
18:47तन पर डारेक्ट तन पर
18:49तो तन की दो तरह की भूख होती है
18:51इनमें अंतर करना ज़रूरी है
18:53अच्छा सवाल है
18:54तन की दो तरह की भूख है
18:57अंतर करना ज़रूरी है
18:58होता गया है कि
19:00हम
19:01यह कह करके कि
19:03तन की भूख मिटा के कुछ मिलता नहीं
19:06जो तन की प्राकृतिक भूख है
19:08काई व उस पर भी अंकोष लगा देटें सो तरह के उपवास करो सा जो एक उपवास करो अवह अजो दुन फौशान कर रहो अधाई वह द्लिए वॉधाई तन की जायज मांगे उस पर काई को पहरा लगा दिया
19:18सो नहीं सकते चार घंटे से ज़्यादा वो तन की जायज मांग है उसको क्यों परेशान कर रहे हैं वो मन की भूख ही नहीं वो तो तन की थी और तन माने तन माने ये ये तन है ये थोड़ी मुक्ति मांग रहा है तन को काई को परेशान कर रहे हैं तन को तो चाहिए नहीं मु
19:48मेरी क्या समस्य है जिन्दगी में मुझे क्यों परिचान कर रहे हो और मन की मुक्ति के नाम पे
19:54सारा अत्याचार किस पर कर दिया तन पर उससे कुछ मिलेगा नहीं
20:01मुक्ति चाहिए थी मन को और दुखी कर दिया तन को और तन बेचारे के पांस अपनी कोई आवाज होती नहीं आवाज तो पकड़ रखिये किसने
20:10मन नहीं तन अपने आपसे कुछ बोल नहीं पाता आपका आपके हाथ पे बहुत चोट लग गया जल गया
20:16तो भी चिलाता कौन है मन चिलाता है ना आप सो रहे हो आप सो रहे हो आपको मच्छर काट गया कोई नहीं बूलता कुछ भी क्योंकि मन सो रहा था
20:28तो तन को कोई काट गया तो कोई आवाज नहीं आती
20:31पर आप जगे हुए हो और यहाँ पे चोट लगगए
20:33आपके कहीं भी चोट लगें दुख तो मन को होता है
20:37इसलिए कई बार शरीर पर चोट नहीं भी लगती तो भी मन को दुख हो जाता है
20:40क्योंकि दुखी होने वाला तन नहीं होता, दुखी होने वाला मन होता है
20:45लेकिन हमें यह बात समझ नहीं आती
20:47तो हम मन के दुख का तन से दो तरह से उपचार ढूडते हैं
20:52एक भोग एक त्याग
20:53भोगी बोलता है
20:55हीरो का हार लेके आओ, मन को मुक्ति मिल जाएगी.
21:00त्यागी बोलता है, तन के सारे वस्तर त्याग दो और सौ दिन उपवास करो, मन को मुक्ति मिल जाएगी.
21:05दोनों ने जान किसकी ले ली?
21:08तन की ली.
21:09उससे क्या होगा?
21:10में भध करें ये तन को थाय कर निगोग अपने इतन करका मआ प्रेशान चाहिए कि
21:22कभी अधिक मांगेIsim
21:28अगर तप अधिक आपये कि अधिक ले रहा है तो प्रुब यह नहीं लिया
21:34वो तब मन खाया आपको तीन डोटी चढ़िए रात को और आप ने खा ली है पांच तो समझ देगा कि तीन खाई है तन्ने तीन खाई है तन्ने आगे बुली है बागी दो मेरे मन किलने खाया मन ने
21:55और मन को रोटी चाहिए, नहीं मन को चाहिए, राम बिनु तन को ताप नजाई, मन को क्या चाहिए था, राम, और राम की जगे खा गया वो, रोटी, दो रोटी, अब दो रोटी मिलके राम हो जाएंगी क्या, नहीं, तो बास, गड़बड हो गई न, तो मन को राम मिले, तन क
22:25तन की जो सहज इच्छाएं हैं उनको नहीं रोकना होता इसलिए तो गीता तुनिया का इतना उचा ग्रंथ है वो बोलते हैं भोग भी नहीं चाहिए त्याग भी नहीं चाहिए भोग वाले धर्शन भी बहुत हुए हैं और त्याग वाले धर्शन होगी तो भारत में कोई कमी
22:55कि तन को छे रोटी खा गए और त्याग ने के लिए भी तुम किसको पकड़ोगे तन को पकड़ेंगे अब तु परहेज करेगा तू यह नहीं करेगा वो नहीं करेगा जमीन पर सोएगा और कुछ पचास चीजे हो सकती ना जीवनभर तू स्तिरी की संगति नहीं करेगा या �
23:25आप जी लियने तो जैसे जी रा हूं और एसा युथ सब्सक्राइब कर दो जाए है यह मिद्ध्याचार क believer कि यह मिद्ध्याचार
23:45जो चीज आपने तन को बंद कर दी मन उसके सच्पनी लेना सुरूर करतेगा यह मिद्ध्याचार है इसलिए rất
23:52वी थो कि झानने वालों ने थोड़ी अलग बनाई है
24:04आम तवर पर गुरुवों को या ज्यानियों को हम दिखाते हैं कि उन्होंने श्वेट वस्तर पहन रखा होगा या गेरुवा ड़ा रखा होगा
24:12या कई बार सिर्फ लंगोट में होते हैं, ऐसे दिखाते हैं जंगल में बैठे होते हैं, उनका खाना पीना कम और ये सब चहरा भी उनका बस अरहता है कि बस चल राद मी किसी तरह कभी बीर जाएगा ऐसे दिखाते हैं ग्यानी को गगिदम मरा हुआ एप इसे दिखाए गये �
24:42कि जो एतिहासिक कृष्ण थे, जो एतिहासिक कृष्ण थे, जन्होंने व्यक्ति के तौर पर जन्म लिया, फिर जीवन हुआ, फिर उनकी मृत्य हुई, वो कैसे दिखते थे हमें नहीं पता सच मुच्छ, लेकिन गीता को देख करके हमने कृष्ण की एक छवी बनाई और �
25:12लेकिन जो हमें कृष्ण की आच्छ भी हमारे सामने आ रही है, कि मोर मुकट है, और मुस्कुर आ रहे हैं, और बहुत सुन्दर दिख रहे हैं, उसकी एक वज़ा है, उसकी वज़ा है गीता की शिक्षा, गीता की शिक्षा यह ही नहीं कि शरीर को बरबाद कर दो, गीता की
25:42गीता कह रही है, दुनिया में तो तुम्हारा काम ही है, अभी थोड़ी देर पहले हम ने गुरुनानक देव की बात करी थी,
25:50गुरुएं ने, सिख गुरुओ ने कहा
25:54कि अगर कोई सिर्फ मीर है तो गडबडे
25:58और अगर कोई सिर्फ पीर है तो वो भी गडबडे
26:00मीर माने वो जो दुनियादारी में लगा है, राजा है,
26:04शासन करता है इस तरह का
26:06और पीर माने जो आध्याथमिक गुरु है
26:08तो उन्हें कहा मीर और पीर को एक होना पड़ेगा
26:11मीरी पीरी का वहाँ पर सिध्धान चलता है
26:13कृष्ण
26:15उसके सर्वोत्ता मुदाहरण है
26:18मीरी पीरी
26:19कर्मयोग
26:23इसलिए कृष्ण को याद भी आप
26:24बाकी चीजों की अप एक्ष्ण सबसे आदा कर्मयोग से रखते हो
26:26जब कृष्ण का नाम आता है तो
26:28सबसे पहले आपको कर्म शब्द कॉंधता है
26:30क्योंकि कृष्ण ये कही नहीं रहे हैं
26:33कि दुनिया माने देह
26:34देह दुनिया एकी चीज़
26:35करें न देह का त्याग करना है
26:38तुम्हें निशकाम कर्म करना है
26:40कर्म तो कर नहीं करना है
26:41दुनिया से संबंध तो रखना ही है
26:43बस उस संबंध में कामना मत रखना
26:46ये खयाल
26:47ये भ्रम अपने अंदर मत आने देना
26:49कि इस दुनिया से तुम्हें कुछ भी मिल जाएगा
26:51जगत तुम्हारा खेल का मैदान है
26:55बेफिकर हो के बिंदास खेल
26:58गीता ककरमयोग यही है बिंदास खेल
27:02खेलो, कामना मत रखना बस
27:05और यह बड़ी एकदम काटे की धार पे चलने वाली बात है
27:11कि खेलो लेकिन कामना रहित हो करके
27:15खेलने जाओना तो कामना आजाती है
27:17यही अभ्यास है
27:19जीना है पर ऐसे जीना है
27:21जैसे पानी पर तेल की बून जीती है
27:25पानी की सतय पर तेल की बून देखिये
27:29पूरी पानी से घिरी हुई है वो पूरी पानी से घिरी है
27:31लेकिन पानी में मिलती कभी नहीं
27:33ऐसे जीना है
27:35देह से भी वैसे ही रिष्टा रखना है
27:36तेल की बूध पानी को नहीं कोई उपदेश देने जाती
27:39पानी अपना काम कर रहा है पानी का अपना एक प्रक्रती है
27:42पानी अपनी प्रक्रती पे चले
27:43तेल की पून जानती है
27:45मैं पानी के साथ हूँ लेकिन पानी से भिननू
27:47वैसे ही अहम को पता रहे
27:49मैं शरीर के साथ हूँ शरीर से भिननू
27:51मैं जगत के साथ हूँ मैं जगत से भिननू
27:53ओ मुझे जगत से पीछा नहीं छोड़ाना
27:55अश्टावगर कितनी सुन्दर वाद बोलते हैं
27:57बोलते हैं मैं बताता हूं मेरा इस देह से और जगत से रिष्टा गया है
28:00रिष्टावगर से पूछिए कि बोले क्या रिष्टा रखना है
28:03यही सारे अध्यात्म का प्रितपात्दे विशय होता है
28:06कि जगत से रिष्टा क्या रखना है
28:08what should be my relationship with the world
28:09मैं क्यों में रिष्टा
28:10रिष्टा और कहते हैं मेरा ये रिष्टा है
28:12कि अगर इसी पल ये देह गिरती है तो गिर जाए
28:16और मेरा ये रिष्टा है कि अगर
28:18मैं एक हजार साल भी जी हूँ इस देह में
28:20तो कोई समस्या नहीं है
28:21मेरी मुक्ति देह पर आश्रित नहीं है
28:26मैं एक हजार साल तक भी ये देह चल रही है
28:29तो चले मैं खेलूँगा
28:30एक जनक नहीं मैं सौ जनकों को तयार करूँगा
28:35उपदेश दूँगा
28:35और इसी पल अगर मौत आती है
28:37तो आजाए मुझे उसमें भी कोई समस्या नहीं है
28:39ये है
28:40पूरा खेलूँगा
28:42अकामना कुछ नहीं है
28:43खेलने में ये कामना नहीं ये खेल चलता रहे
28:45अभी समापत होता हो खेल अभी समापत हो जाए
28:47वही जो आप बोलते कि मौझ में रहो जो भी कर्पना है
28:52बस कर्म से रखो
28:54और आपने यही उदाराड भी दिया था ना
28:56कि यदि हम शरीर को ऐसे नाव की तरस लेकर से चले
28:58तो उस भवसागर से पार होने के लिए नाव आवश्यक है
29:01लेकिन नाव पर ही नहीं ठीके रह जाना है
29:03और नाव ऐसी भी नहीं हो कि उस पानी में डूप जाए
29:05तो दोनों ही समस्या कर देगी
29:08जिसने सुन्दर और सही संबंध बना लिया शरीर से
29:13वो तर गया
29:15और दोनों अतिया करना बहुत
29:19बहुत संभावित होता है
29:22और बड़ा सधरन बात होती है
29:23कि आप दोनों अतियां कर दे
29:24एक अति होती है
29:25शरीर के भोग में खो जाना
29:28और दूसरी अति होती है
29:31शरीर की भरसना करना
29:32निंदा करना और शरीर को ऐसा कर देना
29:34कि शरीर का एक दम कचुमर बना दिया
29:37कृष्ण याद रखिए
29:40कृष्ण का शरीर
29:42ये जगत है ब्रहमांड है
29:44कृष्ण का जो शरीर है न
29:46वो ब्रहमांड का दियुतक है
29:48तो सौंदर है वहाँ पर
29:51प्रकृति से मुझे एक सुंदर्ता
29:53का रिष्टा रखना है
29:54प्रकृति से मेरा नित्यका रिष्टा रहेगा
29:56प्रक्रति जन नहीं ले लेनी है
30:12कि जन्वर आया उसकी जन ले ली
30:14वहां तो यह रहता है कि वह जंगल में बाज़ी बाज़ाई
30:17तो सップ दरबदर के जन्वर आके खुद ही बैड़ गया उनके पास
30:19ये रिष्टा होना चाहिए प्रकृति से
30:22प्यार का
30:24मुझे तुमसे प्यार है
30:25लेकिन मेरी तुमसे आ सकती नहीं है
30:28बस यही है
30:29जिसने यह सीख लिया गीता हो गई
30:31प्यार है तुमसे पूरा
30:34पर आ सकती नहीं है
30:35अचारी जी
30:41मुझे आप से बहुत सारी वाते अपनी शेयर करनी थी क्योंकि आप से जितना भी ग्यान अर्जीत होता है ना
30:48मुझे पता नहीं कि कितने बड़े स्थर पर हो पाता है लेकिन छोटे-छोटी छीरों में
30:52कि एक तो मेरे घर से शादी का ऐसा दबाव लूट डाल नहीं पाते क्योंकि हम हमेशा रिपलाई करते हैं बड़ लास्टाइम जब उन्होंने फिर से दबाव डाला पहले क्या होता था कि हम उग्रहो कर तो उनको जवाब देते थे फिर आपने उनको शांती सुनको सुना फि
31:22क्या क्योंकि मेरे भाईया से भी रिलेटेट था उसके बाद किसी ने कुछ कहा नहीं दूसरा एक चीज़ था कि आप से गीता तो हम पढ़ ही रहें तो गीता अलग से पढ़ने का मुझे नहीं है क्योंकि आप हैं तो एक तरह से कृष्ण जी पढ़ा रहे हैं तो दूसरी �
31:52से कहीं और डेलिवर कर दिया बनारस में पता नहीं कहां तो हम चाहते तो वो छोड़ भी सकते थे
31:58कोई वो नहीं थी लेकिन मेरे मन में एक ऐसा आखी से एक तरह से क्रिश्नमीरी पर इक्षा ले रहे हैं कि इस युद्ध को हम ऐसे छोड़ देते हैं या थोड़ा उसको सबक तिखाएं तो मैंने ना कंजूमर कोट में केस फाइल कर दिया कि तुम ऐसे कैसे किसी कस्टमर के सा
32:28कि अभी मेरे ओफिस में कुछ लोगों को प्रमोशन मिला क्योंकि उनका असेस्मेंट था हम एक साइंटिस के तौर पर काम करते हैं तो यहां तर ऐसा मिला तो ठीक है हम उसको विश करने के लिए गए कि उस लड़की ने चार साल महनत की इस साल उसको एक अलफाबेट B से C स
32:58अरे C से D तो हो गए चार साल बाद फिर से देखते हैं क्या होता है तो मेरे मन में यही आ गया कि एक तो बेकार का काम और उपा से उसमें भी हम यह नहीं देख रहे हैं कि हम किसके पीछे भाग रहे हम बस दोड़े चले जा रहे हैं और जिस चीज के लिए दोड़े चले ज
33:28करना नहीं चाहता है जब करने चाहो तो भगातने है आप के वल यहां पर पेपर पॉब्लिकेशन और आपका प्रमोशन यह दो चीजों के लिए लोग पीछे भागते रहे हैं मशीन की तरह से तो मुझे वह बार बार बार बहुत साफ आपका दिखता है कि यह जो चल रहा ह
33:58हम अभी अपने आपको तयार कर रहे हैं अगर वो यह जो पाई तो हम आप लोगों कि मतबाद की सेवा करने के लिए ही हम पूरी तरह से तयार है क्योंकि एक मौह भांग होता जा रहे है क्या चल रहा है बहुत मन में बेचानि में रहती है और अजीब सा चीज किविए शां
34:28आजी बाद भूल जाते हैं, आचारे जी मेरे साथ हर बार यही होता है, बहुत हिम्मत करके और याद करके इतना कुछ बोल पाएं हैं, लेकिन जो भी है आप से पता नहीं, सच में आचारे जी, और आचारे जी बस एक निवेदन, जब तन के माध्यम से ही हम लोग सब कुछ �
34:58सब ही पत्तिभागियों की तरफ से अगर अगर अधंड़ता आप कहिए तो जो भी कहिए, लेकिन यह हम सब के लिए बहुत बहुत आवश्य के आचारे जी, आप हैं तो हम लोग जीना सिखें, वन्ना पतानी क्या हो उन सब का, तो प्रीज अपना ध्यान लगी आचारे जी
35:28बहुत अच्छी बात है, नहीं तो महाभारत पर कुछ चार पात साल पहले, दस बीज घंटे अप कुछ तीज घंटे का मैंने बोला हुआ है और वो कोर्स फॉर्म में, वेबसाइट पर दला भी हुआ है, तो उसको देख लीजेगा, और उसकी जो पुस्तक है वो भी प्रक
35:58पुस्तक है, तो वीडियो मिलेगा क्या, वीडियो भी है उसका और उसकी किताब भी पूरी छपी हुई है, ठीक है, क्योंकि हमें जानना है कि मतलब क्या क्या हुआ रहा होगा उस समय सब को, तो गीता जो अभी कोर सल रहा, इससे पहले एक बार पूरी गीता रशिंखला प
36:28कर दे पारिए है कि सक्षिंखलाश मिलिगा या केरम कांसal जी से चे抜ाई भात कर लीजियो, कर देंगे, आक्थिमेट ठीकी
36:40हमाबशी
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